Saturday, March 18, 2023

Pratah Smarami Shloka - Hindi and English Meaning

 Sanskrit Shloka - - composed by Sri Adi Shankaracharya






प्रातः स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वं
सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम् ।
यत्स्वप्नजागरसुषुप्तिमवैति नित्यं
तद्ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसङ्घः ॥१॥

मैं प्रातः काल, हृदय में स्फुरित हुए आत्मतत्व का ध्यान करता हूँ. जो सच्चिदानंद है,
परमहंसों का प्राप्य स्थान है और जाग्रदादि तीनों अवस्थाओं से विलक्षण है, जो स्वप्न, सुषुप्ति
और जागृत अवस्था को नित्य जानता है, वह स्फुरणा रहित ब्रह्म ही मैं हूँ, पांच तत्वों का शरीर मैं नहीं हूँ।

Meaning:
1.1: In the Early Morning I remember (i.e. meditate on) the Pure Essence of the Atman shining within my Heart, ...
1.2: ... Which gives the Bliss of Sacchidananda (Existence-Consciousness-Bliss essence), which is the Supreme Hamsa (symbolically a Pure White Swan floating in Chidakasha) and takes the mind to the state of Turiya (the fourth state, Superconsciousness),
1.3: Which knows (as a witness beyond) the three states of Dream, Waking and Deep Sleep, always,
1.4: That Brahman which is without any division shines as the I; and not this body which is a collection of Pancha Bhuta (Five Elements).

प्रातर्भजामि मनसा वचसामगम्यं
वाचो विभान्ति निखिला यदनुग्रहेण ।
यन्नेतिनेतिवचनैर्निगमा अवोचं_
स्तं देवदेवमजमच्युतमाहुरग्र्यम् ॥२॥


रातःकाल मैं उसकी पूजा करता हूँ, जो मन और वाणी से परे है,
(और) जिनकी कृपा से सभी चमकते हैं,
जिसे शास्त्रों में “नेति नेति” कथन द्वारा व्यक्त किया गया है, क्योंकि उसे शब्दों द्वारा पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता है,
जिन्हें देवताओं का देवता, अजन्मा, अविनाशी और आदि पुरुष कहा गया है।

2.1: In the Early Morning I worship That, Which is beyond the Mind and the Speech,
2.2: (And) By Whose Grace all Speech shine,
2.3: Who is expressed in the scriptures by statement "Neti Neti", since He cannot be adequately expressed by Words,
2.4: Who is called the God of the Gods, Unborn, Infallible (i.e. Imperishable) and Foremost (i.e. Primordial).


प्रातर्नमामि तमसः परमर्कवर्णं
पूर्णं सनातनपदं पुरुषोत्तमाख्यम् ।
यस्मिन्निदं जगदशेषमशेषमूर्तौ
रज्ज्वां भुजङ्गम इव प्रतिभासितं वै ॥३॥


प्रातःकाल में मैं उस अन्धकार को प्रणाम करता हूँ, जो परम प्रकाश का स्वरूप है,
जो पूर्ण है, जो मूल निवास है, और जिसे पुरुषोत्तम कहा जाता है,
जिसमें यह संसार अनंत रूप से बसा हुआ है।

3.1: In the Early Morning I Salute That Darkness (signifying without any Form) which is of the nature of Supreme Illumination,
3.2: Which is Purna (Full), Which is the Primordial Abode, and Which is called Purushottama (the Supreme Purusha),
3.3: In Whom this endless World is settled endlessly (i.e. from the beginning of creation), ...
3.4: ... and (this endless World) appear like a Snake over the Rope (of the Primordial Essence).

श्लोकत्रयमिदं पुण्यं लोकत्रयविभूषणम् ।
प्रातःकाले पठेद्यस्तु स गच्छेत्परमं पदम् ॥४॥

ये तीन श्लोक, जो पवित्र हैं (एक को संपूर्ण के साथ जोड़ता है), 

और तीनों लोकों के आभूषण है,
जो प्रात:काल इस श्लोक का पाठ करता है, वह परमधाम को जाता है।


4.1: These three Slokas, which are Holy (unites one with the Whole), and the ornaments of the Three Worlds,
4.2: He who recites in the early Morning, goes to (i.e. attain) the Supreme Abode (of Brahman).

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