Friday, November 18, 2022

Maintain Love and Marriage - the Sahaja Way!

 जय श्री माताजी 

अभी कुछ दिनों से सहज शादियों के बारे में सुन रही थी, तो सोचा कि अपने विचार सामूहिकता के साथ साझा करूँ। हो सकता है ये विचार पूरी तरह से सही ना हो, तो आप भी अपने विचार रख सकते हैं, और मेरी गलतियों को सुधार सकते हैं । ये विचार उन लोगों के लिए शायद ज्यादा लाभकारी हो सकते हैं, जो सालों से अपनी शादी को जोड़े रखने की कोशिश करते हैं और जहां दोनों श्री माताजी को मानते हैं और सहज कार्य भी करते हैं। 



ऐसा नहीं है कि हमारे झगड़े बंद हो गए हैं, जैसे ही स्थिति नीचे आती है, जरूर होते हैं। लेकिन जो उनका permanent असर होता है आपसी रिश्ते पर, वह ज्यादा नहीं होता। 

करीब 20 वर्षों की शादी के बाद, कुछ चीजें समझ में आई हैं, वो निम्न-प्रकार से है-

1.श्री माताजी ने कई बार कहा है कि इन शादियों से बहुत महान आत्माएं जन्म लेंगी, जो आगे जाकर श्री माताजी के लिए बड़े-बड़े कार्य करेंगी। इसलिए negativities पूरी कोशिश करती हैं कि ये शादियाँ अच्छे से नहीं चले, जिससे या तो वे टूट जाएँ या फिर बच्चों को अच्छा वातावरण ना मिले और वे श्री माताजी के अच्छे यंत्र ना बन सकें। 

उदाहरण के तौर पर, जब भी कोई public prog हो, तो हमारा झगड़ा होना निश्चित था या फिर जब हम साकार पूजा के लिए जा रहे होते थे तब हम में से एक स्टेशन से ही वापिस जाने को तैयार रहता था। 

2.जो सहज शादियाँ होती हैं, तो पति-पत्नी में जो कमियाँ होती हैं, वो अधिकतर दो छोर होते हैं। जैसे-

a.एक को खर्चा करना पसंद है, तो दूसरा बचत को लेकर चिंतित है। 

b.एक खाने के स्वाद को ले कर particular है, तो दूसरे को खाना बनाना आता ही नहीं 

c.एक को घूमना अच्छा लगता है, तो दूसरे को बिल्कुल भी नहीं। 

सिर्फ इतना ही नहीं, अगर एक बहुत अधिक अति में है, तो दूसरा भी उतने ही अति में होगा और वे एक दूसरे को खींच के संतुलन में लाएंगे। 

अतः अगर आप अपने जीवनसाथी को संतुलन में लाना चाहते हैं, तो पहले खुद को भी introspection करके संतुलन में लाना होगा, दूसरा अपने आप आ जाएगा।

3.कुछ लड़ाइयाँ शायद बहुत गंदी भी हो, लेकिन इनका परिणाम अंत में बुरा नहीं हो, इसके लिए मेरे निम्नलिखित सुझाव हैं-

a.Introspection – दूसरों की कमियाँ देखते रहने की बजाय, कोशिश करें कि अपनी कमी देखें और उनको सुधारने का प्रयत्न करें। ये हमेशा शायद संभव ना हो, लेकिन अगर हम लड़ाई के बाद भी ऐसा करें, तो भी परिस्थियाँ सुधरेंगी।  

b.Detachment – ये बड़ा ही tricky शब्द है, विशेषकर जीवनसाथी के लिए, क्योंकि पूरा जीवन तो उसी व्यक्ति के साथ गुजारना है, उसी से प्रेम की आकांक्षा है और दुख में उसी का सहारा होगा, अगर detach हो गए तो काम कैसे चलेगा। 

Detach होने से काम चले ना चले, एक चीज जरूर आ जाएगी, दूसरे की उन आदतों पर reaction जरूर खत्म हो जाएंगे, और अपने अंदर शांति आ जाएगी। और ये तो हमने ना जाने कितने lectures में सुना है कि जब हम detach हो जाते हैं, तो गण उस कार्य को करते हैं। 

एक उदाहरण देती हूँ, मेरे पति जब job से वापिस आते थे, उनके footsoak को ले कर हमारा झगड़ा हो जाता था। फिर एक दिन मैंने introspection किया कि माँ तो कहती है, जब पति काम से थक कर आए तो प्रेम से बात करो, मैं रोज झगड़ा करती हूँ। अगर किसी और का पति ऐसे करता तो क्या मैं उस पर गुस्सा करती? नहीं, मैं नहीं करती। लेकिन क्योंकि मुझे मेरे पति से attachement है, इसलिए मैं ऐसा करती हूँ, तो मैंने उसी दिन जा कर shoebeating करी, अपने पति की नहीं, बल्कि अपने पति से अपने attachment की । 

मेरी स्थिति बहुत अच्छी हो गई, नहीं तो उनके office से आते ही मेरी स्थिति खराब हो जाती थी। 2-3 बाद उनको मैंने बताया, तो वे कहते हैं, अब मुझे समझ में आया कि office से आते ही मेरी स्थितिइतनी खराब क्यों हो जाती है कि मुझे footsoak करना ही पड़ता है। 😂

  4. लेकिन introspection करना और detach होना आसान नहीं होता। इसलिए कुछ चीजें आपसे साझा कर रही हूँ, जो हमने इन वर्षों में इन लड़ाइयों से ऊपर उठने के लिए किया है, वो निम्न-प्रकार से है-

a.Footsoak- स्वयं रोज footsoak करें। दूसरा अगर नहीं कर रहा है, तो श्री माताजी से प्रार्थना करें। 

b.Treatment- अपने चक्रों के लिए सावधान रहे, अगर कोई चक्र ज्यादा पकड़ रहा है या बार-बार पकड़ रहा है, तो उसका treatment जो भी श्री माताजी ने बताया है उसे जरूर करें। बहुत से लोग आलस करते हैं candelling, shoebeating, अल्लाह हु अकबर, मटका, paper burning, camphoring इत्यादि करने में। 

आलस ना करें। ये हथियार हैं जो श्री माताजी ने ही बताए हैं, इनका उपयोग जरूर करें।

c.Mother’s Lectures - श्री माताजी की speeches नियमित रूप से सुने। अधिकतर उनमें हमारे introspection के लिए जरूर कुछ कहा होता है, हमें अपने लिए सुनना है, न कि दूसरे के लिए।  

d.Vibration Exchange – एक दूसरे को अक्सर vibrations दें, head massage करें। जो left-sided होता है, उसे सहायता की जरूरत होती है, और right-sided वाले को दूसरे की मदद करनी चाहिए।

e. Health centre ज़रूर जाएँ, मैंने देखा कि जब बहुत देर हो जाती है, बुरे विचार मन में घर कर लेते हैं, तब लोग health centre जाते हैं, divorce से एकदम पहले last chance की तरह। नहीं, शुरू से ही जाएँ, चाहे तो हर वर्ष जाएँ, एक बार जाने से कुछ नहीं होगा। और आने के बाद भी अपने ऊपर मेहनत करनी होगी।

ध्यान सर्वोपरि है, लेकिन ध्यान लगेगा ही नहीं तो कैसे काम चलेगा। ये सब चीज़े ध्यान में जाने में सहायक होंगी।

Tuesday, October 18, 2022

The names of Shri Dhanvantari

 The names of Shri  Dhanvantari 



1. Shrī Dhanvantaraye

Lord Dhanvantari

2. Shrī Sudha-purṇa-kalashāḍhya-karāya

 The Lord who holds a pot filled with nectar in his hands.

(signifying true knowledge)

3. Shrī Haraye

Shri Hari(Kṛshṇa)

4. Shrī Jarā-mṛti-trasta-deva-prarthanā-sādhakāya

He who fulfills the prayers of the divine beings frightened of old

age and death.

5. Shrī Prabhave

Lord of all beings

6. Shrī Nirvikalpāya

The one whose powers absorb the ideas of separation and

differentiation, and take us beyond doubt (doubtless-awareness)

with complete peace.

7. Shrī Nissamānāya

A matchless being who is the incomparable essence of all

existence.

8. Shrī Manda-smita-mukhāmbujāya

The one who sports a captivating smile on His lotus face.

9. Shrī Āñjaneya-prapitādraye

He who helped Shri Hanuman in locating the mountain with

medical herbs.

10. Shrī Pārshvastha-Vinatā-sutāya

By whose side Garuda, the divine condor (the son of Vinatā)

is always present (indicating sharp eyesight to see every activity in

the universe).

11. Shrī Nimagna-manthara-dharāya

The one who uplifted the sunken Manthara mountain.

12. Shrī Kūrma-rūpiṇe

He who assumed the form of tortoise.

(indicating slow, steady but persistent approach)

13. Shrī Bṛhattanave

He who possesses a gigantic body

(the entire universe makes up His body)

14. Shrī Nīla-kuñchita-keshāntāya

 He whose hair ends in bluish curls.

15. Shrī Paramādbhuta-rūpa-dharāya

The one who has assumed the most astonishing form.

16. Shrī Katāksha-vīkshaṇa-trasta-vāsukaye

The one who frightened Vasuki(the king of snakes) by a mere

glance.

17. Shrī Siṅh-vikramāya

He who exhibits the valor of a lion.

18. Shrī Smartṛ-hṛdroga-haraṇāya

He who cures the diseases of the heart of those who remember

Him.

19. Shrī Mahā-viṣhṇvaoṅsh-sambhavāya

The one who is an incarnation of Shri Vishnu.

20. Shrī Prekshaṇīyotpala-shyāmāya

The hue of the body of the Lord resembles the blue water lily.

21. Shrī Āyurvedādi-daivatāya

The presiding deity of Āyurvedā

22. Shrī Bheṣhaja-grahaṇād-eva-smaraṇīya-padāmbujāya

The one whose lotus feet are to be remembered in the very act of

consuming medicines.

23. Shrī Nava-yauvana-sampannāya

He who possesses an ever fresh youthfulness.

24. Shrī Kirītañchita-mastakāya

He whose forehead is covered with a crown.

25. Shrī Namra-kuṇdala-saoṅshobhi-shravan-dvaya-shaṣhkulaye

The one whose ears glitter with drooping earrings.

26. Shrī Dīrgha-pīvara-dordaṇḍāya

He who has long and huge arms.

27. Shrī Kambu-grīvāya

He whose neck is enclosed in a shell(as a tortoise)

28. Shrī Ambujekshaṇāya

He whose eyes resemble the shape of the lotus petal.

29. Shrī Chaturbhujāya

The one who has four arms

30. Shrī Shaṅkha-dharāya

The one who holds a conch

31. Shrī Chakra-hastāya

The one who wields a discus

32. Shrī Vara-pradāya

He who bestows boons

33. Shrī Sudhā-patra-upari-lasadāmra-patra-lasadkarāya

He who holds in his hands a pot of nectar covered by mango

leaves.

34. Shrī Shata-patrāḍhya-hastāya

He who holds a lotus flower in his hands

35. Shrī Kastūrī-tilakañchitāya

He who applies musk paste on the forehead at the Agnya Chakra.

36. Shrī Su-kapolāya

He who has well formed cheeks

37. Shrī Su-nāsāya

The one who has a well shaped nose

38. Shrī Sundara-bhrū-latāñchitāya

The one who has beautiful and elongated eyebrows resembling a

creeper.

39. Shrī Svaṅgulī-nakha-shobhāḍhyāya

The one who glows with glitter of his own fingernails.

40. Shrī Gūḍha-jatrave

He whose neck is hidden

41. Shrī Mahā-hanave

He who has a big jaw

42. Shrī Divyāṅgada-lasadbāhave

He whose hands shine with the glow of his splendid bracelets.

43. Shrī Keyūra-parishobhitāya

He who is decorated with various ornaments.

44. Shrī Vichitra-ratna-khachita-valaya-dvaya-shobhitāya

He who wears two bangles adorned with a variety of precious

gems.

45. Shrī Samullasat-sujātā-aoṅsāya

The one who displays well formed aoṅsa(shoulder blades)

46. Shrī Aṅgulīya-vibhūṣhitāya

The one whose fingers are decorated with rings.

47. Shrī Sudhā-gandha-rasāsvāda-milatbhṛṅg-manoharāya

(As the Lord holds a pot of nectar in his hand) He is surrounded by

bees enjoying the fragrance of ambrosia.

48. Shrī Lakshmī-samarpitotphulla-kañja-mālā-lasatgalāya

He whose neck is decorated with the garland made of blossomed

lotus flowers offered by Goddess Lakshmi.

49. Shrī Lakshmī-shobhita-vakshaskāya

He whose chest exhibits the affluence of Goddess Lakshmi.

50. Shrī Vana-mālā-virājitāya

He who glows in the luster of a garland made of forest flowers.

51. Shrī Nava-ratna-maṇi-kḹpta-hāra-shobhita-kandharāya

He whose neck glitters with the necklace made of nine precious

gems.

[Diamond(Vajra),Pearl(Muktā),Ruby(Māṇikya),

Blue-sapphire(Indranīl), Emerald(Marataka), Hessonite(Gomedaka),

Yellow-Sapphire(Puṣhyrāj),Cat's eye(Vaidurya),Coral(Pravāl)]

The nine gems can counteract the ill-effects of the nine planets.

52. Shrī Hīra-nakshatra-mālādi-shobhā-rañjita-diṅmukhāya

He whose face radiates with the glow of diamonds and other

jewellery.

53. Shrī Vārijāmbara-saoṅvītāya

He whose garments are woven out of fine silk and made out of a

lotus stalk.

54. Shrī Vishalorase

The one who has a broad chest indicating masculine prowess.

55. Shrī Pṛthu-shravase

The one who has broad ears

(symbolic indication that He has extraordinary power to hear the

prayers of His devotees)

56. Shrī Nimna-nābhaye

 The one who has a sunken umbilicus indicating perfect physique.

57. Shrī Sūkshma-madhyāya.

He who has a shrunken belly.

58. Shrī Sthūla-jaṅghāya

The one who has prominent calf muscles.

59. Shrī Nirañjanāya

He who is free from all blemishes. He is a symbol of pristine purity.

60. Shrī Sulakshaṇa-padāṅguṣhthāya

The one whose big toe exhibits all the auspicious signs.

61. Shrī Sarva-sāmudrikānvitāya

He whose entire body is an expression of the auspicious physical

traits.

62. Shrī Alaktakā-rakta-pādāya

The one whose feet are red like the hue of lac.

63. Shrī Mūrtāya

He who possesses a tangible form

64. Shrī Madhvartha-pūjitāya

He who is worshipped for obtaining ambrosia.

(nectar which gives freedom from disease and death)

65. Shrī Sudhārthānyonya-sañyudhyad-deva-daiteya-sāntvanāya

He who pacifies Gods and demons fighting with each other to grab

the nectar of immortality.

66. Shrī Koti-manmatha-saṅkāsha-sarvāvayava-sundarāya

He who resembles a thousand cupids(God of love) with all his bodyparts well formed.

67. Shrī Amṛtāsvādanodyukta-deva-saṅgha-parivṛtāya

He who is surrounded by the group of Gods eager to taste the

nectar of immortality.

68. Shrī Puṣhpa-varṣhana-saoñyukta-gandharva-kula-sevitāya

Gandharvas constantly unite to shower flowers upon Him.

69. Shrī Shaṅkha-turya-mṛdangādi-vāditra-āḍhyā-apsarovṛtāya

The Lord is surrounded by celestial nymphs(apsaras), who play

musical instruments like Shaṅkha(conch), turya(wind instrument),

mṛdanga(percussion) etc.

70. Shrī Viṣhvaksenādi-yuk-pārshvāya

He who is accompanied by commanders like Viṣhvaksenā.

71. Shrī Sanakādi-munistutāya

He who is praised by sages like Sanaka.

72. Shrī Sāshcharya-sasmita-chaturmukha-netra-samīkshitāya

The one who is so perfect that even Lord Brahma looks at Him with

great astonishment unable to hide His smile.

73. Shrī Sashaṅka-sambhrama-ditidanu-vaoñshya-samīditāya

He who is praised even by the demoniac offsprings of Diti who are

gripped with doubts and confusions.

74. Shrī Namanonmukha-devādi-mauli-ratna-lasatpadāya

He whose feet radiate the luster of gems on the crowns of the Gods

who are prostrating before Him.

75. Shrī Divya-tejah-puñja-rūpāya

He who is radiant divine luster.

76. Shrī Sarva-deva-hitotsukāya

He who is eager for the welfare of Gods.

77. Shrī Sva-nirgama-kshubdha-dugdha-vārāshaye

He who emerged from the milky ocean creating great disturbance.

78. Shrī Dundubhi-svanāya

His voice resembles the sound of Dundubhi(divine drum)

79. Shrī Gandharva-gītā-padān-shravanotka-mahā-manase

He who is eager to listen to the music and songs of the

Gandharvas.

80. Shrī Nishkiñchan-jana-prītāya

He who is pleased by the offering of the deprived.

81 Shrī Bhava-samprāpta-roga-hṛte

The Lord who removes the diseases created by contact with the

transient world.

82. Shrī Antarhita-sudhā-pātrāya

The pot of ambrosia in His hand is kept concealed

(and becomes visible only to true aspirants and devotees)

83. Shrī Mahātmane

The great one

84. Shrī Āmnāyakāgraṇye

He who is the forerunner of the Vedas

85 Shrī Kshaṇāpta-mohinī-rūpa-sarva-strī-shubha-lakshaṇaya

He who instantly took the form of Mohini- symbolising

delusion(Māyā) with all the auspicious signs of feminine beauty.

86. Shrī Mada-mattebha-gamanāya

He who walks like a majestic elephant

87. Shrī Sarva-loka-vimohanāya

He who enchants the whole world

88. Shrī Straoṅsan-nīvī-granthabandha-sakta-divya-karāṅgulaye

The one whose divine fingers hold together the loosening folds of

His garment tucked into the waistband.

89. Shrī Ratna-darvī-lasaddhastāya

He who holds a ladle made of gems

(to distribute the nectar of immortality who seek refuge at Him)

90. Shrī Deva-daitya-vibhāgakṛte

He who distinguishes between demons and Gods

91. Shrī Saṅkhyāta-devatā-nyāsāya

He who is worshipped by the proper placement of various aspects

of divinity in the worshipper.

92. * Daitya-dānava-vañchakāya

He who deceives the demoniac ascendants of Diti.

93. Shrī Devāmṛt-pradātre

He who distributes nectar of immortality to Gods.

94. Shrī Pari-veṣhṭaṇa-hṛṣhtadhiye

He who is pleased when adorned with clothes.

95. Shrī Unmukhāya

The one whose face is raised upward (indicating He is always ready to act)

96. * Unmukha-daityendra-danta-paṅkti-vibhājakāya

He who severed the row of teeth on the raised face of the king of

demons.

97. * Puṣhpavanta-vinirdiṣhta-rāhu-raksh-shshiro-harāya

He who severed the head of demon Rahu at the instruction of sun

and moon.

98. * Rāhu-ketu-graha-sthana-pashchāt-gati-vidhāyakāya

He who ordained retrograde movements of shadow planets Rahu

and Ketu.

99. Shrī Amṛtā-lābha-nirviṇṇa-yudhdhad-devāri-sūdanāya

He who destroyed the enemies of Gods who were after the nectar

of immortality.

100. Shrī Garutma-vāhanārūḍhāya

He who rides the condor known as Garuḍa.

101. Shrī Sarva-shastrastra-sañyutāya

He who is equipped with all weapons and destructive instruments

(to eliminate negativities).

102. Shrī Sva-svādhikāra-santuṣhta-shakra-vahnyadi-pūjitāya

He who is worshipped by Indra, Agni and other Gods who are

happy to perform their allocated duties.

103. Shrī Mohinī-darshana-āyāta-sthaṇu-chitta-vimohakāya

His Mohini form deluded everybody who came to see Him.

104. Shrī Shachī-svāhādi-dikpāla-patnī-maṇdala-sannatāya

The one who is surrounded by Shachi (wife of Indra),

Svaha (wife of Agni), the wives of the guardians of directions and

others.

105. Shrī Vedānta-vedya-mahimne

He whose glory can be understood by the study of Vedānta.

106. Shrī sarva-lokaikarakshakāya

He who is the sole guardian of the entire Universe.

107. Shrī raja-raja-prapūjyāṅghraye

He whose feet are worshipped by the king of kings.

108. Shrī Chintitārtha-pradāyakāya

He who grants what one wishes for.

Sākshāt Shrī ĀdiShakti Mātājī Shrī Nirmalā Devyai Namo Namah

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Stay Away from Negativity

 जय श्री माताजी

         "दूर रहो। दूर रहो क्योंकि अब तुम सब शुद्ध हो गए हो। जो शुद्ध हैं वे गंदे लोगों के साथ नहीं मिलते हैं, है नाऔर इसलिए आपके दिमाग में यह समझने के लिए इतना ज्ञान होना चाहिए कि किसी भी कीमत पर आप गंदे लोगों के साथ नहीं मिलेंगे, है ना? और इसलिए आपके दिमाग में यह समझने के लिए इतना ज्ञान होना चाहिए कि आप किसी भी कीमत पर सहज योग को अन्य चीजों के साथ नहीं मिलाएंगे। जानना बहुत जरूरी है। मैं बहुत दिनों से यही बताने की कोशिश कर रहा था कि खुद को दूर रखो। लेकिन कई बार लोग ऐसा नहीं करते हैं और फिर उन्हें काफी तकलीफ होती है।

हमारे पास सभी प्रकार के शैतान हैं, सभी प्रकार की शैतानी ताकतें किसी न किसी पंथ के रूप में कार्य कर रही हैं, या मुझे नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, उन्होंने लोगों का कोई भला नहीं किया है, कुछ भी अच्छा नहीं किया है। जरा देखिए कि उन दिनों क्या चल रहा था: हर तरह की लड़ाई, झगड़ा, हत्या है। यह सब चल रहा है, इसलिए आपको पता होना चाहिए कि हम कलियुग के बहुत बुरे प्रकार में हैं और हमें इसे सामूहिक रूप से लड़ना होगा।

       बच्चों को देखो, वे कितने सामूहिक हैं। आप सभी को सामूहिक होना चाहिए और आपको सभी लोगों से, सभी सहजयोगियों से, जो आसपास हैं, प्रेम करना चाहिए। उनमें दोष न ढूंढ़े। उनसे मत लड़ो क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण काम है जो मैं कर रहा हूं।

       मैं जो करने की कोशिश कर रहा हूं वह लोगों को बदलना है, उन्हें अच्छा इंसान बनाना है, अच्छे इंसान बनाना है। यह उनसे बाहर निकलने के लिए नहीं है, बल्कि उन्हें कुछ देने के लिए है कि वे बहुत अच्छे इंसान बन जाएं। हमारे पास बहुत अच्छे और अच्छे लोग होने चाहिए, वे लोग जो नफरत नहीं करते, वे लोग जिनमें लालच नहीं है।"

जर्मनी। 27-09-2002.


Jai Shree Mataji

         " Keep away. Keep aloof because now you all have been cleansed. Those who are cleansed people don't mix up with people who are muddy,do they ? And so must have this much of wisdom in your head to understand that at any cost you will not mixup with people who are muddy, do they ? And so must have this much of wisdom in your head to understand that at any cost you will not mixup Sahaja Yoga with with other things. It is very important to know. I have been trying to tell this since long that keep yourself aloof. But sometimes people don't do it and then they suffer a lot.

           We have all kinds of devil's around, all kinds of satanik forces acting as some sort of a cult, or i don't know what they're doing, they have done no good to people, no good at all. Just see what is going on in those days: is all kinds of fighting, quarrelling, killing. All this is going on, so you must know we are in the very very bad type of Kali Yuga and we have to fight it out by collectivity.

       Look at the children, how collective they are. You all have to be  collective and you must love all the people, all the Sahaja Yogis who are around. Do not find faults with them. Don't fight with them because it is very important work I am doing. 

       What I am trying to do is to transform people, to make  them  good people, nice people. It is not to get out of them, but to give them something that they should become very good people. We have to have extremely good and nice people, people who do not hate, people who do not have greed."

Germany. 27-09-2002.

Thursday, September 29, 2022

Ingredients for Sahaja Yoga Havan

॥ हवन हेतु लगने वाली सामग्री ||


20-25 ईटें, रेत, काली मिट॒टी (उपयुक्त मात्रा मैं) |

रंगौली, हल्दी, कुंकुम, अक्षदा, नारियल -2 |


पांच तरह के फल (कैला और खट्टे फल छौडकर)।


सूखा मेवा - 7 प्रकार कै |


तीन किलो लकडी, उपला (कण्डा) , आधा किलो कपूर,


3 किली घी, ।- चम्मच लम्बी डंडी वाला (हवन हैठु )।


हवन सामग्री 5 किलौ, साबुत धान नौ तरह के (उडढ, छोले , काला चना, राजमा , मुंडा, मौठ, मसुर आदि) ।


तिल काले व सफैढ, अजवाईन, चंदन पावडर, लौह॒बान, ग़ुग्गल (ये सारा सामान एक कटोरी भरकर कम सै कम) |


बेल फल या नारियल को घी लगाकर अलग थाली मैं रखें। 


हवन का भात - ये चावल साफ धौकर उसमें दूध, घी तथा सूखा मेवा डालकर पकाया जाता है। एक मुट्ठी चावल मै उसी मात्रा के अनुसार दूध, घी डालकर पकाये।


फूल थौडै सै, श्रीमाताजी कै लिये हार + ह॒वनंकुंड कै लिये हार कुल 4 हार ले (जब पूजा हवन साथ हो तब) ।


हवन कुंड के अंदर मध्य में रांगीली से स्वास्तिक तथा इटीं के चारो तरफ - स्वास्तिक व फल रखी जाते है। रंगीली सै हवनकुंड चारो ओर सै सजाया जाता है |



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Ingredients for Havan :

20-25 bricks, sand, black soil (in suitable quantity).

Rangoli, Haldi, Kumkum, Akshada, Coconut-2 |

Five types of fruits (except banana and citrus fruits).

Dry fruits - 7 types

Three kilos of wood, upla (kanda), half a kilogram of camphor,

3 kilos of ghee, .- spoon with long stick (for Havan ).

Havan material is 5 kg, nine types of whole grams (Urad, Chole, Black gram, Rajma, Munda, Mauth, Lentil etc.).

Sesame seeds - black and white, carom seeds, sandalwood powder, lohbaan, guggal (all these things fill a bowl at least).

Apply ghee to bael fruit or coconut and keep it in a separate plate.

Havan ka Bhaat - This rice is cleaned and cooked by adding milk, ghee and dry fruits to it. Cook a handful of rice by adding milk, ghee according to the same quantity.

Some flowers  garland for Shri Mataji + garlands for Havanankund, take a total of 4 garlands (when puja is with Havan).

In the center of the havan kund, a swastik symbol is drawn and around the bricks also swastik is drawn and fruits are kept and sides are decorated with the help of rangoli


Thursday, September 15, 2022

Take care of liver - Hindi Article

 श्री माताजी की दिव्य वाणी 

 गुरू तत्व जो है वो इन तीनों शक्तियों, महाकाली, महालक्ष्मी महासरस्वती, इन तीनों शक्तियों का समन्वय है और ये नूतन स्वरूप परमात्मा ने हमारे अंदर समाई हुई है, जिस तरह से तीनों शक्तियां, ब्रह्मा विष्णु महेश जब पावित्र्य के सामने जाकर खड़ी हो गयी तो उस पावित्र्य ने उनको वो नूतनता, उनका भोलापन दे दिया, वो भोलापन से भरी हुई हैं ये तीनों शक्तियां जो हैं वो एक दत्तात्रेय जी के अंदर समाई हुई हैं, वो हमारे भवसागर में समाई हुई हैं।

हम किस तरह से अपने गुरु तत्व को कैसे मारते हैं ये मैं आपको बतलाऊंगी, किस तरह से हम अपने गुरु तत्व को हर समय खराब करते हैं, एक तो गुरू तत्व में हमारे अंदर जो चेतना है इसको संभालने वाला हमारा लीवर (यकृत) है, जब तक हमारा यकृत ठीक रहेगा, हमारी चेतना ठीक रहेगी और जैसे ही हमारा यकृत खराब हो जाता है, हमारा पित्त खराब हो जाता है।

दुष्ट आदमी के यहाँ और किसी गलत जगह खाना खाने से आपको बहुत तकलीफ हो सकती है, लीवर की खराबी से गुरू तत्व खराब होता है। 🌀🧘🏻‍♀️


 "भवसागर, गुरू तत्व का महत्व"🔱🚩

गुरू तत्व और श्री कृष्ण की शक्ति 

26 सितम्बर 1979

मुम्बई

Saturday, September 10, 2022

Shraadh Paksh - What prayer to do? Hindi Article

 "श्राद्ध पक्ष"

कर्मकांड की आवश्यकता नही, तो क्या करे ?


 श्राद्ध पक्ष  शुरू हो गए है l

अगर किसी सहजयोगी को ध्यानावस्था में लगता है कि हम पर पित्र दोष  है तो रोज सुबह ध्यान के बाद अगले 16 दिनों तक ये प्रार्थना नियमित करे l

जैसा कि श्रीमाताजी ने बताया है कि हमारा राइट हार्ट जिस पर पिता का स्थान होता है नियमित रूप से ध्यान के बाद अपने राइट हार्ट पर अपना लेफ्ट हैंड (बांया हाथ) रख कर प्रार्थना करे कि----


 श्रीमाताजी हमारे समस्त पित्र पूर्वजो को आप गति दीजिये, उनको मोक्ष प्रदान कीजिये, उन्हें अपने श्रीचरणों मे स्थान दीजिये।


        इसके बाद अपने पितरों से भी प्रार्थना करे कि----


आप हमारी चिन्ता ना करे हम माँ आदिशक्ति के श्रीचरणों मे पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट है। 

    उसके बाद कुछ देर चित को राईट हार्ट और सहस्त्रार पर एक साथ रख कर ध्यान करे l

        सहजयोगी रोज इस प्रकार से प्रार्थना करे, पितरों के लिए किसी भी अन्य कर्मकांड की आवश्यकता नही l

जय श्रीमाताजी

Fragrance & Shri Ganesh Tatwa - Hindi Article

 अपने मे जो कुछ गंदगी दिखाई देती है वह इस गणेश तत्व के कारण दूर हो जाती है अब इस श्री गणेश तत्व से पहले श्री गौरी कुंडलिनी का पूजन करना पड़ता है ।

 जब आप की कुंडलिनी का जागरण होता है, तब श्री गणेश तत्व की सुगंध सारे शरीर में फैलती है

 कुंडलिनी का जागरण जब होता है उस समय खुशबू आती है अनेक प्रकार की सुगंध आती है इसका मतलब है कि जिन लोगों को सुगंध प्रिय नहीं है, जिनको सुगंध अच्छी नहीं लगती है, उनमें भयंकर दोष है क्योंकि सुगंध पृथ्वी तत्व का एक महान तत्व है

 तो श्री गणेश का पूजन करते समय प्रथम हमें अपने आप को सुगंधित करना चाहिए । मनुष्य जितना दुष्ट होगा, बुरा होगा, उतना ही दुर्गंधी होगा 

ऊपर से उसने खुशबू लगाई होगी तो वहां मनुष्य सुगंधित नहीं है। सुगंध ऐसी होनी  चाहिए की मनुष्य आकर्षक लगे होनी  किसी मनुष्य के पास जाकर खड़े होने पर अगर  प्रसन्नता पवित्रता आने लगे तो वह मनुष्य सच मे सुगंधीत है 

कुंडलिनी एवं श्री गणेश

1976 दादर मुंबई

Friday, September 9, 2022

Workshop with Shri Vijay Nalgirkar - Q & A in Hindi

 इंदौर 25 सितम्बर 2016 को हुई वर्कशॉप में वरिष्ठ सहजयोगी श्री विजय नालगिरकर जी से पूछे गए सवाल और उनके द्वारा दिये गए जबाब


1-घर में रोज आरती करना चाहिये कि नहीं

जबाब-कर सकते हे।

करना अच्छा है।

पर करना ही चाहिये ये जरूरी नही


2-पूजा के दौरान पंचाम्रत पूजा के समय या श्रीगणेश पूजा के समय श्रीचरण को हाथ लगा सकते हे क्या या हाथो में ले सकते हे क्या।


जबाब- नही।

फूलो से उठाना हे और श्रीचरण के खड़ाऊ वाले हिस्से को उंगलियो से पकड़ कर दूसरी परात या थाली में रखना है। नेपकिन के ऊपर रख कर नेपकिन  से ही पोछना हे।सीधे हाथो का सम्पर्क टालना चाहिये।

ऊँगली से स्वस्तिक बिंदी लगा सकते हे।

पर उस समय भी श्रीचरण परात में रखे हुए हो न की हाथो में।


3-हवन के पूर्व किसी भी प्रकार की पूजा की जा सकती है क्या

जबाब- केवल हवन कुंड का पूजन करना है ।हवन के पहले किसी भी स्वरूप की पूजा नहीं करनी है।हवन के बाद कर सकते हे।


4-श्रीमाताजी के फोटो पर किसी भी प्रकार के गहने ,मुकुट, माला आदि फेविकोल या किसी अन्य चिपकाने वाली बस्तु से चिपका सकते हे क्या।

जबाब- नहीं।

ऐसा सुन भी पहली बार रहा हु।ऐसा नहीं करना चाहिये।

श्रीमाताजी के फोटो पर सिर्फ गुलाबजल से स्वच्छसाफ़ करने के अलावा कुछ नहीं लगाना है।

बिंदी भी जो फोटो में ओरिजनल हे उसी को रहने देना चाहिये।पैरो पर स्वस्तिक लगा सकते हे।

श्रीमाताजी किसी को भी चेहरे पर हाथ लगाने नहीं देती थी।


4-मुख्य केंद्र पर जिस भी स्वरूप की पूजा होती है क्या उस स्वरूप की पूजा उस दिन भी कर सकते हे क्या जो दिन उनका होता है।जैसे जन्माष्टमी जिस दिन हो उस दिन भी श्रीकृष्णपूजा कर सकते हे क्या।या गुरुपूर्णिमा पर श्रीगुरुपूजा जैसे


जबाब-घर पर कर सकते हे पर सेंटर पर उसी दिन पूजा करना है जिस दिन सामूहिक पूजा घोषित हो।


5-पूजा हवन सामूहिक ध्यान में जीन्स पहन सकते हे क्या।

महिलाये बाल खुले रख सकती है क्या।

 

जबाब-श्रीनालगिरकर काका ने विदेशी सहजि भाई बहनों का उदाहरण दिया की वो पूजा हवन सामूहिक ध्यान में महिला योगिनी साडी और भाई कुरता पजामा पहनते हे क्योंकि वो आरामदायक होते है।

आप लोग टाइट कपड़े क्यों पहनना चाहते हो।

हा सीधे ऑफिस से आ रहे हे या सेंटर से सीधे ऑफिस जाना है तो बात अलग है।

सामान्यतः सेंटर पर सबने गरिमामय कपड़े- साड़ी पहन कर आना चाहिये।


महिलाओ ने और सभी ने बाल कंघी  से सवार कर व्यवस्थित इत्यादि बना कर ही सेंटर आना चाहिये।


6-घर में ध्यान कक्ष के अतिरिक्त श्रीमाताजी के फोटो बेडरूम बैठक डायनिग किचन आदि में भी लगा सकते हे क्या।

जबाब-लगा सकते हे।पर जहाँ भी लगाये उसका पूरा सम्मान रखे।

उन सब फोटो को नियमित गुलाबजल से स्वच्छ करना है।

बेडरूम में भी पूरी मर्यादा और सम्मान का पालन करना है।

बाथरूम टॉयलेट छोड़ कर सब जगह लगा सकते हे।

बैज पेन्डेन्ट आदि बाथरूम टॉयलेट में जाते समय उतार कर जाना है।


7-वर्तमान में युवा शक्ति में सहज विबाह के प्रति कोई सम्मान नजर नही आता।

कोई भी कारण बता कर सहज मैच केंसल कर देते है। 


जबाब- एक बार मैच हो जाने के बाद कोई ठोस कारण हो तो मना कर सकते हे।

जाती पाती गोरा काला ऐसे बेतुके कारण बता कर मना नहीं करना चाहिये।

श्रीमाताजी ने ऐसे कई विवाह करवाये जिसमे 1 साथी बहुत सुंदर और दूसरा बिलकुल सामान्य भी नहीं दीखता था।

पर सब श्रीमाताजी के ऊपर छोड़ कर शादी करते थे।और आज वो सब सुखी हे।


8-श्रीमाताजी के कोण से फोटो के सामने हमको नियमित ध्यान जलक्रिया आदि करना चाहिये।कोई कहता है सिर्फ अभय मुद्रा या धन्वन्तरि स्वरूप पर ही ध्यान करना चाहिये।

कोई बिमारी हटाना होतो धन्वन्तरि स्वरूप फोटो पर ध्यान करना चाहिये क्या।


जबाब-श्रीमाताजी के किसी भी फोटो पर ध्यान कर सकते हे।

अभय मुद्रा धन्वन्तरि और भी अन्य सभी स्वरूपो पर ध्यान कर सकते हे।

बस फोटो श्रीमाताजी का ही हो।


9-किया दीपक सिर्फ सरसो के तेल का ही लगाना चाहिये

जबाब- घी का भी लगा सकते हे।किसी भी खाद्य तेल का उपयोग कर सकते हे दीपक जलाने के लिये।


10-क्या किसी बाधा या समस्या को दूर करने हेतु उल्टा बन्धन भी दे सकते हे।

जबाब- श्रीमाताजी ने कभी भी उल्टा बन्धन नहीं बताया।सीधा ही बताया है वैसा ही लगाना चाहिये।


11-सामूहिक ध्यान में सुने गये श्रीमाताजी के प्रवचनों को बाद में सामूहिकता को समझाना चाहिये क्या की श्रीमाताजी ने जो कहा उसका मतलब ये हे ऐसे।


जबाब- नहीं ।

इंग्लिश के प्रवचन का सारांश बता सकते हे।

हिंदी प्रवचन का 

कोई आकर पूछे तो बहुत संक्षिप्त सारांश दो लाइन में बता सकते हे।हर एक वाक्य को विस्तार से नही समझाना हे। कोई नहीं पूछे तो अपने दिमाग से श्रीमाताजी के प्रवचन का विश्लेषण करके नहीं बताना है।


12-सेंटर पर प्रसाद में नानवेज बना सकते हे क्या।

जबाब- बना सकते हे।पर जरूरी नहीं है।दिल्ली में कभी कभी नानवेज भी बनाया जाता था।

जिसको नहीं खाना हे वो नहीं खाये कोई समस्या नहीं।


13-पूजा सेंटर के दौरान लिये जाने वाले भजनों के बारे कोई विशेष गाइड लाइन हे क्या।

जबाब- भजन निर्मलाजंली और सहज की किताब से ही हो।बाहर का भजन या फ़िल्मी भजन नहीं गाना हे।


13-श्रीमाताजी को चढाये गये वस्त्र साड़िया ब्लाउज़ पीस आसन रुमाल आदि का क्या करना चाहिये।

जबाब- सेंटर पर श्रीमाताजी के सिंहासन आदि को सजाने आदि में उपयोग कर सकते हे।किसी को भी निजी उपयोग नहीं करना है।

अंत में

विसर्जन ही करना है।


14-हवन में पति पत्नी जोड़े से नहीं बैठ सकते क्या

जबाब-हवन पूजन सबमे जोड़े से बेठ सकते हे।


15-स्टेच पर पूजा की तैयारी में केवल महिलाओं का ही होना जरूरी है क्या


जबाब-नहीं जरूरी नही है।

पुरुषो को भी स्टेच पर पूजा की तैयारी में सहयोग करना चाहिये।


16-श्रीमाताजी प्रवचनों के अंत में कहती है परमात्मा सबको आशीर्वादित करे।जबकि वो स्वयं परमात्मा है तो वो क्यों अलग से कहती है

जबाब- श्रीमाताजी कहने को कहती है पर वो ही आप सबको आशीर्वादित करती है


17-बुधवार को सामूहिक ध्यान सेंटर नहीं होना चाहिये क्या।कोई कहता है बुधवार को सेंटर नहीं रखना चाहिये

जबाब- रख सकते हे।

दिल्ली में एक बहुत पुराना सेंटर बुधवार को  ही लग रहा है बरसो से लगता आ रहा है।


19-पातंजलि के प्रोडक्ट उपयोग कर सकते हे क्या


जबाब- रामदेव को श्रीमाताजी ने अगुरु बताया है।

ये सवाल पहली बार सुना है।इसको अच्छे से जांच पड़ताल के बताएंगे।


जब तक

बाजार में अन्य कम्पनियो के प्रोडक्ट भी हे वो उपयोग कीजिये।


20-हवन में आहुति कैसे डालना हे

बाई हथेली पर दाए हाथ की उंगलियों को घुमाना चाहिये क्या


जबाब-नहीं उंगलियो को नहीं घुमाना चाहिये।

लेफ्ट साइड से ऊपर उठा कर सर से ऊपर 3 बार घुमा कर हवन कुंड में आहुति डालना हे।


हवन कब कब करना चाहिये


केवल नवरात्रि में 1 हवन सामूहिकता में और 1 होली पर।

बाकि किसी सहजि के घर पर हवन जब होना चाहिये जब परिवार में मृत्यु हुई हो या बहुत नकारात्मकता और बाधा महसूस होती हो।या नए घर में प्रवेश हो या घर का जिर्णोदार हुआ हो।इन समस्त स्थितियों में सेंटर कोर्डिनेटर की सहमति लेनी चाहिये।


जब किसी का जन्म होता है या जन्मदिन होता है या कोई ख़ुशी की बात हो तो श्रीमाताजी की छोटी पूजा करना चाहिये न की हवन।

पुण्यतिथि पर भी हवन नहीं करना चाहिये।श्रीमाताजी की छोटी पूजा  स्वरूप में पूजा कर सकते हे।


21-श्रीमाताजी के उन नामो के आगे श्री लगाना चाहिये या नहीं जिसमे किसी राक्षस दैत्य बाधा का नाम आता हो।

जैसे महिषासुरमर्दिनि,मधुकैटभ हन्त्री

जबाब-सब नाम श्रीमाताजी के हे तो लगाना ही चाहिय।

पर जब भी नाम ले उसका उच्चारण एकसाथ हो जैसे श्रीमधुकेटभहन्त्री

श्रीमहिषासुरमर्दिनी

न की ऐसे श्री महिषासुर मर्दिनि ।याने शब्दो को अलग अलग नहीं एक साथ बोलना हे।जैसे श्रीशुम्भनिशुम्भसन्हन्त्री

श्रीचन्डमुण्डविनाशिनी ऐसे बोलना हे।


22-सामूहिक ध्यान कितने समय का होना चाहिये।और उसका स्वरूप केसा होना चाहिये।भजन कितने होने चाहिये।गाइड मेडिटेशन कितने समय का होना चाहिये।


जबाब-सामूहिक ध्यान सेंटर का  

न्यूनतम समय-सवा घण्टा

एवरेज-डेढ़घण्टे

और

अधिकतम-पौने 2 घण्टे से 2घण्टे का होना चाहिये


2 से 3 भजन होना चाहिये।जिसमे श्रीगणेश जी का भजन पहले गाना  जरूरी है।

गाइड मेडिटेशन में लेफ्ट राईट क्लियर कर सकते हे ,गाइड मेडिटेशन का समय 5- 10 मिनिट से ज्यादा का न हो।श्रीमाताजी की स्पीच पूरी चलानी चाहिये।स्पीच ज्यादा बड़ी हो तो भी बिच में बंद नहीं की जाय ।

पर 25 से 40 मिनिट की बहुत सी स्पीच हे वो चलाना चाहिये।

स्पीच के अंत में श्रीमाताजी के द्वारा अनन्त आशीर्वाद ,may God bless you,आदि सुनना अच्छा होता है।

सेंटर में स्पीच छोटी करने के बजाय गाइड मेडिटेशन भजन आदि में कटौती करे पर स्पीच में कोई कटौती नहीं करना चाहिये।

आरती के बाद 5 से 10 मिनिट ध्यान में बैठा जाना चाहिये।

सेंटर को कम समय में समाप्त नहीं करना चाहिये या बहुत ज्यादा समय नहीं लगाना चाहिये। सवा से डेढ़ घण्टे का समय लगाना चाहिये।प्रवचन बड़ा हो तो सेंटर का समय बड़ा सकते हे।पौने 2घण्टे कर सकते हे।पर स्पीच बिच में रोकना नहीं है।


23- आरती पूजन सामूहिकता में महिलाओं को सर पल्लू लेना चाहिये क्या।विधवा महिला आरती कर सकती है क्या,श्रीमाताजी की ओटी (गोद) भर सकती है क्या।


जबाब-श्रीमाताजी के सामने सर पर पल्लू लेने की कोई जरूरत नहीं।

धुप में जाना हो या ज्यादा सर्दी हो तो सर ढका जाना चाहिये।अन्यथा नहीं।

स्त्री पुरुष सभी को सर पर हमेशा टोपी या कपड़ा पहनने की कोई जरूरी नहीं।श्रीमाताजी के सामने हमेशा सहस्रार खुला हुआ होना चाहिये न की ढका हुआ।


विधवा महिला आरती पूजा कर सकती है।

ओटी भर सकती है।

बशर्ते अच्छी तरह श्रगार कर कुंकुम लगायी हुई हो न की विधवा के जैसे सफेद साड़ी पहने और माथे पर कुमकुम न लगाया हो।


24-मुख्य पूजाओं जो ट्रस्ट द्वारा कैलेंडर में घोषित की जाती है उनके अतिरिक्त वो पूजाए भी कर सकते हे क्या जो श्रीमाताजी ने कभी कभी करवाई है।जैसे श्री हनुमान पूजा

श्रीराम पूजा 

श्री भैरवनाथ पूजा 

श्री बुद्ध पूजा

ईस्टर पूजा ।

जबाब-मुख्य पूजाओं के अतिरिक्त सभी पूजा सेंटर कमेटी तय करके कर सकती है।

पूजा का स्वरूप पुरे पूर्ण स्वरूप में या सांकेतिक या छोटा कर सकते हे।ये सेंटर कमेटी तय करे की पूजा पुरे पूर्ण स्वरूप में करना है या छोटे स्वरूप में।

पूरी पूर्ण पूजा याने जैसी मुख्य पूजाए होती है वैसे 

या

छोटे स्वरूप में भजन गा कर 108 नाम से फूल पंखुड़ी अर्पण करके पूजा कर सकते हे।

Jai Shri Mataji

Thursday, July 7, 2022

Nabhi Chakra. February 1977

  नाभि चक्र, हर इंसान के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में स्थित है।


नाभि चक्र, हर इंसान के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में स्थित है। यदि यह नहीं है, तो इसका मतलब है कि यह एक छोटी सी समस्या होने वाली है, आपको इसे सही जगह पर लाने के लिए। एक तरह की परेशानी है जिससे आप में से अधिकांश पीड़ित हैं, शायद ड्रग्स या शायद तंत्रिका संबंधी समस्याओं के कारण, युद्ध के कारण, या शायद आपके भरण-पोषण के लिए किसी प्रकार का झटका। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान, लोगों ने अपने मूल्यों को खो दिया, क्योंकि उन्होंने ईश्वर में विश्वास खो दिया। पवित्रता में विश्वास करने वाली पवित्र महिलाओं पर बेरहमी से हमला किया गया। बहुत धार्मिक लोगों को सताया गया, परिवारों को तोड़ा गया, कई पुरुष मारे गए, और बच्चे, महिलाएं और बूढ़े लोग तितर-बितर हो गए। असुरक्षा का एक बहुत ही भयानक माहौल, इन सभी राष्ट्रों पर हावी हो गया। फिर आए एकाग्रता शिविर, आप भी देखें, जिसने मनुष्य को चकनाचूर कर दिया, क्योंकि मनुष्य बहुत नाजुक यंत्र हैं। वे प्रतिष्ठित रचनाएं हैं, वे सर्वोच्च हैं और उन पर बम जैसी चीजों का बोलबाला था, जो पदार्थ हैं। इस प्रकार, मनुष्य में आत्मा मर गया। लोगों ने धार्मिकता में, प्रेम में विश्वास खो दिया।

फिर प्रतिभूतियों का एक नया पैटर्न बनाया गया। इसके बाद औद्योगिक क्रांति हुई, जिसके परिणामस्वरूप आनंद, सुरक्षा, प्रेम की कृत्रिम भावना को समाज ने स्वीकार कर लिया। मनुष्य ने अपनी स्वतंत्रता के साथ यही किया, क्योंकि युद्ध मनुष्य द्वारा रचे जाते हैं, यह परमेश्वर का काम नहीं है। लेकिन इसके साथ ही, बहुत बड़ी खोज करने वाली आत्माओं ने इस धरती पर जन्म लिया। वे भौतिकवाद की तरह इन कृत्रिम प्रतिभूतियों से परे की तलाश करने लगे। उन्हें संगठित करने और उन्हें सही रास्ते पर ले जाने के लिए साधकों के पास कोई उचित नेता नहीं था। तो उनके द्वारा की गई गलतियों ने एक बाधा उत्पन्न की। तो, मानव जागरूकता की बाधाओं के अलावा, कई अन्य बाधाएं जोड़ी गईं [श्री माताजी के अलावा: हां] और भी कई बाधाएं जोड़ी गईं, जिसने सहज योग को उनके लिए एक कठिन प्रक्रिया बना दिया।

युद्ध में भाग लेने वाले देश ही विकसित देश बने। प्रतिक्रिया के रूप में, प्रतिक्रिया नहीं, वे ही विकसित लोग हैं, जो वास्तव में युद्ध में भाग ले रहे हैं। और जिन्होंने नहीं किया, वे अविकसित हैं। तो, एक तरफ, हमारे पास ऐसे देश हैं, जो तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे अविकसित हैं, क्योंकि वे समृद्ध हैं, लेकिन उनके साधकों ने अपनी भावनाओं को विरोधी भावना के कारण खो दिया है। ठीक है? जबकि अन्य देश अभी तक विकसित नहीं हुए हैं, इसलिए वहां के साधक अभी भी धन की तलाश में हैं। इस मोड़ पर, सहज योग की खोज हुई, यह वह चरण था जिसके द्वारा ईश्वर के साथ मानव जागरूकता का वादा किया गया मिलन स्थापित होता है, जिसके माध्यम से आप अपने अचेतन, ईश्वर की शक्ति को महसूस करते हैं, जो सर्वव्यापी है, जो सोचता है, संगठित करता है, और योजनाएँ। सहज कुंडलिनी योग, सहज कुंडलिनी योग के माध्यम से ही, सहज कुंडलिनी योग से ही मनुष्य का विकास होगा। लेकिन जो लोग विकसित होने जा रहे हैं, उन्हें अपना धर्म बरकरार रखना होगा।

परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

नाभि चक्र। फरवरी 1977। यह भाषण भारत में पश्चिमी योगियों के पहले भारत दौरे (जनवरी-मार्च 1977) के दौरान दिया गया था।



The Nabhi chakra, is placed at the centre of gravity, of every human being. If it is not there, that means it is going to be a little problem, for you to get it in its right place. There is a kind of a trouble which most of you suffer from, is maybe due to drugs or maybe nervous problems, due to war, or maybe some sort of a shock to your sustenance. For example, during war, people lost their values, because, they lost faith in God. Chaste women who believed in chastity, were brutally assaulted. Very religious people, were persecuted, families were broken., many men were killed, and children, women, and old people, were scattered. A very horrible atmosphere of insecurity, overpowered all these nations. Then came the concentration camps, you see, also, which shattered human beings, because human beings are very delicate instruments. They are the coveted creations, they are the highest and they were dominated by things like bombs, which are matter. Thus, the Spirit in man, died out. People lost faith in righteousness, in love.

Then a new pattern of securities were built up. The industrial revolution followed it, as a result and the artificial sense of joy, of security, of love, was accepted by the society. This is what man did with his freedom, because wars are created by man, this is not God’s doing. But along with it, very great seeking souls, took their birth on this Earth. They started seeking beyond these artificial securities, like materialism. The seekers had no proper leaders, to organize them, and to lead them to the right path. So the mistakes committed by them, created a hurdle. So, apart from the hurdles of human awareness, so many other hurdles were added [Aside Shri Mataji : Yes] so many other hurdles were added, which made Sahaja Yoga a difficult process for them.

The countries who took part in the war, only became the developed countries. As a reaction, no its a reaction, they are the only developed people, who are actually taking part in the war. And those who did not, are underdeveloped. So, on one side, we have countries, who are trying to seek, because they are overdeveloped, because they are affluent, but their seekers have lost their moorings, because of anti-feeling. Alright? While other countries are not yet developed, so the seekers there, are still seeking in money. At this juncture, Sahaja Yoga was found out, this was the stage by which the promised union of human awareness with God is established, through which you feel your unconscious, the Power of God, which is All-pervading, which thinks, organizes, and plans. Only through Kundalini Yoga of Sahaja,  Sahaja Kundalini Yoga, only through Sahaja Kundalini Yoga, human beings are going to evolve. But those who are going to evolve, have to have their dharma intact.


H.H.Shree Mataji Nirmala Devi


Nabhi Chakra. February 1977.  This talk was given in India during the western yogis’ first India tour (Jan-March 1977).

Monday, June 20, 2022

Ekadasha Rudra Puja - Italy - Hindi Translation

 एकादश रुद्र पूजा कोमो (इटली) १६ सितम्बर, १९८४


आज, हम एक विशेष प्रकार की पूजा कर रहे हैं जो एकादश रुद्र की महिमा में की जाती हैं ।


रुद्र – यह आत्मा की, शिवजी की विनाशकारी शक्ति हैं । एक ऐसी शक्ति, जो स्वभाव से क्षमाशील हैं। वह क्षमा करती हैं, क्योंकि हम इंसान हैं, हम गलतियां करते हैं, हम गलत काम करते हैं, हम प्रलोभन में फस जाते हैं, हमारा चित्त स्थिर नहीं रहता – इसलिए वह हमें क्षमा करते हैं। वह हमें तब भी क्षमा करते हैं जब हम अपनी पवित्रता को खराब करते हैं, हम अनैतिक चीजें करते हैं, हम चोरी करते हैं, और हम उन चीजों को करते हैं जो परमात्मा के खिलाफ हैं, उनके (परमात्मा के ) खिलाफ बाते करते है, तो भी वह हमें क्षमा करते हैं, ।


वह हमारा छिछलापन (सुपरफिशिअलिटीज़ ), मत्सर, हमारी कामवासना, हमारे क्रोध को भी क्षमा करते हैं। इसके अलावा वह हमारे आसक्ति , छोटी ईर्ष्या, व्यर्थताओं और अधिकार ज़माने की भावना – को भी क्षमा करते हैं। वह हमारे अहंकारी व्यवहार और गलत चीजों से हमारे जुड़े रहने को भी माफ कर देते हैं।


लेकिन हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है, और जब वह क्षमा करते हैं, तो वह सोचते हैं कि उन्होंने आप पर एक बड़ा अनुग्रह किया हैं, और जिन लोगों को क्षमा किया जाता हैं, और जो अधिक गलतियों को करने की कोशिश करते हैं, वह प्रतिक्रिया परमात्मा के अंदर क्रोध के रूप में बनती है । विशेष रूप से, आत्मसाक्षात्कार के बाद, क्योंकि आपको इस तरह का एक बड़ा आशीर्वाद प्राप्त हुआ हैं – आपको प्रकाश मिला हैं, और इस प्रकाश में भी , यदि आप हाथ में सांप ले रखे हैं, तो उनका क्रोध बढ़ जाता हैं क्योंकि वह देखते है कि आप कितने बेवकूफ हैं।


मैं ये कहना चाहती हूँ कि, विशेष रूप से आत्मसाक्षात्कार के बाद, वह अधिक संवेदनशील होते हैं कि, जिन्हें क्षमा किया जाता हैं और आत्मसाक्षात्कार जैसी बड़ी चीज दी गई हैं, फिर भी वह गलत चीजें करते हैं, तो वह (परमात्मा) अधिक क्रोधित हो जाते हैं।


तो, संतुलन में, क्षमा कम हो जाती है और क्रोध बढ़ने लगता हैं।


लेकिन जब वह क्षमा करते हैं और, क्षमा के परिणामस्वरूप आप कृतज्ञता महसूस करते हैं, तो उनके आशीर्वाद आपके प्रति बहने लगते हैं। वह आपको दूसरों को क्षमा करने के लिए जबरदस्त क्षमता देते हैं । वह आपके क्रोध को शांत करते हैं, वह आपकी वासना को शांत करते हैं, वह आपके लालच को शांत करते हैं। खूबसूरत ओस की बूँद (ड्यू ड्रॉप) जैसे उनके आशीर्वाद हमारे ऊपर बरसते हैं और हम वास्तव में सुंदर फूल बन जाते हैं, और उनके आशीर्वाद से प्रकाशमान होते हैं।


अब वह उन सभी को नष्ट करने के लिए अपने क्रोध – अपनी विनाशकारी शक्ति का उपयोग करते हैं जो हमें परेशान करने की कोशिश करता है। वह हर पल, हर प्रकार से, आत्माक्षात्करिओं की रक्षा करते हैं । नकारात्मकता एक सहजयोगी पर हमला करने की कोशिश करती हैं लेकिन सारी शक्ति से वे इन नकारात्मकता को नष्ट करते हैं ।


उनके चैतन्य के माध्यम से वे हमें सही रास्ता दिखाते हैं ।


उनके सुंदर आशीर्वाद का वर्णन साम-२३ में किया है , यह २३ भजन है …… द लॉर्ड इज माय शेपर्ड परमात्मा एक चरवाहे के रूप में आपकी देखभाल कैसे करता हैं ।


लेकिन वह दुष्ट लोगों की देखभाल नहीं करते, उन्हें नष्ट किया जाता हैं। जो लोग सहजयोग में आने के बाद भी अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ते, एकादश रुद्र उन्हें नष्ट कर देते हैं।


जो लोग सहजयोग में आते हैं और ध्यान नहीं करते, तरक्की नहीं करते, उन्हें नष्ट कर देते हैं, या उन्हें सहजयोग से बाहर फेंक दिया जाता हैं। जो लोग ईश्वर के खिलाफ बड़बड़ाते है और ऐसे तरीके से जीवन बिताते हैं जो एक सहजयोगी के लिए सही नहीं हैं , वे उन्हें हटा देते हैं। तो एक तरफ से वह रक्षा करते हैं, और दूसरी तरफ से वह दूर फेंकते हैं। लेकिन उनकी विनाशकारी ताकत जब बहुत बढ़ जाती हैं, तो हम इसे कहते हैं की – अब एकादश रुद्र सक्रिय हैं ।


अब, यह एकादश रुद्र तब कार्यान्वित होते हैं , जब कल्कि स्वयं क्रियाशील होते हैं , इसका अर्थ यह है की यह विनाशकारी शक्ति , इस धरती पर जो नकारात्मक (निगेटिव) हैं, उसका संहार करेगी और जो सकारात्मक हैं उसे बचाएगी। इसलिए सहजयोगियों के लिए अपने उत्थान को कायम रखना बहुत जरुरी हैं , अपने सामाजिक जीवन या वैवाहिक जीवन से या परमात्मा द्वारा दिए गए सभी आशीर्वादों से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए । हम हमेशा यही देखते हैं, भगवान ने हमारे लिए क्या किया हैं, वह हमारे लिए कैसे चमत्कार करते हैं, लेकिन हमें देखना हैं कि हमने अपने साथ क्या किया हैं, हम अपने स्वयं की उन्नति और विकास के बारे में क्या कर रहे हैं।


अब … एकादश का मतलब है – ग्यारह । ग्यारह केंद्रों में से … , पांच आपके भवसागर के दाहिने तरफ से आते हैं, और पांच आपके भवसागर के बाईं तरफ से आते हैं।


बाईं तरफ से पहले पांच आते हैं, अगर आप गलत गुरुओं के सामने झुकते हैं, या अगर आप गलत किताबें पढते हैं, या अगर आप गलत लोगों के साथ सम्बद्ध रखते हैं, या अगर आप ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं जो गलत रास्ते पर हैं, या आप स्वयं इन गलत लोगों के प्रतिनिधि या गलत लोगों के गुरु में से एक हैं।


अब इन पांच समस्याओं को हल किया जा सकता हैं, अगर हम पूरी तरह से, जो भी गलत कर रहे हैं उसे छोड़ देते हैं।


जैसा कि मोहम्मद साहिब ने कहा हैं कि आपको शैतान को पीटना है, जूते से ; लेकिन यह यांत्रिक रूप से नहीं बल्कि दिल से किया जाना चाहिए । कई लोग जो सहजयोग में आते हैं, मुझे बताते हैं की , “मेरे पिता इस गुरु का अनुसरण कर रहे हैं-उस गुरु का अनुसरण कर रहे हैं, ” और अपने पिता, मां, बहन में लिप्त हो जाते हैं और उनको उन गुरुओं से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, खुद भी फस जाते हैं। या उनमें से कुछ दूसरी चीज़ों में फस जाते हैं। जैसा कि मुझे मॉरीन के बारे में पता हैं, जो मेरे साथ थी, और उसके माता-पिता और सांस-ससुर ने कहा कि बच्चे को बाप्तिस्मा देना चाहिए, और मैंने उससे कहा, तुम इस बच्चे को बपतिस्मा नहीं कर सकती क्योंकि यह एक साक्षात्कारी आत्मा हैं । लेकिन वह मेरी बात सुन न सकी, और उसने बच्चे को बाप्तिस्मा दे दिया और बच्चा बहुत विचित्रसा हो गया – यह वास्तव में एक पागल बच्चे की तरह था। बाद में उसने वह सब छोड़ दिया और वह बच गयी । लेकिन मान लीजिए कि अगर उसे और एक बच्चा होता और वह अपने दूसरे बच्चे के साथ भी यही करती तो, दूसरे बच्चे के साथ बहुत बुरा होता।


अब, सहजयोगियों के साथ परेशानी यह है कि जो कोई सहजयोग कार्यक्रम में आता हैं, सोचते हैं कि वह एक सहजयोगी है – ऐसा नहीं है।


या तो आपको चैतन्य की अच्छी संवेदनशीलता होनी चाहिए, या आपको इसे अपने शरीर में महसूस करना चाहिए, या अपनी बुद्धि से आपको समझना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं । एक व्यक्ति जो अभी भी नकारात्मक है वह हमेशा दूसरे ज्यादा नकारात्मक व्यक्ति के प्रति आकर्षित होता और उसे यह समझ में नहीं आता कि दूसरा व्यक्ति कितना ज्यादा नकारात्मक है, लेकिन प्रभावित हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में, ज्यादा नकारात्मक व्यक्ति इस नकारात्मक व्यक्ति को मार देता है और शिवजी उसकी रक्षा नहीं कर सकतें ।


किसी को भी नकारात्मक व्यक्ति के साथ सहानुभूति नहीं होनी चाहिए, चाहे वह पागल हो, चाहे उसके साथ कुछ गड़बड़ हो, चाहे वह आपका रिश्तेदार हो या कुछ भी हो। किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के लिए एक प्रकार का क्रोध होना चाहिए, एक प्रकार का अलगाव-अनासक्ति क्रोधित अलगाव । और यह क्रोधित अलगाव (गुस्सा) एकमात्र समय है जब आपको गुस्सा होना पड़ता है। लेकिन मैंने उन लोगों को देखा है जो बहुत अच्छे सहजयोगियों के लिए क्रोधित हैं, लेकिन अपने पति या पत्नि के लिए नहीं, जो बेहद नकारात्मक हैं।


तो जब एकादश रुद्र इन पांच जगह पर कार्यान्वित होना शुरू कर देते हैं, हमें कहना चाहिए कि, दाएं तरफ जाते हैं ,क्योँकि वे बायी ओर से आते हैं और दाएं तरफ जाते हैं, फिर व्यक्ति नकारात्मक बनाने लगता है लेकिन उसके अहंकार से वह काम करता है ।


ऐसा व्यक्ति परिस्थिति अपने हाथ में लेता है और कहता है कि “मैं ऐसा और इस तरह का सहजयोगी हूँ और मैं ऐसा हूँ, हमें ऐसा करना चाहिए और हमें इस तरह व्यवहार करना चाहिए”, और लोगों को निर्देश देना शुरू करता है । वह कुछ भी कर सकता हैं। और कुछ साधारण, आधे- अधूरे सहजयोगी उसे समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर जानते हैं कि, “यह आदमी बाहर जा रहा है, अब वह अपने रास्ते पर हैं !”


इसलिए, ये सभी चीजें इस बायी तरफ की वजह से आती हैं, या हम इसे सिर पे, ‘मेधा’ के दाईं ओर कह सकते हैं , इस प्लेट, मस्तिष्क-प्लेट को संस्कृत भाषा में ‘मेधा’ कहा जाता हैं ।


अब, दाये तरफ के एकादश, लोगों के विचार से आते हैं, “मैं खुद एक बड़ा गुरु हूँ ।” वे सहज योग के बारे में भी उपदेश करना शुरू करते हैं, जैसे कि वे महान गुरु बन गए हैं। हम कुछ लोगों को जानते हैं जो किसी भी कार्यक्रम में बड़े व्याख्यान देते हैं और कभी भी मेरे टेप चलाने की अनुमति नहीं देते हैं। उन्हें लगता है कि वे अब विशेतज्ञ बन गए हैं।


फिर, उनमें से कुछ कहते हैं कि अब हम इतने महान हो गए हैं कि हमें किसी भी नमक-पानी या कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, ध्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं है – ऐसे कुछ भी हैं। और फिर कुछ ऐसे हैं जो कहते हैं कि पाप हमें कभी नहीं छू सकता है, अब हम सहजयोगी हैं, हम बहुत महान आत्मा हैं।


लेकिन सबसे बुरे वो हैं जो मेरा नाम लेते हैं और कहते है कि “माँ ने ऐसा कहा हैं और मैं आपको बता रहा हूँ क्योंकि माँ ने कहा हैं” – जब ऐसी बात मैंने कभी की ही नहीं, तो सब झूठ हैं।


अब कुछ लोग हैं जो सहजयोग के पैसे का उपयोग करते हैं और सहजयोग का इतना फायदा उठाते हैं, कभी-कभी सहजयोगी भी ऐसा करते हैं । और ऐसे लोग बहुत अपवित्र हो जाते हैं। कोई भी जो इस तरह की चीजे करता है, वह सहजयोग से अपमान के साथ बाहर जाता है । लेकिन कोई ऐसे व्यक्ति के पास कभी नहीं जाना चाहिए, ऐसे व्यक्ति के साथ कोई लेन-देन नहीं रखना चाहिए, कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए । क्योंकि यह अपवित्रता किसी को भी किसी भी हद तक चोट पहुँचाएगी, इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना बेहतर है ।


जब ये दस एकादश व्यक्ति के अंदर विकसित हो जाते हैं, तो निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति को कैंसर या कोई असाध्य भयंकर बीमारिया आती हैं। विशेषतः जब ग्यारहवें जो वास्तव में यहां हैं, जो विराट चक्र हैं, जो सामूहिकता हैं – जब यह भी प्रभावित होता हैं, तो ऐसा व्यक्ति ऐसी बीमारी से बाहर निकल नहीं सकता।


लेकिन इन … इनमें से पांच ,मान लो, मूलाधार या आज्ञा के साथ मिलते हैं, फिर उन्हें बहुत गंभीर प्रकार की गंदी बीमारिया में आती हैं। यही कारण है कि, मैं हमेशा कहती हूं कि अपने आज्ञा चक्र के बारे में सावधान रहें, क्योंकि यह सबसे बुरी चीजों में से एक है, कि, एक बार यह एकादश के साथ मिलकर शुरू हो जाता है, एकादश के हिस्से के साथ, तो एक व्यक्ति के साथ कुछ भी हो सकता है, उसके साथ कोई भयानक दुर्घटना हो सकती है, वह अचानक किसी के द्वारा मारा जा सकता है, किसी के द्वारा उसकी हत्या की जाती है, ऐसे व्यक्ति के साथ कुछ भी हो सकता है, दायी आज्ञा, और कोई भी एक एकादश, दाया या बाया ।


इसका मतलब है, इनमें से पांच, या यदि पांच में से किसी एक , यदि आज्ञा चक्र के साथ मिलते हैं, तो परमात्मा की सुरक्षा शक्तियां कम से कम होती हैं।


तो, अपने आज्ञा चक्र को ठीक रखने के लिए, अब मैं बात कर रही हूं, आप लगातार मुझे देखना चाहिए, ताकि निर्विचारिता प्राप्त हो और आज्ञा चक्र ठीक हो जाए।


लेकिन हर समय यहां-वहां ध्यान नहीं देना चाहिए । फिर धीरे-धीरे, आपका चित्त निर्विचारिता में स्थिर हो जायेगा और आपका चित्त ऐसे स्थिर हो जायेगा की आपको किसी चीज़ के बारे में चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं ।


निर्विचारिता में कोई आपको छू भी नहीं सकता, वह आपका किला है। ध्यान से, निर्विचारिता आनी चाहिए, यही संकेत है कि आप उन्नति कर रहे हैं। बहुत से लोग ध्यान करते हैं और कहते हैं, “ठीक है, माँ हम कर रहे हैं।” यांत्रिक रूप से वे करते हैं और कहते हैं, “मैंने ऐसा किया, मैंने यह किया, और मैंने वह किया!” लेकिन क्या आपने कम से कम निर्विचारिता हासिल की हैं ? क्या आपने सिर से ठंडी हवा निकलने का अनुभव किया हैं? अन्यथा, यदि आप यांत्रिक रूप से कुछ कर रहे हैं, तो यह मदद नहीं करेगा; आपको नहीं या किसी को मदद नहीं करेगा।


तो, जागृती के बाद, जैसा कि आप बहुत अच्छी तरह से सुरक्षित हैं, आपके पास सभी आशीर्वाद हैं और एक महान भविष्य हैं, आपके पास पूर्ण विनाश की भी एक बड़ी संभावना हैं। उदहारण के तौर पे मैं कहूँगी – आप चढ़ रहे हैं, और हर कोई आपको चढ़ने के लिए सहायता कर रहा है, आपका हाथ पकड़ रहा है, और ऐसी कई चीजें हैं जिनके द्वारा आप सुरक्षित हैं, ऊपर की ओर ले जाने के लिए, गलती से भी गिरने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन यदि आप सत्य और प्रेम के बंधन को हटाने की कोशिश करते हैं और हर समय जो आपको सहारा देते हैं, उन लोगों को मारने का प्रयास करते हैं, तो आप एक बड़ी ऊँचाई, बहुत बड़ी ऊँचाई से गिरते हैं। मेरा मतलब है, आप जितनी अधिक ऊँचाई बढ़ाते हैं, उतना अधिक आप गिरते हैं, अधिक ताकत के साथ, और गहरे ।


लेकिन परमात्मा के द्वारा हर प्रयास किया जाता हैं, आपको आधार दिया जाता हैं, देखभाल की जाती हैं । इसके बावजूद, यदि आप गिरना चाहते हैं – उस ऊँचाई से, तो यह बहुत खतरनाक हैं ।


सहजयोग में होने के बावजूद, जब आप सहजयोग को नुकसान पहुंचाते है, तब एकादश रुद्र, आपको इतनी बुरी तरह चोट पहुँचाते है कि पूरा हमला चारों ओर फैलता हैं । लेकिन पूरे परिवार को संरक्षित किया जा सकता हैं अगर उस परिवार के कुछ लोग सहजयोग का कार्य कर रहे हैं । लेकिन अगर परिवार हमेशा सहजयोगियों के खिलाफ है और उन्हें परेशान करने का प्रयास करता है, तो पूरा परिवार बहुत ही बुरे तरीके से पूरी तरह नष्ट हो जाता है।


अब जैसा कि मैंने आपको बताया, ये एकादश रुद्र, भवसागर से आते हैं । तो, हम कह सकते हैं कि इसका विनाशकारी हिस्सा मुख्य रूप से भवसागर से आता हैं। लेकिन ये शक्तियाँ हैं, जो सभी एक ही में दी जाती हैं और वह हैं -महाविष्णु, जो कि ईसा मसीह हैं । क्योंकि वह पूरे ब्रह्मांड का आधार हैं , वह ओंकार का प्रकटीकरण हैं , वह चैतन्य का प्रकटीकरण हैं । तो जब वे क्रोधित हो जाते हैं, तो पूरा ब्रह्मांड टूटने लगता हैं । जैसे ही वह माँ की शक्ति को व्यक्त करते हैं जो प्रत्येक परमाणु में, हर अणु में, और हर इंसान में, हर चीज़ में, जीवित या निर्जीव, हर चीज में प्रवेश करती है, जब वह परेशान हो जाती है तो पूरी चीज खतरे में पड़ जाती है। तो ईसा मसीह की प्रसन्नता बहुत महत्वपूर्ण हैं ।


अब ईसा मसीह ने कहा हैं, “आपको छोटे बच्चों की तरह होना है” यही है, अबोधिता, हृदय की शुद्धता – यही सबसे अच्छा तरीका है जिससे आप उन्हें खुश कर सकते हैं।


विशेष रूप से, पश्चिम में, लोगों ने अपने दिमाग को ज्यादा ही विकसित किया है, वे शब्दों के साथ खेलने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि कोई भी नहीं जानता कि वे क्या कर रहे हैं। ऐसे सभी लोगों को पता होना चाहिए कि जो कुछ भी आप करते हैं वह ईश्वर को पता है।


यदि आपका दिल साफ नहीं हैं, तो एक बहुत अच्छा सहजयोगी होने का नाटक करना आप के लिए बहुत खतरनाक है । ऐसे लोग बाधाग्रस्त नहीं हैं, न ही वो कंडिशन्ड हैं, न ही वो अहंकारी हैं बल्कि वो बहुत चालाक धूर्त लोग हैं और वो काफी जानते हैं कि वो क्या कर रहे हैं। लेकिन, ऐसे भी लोग हैं जो बाधाग्रस्त हो जाते हैं और फिर वो, खुद को नष्ट करना, रोना-धोना या और सभी प्रकार की चीजों को करने की कोशिश करते हैं।


कुछ ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि अगर वो खुद को चोट पहुँचाते हैं या किसी तरह की चरम चीज करते हैं, तो भगवान खुश होंगे, लेकिन ये उनकी गलतफहमी हैं ।


यदि आप सहजयोग में आनंद नहीं ले सकते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर आप सहजयोग में खुश नहीं हो सकते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आपके साथ कुछ निश्चित रूप से गलत हैं।


यदि आप सहजयोगियों के सहवास में आनंदित नहीं हैं, तो निश्चित ही आप में कुछ प्रॉब्लम हैं।


यदि आप हस नहीं सकते और परमात्मा के महानता की सराहना नहीं कर सकते हैं, तो आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर आप अभी भी नकारात्मक लोग और उनकी समस्याओं के बारे में चिंतित हैं, तो आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर अभी भी आपको नकारात्मक लोगों के प्रति सहानुभूति हैं, तो भी आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


लेकिन अगर आपको नकारात्मक लोगों के प्रति गुस्सा हैं, सभी नकारात्मक – जो सहजयोग के खिलाफ हैं, तो आप सही हैं।


जब यह परिपक्वता आप में आ जाती है, तो आप स्वयं एकादश रुद्र की शक्ति बन जाते हैं। कोई भी जो आपको अपमान करने या किसी भी प्रकार की चोट पहुँचाने की कोशिश करता है, वह टूट जाता है । यह कई लोगों के साथ हुआ है, जिन्होंने मेरा अपमान करने की कोशिश की या मुझे किसी भी तरह से हानि पहुंचाने की कोशिश की …। कभी-कभी मुझे उनके बारे में काफी चिंता होती हैं ।


इसलिए किसी को इस तरह से होना चाहिए कि वे एकादश बन जाएं। कोई भी ऐसे लोगों को छू नहीं सकता । ऐसा व्यक्ति करुणा और क्षमा से भरा रहता हैं। परिणामस्वरूप, एकादश बहुत तेजी से कार्य करते हैं । जितने आप करुणामयी है, उतने आप अधिक शक्तिशाली एकदश बन जाते हैं। आप जितने अधिक सामूहिक हो जाते हैं, उतना एकादश अधिक कार्य करता हैं ।


बहुत से लोगों को अपने आप को दूर करने की आदत हैं और कहते हैं, “हाँ, हम घर पर बेहतर हैं और यह ठीक हैं,” लेकिन वे नहीं जानते कि वे क्या खो रहे हैं।


एक दुसरे के साथ आपका अनुभव कुछ भी हो सकता है, मगर आपको एक साथ रहना चाहिए, हमेशा कार्यक्रमों में भाग लेना, नेतृत्व करना, इसके साथ आगे बढ़ना, काम करना चाहिए तो आपको अनगिनत आशीर्वाद मिलेंगे ।


मैं कहूँगी की एकादश रुद्र सारी विनाश की शक्तियाँ हैं । यह श्री गणेश की विनाशकारी शक्ति हैं। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश की विनाशकारी शक्ति हैं। यह माँ की विनाशकारी शक्ति हैं। यह गणेश की विनाशकारी शक्ति हैं …… और भैरव,हनुमान,कार्तिकेय और गणेश ये चार हैं। सदाशिव और आदिशक्ति की शक्तियाँ भी हैं । सभी अवतारों की सभी की विनाशकारी शक्तियाँ एकादश हैं।


अब आखिरी, ये हिरण्यगर्भ की विनाशकारी शक्ति हैं, हिरण्यगर्भ जो की सामूहिक ब्रह्मदेव हैं। यह शक्ति कार्य करती हैं, तब प्रत्येक परमाणु का विस्फोट होता हैं, पूरी परमाणु ऊर्जा विनाश के तरफ चली जाती हैं।


इसलिए, इस प्रकार, पूर्ण विनाशकारी शक्ति एकादश रुद्र हैं। यह बेहद शक्तिशाली, विस्फोटक हैं, लेकिन यह अंधी नहीं हैं। यह बहुत विवेकी और बेहद नाजुकता से बुनि हुई हैं। यह सभी अच्छे चीज़ों को बचाती हैं और गलत चीजों पर हमला करती हैं और वो भी सही समय पर, सही बिंदु पर, सीधे, किसी भी सही चीज को आघात किये बिना ।


अब एकादश रुद्र की नज़र किसी पर पड़ती हैं, उदाहरण के लिए, जो ईश्वरीय हैं या जो एक सकारात्मक चीज हैं, तब यह सकारात्मक को बिना नुकसान किये सकारात्मक से आर-पार जाती हैं, और नकारात्मक पर प्रहार करती हैं। यह किसी को ठंडा करती हैं और किसीको को जलाती हैं। ठंडा यानि बर्फ जैसा जमा हुआ नहीं, शीतल !


तो यह इतना खयाल रखती हैं और इतनी नजाकत से काम करती हैं। यह बहुत तेज़ भी हैं और बहुत दर्दनाक भी। यह एक प्रहार में गर्दन काटने जैसा नहीं हैं, धीरे-धीरे धीरे-धीरे काटती हैं।


आपने सुनी हुई सभी भयानक यातनाए केवल एकादश की अभिव्यक्ति हैं। उदाहरण के लिए, कैंसर का मामला लो । कैंसर में, नाक हटा दिया जाता है, जीभ हटा दी जाती है, फिर गला हटा दिया जाता है, फिर सब कुछ, एक के बाद एक निकाला जाता है- भयानक दर्द !


कुष्ठरोग ( लेप्रॅसी ) का उदाहरण लीजिये, कुष्ठरोगी अपनी उंगलियों को महसूस नहीं कर सकते, महसूस नहीं कर सकते, इसलिए … कोई भी चूहा या कुछ भी उंगलियों को खाता है, वे इसे महसूस नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे अपनी उंगलियों को खोना शुरू करते हैं, इसी प्रकार एकदश लोगों को खाता हैं, नष्ट करता हैं।


लेकिन जब अपने बच्चों की बात आती हैं, तब पिता का यह क्रोध बहुत ही सौम्य हो सकता हैं, बहुत प्यारा हो सकता हैं। कहानी माँ के बारे में हैं – एक बार वह (आदिशक्ति माँ ) बहुत नाराज हो गई, और वह इतनी गुस्से में थी, वह पूरी दुनिया को अपनी एकादश शक्ति से नष्ट करना चाहती थी और उसने पूरी दुनिया को नष्ट करने की कोशिश की। जब वह उस दशा में गई, तो पिता ने खुद महसूस किया कि वह बहुत ज्यादा ही गुस्से में हैं। तो जब उसने नष्ट करना शुरू कर दिया, और वह दाई और बाई की ओर जा रही थी, तब पिता को पता नहीं चल रहा था कि क्या करना चाहिए , इसलिए उसने अपने बच्चे को यानि सहजयोगी को, जो ईसा मसीह का प्रतिनिधित्व करते हैं या उसके महान बच्चों में से किसी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे माँ के पैरों के नीचे रखा। तो, जब वह विनाश कर रही थी, अचानक उसने अपने बच्चे को उसके पैरों के नीचे देखा और उसकी इतनी बड़ी जीभ बाहर निकली। उसने संतुलन तुरन्त रोक दिया । लेकिन यह केवल एक बार हुआ।


तो, एकादश रुद्र के बाद, आखिर में पूरा विनाश सदाशिव के क्रोध के माध्यम से आता हैं। तब अंतिम कुल विनाश होता हैं।


तो हमने देखा कि एकादश रुद्र कैसे कार्य करते हैं और कैसे सहजयोगियों को स्वयं एकादश रुद्र बनना पड़ता हैं।


अब इस शक्ति को विकसित करने के लिए, अनासक्ति (डिटैचमेंट) की जबरदस्त शक्ति- याने की नकारात्मकता से अनासक्ति की शक्ति होनी चाहिए । उदाहरण के लिए, बहुत निकटतम लोगों से नकारात्मकता आ सकती है, जैसे भाई, माँ, बहन, दोस्तों से आ सकती हैं , रिश्तेदारों से आ सकती हैं। यह एक देश से आ सकती हैं, यह आपके राजनीतिक विचारों, आर्थिक विचारों से आ सकती हैं । कोई भी गलत पहचान, एकदश रुद्र की शक्ति को नष्ट कर सकती हैं।


तो इतना केवल कहना पर्याप्त नहीं है कि “मैं सहजयोग को समर्पित (सरेंडर) हूँ और मैं एक सहजयोगी हूँ “, लेकिन आपको मानसिक रूप से भी जानना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं। तो फिर बुद्धि से, आप समझते हैं कि सहजयोग क्या हैं। हालाकि पश्चिम में विशेष रूप से लोग कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान होते हैं और यदि सहजयोग की रोशनी उनकी बुद्धि में प्रवेश नहीं करती हैं तो आप कभी भी अपनी आसक्ति (अटैचमेंट ) पर काबू नहीं पाएंगे।


इसका मतलब यह नहीं है कि आप सहज योग के बारे में बहुत ज्यादा बात करें या आप उस पर व्याख्यान देने लगे, लेकिन दिमाग से भी आपको यह समझना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं ।


आज एक विशेष दिन है जब हमें एकादश रुद्र पूजा करने को कहा हैं और यह सभी प्रकार के झूठे धार्मिक संप्रदायों और झूठे गुरु और झूठे धर्मों के लिए हैं, जो परमात्मा के नाम पर किया जाता हैं, या उस धर्म के लिए हैं, जो आत्मसाक्षात्कार के बारे में नहीं कहता और आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति नहीं कराता और परमात्मा जो से जुड़ा नहीं है, वह झूठा है।


तो ऐसी कोई चीज जो सिर्फ ईश्वर पर विश्वास और ईश्वर के बारे में बात करता है, लेकिन परमात्मा के साथ कोई संबंध नहीं है, वह सच्चा धर्म नहीं हो सकता है। बेशक, यह लोगों को संतुलन देता है, लेकिन संतुलन देने के चक्कर में, यदि लोग उस पैसे पर रहते हैं और उस धन से आनंद लेने का प्रयास करते हैं, तो ऐसा धर्म तो बहुत न्यूनतम स्तर पर भी नहीं है।


संतुलन – सबसे पहले धर्म आपको संतुलन देना चाहिए, लेकिन उस संतुलन में जब वे कहते हैं, “आपको संतुलित होना है, लेकिन मुझे इसके लिए पैसे दो, आपको मुझे पैसा देना होगा, मुझे सब कुछ -आपका पर्स, मुझे सबकुछ दो,” तब संतुलन नहीं किया जा सकता, इसमें परमात्मा के आशीर्वाद की थोड़ी सी भी चीज नहीं है। या कोई धर्म जो आपको किसी अवतरण के सामने झुकाता है, यह कोई धर्म नहीं है। यह बिल्कुल झूठ है।


असली धर्म आपको संतुलन देगा और हमेशा उत्थान के बारे में बात करेगा। लेकिन वे पैसे नहीं मांगेंगा या पूजा के रूप में एक आदमी को कुछ महान नहीं करेंगा। इस प्रकार, सही गलत चीज़े, नकारात्मक चीज़े, असलियत में फरक समझना जरुरी हैं।


एक बार जब आप चैतन्य से, या अपनी बुद्धि के माध्यम से उसे समझना सीख लेते हैं, तो आप अपने नियंत्रण में हैं। और फिर जब आप अपनी परिपक्वता/ प्रगल्भता स्थापित करते हैं, तो आप एकादश की शक्ति बन जाते हैं।


आज, मैं आप सभी को आशीर्वाद देती हूँ , कि आप सभी एकादश रुद्र की शक्ति बन जाये और यह स्थिति आप के अंदर आने के लिए आप में ईमानदारी विकसित हो जाये ।


परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।

Friday, June 17, 2022

How To Meditate in Sahaja Yoga - Hindi Article

 सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करे

भारतीय विद्या भवन,बम्बई 29.05.1976

लेक्चर बहुत बड़ा है कुछ महत्वपूर्ण information)

एक पाँच मिनिट पानी में सब सहजयोगी को बैठना चाहिए। फोटो के सामने दीप जलाकर,कुमकुम वैगरे लगाकर अपने दोनों हात रखकर,दोनों पैर पानी में रखकर सब सहजयोगी को बैठना चाहिए। आपके आधे से जादा प्रॉब्लम दूर हो जायेंगे अगर आप यह करेंगे तो। चाहे कुछ हो आपके लिए पाँच मिनिट कुछ मुश्किल नही है सोने से पहले। आप लोगोंको यह आदत लगे इसलिए में जबरदस्ती बैठती हूँ तो मेरे सहजयोगी बैठेंगे।

सवेरे के time जल्दी उठकर नहा धोकर ध्यान करना चाहिए। हम लोगोंका सहजयोग दिन का काम है रात का नही,इसलिए रात को जल्दी सोना चाहिए।6 बजे सोने की बात नही कह रही मै,लेकिन करीबन 10 बजे तक सबको सो जाना चाहिए।10 बजे के बात सोने की कोई बात नही। सवेरे जल्दी उठाना चाहिए।

सवेरे जल्दी उठने से, सवेरे के Time मे Receptivity (ग्रहन-शक्ती) जादा होती हे मनुष्य की।और इतना ही नही उस वक्त संसार मे बहुत अत्यंत सुन्दर प्रकार का चैतन्य भरा होता सै।बडे ही नत-मस्तक होकर के,अपने तो हदय मे नत करना।स्वयं को नम्र करे।

सबको क्षमा करे जिससे भी हमने बैर किया है।परमात्मा को कहिए उसके लिए तुम हमे माफ कर दो।अत्यंत पविञ भावना मन मे लाकर आप ध्यान मे जाए।

आँखे बन्द करके आत्मा की ओर ध्यान करे। अब कितने मिनिट करे यह सवाल पूछना बहुत गलत बात है।आप चाहे पाच मिनिट करिये चाहे दस मिनिट करे।विचारपूर्वक अत्यंत श्रध्दा से जिस तरह पूजा मे बैठे हे मौन रहकर बन्धन दे।उस वक्त चित्त इधर उधर न जाने दे बातचीत न करे।

और यह विचार करे प्रभु!हम तुम्हारे बन्धन मे रहै,हम पर कोइ बुरा असर न आए।

ध्यान करते हुए आँखे बन्द कर ले कोई हाथ इधर उधर न घुमाने की जरुरत नही।उस वक्त कोई-सा भी चक्र खराब हो,उस चक्र की ओर दृष्टी करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा क्योकी उस वक्त मैने कहा है,ग्रहन शक्ती ज्यादा रहती है।

पहले तो अपने चक्र वैगरह शुध्द हो गये।इसके बाद आत्मा की ओर चित्त ले जाये।और यह आत्मत्व प्रेम है।अनेक बार इसका विचार करे।

अब रोजमर्रा के जीवन में क्या करना चाहिए?

रोजमर्रा के जीवन में आपको पता होना चाहिए की आपके अन्दर प्रेम की शक्ति बह रही है। आप जो भी कार्य कर रहे है क्या प्रेम से कर रहे है? या दिखाने के लिए कर रहे है की आप बड़े सहजयोगी है? हम भी किसीको कोई बात कहते है तो दुसरे दिन वो आकर हमे गालिया देते है और उसके बाद हमसे कहते है हमारे vibration क्यों चले गए।तो इस तरह आप मुर्खता करते है तो बेहतर होगा आप सहजयोग में ना आये।

हमारें अन्दर क्या दोष है? 

रोज के जीवन में देखते चले हम क्या चीज दे रहे है?

 हम प्रेम दे रहे है? 

क्या हम स्वयं साक्षात प्रेम में खड़े है? 

हम सबसे लड़ते है सबसे झगड़ा करते है। सबको परेशान करते है और सोचते है की हम सहजयोगी है। इस तरह की गलत फहमी में  ना रहना।अपने साथ पूर्णत: दर्पण के रूप में रहना चाहिए। समझ लीजिये आपके साथ कुछ चीज लगी तो माताजी उसे पोंछ दीजिये। इसी प्रकार अपने को देखते रहिये की 'देखिये अपने साथ कोनसी चीज लगी है इसको हम पोंछ लेते है।

जबरदस्ती से आप सहजयोग में आये है तो हमे आप माफ कीजिये आप सहजयोग से निकल जाये। एक दिन खुद ही आप निकल जायेंगे।

यहाँ पर आप परमात्मा के instrument(यंत्र) बनने जा रहे है।अत्यंत नम्रता आपके अन्दर आनी चाहिए। घमंड छोड़ दीजिये। लोग कहते है सन्यास लेना चाहिए मै कहती हूँ घमंड से आप सन्यास लीजिये।कपड़ो से नही लीजिये। कपड़े उतार देने से संन्यास नही होता। संन्यास का अर्थ होता है आपके अन्दर के षडरिपु से सन्यास ले(काम,क्रोध,लोभ,मोह,मत्सर,मद).

किसी ऐसे आदमी के साथ हमे कभी नही बैठना चाहिए जो सहजयोग की बुराई करता है। सहस्त्रार फौरन पकड़ेगा। एसा आदमी अगर बोले कान बंद कर लीजिये। cancer की बिमारी है वो बिल्कुल सहस्त्रार की बिमारी है।सहस्त्रार एकदम साफ रखे। आज नही तो कल एक साल के बाद आपको पता होगा की साहब हमको cancer हो गया।

क्यों न एसा करे जिससे यह हम व्यर्थ का समय बर्बाद कर रहे है-इसके घर जाये,रिश्तेदार के घर खाना खाये,फला के घर घुसो उसकी बुराई करो-छोड़ छाड़ के अपने मार्ग को ठीक बनाये और येसा जीवन बनाये संसार में उन लोगोंको नाम हो। 

अपने जीवन में एक बार निश्चय कर ले। तब सहजयोग का लाभ हो सकता है आप जानते है।

शरणागति होनी चाहिए। जरुरी नही की मेरे पैर पर आकर।शरणागति मन से होनी चाहिए। बहुत से लोग पैर लर आते है शरणागति बिल्कुल नही होती। शरणागत होना चाहिए। अगर आप शरणागत रहे अन्दर से तो आपकी कुंडलिनी जो है सीधी आत्मतत्व पर टिकी रहेगी। लेकिन शरणागत रहे।

कोई भी चीज महत्वपूर्ण नही है सिवाय आप प्रकाश बने। जिनको बेकार की चीज सूझती है उनके लिए बेहतर होगा आप उस चीज को छोड़ दे।

अब आखरी बात बताऊँगी। उसको आप बहुत समझकर और विचारपूर्वक करे।

अपने अन्दर स्वयं ही दृष्ट प्रवृत्तिया है।हमारे अन्दर बहुत सी काली प्रवृत्तिया जिसे हम नकारत्मकता कहते है उससे हमे बचना चाहिए। अगर आप शैतान बनाना चाहते है तो बात दूसरी है उसके लिए मै आपकी गुरु नही हूँ। लेकिन अगर आप भगवान बनाना चाहते है तो उसके लिए मै गुरु हूँ। लेकिन शैतान से बचना चाहिए।

पहली चीज है कि अमावस्या कि रात या पूर्णिमा कि रात दायें और बायें पक्ष को प्रभावित होने का भय होता है। दो दिन विशेष कर अमावस्या कि रात्रि को और पूर्णिमा कि रात्रि को बहुत जल्दी सो जाना चाहिए। भोजन करके , फोटो के सामने नतमस्तक होकर , ध्यान करके , चित्त को सहस्त्रार पर रखे तथा बंधन लेकर सो जाएं। इसका अर्थ यह है कि जिस क्षण आप अपने चित्त को सहस्त्रार पर ले जाते है उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते है। उस स्थिति में स्वयं को बंधन दे तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। विशेष रूप से इन दो रातों को। और जिस दिन अमावस्या कि रात्रि हो उस दिन , विशेष कर अमावस्या के दिन , आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिए। शिवजी का ध्यान करके , स्वयं को उनके प्रति समर्पित करके सोना चाहिए , और पूर्णिमा के दिन आपको श्री रामचंद्र जी का ध्यान करना चाहिए। उनके ऊपर अपनी नैय्या छोड़कर। रामचन्द्रजी का मतलब है सृजनात्मकता। सारी सृजनात्मक शक्तियां पूरी तरह से उनको समर्पित कर दें। इस तरह से इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिए। 

हालांकि , शुक्ल पक्ष सप्तमी और नवमी को विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है। सप्तमी और नवमी के दिन इस बात का ध्यान रखना कि इन दो दिनों में आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। सप्तमी और नवमी के दिन जरुर कोई ऐसा आयोजन करना जिसमे आप ध्यान अच्छी तरह से करे। 

किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे आज्ञा कि पकड़ हो तो तुरंत बंधन ले ले चाहे ये बंधन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा कि पकड़ वाले व्यक्ति से वाद - विवाद न करे। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भुत से क्या आप वाद -विवाद कर सकते है ?

जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है , उससे भी वाद - विवाद नहीं करना चाहिए। सहस्त्रार से पकडे व्यक्ति के पास कभी न जाएं , उससे कोई संभंध न रखे। उसे बताये कि पहले अपने सहस्त्रार को ठीक करो। उसे ये बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका सहस्त्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक कर दें। ' सहस्त्रार कि पकड़ वाला व्यक्ति यदि आपसे बात करता है , तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन है , शत्रु है। उस आदमी से बिलकुल उस वक्त तक बात नहीं कि जानी चाहिए जब तक उसका सहस्त्रार पकड़ा है। 

अब रही ह्रदय चक्र कि बात। जिस मनुष्य का ह्रदय चक्र पकड़ा है उसकी सहायता करे। जहाँ तक सम्भव हो उसके ह्रदय को बंधन दें। श्री माताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर उसका एक हाथ ह्रदय पर रखवाएं। ह्रदय चक्र के विषय में आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को ह्रदय चक्र कि समस्या हो सकती है। अपने ह्रदय चक्र को अवश्य शुद्ध रखें। 

परन्तु बहुत से लोगों में ह्रदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते है।

इस तरह रक्षा करने की बात है और जब भी आप बाहर जाए,कभीभी घर से बाहर जाए खुद खुद को पूर्णतया बंधन दे।बंधन में रखे।

जिस व्यक्ति का आज्ञा पकड़ा है उससे विवाद(argument) ना करे। तो क्यों आप भूत से argument कर सकते है। उससे argument नही करना चाहिए जिसका आज्ञा पकड़ा है-पहली चीज।

जिसका विशुध्दी पकड़ा है उससे भी argument नही करना चाहिए।

जिसका सहस्त्रार पकड़ा है उसके तो दरवाजे पर भी खड़ा नही होना चाहिए। जिसका सहस्त्रार पकड़ा है वो आपका दुश्मन है।उसे कहना चाहिए तुम अपना सहस्त्रार ठीक करो।

अब हृदय की बात है जिस मनुष्य का ह्रदय पकड़ा है उसकी मदद करे। जहा तक हो सके उसके हृदय को बंधन डाल दे।

हृदय की समस्या दूसरोंके परेशानी से हो सकती है येसे व्यक्ति को माँ के फोटो के सामने ले आकर ठीक करे।

जिन लोगोंके हृदय शुष्क है उनका आप कुछ नी कर सकते।वो आपके पास आये तो उन्हें कहना चाहिए हठयोग छोडिये सबसे प्यार करे।

किसी भी सहजयोगी को ओने बच्चों को मारना नहीं चाहिए। हाथ नही उठाना चाहिए। किसी से क्रोध नही करना चाहिए। सहजयोगी को क्रोध नही करना चाहिए।

आपको बता होना चाहिए आपकी माँ सबसे प्यार करती है।


अगर आपको नर्क मे जाना है,तो भी व्यवस्था हो सकती है,और अगर आपको परमात्मा के चरण कमलो मे उतरना है,तो भी व्यवस्था हो सकती है।इसलिए जो लोग मुझे परेशान करते है और तंग करते है,मुझे जिन्होने सताया है,ऐसे सब लोगो से मेरा कहना है कि मैने बहुत धैर्य से सबसे व्यवहार किया है,और अब अगर किसी ने मुझे तकलीफ दी तो मै उसे कह दुन्गी तुम्हारा हमारा कोई सम्बध नही,आप यहा से चले जाइये।फिर वो दो चार लात मारते है,इधर-उधर निकलते वक्त अपना गुण दिखाते है।उनके सब गुण दिखते है,लेकिन जो भी है,आपको यह चाहिये आप अपना भला सोचे।अगर वो नर्क की ओर जा रहे है तो आपको उनके गाडी मे बैठने कि जरुरत नही।होन्गे अपना भला करेन्गे।किसी से वादविवाद करने कि जरुरत नही।जो जैसा है वैसा ही रहेगा बहुत मुश्किल से बदलते हे लोग क्योकि वो दृष्ट है।जो अच्छे आदमी होते है वो गलती करते है जल्दी समझ जाते है।जो बुरे आदमी होते है उनका बदलना असंभव-सी बात है।मैने बहुत कोशिश कि है।लेकिन जो जैसा है वो वैसा हि है उसे आप बदल नही सकते।आप किसी भी प्रकार से ऐसे लोगो से सबंध न रखे।क्योकि वो यहॉ पर इसलिए है कि आपकी साधना को नष्ट करे।आप अपनी रक्षा उनसे करे।सहजयोग मे वाईब्रेशन पाये।

हर समय हम आपके साथ है।

जब भी आप अपनी आँखे बंद कर ले उसी वक्त पूर्णशक्ति लेकर "शंख,चक्र,गदा,पदम्,गरुड़ लई धाये" एक क्षण भी विलम्ब नही लगेगा। लेकिन आपको मेरा होना पड़ेगा। ये जरुरी है।

आप मेरे है तो एक क्षण भी मुझे नही लगेगा,मै आपके पास आ जाऊँगी।

सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबुध्दी दे। सम्मति से रहो। सम्मति से रहो।।।

जय श्री माताजी