Saturday, December 19, 2020

The science of the Subtle System - Hindi Artic;e

 शरीर_विज्ञान व अष्टचक्र : अष्टांग योग का चक्रों से संबंध

आयुर्वेद में बताया गया है कि जीवन में सदाचार को प्राप्त करने का साधन योग मार्ग को छोड़कर दूसरा कोई नहीं है। नियमित अभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही योग के संपूर्ण लाभ को प्राप्त किया जा सकता है। हमारे ऋषि मुनियों ने शरीर को ही ब्रम्हाण्ड का सूक्ष्म मॉडल माना है। इसकी व्यापकता को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद शक्ति केन्द्रों को जानना ज़रूरी है। इन्हीं शक्ति केन्द्रों को ही ‘’चक्र कहा गया है।


#अष्टचक्र


आयुर्वेद के अनुसार शरीर में आठ चक्र होते हैं। ये हमारे शरीर से संबंधित तो हैं लेकिन आप इन्हें अपनी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं कर सकते हैं। इन सारे चक्रों से निकलने वाली उर्जा ही शरीर को जीवन शक्ति देती है। आयुर्वेद में योग, प्राणायाम और साधना की मदद से इन चक्रों को जागृत या सक्रिय करने के तरीकों के ब्बारे में बताया गया है। आइये इनमें से प्रत्येक चक्र और शरीर में उसके स्थान के बारे में विस्तार से जानते हैं।


Contents


1 आठ चक्रों का वर्णन :

1.1 1- मूलाधर चक्र :

1.2 2- स्वाधिष्ठान चक्र :

1.3 3- मणिपूर चक्र :

1.4 4- अनाहत चक्र :

1.5 5- विशुद्धि चक्र :

1.6 6- आज्ञा चक्र :

1.7 7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :

1.8 8 – सहस्रार चक्र :

2 योग और अष्टचक्र का संबंध :

3 योग क्या है :

4 महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग :

4.1 1- यम :

4.1.1 अहिंसा :

4.1.2 सत्य :

4.1.3 अस्तेय :

4.1.4 ब्रम्हचर्य :

4.1.5 अपरिग्रह:

4.2 2- नियम :

4.3 3- आसन :

4.4 4- प्राणायाम :

4.5 5- प्रत्याहार :

4.6 6- धारणा :

4.7 7- ध्यान:

4.8 8- समाधि :

आठ चक्रों का वर्णन :

1- मूलाधर चक्र :

यह चक्र मलद्वार और जननेन्द्रिय के बीच रीढ़ की हड्डी के मूल में सबसे निचले हिस्से से सम्बन्धित है। यह मनुष्य के विचारों से सम्बन्धित है। नकारात्मक विचारों से ध्यान हटाकर सकारात्मक विचार लाने का काम यहीं से शुरु होता है।


2- स्वाधिष्ठान चक्र :

यह चक्र जननेद्रिय के ठीक पीछे रीढ़ में स्थित है। इसका संबंध मनुष्य के अचेतन मन से होता है।


3- मणिपूर चक्र :

इसका स्थान रीढ़ की हड्डी में नाभि के ठीक पीछे होता है। हमारे शरीर की पूरी पाचन क्रिया (जठराग्नि) इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है। शरीर की अधिकांश आतंरिक गतिविधियां भी इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है।


4- अनाहत चक्र :

यह चक्र रीढ़ की हड्डी में हृदय के दांयी ओर, सीने के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे मौजूद होता है।  हमारे हृदय और फेफड़ों में रक्त का प्रवाह और उनकी सुरक्षा इसी चक्र द्वारा की जाती है। शरीर का पूरा नर्वस सिस्टम भी इसी अनाहत चक्र द्वारा ही नियत्रित होता है।


5- विशुद्धि चक्र :

गले के गड्ढ़े के ठीक पीछे थायरॉयड व पैराथायरॉयड के पीछे रीढ की हड्डी में स्थित है। विशुद्धि चक्र शारीरिक वृद्धि, भूख-प्यास व ताप आदि को नियंत्रित करता है।


6- आज्ञा चक्र :

इसका सम्बन्ध दोनों भौहों के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर स्थित पीनियल ग्रन्थि से है। यह चक्र हमारी इच्छाशक्ति व प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है। हम जो कुछ भी जानते या सीखते हैं उस संपूर्ण ज्ञान का केंद्र यह आज्ञा चक्र ही है।


7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :

यह चक्र हाइपोथेलेमस में स्थित है। इसका कार्य हृदय से सम्बन्ध स्थापित करके मन व भावनाओं के अनुरूप विचारों, संस्कारों व मस्तिष्क में होने वाले स्रावों का आदि का निर्माण करना है, इसे हम मन या भावनाओं का स्थान भी कह सकते हैं।


8 – सहस्रार चक्र :

यह चक्र सभी तरह की आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क व ज्ञान से है। यह चक्र पीयूष ग्रन्थि (पिट्युटरी ग्लैण्ड) से सम्बन्धित है।


इन आठ चक्र (शक्तिकेन्द्रों) में स्थित शक्ति ही सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जान्वित (एनर्जाइज), संतुलित (Balance) व क्रियाशील (Activate) करती है। इन्हीं से शारीरिक, मानसिक विकारों व रोगों को दूर कर अन्तःचेतना को जागृत करने के उपायों को ही योग कहा गया है।


अष्टचक्र व उनसे संबंधित स्थान एवं कार्य


क्र. सं.


संस्कृत नाम


अंग्रेजी नाम


शरीर में स्थान


संबंधित अवयव व क्रियाएं


चक्र की शक्ति निष्क्रिय रहने से उत्पन्न होने वाले रोग


अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर क्रियाएं


क्रिया शरीरगत तंत्र


1-मूलाधार चक्र


Root cakra or pelvic plexus or coccyx center


रीढ़ की हड्डी


उत्सर्जन तत्र, प्रजनन तत्र, गुद, मूत्राशय


मूत्र विकार, वृक्क रोग, अश्मरी व रतिज रोग


अधिवृक्क ग्रन्थि


उत्सर्जन तंत्र  मूत्र व प्रजनन तत्र


2-स्वाधिष्ठान चक्र


Sacral or sexual center


नाभि के नीचे


प्रजनन तत्र


बन्ध्यत्व, ऊतक विकार, जननांग रोग


अधिवृक्क ग्रन्थि


प्रजनन तंत्र


3-मणिपूर चक्र


Solar plexus or lumbar center or epigastric Sciar plexus


छाती के नीचे


आमाशय, आत्र, पाचन तंत्र, संग्रह व स्रावण


पाचन रोग, मधुमेह, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी


लैगरहेन्स की द्वीपिकायें (अग्न्याशयिक ग्रन्थि)


पाचन तंत्र


4-अनाहत चक्र


Heart chakra or cardiac plexus or dorsal center


छाती या सीने का का बीच वाला हिस्सा (वक्षीय कशेरुका)


हृदय, फेफड़े , मध्यस्तनिका, रक्त परिसंचरण, प्रतिरक्षण तत्र, नाड़ी तत्र


हृदय रोग, रक्तभाराधिक्य (रक्तचाप)


थायमस ग्रन्थि (बाल्य ग्रन्थि)


रक्त परिसंचरण तत्र, श्वसन तंत्र , स्वतः प्रतिरक्षण तंत्र


5-विशुद्धि चक्र


Carotid plexus or throat or cervical center


थायराइड और पैराथायरइड ग्रन्थि


ग्रीवा, कण्ठ, स्वररज्जु, स्वरयत्र, 

चयापचय, तापनियत्रण


श्वास, फेफड़ों से जुड़े रोग, अवटु ग्रन्थि, घेंघा


अवटु ग्रन्थि


श्वसन तंत्र


6-आज्ञा चक्र


Third eye or medullary plexus


अग्रमस्तिष्क का केन्द्र


मस्तिष्क तथा उसके समस्त कार्य, एकाग्रता, इच्छा शक्ति


अपस्मार, 

मूर्च्छा, पक्षाघात आदि अवसाद


पीनियल ग्रन्थि


तत्रिका तंत्र


7-मनश्चक्र या

बिन्दुचक्र


Lower mind plexus or hypothalamus


(चेतक) 

थेलेमस के नीचे


मस्तिष्क, हृदय, समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का नियत्रण, निद्रा आवेग, मेधा, स्वसंचालित तत्रिका तत्र समस्थिति


मनःकायिक तथा तत्रिका तत्र


पीयूष ग्रन्थि


संवेदी तथा प्रेरक तंत्र


8-सहस्रार चक्र


Crown chakra or cerebral gland


कपाल के नीचे


आत्मा, समस्त सूचनाओं का निर्माण, अन्य स्थानों का एकत्रीकरण


हार्मोन्स का असंतुलन, चयापचयी विकार आदि


पीयूष ग्रन्थि


केन्द्रीय तत्रिका तंत्र (अधश्चेतक के 

द्वारा)


योग और अष्टचक्र का संबंध :

अष्ट चक्रों को जानने व उनके अन्दर स्थित शक्तियों को जागृत व उर्ध्वारोहण के लिए क्या योग है? इसको समझना बहुत आवश्यक है। हर एक योग किसी ना किसी चक्र को जागृत करता है.

Friday, December 18, 2020

Paramchaitanya - From beginning to end - Hindi Article

 परम चैतन्य की सहाय्यता से सब कार्य होते हैं। 


चैतन्य के प्रकाश से ही सृष्टि का निर्माण हुआ । 

चैतन्य ही सारे सृष्टि में कण कण में विराजता है।

 चैतन्य का प्रकाश मतलब आत्मा का प्रकाश उस से हम जान सकते है सत्य और असत्य क्या है। 

चैतन्य के प्रकाश से मिथ्या अपने आप नष्ट होता है। 

चैतन्य की भाषा प्रेम की और परमात्मा की भाषा होती है।

 जो लोग बुरे कार्य करते है उन्हें चैतन्य दण्डित करता है। 

बुराई का नाश परमचैतन्य करता है और सत्य को विजय दिलाता है। 

जो लोग चैतन्य के प्रकाश के आशीर्वाद में होते हैं उनके साथ स्वयं श्री गणेश और श्री हनुमान रहते हैं। 

सारे देवीदेवता उनकी पवित्रता की, उनकी रक्षा करते हैं।



 चैतन्य सहजयोगी को बताता है कि किस मार्ग पर चलना है।

 किस प्रकार कार्य करने से सहजयोगी की विजय हो सकती है उनका भला हो सकता है।

 सहजयोगी को जिद्द कभी नही करनी चाहिए । जो मार्ग परमचैतन्य बताता है उस मार्ग पर हमेशा चलना चाहिये। 

चैतन्य स्वयं अपने आप कार्य करता है सिर्फ आपका चित्त शुद्ध होना चाहिए। आपकी इच्छा शुद्ध होनी चाहिये।

किसी चीज से डरने की सहजयोगी को आवश्यकता नहीं। 

चैतन्य मतलब शक्ति का प्रकाश मतलब माँ दुर्गा स्वयं सहजयोगी के साथ रहती हैं। 

अत्यंत आनंदमय स्थिति में रहना चाहिए। 

परेशान होनेकी जरुरत नहीं। 

परम चैतन्य के शक्ति का महत्व सहजयोगी को जानना चाहिए। अगर सहजयोगी बुराई की रास्ते पर जाये तो वही चैतन्य उस सहजयोगी को दण्डित भी कर सकता है। 

हर कार्य अत्यंत आत्म विश्वास के साथ सहजयोगी को करना चाहिए। 

सहजयोगी का मतलब होता है "शक्ति के पुजारी"।

 आप हर कार्य से शक्ति को प्रसन्न करें। 

सारे ही देवी देवता आपके साथ खड़े होंगे। सारे सृष्टि में परम चैतन्य की (पावनता की) शक्ति को फैलाने का का कार्य सहजयोगी को करना है।

सब कुछ बदल डालो और एक नया व्यक्ति बनो। फूल की तरह आप फूलते हैं, फिर वृक्ष बनता है और फिर आप स्थान ग्रहण करते हैं। 

सहजयोगी बनकर स्थान ग्रहण करें। ये आसान है। मुझे प्रसन्न करना होगा। 

क्योंकि मैं ही चित हूँ। मैं प्रसन्न हो गयी तब आपका काम होगा। 

पर भौतिक चीजों से या चर्चा करने से मैं प्रसन्न नहीं हो सकती। मैं प्रसन्न होती हूँ- आपकी तरक्की से। इस लिये स्वयं की तलाश करो।


परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी

21.5.1984



Friday, November 27, 2020

How can one be both thoughtless and aware at the same time?

 How can one be both thoughtless and aware at the same time?


The term ‘Nirvichaarita’ in Hindi is better understood than its English version we use often – ‘thoughtless awareness’ – sounds like an oxymoron combination.


The meaning is simple – empty you cup so that it can be filled with divine wisdom.

Our minds are restless – we have incessant thought pouring in from everywhere – from the past, present, future and even non-existent corners of the universe – a space created by our own minds! 


Once we are able to stop these frivolous thoughts based on our miniscule understanding of this world, our habits, experiences and conditionings…we can delve deeper into the bliss of divine nectar. For that we need to practice ‘nirvicharita’ or ‘thoughtless awareness’ which is brought about through authentic meditation with the grace of a true spiritual master or SadhGuru. For us Sahaja yogis, Shri Mataji Nirmala Devi is the guru who blessed us with the divine wisdom in the form of Sahaja Yoga.





Friday, November 20, 2020

Get rid of dualism - That is your goal - Sahaja Yoga Hindi Article

 द्वैतवाद से मुक्ति आपकी मंजिल है।


"लोग पूछेंगे,"सत्य क्या है?" 

प्रकाश के बिना, हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं ? मान लो कि आपको सड़क पर या अन्य किसी जगह पर एक रस्सी पड़ी हुई मिलती है, और आप डर जाते हैं। 

जब तक आप उस पर रोशनी डाल कर यह सुनिश्चित नहीं करते कि यह तो केवल एक रस्सी है, और वह (साँप) एक भ्रम था, तब तक आप अपने आप को कैसे समझांएगे कि यह साँप नहीं है, बल्कि यह मात्र एक रस्सी पड़ी हुई है। अतः पहली चीज़ है कि आपका चित्त आलोकित होना चाहिए । और आपको अपनी अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए, सत्य को खोजना होगा।

 और तब आप जान पाते हैं कि यह स्व, यह आत्मा, आनंद बिखेरती है - ऐसा आनंद जो सुख और दुख की द्वैतवाद से परे है। वैसा बनने के लिए आपको उससे परे जाना होगा, द्वैतवाद से परे। वही आपकी मंजिल है।"


प.पू माता जी श्री निर्मला देवी ।

21 नवंबर 1979.



Thursday, November 19, 2020

Shri Ganesh helps Mother Kundalini Shakti to rise

 श्री गणेश के बगैर कुण्डलिनी चढ़ नहीं सकती


“...यह समझ लिजिए कि परम-चैतन्य चारों ओर फैला हुआ है। लेकिन उसका असर तभी आता है जब आपके अन्दर पवित्रता होगी। अगर आप पवित्र नहीं है, आपके विचार शुद्ध नहीं हैं, या आप किसी और ही सतह पर रह रहे हैं, तो आप सहज की गहराई में नहीं उतर सकते। यह सूक्ष्मता जो आपने सहज में प्राप्त की है, इसमें सबसे बड़ा काम श्री गणेश ने किया है। तो श्री गणेश परम चैतन्य के चेतक हैं। ऐसा कहना चाहिए कि श्री गणेश से ही यह परमचैतन्य आलोकित हुआ है। और हर एक चक्र पर यह कार्य करते हैं। हर चक्र में जब तक निर्मलता, पवित्रता न आ जाए तब तक कुण्डलिनी का चढ़ना असम्भव है। और चढ़ती भी है तो वो बार-बार गिर जाती है। कुण्डलिनी और गणेश जी का सम्बन्ध माँ और बेटे का है...


श्री गणेश के बगैर तो कुंडलिनी चढ़ नहीं सकती क्योंकि कुंडलिनी गौरी हैं और उस गौरी को उत्थान करने में श्री गणेश उसके साथ हर समय उसे संरक्षित करते हैं। इतना ही नहीं हर चक्र पर जब कुंडलिनी चढ़ जाती है तो उसके मुँह को बंद करके कुंडलिनी को गिरने से रोकते हैं।”  


-श्री गणेश पूजा

5 दिसंबर 1993

दिल्ली, भारत



Friday, October 23, 2020

Lethargic vs. overactive - the Sahaja cure - Hindi Article

 अतिकर्मी और आलसी प्रवृत्ति, इनके दोष व उपचार .....


         मैं एक ऐसे बहुत अच्छे साधक को जानती हूँ, जो मेरे पास आया और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया परंतु उसे इसका आभास हाथों पर नहीं हुआ, क्योंकि उसका विशुद्धि चक्र बहुत खराब था। और खराब विशुद्धि के कारण आप इसे हाथों पर महसूस नहीं कर पाते, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप शांति का अनुभव करते हैं, आप आनंद का अनुभव करते हैं और आप इसे सिर के तालू भाग पर भी महसूस कर सकते हैं या दूसरे लोग इसे पूरी तरह से महसूस कर सकते हैं। धीरे धीरे आपकी उंगलियों में सुधार होगा और वो आपको अच्छे परिणाम देंगी। सहजयोग में हम प्रत्येक अंग में दो तरह की प्रकृति देखते हैं। एक आलसी प्रकृति (कोई काम न करना) है, और दूसरी है अतिकर्मी प्रकृति (जरूरत से ज्यादा काम करना/सोचना) । मान लें आप एक अतिकर्मी व्यक्ति हैं और आप अगर अतिकर्मी व्यक्ति हैं, आप बहुत मेहनत से पढ़ाई कर रहे हैं, भविष्य के बारे सोच रहे हैं या कोई योजना बना रहे हैं तो आपके पास अतिकर्मी हृदय होगा या आपका पाचन तंत्र अतिकर्मी होगा, आपका लीवर अतिकर्मी होगा और आपका पूरा तंत्र अतिकर्मी होगा, जिसके कारण आपको उच्च रक्तचाप होगा, उच्च रक्तचाप से संबंधित सारी समस्याएं होंगी, कब्ज होगी और ऐसी सभी समस्याएं एक अतिकर्मी व्यक्तित्व में पाई जाती हैं ।

।*

         अब दूसरी तरह का व्यक्ति आलसी प्रकृति का होता है। अगर आप आलसी व्यक्ति हैं तो आपका हृदय भी आलसी होगा और ऐसे व्यक्ति को या तो बाई पास सर्जरी करवानी पड़ेगी या ऐसा ही कुछ करवाना पड़ेगा, क्योंकि हृदय आलसी होने के कारण उचित रूप से रक्तसंचार नहीं करता। जब आपका लीवर आलसी हो जाता है तो आपको तरह तरह की एलर्जी हो जाती है। इसके विपरीत अगर आप अतिकर्मी लीवर वाले व्यक्ति हैं तो वही लीवर जो आपको अनेक तरह की एलर्जी दे रहा था, वही लीवर आपको जी मचलाना, बीमार महसूस करना, एक तरफ का सिरदर्द होना, उल्टी आना और घबराहट जैसी समस्याएं देगा। अतः अगर आप आलसी व्यक्ति हैं, आप आलस्य की समस्या से पीड़ित हैं तो आप को प्रकाश का प्रयोग करना चाहिए। आलस या सुस्ती संबंधित सभी समस्याओं के लिए प्रकाश सर्वोत्तम है, बांए भाग और आलस्य संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रकाश (मोमबत्ती इत्यादि) का प्रयोग करें। और दांई ओर की समस्याओं के लिए आप धरती मां का सहारा ले सकते हैं। धरती मां सर्वोत्तम है या फिर पानी और नमक। अतः उन लोगों के लिए जो अतिकर्मी की समस्या से पीड़ित हैं उनके लिए पानी और नमक बहुत अच्छा है। अब आप इसे कैसे करते हैं? यह (जल क्रिया) दोनों समस्याओ के लिए ठीक है। विशेषकर दांए भाग की समस्याओं के लिए। पहले आपको दोनों हाथ मेरे फोटोग्राफ के आगे फैला कर बैठना है, अपने दोनों पैर थोड़े नमक वाले पानी में डालकर। अब अगर आप दोनों हाथों में बराबर चैतन्य महसूस कर रहे हैं तो यह ठीक है और आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है। अब मान लें कि एक हाथ में चैतन्य ज्यादा है और एक हाथ में कम है तो जिस हाथ में चैतन्य कम है वह हाथ हमेशा मेरे फोटोग्राफ की तरफ़ रहेगा। जिस हाथ में चैतन्य कम हो वह मेरी तरफ़ और दूसरा हाथ बाहर रहेगा और आप इसे महसूस कर सकते हैं कि आपके सिर में कुछ चल रहा है और आप शांत अनुभव करते हैं। धीरे धीरे आप स्वयं के गुरू बन जाएंगे और आपको पता चल जाएगा कि इस शरीर को किस प्रकार से व्यवस्थित करना है। आप पूर्णतः अपने गुरु बन जांएगे। सबसे पहले आपको संवेदनशील बनना पड़ेगा। इसके लिए मैं आपको सुझाव देती हूँ कि आप अपने हाथों और पैरों की उंगलियों पर जैतून के तेल का प्रयोग करें, अपनी उंगलियों को संवेदनशील बनाने के लिए अच्छे तरीके से मालिश करें। क्योंकि विभिन्न कारणों से हमारे हाथ संवेदनहीन बन चुके हैं। इसे अच्छी तरह से महसूस करने के लिए किसी बढ़िया जैतून के तेल की अच्छी तरह से मालिश करें।


 🌹🌹*परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी, 🌺🌺

           सिडनी कार्यशाला 1983*

Sahaja Yogis represent Shri Mataji - Hindi Article

 आपको जानना चाहिए कि आप मेरा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं,मेरे कुछ गुणों को अपने अन्दर स्थापित करने की कोशिश कीजिये।आपको सबुरी दिखानी होगी।इसके लिए सबसे अच्छा साधन हैं की आप प्रार्थना करें।सहजयोगीयों के लिए प्रार्थना करना बहुत महत्वपूर्ण है।हृदय से प्रार्थना कीजिये।

१)सबसे पहले आपको शक्ति मांगनी है-श्री माताजी मुझे शक्ति प्रदान कीजिये,जिससे में वास्तविक बन सकूँ।में अपने आपको धोका न दे सकूँ।श्री माताजी मुझे स्वयं को देखने की शक्ति प्रदान कीजिये।ऐसा पूर्ण हृदय से कहिये की में स्वयं को सुधारने(परिवर्तन करने) कि पूर्ण कोशिश करूँगा।ये सभी कमियां आपके स्वयं कि नहीं हैं,ये सब बाहर में हैं और ये सभी बाहर चली जायेंगी तो आप ठीक हो जायेंगे।

२)अब आप क्षमा के लिए प्रार्थना करें और कहें कि श्री माताजी मुझे क्षमा कर दीजिये,क्योंकि में अज्ञानी हूँ,मुझे पता नहीं हैं कि मुझे क्या करना हैं,इसलिए श्री माताजी मुझे क्षमा कर दीजिये।

३)सबसे पहली चीज हैं क्षमा प्रार्थना और दुसरी चीज है मधुर वाणी का मांगना।श्री माताजी मुझे मधुर वाणी प्रदान कीजिये।श्री माताजी मुझे एसी प्रेरणा दीजिये जिससे में दुसरो के लिए आदान-प्रदान का माध्यम बन सकूँ,दुसरे मेरी इज्जत करें,मुझे पसंद करें और मेरी उपस्थिति को पसंद करें। 

४)श्री माताजी मुझे शक्ति प्रदान कीजिये,श्री माताजी मुझे प्रेम दीजिये,श्री माताजी मुझे प्रकृति की सुन्दरता प्रदान कीजिये,श्री माताजी  मुझे सूझ-बुझ की सुन्दरता प्रदान कीजिये।श्री माताजी मुझे मेरी आत्मा की सुरक्षा प्रदान कीजिये जिससे में स्वयं को असुरक्षित महसूस न करूँ,जिससे दूसरों को मेरी वजह से दिक्कत ना हो।श्री माताजी मुझे आत्मसन्मान प्रदान कीजिये,जिससे में स्वयं को छोटा न महसूस करूँ,और दुसरे मुझे छोटा न समझें।श्री माताजी मुझे शक्ति प्रदान कीजिये जिससे मुझमें साक्षीभाव आये।

५ )श्री माताजी मुझे संतुष्ट कर दीजिये,में जो भी हूँ,मेरे पास जो कुछ भी हैं,में जो भी खाता हूँ,उन सभी से में संतुष्ट रहूँ।मेरे चित्त को इन सभी चीजों से बहार क्र दीजिये।(अगर आपका चित्त आपके पेट पर है तो आपको लीवर समस्या हो जाएगी चाहें आप कुछ भी करें) ।अगर मेरा चित्त एसी चीजों में भटकता हैं तो श्री माताजी मुझे मेरे चित्त को वापस लाने की शक्ति प्रदान कर दीजिये।में एसी वस्तुओं में फंसने से बच सकूँ जो मेरे चित्त को अपनी और खींचती हैं।श्री माताजी कृपया मुझे चित्त-निरोध शक्ति प्रदान करें।

६)श्री माताजी कृपया मेरे विचारों को रोक दीजियें।मुझे साक्षी भाव प्रदान कीजिये,जिससे में यह नाटक देख सकूँ।में कभीभी किसीकी बुराई न करूँ ना ही किसीको निचा दिखाओं में देख सकूँ के दुसरे व्यक्ति मुझसे खुश क्यों नही हैं।श्री माताजी कृपया मुझे शक्ति दीजिये जिससे मेरी वाणी मधुर हों,मेरी प्रकृति मधुर हो,जिससे दुसरें लोग मुझे पसंद करें और मेरे साथ रहकर आनंद उठाये।आपको हृदय से प्रार्थना करनी होगी।

७)श्री माताजी मुझे फूल की तरह बना दीजिये,काटें की तरह नहीं।आपको हृदय से प्रार्थना करनी होगी।यह सभी प्रार्थना आपको मदद करेंगी।उसके बाद सबसे महत्वपूर्ण प्रार्थना करनी होगी कि श्री माताजी मुझे अहंकार से दूर कर दीजिये,जो मुझे यह विचार देता हैं कि में दूसरों से बड़ा हूँ।

८)श्री माताजी कृपया  मुझे एसी नम्रता प्रदान कर दिजिये जिससे में दूसरों के हृदय को जित सकूँ।आप सिर्फ अपना सिर झुकाइए और सीधा हृदय की और जायेगा।जैसे ही आप अपना सिर सिर झुकायेंगे,वहीं पर हृदय है जहाँ आत्मा का वास हैं।आत्मा के साथ जुड़ जाइए।

९)इस बात को समझने की कोशिश करिए की इन बुराइयों को चलें जाना बहुत जरुरी हैं।उपरोक्त बातों(बुराइयों) से बचने के लिए हमें प्रार्थना करनी हैं और सहायता मांगनी है।हृदय से प्रार्थना करना बहुत बड़ी बात हैं।

१०)हे परमात्मा हमें इतनी शक्ति प्रदान कीजिये कि मैं हमेशा अपनी माँ को प्रसन्न रख सकूँ।मैं अपनी माँ को खुश करना चाहता हूँ।मैं अपनी माँ कप खुश करना चाहता हूँ।

एक ही चीज़ मुझे ख़ुशी दे सकती है कि जैसा प्यार मैंने आपसे किया है,वही प्यार आप एक दुसरे से करें 

                            


                               -श्री माताजी निर्मला देवी

Sahaja Treatments for various diseases - Hindi Article

 रोग एवं उनके सहज उपचार(पहला भाग)

एलर्जी

 बांयी नाड़ी प्रधान लोगों के शिथिल या लिथार्जिक लिवर के कारण उन्हें एलर्जी हो सकती हैं। इन लोगों को लिथार्जिक लिवर के कारण कई प्रकार की एलर्जी हो सकती हैं।(9.2.1983 नई दिल्ली, निर्मला योग सं0 25)

बच्चों को एलर्जी क्यों होती हैं. उनकी बांयी नाभि में पकड़ के कारण ऐसा होता है। इसका कारण मां है, क्योंकि बच्चा अभी अविवाहित है। मां की बांयी नाभि के कारण बच्चे को भी बायीं नाड़ी की समस्या हो जाती है। अच्छा है कि पहले मां की और बाद में बच्चे की बांयी नाड़ी को ठीक किया जाय। इसके लिये बांयी ओर की समस्या को मोमबत्ती की लौ द्वारा ठीक किया जा सकता है। अपने दांये हाथ को बच्चे की बांयी नाभि पर रखकर अपने बांये हाथ को मोमबत्ती की लौ पर रखें। समस्या खत्म हो जायेगी।(राहुरी 13.4.1986)

प्रश्नः गाय के दूध से एलर्जी और एक्जिमा के बिगड़ने के क्या कारण हैं।

 उत्तरः गाय का दूध बांयी नाड़ी की समस्याओं को जन्म देता है क्योंकि वह मां है। वैसे दूध चाहे गाय का हो या भैंस का, इनसे एलर्जी होती ही हैं। परंतु यदि अपने से छोटे जानवरों का दूध पियें जैसै महात्मा गांधी बकरी का दूध पिया करते थे तो आपको ऐसी समस्यायें नहीं हो सकतीं।(Rahuri Q&A 13/4/1986)


अधिकांश एलर्जी ठंडे गर्म से होती हैं अर्थात् पहले ठंडे पानी में और बाद में गरम पानी से नहाने से, पहले कौफी और बाद में तुरंत ठंडा पानी पीने से। इस प्रकार का तीव्र बदलाव शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाता। बांयी नाभि क्षेत्र में स्प्लीन होती है जो हमारे शरीर का स्पीडोमीटर और एडजस्टर होता है। यह तीव्र बदलाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता और समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं। अतः इसे अचानक अपनी ऊर्जा को लाल रक्त कणिकाओं के प्रवाह को कम या ज्यादा करने के लिये देना पड़ता है। यही कारण है कि स्प्लीन अपना नियंत्रण खो देती है। (Shivaratri 1987)


एल्ज़ाइमर रोग

 आजकल एल्ज़ाइमर एक नये प्रकार का रोग आ गया है। यह कैसे होता है। यदि कोई व्यक्ति अत्यंत गुस्सैल प्रवृत्ति का है और लोगों को परेशान करता है, तब बुढ़ापे में उसका मस्तिष्क कमजोर हो जाता है परंतु उसकी बुरी प्रवृत्ति (गुस्सा) कार्यरत् रहती है, लेकिन इस रोग से प्रभावित व्यक्ति को इसका पता ही नहीं चल पाता। इसका इलाज संभव है, यदि आप अपने आत्म सात्क्षात्कार को प्राप्त कर लें और पूर्णतः एक शांत व्यक्ति बन जांय तो यह रोग आपको छू भी नहीं सकता और नहीं आपको परेशान कर सकता है। आप एक शांत, सुंदर और प्रेममय व्यक्ति बन जाते हैं।(Talk at Royal Albert Hall, London, 5/7/98)


आर्टीकेरियाः

 आर्टीकेरिया मनोदैहिक रोग है। जब आपका लिवर शिथिल या लिथार्जिक हो जाता है तो यह अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। इसके इलाज के लिये गेरू का प्रयोग करें, इसे पत्थर पर रगड़ें और बच्चे को इसकी काफी कम मात्रा शहद के साथ मिलाकर दें। बड़ों को भी गेरू दिया जा सकता है। वृद्धों के लिये भी यह अच्छा है क्योंकि इसमें घुलनशील कैल्शियम होता है जो अत्यंत लाभकारी है। इसे रोग से प्रभावित स्थान पर लगाकर काले कपड़े से ढक दें। इस समस्या का स्त्रोत बांयी नाभि होता है। लिवर के शिथिल हो जाने से बांयी नाभि भी शिथिल हो जाती है। वह व्यक्ति अपनी ऊर्जा का ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाता। इसके लिये भी बांयी नाड़ी का उपचार करें। पूरे शरीर को काले कपड़े से ढकना सबसे ज्यादा लाभकारी है ताकि शरीर को गर्मी मिल सके। (Shivaratri 1987)


अस्थमा या दमाः

 ब्रोंकियल अस्थमा दांये और बांये दोनों प्रकार के ह्रदय की समस्याओं के कारण होता है। यदि माता पिता दोनों काफी झगड़ालू प्रवृत्ति के हों या उनका तलाक है चुका हो या फिर आपको माता पिता के प्रेम की सुरक्षा न मिली हो तो आपको ब्रोंकियल अस्थमा होने की संभावना होती है। (Rahuri Q&A 13/4/86)


अस्थमा अधिकांशतः बांयी ओर का मनोदैहिक रोग होता है। यह कभी कभी दांयी नाड़ी प्रधान लोगों को होता है जो स्वभाव से अत्यंत शुष्क होते हैं और लोगों पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास करते हैं। उनकी पेरीटोनियम झिल्ली अत्यंत शुष्क हो जाती है। कई बार यह उन लोगों को भी हो जाता है जिनके पिता या तो नहीं होते या वे स्वयं अच्छे पिता नहीं होते, या वे अपने बच्चों को परेशान करते हैं और वे स्वयं से परेशान रहते हैं। इनमें से किसी भी कारण ये रोग हो सकता है। (Shivaratri 1987)


 AlsoSee

 Chug, D.K., et al. (1989) ‘Role of Sahaja Yoga in the management of Bronchial Asthma and a new hypothesis to explain its pathogenesis.’ Proceedings of the XVI World Congress on Diseases of the Chest, Boston, USA

 Chug, D.K. (1997) ‘The effects of Sahaja Yoga in Bronchial Asthma and essential

 Hypertension.’ New Delhi Medicos 13(4-5):46-47; also in Sahaja Scholastica no.59

 Manocha, R., et al. (2002) ‘Sahaja Yoga in the management of moderate to severe asthma: a randomised controlled trial.’ Thorax v57:110-115

 Rai, U.C. (1993) ‘Role of Sahaja Yoga in the treatment of Bronchial Asthma.’ In his: Medical science enlightened, pp98-109


गंजापन


 गंजापन सिर में तेल न डालने के कारण या ठीक प्रकार का तेल न डालने के कारण होता है। तेल को सिर में भली प्रकार से लगाकर खोपड़ी की मालिश करें, सिर की त्वचा की नहीं। मालिश करते समय सिर की त्वचा को खोपड़ी पर घूमना चाहिये। ऐसा करने से आपको गंजेपन की समस्या नहीं होगी। सिर पर खुशबूदार तेल लगाने से भी गंजापन होता है। घी को सिर पर मालिश के लिये प्रयोग नहीं करना चाहिये।

 जैसा मैने आपको बताया कि गंजापन दो प्रकार का होता है। कुछ लोग सामने से या माथे से गंजे होते हैं और कुछ पीछे से गंजे होते हैं या कुछ लोग दोनों ही प्रकार से गंजे होते हैं। जो लोग सामने से या माथे से गंजे होते हैं, उनमें एकादश रूद्र की समस्या होती है या फिर वे सामूहिक नहीं होते तो उनके बाल सामने से गंजे होने लगते हैं। पीछे की ओर से गंजे होने वाले लोग अच्छे पति नहीं होते या उनकी पत्नियां अच्छी नहीं होती। यदि पति पत्नी के रिश्ते में दरार रहती है तब भी ये समस्या आ जाती है। यदि दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रहता या एक दूसरे के प्रति अत्यंत प्रेम की भावना रहती है तब ये सभी कारण बांयी नाभि को दर्शाते हैं। बांयी नाभि गृहलक्ष्मी तत्व होता है जिसमें आप अपने पति या पत्नी के प्रति अत्यंत प्रेम रखते हैं कि वह गृहलक्ष्मी नहीं रह पाती। इसके अलावा भाग दौड़ वाला जीवन भी इसका कारण बन जाता है। आप जैसे यूरोपियन योगियों के मामले में मैं कहूंगी कि अपनी घोर उपेक्षा के कारण ऐसा होता है। क्योंकि आप लोग सिर में बिल्कुल भी तेल नहीं डालते। यदि आप किसी पौधे को पानी न दें तो वह पौधा मर जाता है अतः तेल से ही बालों की सुरक्षा होती है।. (Rahuri Q&A 13/4/86)


ब्लड प्रेशर

 ब्लड प्रेशर कम करने के लिये मां ने शांत रहना सबसे अच्छा बताया।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


कैंसर

 कैंसर के लिये सबसे अच्छा उपचार जल क्रिया है जैसै कि नदी, समुद्र या घर पर या मां के चित्र के सामने बैठकर जल में पैर डालकर बैठना । पानी का धर्म स्वच्छ करना है अतः जल क्रिया से श्री विष्णु और दत्तात्रेय जो मानव के धर्म के लिये उत्तरदायी हैं, की भी पूजा करनी चाहिये। ये आपके बाधित चक्र के देवता को भी प्रसन्न करके उस चक्र का उपचार भी करते हैं। रोगी को मां के चित्र के सामने बैठायें और रोगी के सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम से हाथों को क्रौस करते हुये पानी में डालें। धीरे धीरे रोगी को ठंडक का अनुभव होगा। यदि रोगी को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया हो तो वह ठीक हो सकता है।

(undated letter [1970s?] to Dr.Raul in Nirmala Yoga no.8)


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भयानक रोग जैसै कैंसर आदि के रोगी जिन्हें मैने ठीक किया है वे सबके सब झूठे गुरूओं और तांत्रिकों के शिष्य थे। अभी तक मुझे ऐसा कोई कैंसर का रोगी नहीं मिला जो झूठे गुरूओं और तांत्रिकों से संबंधित न हो। इसीलिये कहा जाता है कि डौक्टरों के पास कैंसर का उपचार नहीं है।

(lecture in Hindi, Delhi, 18/8/79, English translation in Nirmala Yoga no.17)


किसी भी व्यक्ति के कल्कि चक्र में पकड़ आने का अर्थ है कि वह कैंसर या कोढ़ जैसी भयावह बीमारी से ग्रसित है और उसे किसी भी समय भयानक आपदा का सामना करना पड़ सकता है। .

 (undated Talk on Shri Kalki, Nirmala Yoga no.12, 1982)


जब किसी व्यक्ति का विनाश प्रारंभ हो चुका हो उदा0 के लिये वह कैंसर रोग से ग्रसित हो गया हो तब अपने भवसागर के ऊपरी भाग में उसको स्पंदन महसूस होगा। इसका तार्किक अर्थ यह नहीं है कि यदि भवसागर में स्पंदन हो तो वहां कैंसर होगा ही। लेकिन यदि भवसागर में कैंसर है तो वहों पर धड़कन होती रहेगी। इसका अर्थ है कि जीवन बल इसको धकेलने का प्रयास कर रहा है।

(Ekadesha Ruda Puja, 17/9/83, Nirmala Yoga no.21)


एकादश रूद्र आपके मस्तक पर दिखायी देता है तो आपको उस स्थान पर सूजन जैसी दिखाई देती है। अधिकतर कैंसर के रोगियों में, यदि आप उन्हें ध्यान से देखें कि बांयी से दांयी ओर यह सूजन होती है, या दांयी ओर एक गूमड़ जैसा दिखाई देता है।

(Ekadesha Rudra Puja, Austria, 8/6/88)


आपको अपने पेट में वाणी सुनाई नहीं देती लेकिन आपको समस्यायें होने लगती हैं। खासकर कैंसर या अन्य किसी रोग में आपको समस्यायें होने लगती हैं और ये दिखाई भी देने लगती हैं। यदि समस्या है तो वहां पर स्पंदन होने लगता है। ये वाइब्रेशन परावाणी के कारण होते हैं जो बताते हैं कि वहां पर कुछ परेशानी है। इस परेशानी को आप देख भी सकते हैं कि वहां पर स्पंदन होने लगते हैं।.

 (Talk on 8th Day (Ashtmi) of Navaratri 1988; transcript in Talks during Navaratri, Pune 1988)


जीवन के दो चक्र होते हैं, बांया और दांया, जब ये मिलते हैं (जब एक पहलू दूसरे से अधिक सक्रिय हो जाता है) तब आपको मनोदैहिक रोग होने लगते हैं। यदि कुंडलिनी उठती है तब यह उन चक्रों को पोषित करती है। लेकिन यदि आप अपनी दांयी नाड़ी को अधिक प्रयोग करते हैं तो बांया भाग कमजोर हो जाता है और मेन से आपका कनेक्शन कट जाता है और कैंसर प्रारंभ हो जाता है। प्रारंभिक अवस्था में इसका इलाज संभव है न कि बाद की अवस्थाओं में। वैसे हमने कई बाद की अवस्था वाले रोगियों का इलाज भी किया है।

(New Delhi talk to doctors 6/4/97. Transcript in New Delhi Medicos

 13(4-5):32-34)


ब्लड कैंसर

 ब्लड कैंसर अत्यधिक गतिशीलता के कारण होता है। अतः हमें सावधान रहना होगा कि हमारी स्प्लीन ठीक रहे।

(2nd Sydney Talk, 27/3/81)


बांयी नाड़ी के क्षेत्र में स्प्लीन होती है। स्प्लीन स्पीडोमीटर और एडजस्टर है। जब यह एडजस्ट करती है और यदि यह एडजस्टमैंट ठीक से न हो तो आकस्मिक बदलाव के कारण समस्यायें होने लगती हैं। स्प्लीन को अपनी ऊर्जा अचानक लाल रक्त कोशिकाओं के प्रवाह को बढ़ाने या घटाने के लिये देनी पड़ती है। और इस प्रकार स्प्लीन अपना नियंत्रण खो बैठती है। जिन लोगों की दिनचर्या अत्यंत भागदौड़ भरी होती है, यह ब्लड कैंसर का मूल कारण होती है।

(Shivaratri 1987)


स्प्लीन आकस्मिकताओं के लिये लाल रक्त कणिकायें बनाती है। आधुनिक जीवन में हमेशा आकस्मिकतायें बनी रहती हैं। निरंतर मिलने वाले झटकों से स्प्लीन अपना नियंत्रण खो बैठती है और कैंसर के लिये संवेदनशील हो जाती है। ऐसे क्षण में जब बांयी ओर की बाधा आ जाती है तब ब्लड कैंसर हो जाता है।.

 (Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


ब्रेस्ट कैंसर

 भारतीय महिलाओं में पावित्र्य की भावना अत्यंत प्रबल होती है। उनको उनके पावित्र्य से कोई भी डिगा नहीं सकता। यदि उनकी पवित्रता खो जाती है तो तुरंत उनमें एक प्रकार का भय व्याप्त हो जाता है। पवित्रता ही उनकी ताकत है अतः जिन महिलाओं में उनके पावित्र्य को लेकर भय होता है उनका ह्रदय चक्र खराब हो जाता है, ऐसी महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर हो जाता है, सांस की बीमारी और भावनात्मक स्तर पर भी उन्हें अनेकों भयानक रोग हो जाते हैं।.

 (Talk on the Heart Chakra, Delhi, 1/2/83)


गले का कैंसर

 यदि आप अत्यंत अधिक धूम्रपान करते हैं तो विष्णुमाया क्रोधित हो जाती हैं और उनके क्रोध के कारण गले का कैंसर हो जाता है। वह आपका गला खराब कर देती हैं। धूम्रपान से कई प्रकार की नाक, गले व कान की समस्यायें हो जाती हैं क्योंकि उन्हें धूम्रपान पसंद नहीं है। आप गले के कैंसर के लिये काफी संवेदनशील हो जाते हैं।

(Shri Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


दूसरी बात जो लोगों को मालूम नहीं है वह है मंत्र......श्री विष्णुमाया मंत्रिका हैं, वह मंत्रों को शक्ति देती हैं। यदि आप इस दैवीय शक्ति से जुड़े नहीं हैं तो शौर्ट सर्किट हो जाता है। यदि फिर भी आप इन मंत्रों को जपते चले जाते हैं तब आपको गले से संबंधित कई परेशानियां हो जाती हैं जैसै गले का कैंसर। आपको पेट की भी कई परेशानियां हो जाती हैं क्योंकि विष्णु और कृष्ण एक ही हैं, आपको विराट से संबंधित समस्यायें भी हो सकती हैं।.

 (Shri Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


 See also comments under epilepsy: “This treatment is also the same for cancer and other psychosomatic diseases” (Shivaratri 1987)


 [See also: Rai, U.C. (1993) ‘Sahaja Yoga for the treatment and prevention of

 Cancer.’ In his: Medical science enlightened (New Delhi: Life Eternal Trust):166-

174]


सिरोसिस (लिवर भी देखें)

सिरोसिस बांयी ओर की बाधा है जो शिथिल लिवर के कारण होती है और आपको एलर्जी भी होने लगती हैं। सिरोसिस के लिये बांया हाथ मां के चित्र की ओर रखें और दांया हाथ धरती मां पर रखें। पेट पर गरम पानी की बोतल रखें(सिंकाई वाली)। अपने लिवर को प्रकाश या मोमबत्ती से बंधन भी दे सकते हैं।

(Rahuri Q&A 13/4/86)


कब्ज़

 ऐसे सभी लोगों (दांयी नाड़ी प्रधान) के अंग अत्यंत सक्रिय होते हैं। अत्यंत सक्रिय अंगों के कारण उनका ह्रदय काफी खराब हो जाता है और सक्रिय भी। ऐसे ह्रदय में खून का संचार भी तेज होता है और धड़कन भी बढ़ जाती हैं। उनके फेफड़ों में अस्थमा हो जाता है और आंतों में कब्ज़ की शिकायत हो जाती है। उनका लिवर खराब हो जाता है और उनकी त्वचा भी काफी खराब व रूखी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति झगड़ालू और उग्र हो जाते हैं।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


लिवर की गर्मी से कई बार फेफड़े खराब (पिचक) हो जाते हैं जिससे अस्थमा हो जाता है। जब लिवर को अच्छा पोषण नहीं मिलता तो वह अत्यंत सक्रिय हो जाता है। आंतों के सूखने के कारण कब्ज़ हो जाता है। (Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


यदि आपको कब्ज़ की शिकायत है तो अखबार पढ़ें (जिसमें भयावह खबरें होती हैं।) यह बड़ा ही आसान काम है। मैंने कई लोगों को ठीक किया है, वे कहते हैं कि हमें कब्ज़ है, मैं उनको कहती हूं कि सुबह सवेरे अखबार पढ़ो।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


कब्ज़ दूर करने के लिये भारत में कई तरीके हैं जैसै हम अज़वाइन का चूर्ण काले द्राक्ष या अंगूर (मुनक्का) के साथ, खुबानी के साथ संतरे का रस या रात को गर्म दूध लेते हैं।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


रोग एवं उनके सहज उपचार (भाग 2)

डायबिटीज

 डायबिटीज दांयी नाड़ी की क्रिया है जो बांयी नाड़ी के कारण होती है। दांयी नाड़ी संवेदनशील हो जाती है। पहले तो जब हम अत्यंत अधिक सोचने लगते हैं, स्वयं पर ध्यान नहीं देते और अपनी आदतों को नहीं बदलते, तब एक प्रकार की भय की भावना आपकी संवेदनशीलता को और बढ़ा देती है। जैसे कोई परिश्रमी व्यक्ति जब बहुत अधिक सोचता है तो उसकी फैट या वसा कोशिकाएं, उसके मस्तिष्क के लिये प्रयोग होने लगती हैं। उसकी बांयी नाड़ी कमजोर हो जाती है। यदि इसके साथ साथ आपके अंदर किसी प्रकार का भय भी आ जाता है और उसमें दोष भावना भी आने लगती है, तो उस व्यक्ति को डायबिटीज रोग हो जाता है। इस रोग को ठीक करने के लिये हजरत अली का मंत्र पढें। इसका स्त्रोत बांया स्वाधिष्ठान व बांयी नाभि है। पहले बांयी नाभि, पति या पत्नी के भय के कारण या उनके या अन्य किसी परिवार के सदस्य के प्रति चिंता के कारण प्रभावित होती है और आपकी संवेदनशीलता के कारण आप डायबिटीज से ग्रसित हो जाते हैं। इसको अपने आज्ञा को साफ करके स्वच्छ करें। ज्यादा न सोचें, निर्विचार समाधि में जांये, बांये को दांये पर गिरायें। नमक की मात्रा खाना में बढ़ा दें ताकि यह उत्सर्जन में चीनी के प्रभाव को कम कर दे। नमक में वौटर औफ क्रिस्टिलाइजेशन होता है। दांये स्वाधिष्ठान व दांयी नाभि पर बर्फ का पैक रखें। यदि आवश्यक हो तो उचित परीक्षणों के बाद भोजन में चीनी का मात्रा कम कर दें।

(Shivaratri 1987)


देखिये मैने आपको बताया था कि खून में चीनी का स्तर डायबिटीज के कारण बढ़ जाता है न कि चीनी के कारण। ऐसा डायबिटीज के कारण होता है और डायबिटीज अधिक सोचने के कारण होती है।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


अत्यधिक सोचने के कारण हमारी आंखों में स्वाधिष्ठान चक्र के अनियंत्रित होने के कारण समस्या हो जाती है। स्वाधिष्ठान चक्र हमारे सिर के पीछे की ओर स्थित है जो बैक आज्ञा के चारों ओर होता है। अतः जब आपको डायबिटीज हो जाती है तो आपने देखा होगा कि कई डायबिटिक लोग अंधे हो जाते हैं। अतः सबसे पहले अपनी डायबिटीज को स्वाधिष्ठान के माध्यम से ठीक करें, आप अपने सिर के पिछले भाग में बर्फ रख सकते हैं, यदि यह स्वाधिष्ठान के कारण प्रभावित है तो आपको पानी (बर्फ) का प्रयोग करना पड़ेगा। परंतु यदि यह बाधा के कारण है तो आपको प्रकाश का प्रयोग करना पड़ेगा। हम आज्ञा चक्र को इसी प्रकार से ठीक करते हैं।(Talk on the Agnya Chakra, Delhi 3/2/83, Nirmala Yoga no.18)


यदि कोई गर्भवती स्त्री बहुत ज्यादा सोचती है तो उसके बच्चे को भी डायबिटीज हो सकती है।

(Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


डायरिया

 बांयी नाड़ी प्रधान लोग प्रोटीन की दृष्टि से अत्यंत असंतुलित भोजन खाते हैं। प्रोटीन की कमी के कारण वे इतने कमजोर हो जाते हैं कि उनकी मांसपेशियां भी कमजोर व शिथिल पड़ जाती हैं। आप देखेंगे कि ऐसे लोगों को कमजोर मांसपेशियों के कारण जुकाम व डायरिया हो जाता है। जो भी खाना वे खाते हैं वह डायरिया के रूप में बाहर निकल जाता है।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


जो लोग सुषुम्ना नाड़ी या मध्य नाड़ी पर होते हैं वे प्रारंभ में यदि वे किसी के धर पर भोजन करते हैं तो वे उस भोजन को पचा नहीं पाते, या तो वे उल्टी कर देते हैं या फिर उन्हें डायरिया हो जाता है। यदि वे किसी ऐसे घर पर भोजन करते हैं जहां पर उन्हें नहीं खाना चाहिये या उनका भोजन ठीक प्रकार से वाइब्रेट न किया गया हो, वे उस भोजन को खा नहीं सकते। यदि खा भी लिया तो तुरंत उन्हें उल्टी हो जायेगी।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


यदि किसी बच्चे को डायरिया हो गया हो तो सौंफ और पुदीने को उबालकर रख लें और इसमें थोड़ी चीनी या गुड़ मिला लें। बच्चे को दिन में दो तीन बार दें, बच्चा ठीक हो जायेगा।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


ड्रग्स

 यदि आप भांग या किसी मादक पदार्थ का सेवन करते हैं तब आप इड़ा नाड़ी पर खींच लिये जाते हैं और कुछ समय के लिये आपका अहंकार पीछे की ओर धकेल दिया जाता है। सभी प्रकार की ड्रग्स आपको आपकी चेतना से दूर ले जाती हैं। मादक पदार्थ लेने वालों के साथ मेरा अनुभव काफी दुखद है। जो इसमें आये उन्होंने काफी धीमी गति से प्रगति की। वे बांयी ओर के आक्रमणों के लिये काफी कमजोर और संवेदनशील थे। ड्रग्स लेने वालों के लिये मैं काफी दुखी हूं, उन्हें चुनौती स्वीकार करने के लिये अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग करना पड़ेगा और मादक पदार्थों के लिये अपनी दासता या गुलामी को त्यागना पड़ेगा।

(Letter to Jeremy, 1982, printed in Nirmala Yoga no.12)


ड्रग्स आपकी बांयी नाभि को प्रभावित करती हैं या दांयी नाड़ी को भी। जो आपकी बांयी नाड़ी को प्रभावित करती हैं वे आपको काफी दूर अंधकार में ले जाती हैं। कई बार आप काफी उग्र हो जाते हैं, जब कि आपने बांयी नाड़ी प्रधान ड्रग ली होती है। यह काफी आश्चर्यजनक है, ड्रग लेने वाले व्यक्ति को कुछ भी हो सकता है, आपको आश्चर्य होगा कि वह पागल भी हो सकता है।

(Advice on the treatment of virus infections, Pune, 1/12/87)


तंबाकू

 हमारी उत्क्रांति के समय कई पौधे व जानवर नष्ट हो गये क्योंकि वे मध्य में नहीं थे..... अतः वे सामूहिक अवचेतन में चले गये और उत्थान करने वाले लोगों को हानि पंहुचाने के लिये सूक्ष्म जीवों के रूप में वापस आ गये। जैसे आजकल वाइरस के आक्रमण काफी होते हैं। ये वे पौधे हैं जो सर्कुलेशन से बाहर चले गये थे। कुछ समय बाद आप देखेंगे कि तंबाकू और कई अन्य ड्रग्स सर्कुलेशन से बाहर चले गये हैं।

(Ekadesha Rudra Puja, Austria, 8/6/88)


यदि आप सिगरेट पीते हैं तो विष्णुमाया क्रोघित हो जाती हैं। वही कैंसर का कारण बनती हैं। वह आपका गला खराब कर देती हैं। सिगरेट पीने से गले, नाक व कान की कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं क्योंकि उन्हें सिगरेट पीना अच्छा नहीं लगता। सिगरेट से गले के कैंसर के प्रति आप काफी संवेदनशील हो जाते हैं।

Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


एल्कोहल या शराब

 विश्व के सभी संतों ने शराब को स्वास्थ्य के लिये हानिकारक बताया है क्योंकि यह आपकी चेतना के विरोध में जाती है। यह सत्य है कि शराब पीने के बाद हमारी चेतना धुंधली और उत्तेजित हो जाती है। यह सामान्य नहीं रह पाती। यही कारण है कि संतों ने इसका सेवन करने से मना किया था।

(2nd Sydney Talk 27/3/81)


आपके ऊपर आपकी मां का अनिवार्य बंधन कार्य करता है। यदि आप शराब पीते हैं तो आप उल्टी कर देंगे।

(Nirmala Yoga no.12, p25)

जैसा आप सभी जानते हैं कि एल्कोहल कई प्रकार का होता है। यह इसलिये खराब है कि यह आपके लिवर को और आपकी चेतना को चौपट या नष्ट कर देता है। यह आपको फूहड़ भी बना देता है, आपका चित्त धुंधला हो जाता है। शराब आपको धर्म से भी दूर ले जाती है।

(Advice on the treatment of virus infections, Pune, 1/12/87)


शराब हमारे आत्मसाक्षात्कार की सबसे बड़ी दुश्मन है। जो लोग शराब पीते हैं वे उसके गुलाम बन जाते हैं, उनका मस्तिष्क खराब हो जाता है। मैं समझती हूं उनका सहस्त्रार भी शराब के कारण खराब हो जाता है। शराब उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है।

(Sahasrara Puja 2001)


एक्ज़िमा

 एक्ज़िमा भी एलर्जी की ही तरह है। चूंकि यह बाह्य रोग है अतः आप इस पर नीम का पत्ता लगा सकते हैं।

(Rahuri Q&A 13/4/86)


 EGO see Paralysis


चक्र, एंडोक्राइन ग्लैंड या अंतःस्त्रावी ग्रंथियों को भी नियंत्रित करते हैं। उदा0 के लिये मूलाधार चक्र प्रोस्ट्रेट ग्लैंड को नियंत्रित करता है। आज्ञा चक्र भी पीनियल और पिट्यूटरी दोनों ग्लैंड्स को नियंत्रित करता है। यह ईगो और सुपरईगो को भी नियंत्रित करता है।

[Delhi?], 22/3/77. Printed in The Life Eternal 1980)


मिरगी

 मिरगी का कारण चित्त का अत्यंत बांयी ओर सामूहिक अवचेतन में चले जाना है। अपने बांयी ओर के कमजोर व्यक्तित्व के कारण जब आप भयभीत हो जाते हैं या किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं तो अचानक लगे इस धक्के के कारण भी आपको यह रोग हो सकता है। इसको ठीक करने के लिये चित्त को एकदम बांयी ओर ले जांय, इसके लिये गायत्री मंत्र पढ़ते हुये चित्त को पहले दांयी ओर लायें, फिर ब्रह्मदेव सरस्वती का मंत्र पढ़ते हुये चित्त को मध्य में लायें। दांयी ओर को जाते हुये आपको वाइब्रेशन्स का अनुभव होगा। इस बिंदु पर रूक जांय और गायत्री मंत्र पढ़ना बंद कर दें, अन्यथा आप काफी दांयी ओर चले जायेंगे। अधिक दांयी ओर जाने का अर्थ है वाइब्रेशन का कम हो जाना। एक ओर से दूसरी ओर जाने के लिये एक प्रकार का सामंजस्य चाहिये। यह महत्वपूर्ण है कि आप वाइब्रेशन्स का अनुभव करें। यदि ऐसा नहीं है तो कुंडलिनी को लगातार तब तक उठाते रहें जब तक आपको वाइब्रेशन का अनुभव नहीं होता। दूसरा अच्छा तरीका है कि आप अपने बांये हाथ को मां के चित्र की ओर रखें और दांये हाथ को धरती पर रखें। महाकाली का मंत्र पढ़ें ताकि वाइब्रेशन का प्रवाह होने लगे। मोमबत्ती को सिर के पिछले भाग में घुमांयें, इससे भी फायदा होगा।

(Shivaratri 1987)

Tuesday, October 13, 2020

How do people from different religions relate to Sahaja Yoga?-Episode 11

 FAQs on Sahaja Yoga - Episode 11:

How do people from different religions relate to Sahaja Yoga?


All religions ultimately spoke of ‘inner awakening’ that is brought about by the practice of authentic meditation- which in turn awakens the ‘dormant spiritual energy’ within all of us. Any religion is but a set of rules and regulations basically - that would promote healthy living, unite families, cultivate moral and ethical values. Religion is important for the growth of humanity – till the time it reaches its ultimate goal – Self Realization.

From the cool breeze of the Holy Ghost (Christianity) to "That Day shall We set a seal on their mouths. But their hands will speak to us, and their feet bear witness, to all that they did. (surah 36:65 Ya-sin, (Abdullah Yusuf Ali, The Holy Qur'an) to Adishankaracharya’s Saundarya Lahri that mentioned the experience of kundalini rising and its manifestation as ”Salilam, Salilam” – all are talking about ‘Kundalini Awakening’ – and Sahaja Yoga does exactly that!

In each person, from birth, a potential spiritual energy—named Kundalini—is incorporated. This energy is our spiritual Mother. The main idea of any Yoga is Her awakening and further spiritual ascent under Her protection. But the largest problem of all was simply how to awaken Her. Many doctrines spoke about it, calling this process variously as 'self-realization,' 'second birth,' and 'Resurrection,' but no one gave the practical recipe of the embodiment of this idea.

In 1970, as a result of long searches and experience, Shri Mataji Nirmala Devi made possible a method that permits any person to awaken the Kundalini energy within several minutes, to receive his self-realization, and to go on the way of spiritual ascent and perception. This method has received the name 'Sahaja Yoga'. In translation from Sanskrit 'Sahaja Yoga' means 'inborn, effortless union with the Divine": 'Sahaja' means easy, or spontaneous - it also means 'inherent, born with...'; 'yoga' - 'to connect, to reunite, connection, union'. The name itself reminds the person of potential opportunities incorporated in him at birth and of the opportunity of their realization.



Friday, October 9, 2020

FAQs on Sahaja Yoga - Episode 10 - How to get the support of in-laws not practicing Sahaja Yoga?

 FAQs on Sahaja Yoga - Episode 10 - How to get the support of in-laws not practicing Sahaja Yoga?


How to get the support of relatives/in-laws who do not practice Sahaja Yoga? It is noticed that some Sahaja Yogis come across different types of obstacles/ hindrances or problems when they are trying to establish themselves in Sahaja Yoga by practicing meditation as taught in Sahaja Yoga. Sometimes the family members do not agree to let their sons/ daughters to practice this new meditation way or maybe post-marriage, the in-laws do not let the bride (esp.) practice Sahaja Yoga. They may be pious and religious but are unable to accept Sahaja Yoga.

Under such difficult circumstances, one should avoid arguments or confrontations but show them some websites or make them meet practicing Sahaja Yogis who can make them understand all about the science of spirituality as taught in Sahaja Yoga. There is a Toll-free number too that may help.

Also it is a request from parents practicing Sahaja Yoga to give a proper courtship time to both your sons and daughters when it comes to arranging their marriages esp. in a non-sahaja family. It is very difficult to adjust to lower vibrations especially when one has tasted the highest of high divine vibrations in Sahaja Yoga. Just like it becomes very difficult for a lady (daughter) to adjust to a – let’s say – a financially lesser endowed in-laws/ or miserly family – similarly, it is immensely difficult for a Sahaja Yogi to go back to ancient or archaic ways to worshipping or connecting to God!




Faqsideos – Episode 9- How to curb procrastination in Sahaja Yoga?

 Faqsideos (FAQs on Sahaja Yoga Meditation) – Episode 9

How to curb procrastination in Sahaja Yoga? Procrastination is a kind of a ‘baadha’ or catch as we call it in Sahaja language. Whenever you try to progress, you will be faced with blockages. This is a test – happens all the time. In Sahaja Yoga, you are making your way towards the ‘Kingdom Of God’ – so you will face obstacles and hindrances in many forms! With meditation and certain Sahaja Yoga techniques – like Foot soaking, candling etc. we try to balance the left (Ida nadi) and the right (Pingla nadi) and come to the centre. – meaning – become balanced. We need to introspect, question ourselves as to what is stopping us from meditating?! Every individual has to solve the problem at his/her individual level – because yours is an individual journey towards the Kingdom of God! So get up and get going – don’t let petty & mundane worldly requirements stop you from achieving the highest goal of human life – Self Realization!



Faqsideos - Episode 8 : What is meant by being thoughtless or thoughtless awareness?

 Faqsideos (FAQs on Sahaja Yoga Meditation) –

Episode 8 : What is meant by being thoughtless or thoughtless awareness?
It basically leads to taming of the mind. In the Bhagvad Geeta, Chapter 6, a great deal has been talked about regarding the mind. What is the mind? A repository of incessant thoughts. Arjuna: The mind is very restless, turbulent, strong and obstinate, O Krishna. It appears to me that it is more difficult to control than the wind. Lord Krishna said: O mighty-armed son of Kunti, what you say is correct; the mind is indeed very difficult to restrain. But by practice and detachment, it can be controlled. Yog is difficult to attain for one whose mind is unbridled. However, those who have learnt to control the mind, and who strive earnestly by the proper means, can attain perfection in Yog. This is my opinion. So basically, when the Kundalini rises, reaches and pierces the Sahasrara (Fontannel Bone Area or limbic area on top of head) the Sahaja Yoga practitioner can feel the downpour of divine bliss in the form of cool breeze. Thus, when one experiences the acknowledgement of the divine, he strives to experience/ feel it more and more. Automatically his incessant thoughts of worldly nature stops and he becomes thoughtless to enjoy the bliss of divinity. When one becomes thoughtless, one makes room for the divine to directly work on his instrument!



Faqsideos - Episode 7 : Can Sahaja Yoga help in personality development?

 Faqsideos - Episode 7 : Can Sahaja Yoga help in personality development?

Episode 7 : Can Sahaja Yoga help in personality development?

Yes, it can help 100%!

What is the definition of personality? Your personal set of qualities make your overall personality. An individual possesses both positive and negative personality traits or qualities – so what is to be developed? – obviously the positive personality traits. What about the negative aspects of a person? Negativity needs to be erased by all means ..purged from the roots because that mostly hinders positive personal growth.

As you meditate and your chakras begin to respond to the divine vibrations, you automatically become confident and joyous! Each chakra has several qualities that begin to blossom within and you actually emerge as a beautiful personality because, after all, you have let the creator express HIS beautiful creation through you!



Faqsideos - Episode 6: Dealing with external distractions

 Faqsideos - Episode 6: Dealing with external distractions 

Episode 6: With so many external distractions available to people, why would anyone be interested to meditate?

Seriously you have not taken birth to just appreciate the lifestyles of others…or have you? Reading, watching, playing, working… is all fine – that’s what all of us have been doing since ages but what is the outcome of it all? Ask yourself – Are you growing? Do you feel the satisfaction as someone else is describing? What about your own happiness, satisfaction or contentment? You very own personal growth?

Meditation allows you to grow internally – nourishes your entire system – physical, mental, emotional and spiritual. Meditation integrates – no-meditation disintegrates….



Faqsideos – FAQs on Sahaja Yoga - Episode 5

 Faqsideos – Episode 5

Among new comers (first timers) in Sahaja Yoga, some feel the vibrations pretty well, whereas others don’t feel at all. Why?

Well, that is how it ideally should be! For example , the Pauli Exclusion Principle states that - in an atom or molecule, no two electrons can have the same set of four quantum numbers. So when 2 micro miniscule electrons are also not similar, how can you expect complex human beings made of several billion cells to have the same status or experience? And Sahaja Yoga is NOT mass mesmerization that everyone will be made or forced to feel the same way! It is a ‘living’ energy that will manifest itself according to the status of an individual’s chakras and channels – how much open or receptive they are to subtle divine energies. Thus different people have different experiences. Another example can be of electrical appliances at home and the electric supply from the mains. The supply is same but a 20 watts bulb will express itself by lighting the room a bit dimly than a 100 watts bulb, and an AC machine will suck in more electric energy to cool down the room! But there is certainly a big difference between non-living objects (bulbs & AC machines) and human beings because we, at the human level, are blessed to change our course of life and change our selves – Free Will - whenever we desire to. So even if someone does not feel vibrations on the first day, with proper meditation and certain clearing techniques that is taught in Sahaja Yoga, he/she can surely raise his status (atma-stithi) in no time. Thus it is so possible (has happened several times also) that a 5 watts bulb can lit up a room as a 1000 watts bulb…. or may even become a powerhouse of generating electricity!



Faqsideos – Episode 4 : How is Sahaja Yoga meditation different from other types of meditation?

 Faqsideos – Episode 4 : How is Sahaja Yoga meditation different from other types of meditation?


How is Sahaja Yoga meditation different from other types of meditation?

Sahaja Yoga is not any physical exercise or breath control method. It is purely meditation – dhyan (as called in Hindi. It was started by the Founder, Shri Mataji Nirmala Devi, in the year 1970 on the 5th of May – known as World Sahasrara Day - since the Sahasrara Chakra or the 7th Chakra/ Crown Chakra of our universe was opened on this day by her. She had been very spiritually inclined since early childhood and she purposely led a very ordinary life of a householder playing the role of a dutiful wife, loving mother to two daughters and grandchildren. After taking care of her worldly duties, she was blessed with the divine grace to open the 7th chakra at Universal level because of which ‘self-realization’ or ‘Kundalini Awakening’ could be given en masse. It is a breakthrough in the spiritual awakening or spiritual evolution. Earlier, self realization or kundalini awakening could happen to rare few people because humanity was yet to be ready to receive this tremendous divine power. As it is said by Her Holiness – Truth can be borne only by those who have the capacity to bear it. Truth is God. So with Sahaja Yoga meditation, you connect directly with your creator without any intervention of a thirst party. You become your own master….leading very ordinary lives.






FAQs on Sahaja Yoga - Why should people already worshiping God be interested in Sahaja? Episode 3

 FAQs on Sahaja Yoga - Why should people already worshiping God be interested in Sahaja?
Episode 3


Should people who are religious minded and have a lot of faith in God also know about Sahaja Yoga or even practice it? It is the believers of God and religion who have brought about all progressive social changes and evolutions! Religion was basically established to engage people in team work – and team work means a proper set of rules and regulations for greater good. (Bahujan Hitaye, Bahujan Sukhaye). In fact being religious is being more scientific and practical. But unfortunately, somehow religion got linked to superstitions and impractical dogmas – hence many people started to get away from religion or believing in higher forces or divine power. Sahaja Yoga, in fact, would be a giant leap towards spiritual evolution – because it is in Sahaja Yoga that we not only think about God and imagine ways to please Him but we get the practical experience of His acknowledgement in the form of cool breeze!! It is practiced in over 120 countries by people from all walks of life irrespective of caste/color/creed/country/religion/ financial status/ designation-power-position bar! Is it not already so evident that only the great DIVINE Power is capable of some such miracle? Where Australians, Americans, Africans…doctors, engineers, entrepreneurs are already engaged in chanting hyms in praise of Shri Mataji – where is the doubt? So from our side – we can only recommend people to have an open mind and try out Sahaja Yoga once. Eligibility? Pure heart, pure desire, seeker of truth.



FAQs - How can Sahaja Yoga be introduced to atheists? Episode 2

 FAQs - How can Sahaja Yoga be introduced to atheists? Episode 2

There are both believers and non-believers attending a Public Program. How is Sahaja Yoga introduced to such people? Why would they open their minds to this Spiritual Science? Let us listen to Sahaja Yogi, Ashish Johri on how atheists can be addressed.



Saturday, October 3, 2020

Achieve the Deep Meditation Status and spread the divine light among seekers!

 "...जो आनंद आप अपनी ध्यान की स्थिति में प्राप्त करते है , उसको बांटा जाना चाहिए , उसको दिया जाना चाहिए , दिखाया जाना चाहिए। यह आपके अस्तित्व में ऐसे बहना चाहिए जैसे की प्रकाश निकलता है हर रौशन दीप से। हमें कोई शपथ नहीं लेनी पड़ती यह कहने के लिए की यह एक प्रज्वलित दीप है , इसी प्रकार , एक संत को प्रमाणित नहीं किया जाना चाहिए की वो संत है। क्योंकि जो गहराई आप अपने अंदर हासिल करते है , वो सब जगह फ़ैल जाती है , यह ऐसी ही क्रिया और प्रतिक्रिया है। 

जितनी अधिक गहराई आप हासिल करेंगे , प्रक्षेपण उतना ही अधिक होगा। एक सरल व्यक्ति , अत्यंत साधारण व्यक्ति , अत्यंत साधारण व्यक्ति , अनपढ़ व्यक्ति , ऐसा हो सकता है। आपको ध्यान में बहुत ज्यादा समय नहीं व्यतीत करना है , लेकिन जो भी समय आप व्यतीत करें , आपको जो भी प्राप्त होता है , वो बाहर दिखना चाहिए , कैसे आप प्रक्षेपित करते है , और कैसे आप दूसरों को देते है। .."

( परम पूज्य श्री माताजी , देवी पूजा , सिडनी , ऑस्ट्रेलिया - १९८३ )



Nabhi Chakra - Article in Hindi - Shri Mataji's Quotes

 तृतीय चक्र नाभि चक्र कहलाता है। नाभि के पीछे इसकी दस पंखुरियाँ हैं। यह चक्र किसी भी चीज़ को अपने अन्दर बनाये रखने की शक्ति हमें देता है। शारीरिक  स्तर पर यह सूर्य चक्र में सहायक है।

       नाभि चक्र पर श्री लक्ष्मी-नारायण का स्थान है। श्री लक्ष्मी-नारायण जी का स्थान जो है हमें धर्म के प्रति रूचि देता है। उसी के कारण हम धर्मपरायण होते हैं, उसीसे हम धर्म धारण करते हैं। कार्बन में जो चार संयोजकतायें हैं वे भी इसी धर्म

धारणा की वजह से हैं।

                     प.पू.श्री माताजी, मुम्बई, २२.३.१९७९

      आपका नाभि चक्र यह सुझाता है कि आप अभी तक भी भौतिकता में फँसे हुए हैं। छोटी-छोटी चीज़ों में भी हम भौतिकवादी होते हैं। यह दुर्गुण सूक्ष्मातिसूक्ष्म होता चला जाता है। अतिव्यक्तिवादी या यह सबकी व्यक्तिगत चीज़ है। नाभि चक्र अत्यन्त व्यक्तिवादी है, 

                     प.पू.श्री माताजी, १८.१.१९८३

        अगर आप चालबाज़ी करते हैं या करने की कोशिश करते हैं तो आपका नाभि चक्र क्षतिग्रस्त होता है और आप अपनी चेतना खो बैठते हैं। पैसे के मामले में आपके सहजयोग के प्रति कैसे आचरण हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है...क्योंकि इससे नाभि खराब हो जाती है।

                      प.पू.श्री माताजी, ४.२.१९८३

बाईं नाभि को यदि उत्तेजित कर दिया जाये जैसे हर समय दौड़ते रहने से, उछल-कूद से, उत्तेजना से, तो उत्तेजित बाईं नाभि के कारण रक्त कैन्सर हो सकता है। जो औरतें पति से दुर्व्यवहार करती हैं, उसकी उपेक्षा करती हैं, उन्हें भयानक आत्माघात (Siriosis), मस्तिष्क घात, पक्षाघात, शरीर का पूर्ण डिहाइड्रेशन हो सकता है। बाईं नाभि बहुत महत्वपूर्ण है।

                  प.पू.श्री माताजी, सेंट जार्ज, १४.८.१९८८

 

अन्तर्जात गुण


१. संतोष - विकास प्रक्रिया में आप यदि उस अवस्था तक पहुँच जाते हैं जहाँ आप नाभि चक्र के ऊपर उठ जाते हैं, यानी नाभि चक्र को पार लेते हैं तो पैसा अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता..... संतोष प्राप्त हो जाता है।

                   प.पू.श्री माताजी, १८.८.२०००

...... संतोष मतलब जो मिला खूब मिला, अब और कुछ नहीं चाहिये। .....एक ऐसा सहजयोगी जिसके पास कुछ भी न होते हुए भी वो मौज़ में रहता है, बादशाह होता है ......ऐसा मनुष्य अपने में तृप्त होता है। ......पैसे से कभी भी संतोष नहीं मिलेगा, ये जड़त्व स्थूल है.

                   प.पू.श्री माताजी, बम्बई, २४.९.१९७९


२. औदार्य (दानत्व का भाव) - दानत्व वाला आदमी जो होता है वो अपने भी संग्रह नहीं करता, दूसरों को बाँटता रहता है, देता रहता है, देने में ही लिये कुछ उसको आनन्द आता है, लेने में नहीं... व यह बताता नहीं, जताता नहीं, दुनिया को दिखाता नहीं कि मैंने उसके लिए इतना कर दिया, वो कर दिया, एकदम चुपके से करता है।

         प.पू.श्री माताजी, नई दिल्ली, चैतन्य लहरी २००४


3. करुणा - अन्य सहजयोगियों के प्रति सहृदयता की संवेदनशीलता आप में विकसित होनी चाहिये। .....आपके अन्दर यदि किसी के लिये करुणा भाव है तो नि:सन्देह यह कार्य करता है।....मेरी करुणा मात्र मानसिक ही नहीं है, यह तो बहती है और कार्य करती है। आप भी ऐसे बन सकते हैं। मैं चाहती हूँ आप मेरी सारी शक्तियों को पा लें, परन्तु करुणा सर्वप्रथम है।


          प.पू.श्री माताजी, आस्ट्रेलिया, २६.२.१९९५



Friday, October 2, 2020

Don't pamper negative thoughts!

 नकारात्मक विचारों को मत पालें, समर्पण मात्र से ही बाधामुक्त हो सकते हैं।


हर समय यह सोचना कि, "मुझे क्या बाधायें हैं? मुझ में क्या नकारात्मकतायें हैं? इससे आपको कोई सहायता नहीं होने वाली । इस प्रकार के सभी विचार (ideas)  जो आपके अंदर आ रहे हैं, उन्हें मात्र समर्पित कर दें, और आप देखेंगे कि ये सभी बेतुके (absurd) विचार भाग खड़े होंगे। 

अपनी समस्याओं से पार पाने का यह सबसे आसान तरीका है। इन समस्याओं को मात्र समर्पित करें । 

आखिरकार, ये सभी भयानक लोग, सभी भयानक देवता, शत्रु , जो देवी से लड़ने सामने आए हैं, ये तब तक मौजूद रहेंगे, जब तक आप अपने नकारात्मक विचारों से इनका पोषण (nurture) करते रहेंगे ।

 जैसे ही आप स्वयं को समर्पित कर देते हैं, वे अपने को किसी काम का नहीं पायेंगे, और वे आधे अधूरे लोगों के पास चले जायेंगे।

 जब समर्पण पूर्ण हो जायेगा तो केवल विकास होगा।


प. पू. माता जी श्री निर्मला देवी ।

नवरात्रि पूजा, 19 Oct 1980

हैम्पस्टीड, लंदन, इंग्लैंड

Wednesday, September 30, 2020

Importance of early morning daily meditation - Hindi Article

 ब्रम्ह मूहूर्त मे ध्यान करने का महत्व. 

Importance of daily meditation...


ब्रह्म मुहूर्त में निर्विचरिता बनाये रखने के लिए श्री माँ ने बताया है कि जैसे हो वैसे ही बैठे, बंधन तक लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि कहीं हमारी ब्रम्हमुहूर्त की निर्विचरिता खत्म ना हो जाए और निर्विकप्ल समाधि में कोई खलल ना हो। समाधि लगाने का सही समय यहीं होता है।

श्री माताजी के सामने दीया जलाए, ध्यान कि स्थिति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपना राईट हेंड लेफ्ट साइड के हृदय पर रखिये श्री माँ को हृदय में देखिये दो मिनट तीन मिनट के लिए हृदय पर हाथ रख कर श्री माँ को हृदय में बुलाये फिर वहीं हाथ अपने सामने की आज्ञा चक्र पर रखे और श्री निर्विचरिता साक्षात का मंत्र लिजिए।

अब वहीं राइट हेंड हमें सहस्त्रार पर रखकर धीरे धीरे घुमाना है, हाथ का सहस्त्रार तालु के सहस्त्रार चक्र पर रखे, अब अपना हाथ धीरे से श्री माँ की ओर करें और ध्यान लगाएं मन में कोई विचार ना आने दें, अगर कोई विचार आता है, विचार थम नहीं रहे है तो पांच मिनिट तक श्री माँ की प्रतीमा की ओर देखीये फिर ध्यान कीजिए .


 ध्यान (Meditation)


अपनी ऑंखें बंद करो। अपने दोनों हाथ मेरे पास रख दो। सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं। बस आपका ध्यान सहस्त्रार पर है। आप अभी-अभी मेरे सहस्त्रार में हैं। अपना ध्यान अपने सहस्त्रार पर लगाएं। कोई विचार नहीं है। कुछ भी तो नहीं। बस अपने सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं और बस उस बिंदु तक उठें। इसके बारे में कोई नाटक नहीं है। कुछ भी कृत्रिम नहीं है। यह बोध है।

सभी कमजोरियों को पीछे छोड़ दिया जाना है। आइए हम गरिमा और शांति के साथ मजबूत मूल्यों के मजबूत लोग बनें। मौन परम आंतरिक मौन। कोई भी विचार आने वाला कहता है, "यह नहीं, यह नहीं।"


परमपुज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी

बोर्डी

6 फरवरी 1985


यह ध्यान समुद्र के किनारे पर स्वयं श्री माताजी ने कराया है ।श्री माताजी ध्यान मुद्रा मे बैठी है और ध्यान करा रही है .....।

Thursday, September 17, 2020

Take Sahaja Yoga Seriously - Hindi Article

 आप सब परमात्मा के साम्राज्य के अधिकारी हैं तो फिर आप क्यों परेशान हैं, आप रो क्यों रहे हैं ? इस साम्राज्य के सारे देवी-देवता आपके बड़े भाई और बहन हैं। उन सभी को कुंडलिनी के मार्ग पर कई रूपों में बिठा दिया गया है। आपको उन्हें पहचानना है और उनको प्राप्त करना है।


 कुंडलिनी आपकी माँ है। सदैव उनकी छत्रछाया में रहें, उनके प्रेम की छाँव तले रहें, उनके बच्चे बनें और वही आपको उस सर्वोच्च परमपिता परमात्मा तक ले जायेंगी। एक बार जब आप ये प्राप्त कर लेंगे, जहाँ से सारी चीजें उत्पन्न हुई हैं तो बाकी सारी चीजें स्वयं ही आसान हो जायेंगी*।


*लेकिन आप लगातार ध्यान नहीं करते हैं, प्रेम और शांतिपूर्वक नहीं रह पाते हैं, आपकी बातचीत में गंभीरता नहीं है, यहाँ तक कि मुझसे बात करते समय भी आप गंभीर नहीं हैं। लेकिन सांसारिक वस्तुओं के लिये आप कितने लालायित हैं। 


जब आपको किसी चीज की इच्छा होती है तो आप उसको प्राप्त करने के लिये कितनी जिद्दी हो उठते हैं। क्यों नहीं इन चीजों को भी आप हल्के में लेते हैं। वास्तविकता से दूर न भागें, क्योंकि मैं महामाया हूँ। 


मुझको प्राप्त करने का प्रयास करें। मैं आपकी माँ हूँ, मैं आपके लिये ही हूँ। मैंने आप लोगों को वह दिया है जो महान से महान साधु और संतों को भी प्राप्त नहीं था। आपको एक महान संपत्ति दे दी गई है। आप इसका उपयोग किस प्रकार से करेंगे? इस संपत्ति की मात्र एक लहर से हजारों और करोड़ों सितारों और ग्रहों को सृजन किया गया है। आपके पुनर्जन्म का महत्व बहुत अधिक है*।


(परम् पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी)

(निर्मला योग, 15-1, मई-जून 1983)