Saturday, October 3, 2020

Nabhi Chakra - Article in Hindi - Shri Mataji's Quotes

 तृतीय चक्र नाभि चक्र कहलाता है। नाभि के पीछे इसकी दस पंखुरियाँ हैं। यह चक्र किसी भी चीज़ को अपने अन्दर बनाये रखने की शक्ति हमें देता है। शारीरिक  स्तर पर यह सूर्य चक्र में सहायक है।

       नाभि चक्र पर श्री लक्ष्मी-नारायण का स्थान है। श्री लक्ष्मी-नारायण जी का स्थान जो है हमें धर्म के प्रति रूचि देता है। उसी के कारण हम धर्मपरायण होते हैं, उसीसे हम धर्म धारण करते हैं। कार्बन में जो चार संयोजकतायें हैं वे भी इसी धर्म

धारणा की वजह से हैं।

                     प.पू.श्री माताजी, मुम्बई, २२.३.१९७९

      आपका नाभि चक्र यह सुझाता है कि आप अभी तक भी भौतिकता में फँसे हुए हैं। छोटी-छोटी चीज़ों में भी हम भौतिकवादी होते हैं। यह दुर्गुण सूक्ष्मातिसूक्ष्म होता चला जाता है। अतिव्यक्तिवादी या यह सबकी व्यक्तिगत चीज़ है। नाभि चक्र अत्यन्त व्यक्तिवादी है, 

                     प.पू.श्री माताजी, १८.१.१९८३

        अगर आप चालबाज़ी करते हैं या करने की कोशिश करते हैं तो आपका नाभि चक्र क्षतिग्रस्त होता है और आप अपनी चेतना खो बैठते हैं। पैसे के मामले में आपके सहजयोग के प्रति कैसे आचरण हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है...क्योंकि इससे नाभि खराब हो जाती है।

                      प.पू.श्री माताजी, ४.२.१९८३

बाईं नाभि को यदि उत्तेजित कर दिया जाये जैसे हर समय दौड़ते रहने से, उछल-कूद से, उत्तेजना से, तो उत्तेजित बाईं नाभि के कारण रक्त कैन्सर हो सकता है। जो औरतें पति से दुर्व्यवहार करती हैं, उसकी उपेक्षा करती हैं, उन्हें भयानक आत्माघात (Siriosis), मस्तिष्क घात, पक्षाघात, शरीर का पूर्ण डिहाइड्रेशन हो सकता है। बाईं नाभि बहुत महत्वपूर्ण है।

                  प.पू.श्री माताजी, सेंट जार्ज, १४.८.१९८८

 

अन्तर्जात गुण


१. संतोष - विकास प्रक्रिया में आप यदि उस अवस्था तक पहुँच जाते हैं जहाँ आप नाभि चक्र के ऊपर उठ जाते हैं, यानी नाभि चक्र को पार लेते हैं तो पैसा अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता..... संतोष प्राप्त हो जाता है।

                   प.पू.श्री माताजी, १८.८.२०००

...... संतोष मतलब जो मिला खूब मिला, अब और कुछ नहीं चाहिये। .....एक ऐसा सहजयोगी जिसके पास कुछ भी न होते हुए भी वो मौज़ में रहता है, बादशाह होता है ......ऐसा मनुष्य अपने में तृप्त होता है। ......पैसे से कभी भी संतोष नहीं मिलेगा, ये जड़त्व स्थूल है.

                   प.पू.श्री माताजी, बम्बई, २४.९.१९७९


२. औदार्य (दानत्व का भाव) - दानत्व वाला आदमी जो होता है वो अपने भी संग्रह नहीं करता, दूसरों को बाँटता रहता है, देता रहता है, देने में ही लिये कुछ उसको आनन्द आता है, लेने में नहीं... व यह बताता नहीं, जताता नहीं, दुनिया को दिखाता नहीं कि मैंने उसके लिए इतना कर दिया, वो कर दिया, एकदम चुपके से करता है।

         प.पू.श्री माताजी, नई दिल्ली, चैतन्य लहरी २००४


3. करुणा - अन्य सहजयोगियों के प्रति सहृदयता की संवेदनशीलता आप में विकसित होनी चाहिये। .....आपके अन्दर यदि किसी के लिये करुणा भाव है तो नि:सन्देह यह कार्य करता है।....मेरी करुणा मात्र मानसिक ही नहीं है, यह तो बहती है और कार्य करती है। आप भी ऐसे बन सकते हैं। मैं चाहती हूँ आप मेरी सारी शक्तियों को पा लें, परन्तु करुणा सर्वप्रथम है।


          प.पू.श्री माताजी, आस्ट्रेलिया, २६.२.१९९५



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