Monday, June 20, 2022

Ekadasha Rudra Puja - Italy - Hindi Translation

 एकादश रुद्र पूजा कोमो (इटली) १६ सितम्बर, १९८४


आज, हम एक विशेष प्रकार की पूजा कर रहे हैं जो एकादश रुद्र की महिमा में की जाती हैं ।


रुद्र – यह आत्मा की, शिवजी की विनाशकारी शक्ति हैं । एक ऐसी शक्ति, जो स्वभाव से क्षमाशील हैं। वह क्षमा करती हैं, क्योंकि हम इंसान हैं, हम गलतियां करते हैं, हम गलत काम करते हैं, हम प्रलोभन में फस जाते हैं, हमारा चित्त स्थिर नहीं रहता – इसलिए वह हमें क्षमा करते हैं। वह हमें तब भी क्षमा करते हैं जब हम अपनी पवित्रता को खराब करते हैं, हम अनैतिक चीजें करते हैं, हम चोरी करते हैं, और हम उन चीजों को करते हैं जो परमात्मा के खिलाफ हैं, उनके (परमात्मा के ) खिलाफ बाते करते है, तो भी वह हमें क्षमा करते हैं, ।


वह हमारा छिछलापन (सुपरफिशिअलिटीज़ ), मत्सर, हमारी कामवासना, हमारे क्रोध को भी क्षमा करते हैं। इसके अलावा वह हमारे आसक्ति , छोटी ईर्ष्या, व्यर्थताओं और अधिकार ज़माने की भावना – को भी क्षमा करते हैं। वह हमारे अहंकारी व्यवहार और गलत चीजों से हमारे जुड़े रहने को भी माफ कर देते हैं।


लेकिन हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है, और जब वह क्षमा करते हैं, तो वह सोचते हैं कि उन्होंने आप पर एक बड़ा अनुग्रह किया हैं, और जिन लोगों को क्षमा किया जाता हैं, और जो अधिक गलतियों को करने की कोशिश करते हैं, वह प्रतिक्रिया परमात्मा के अंदर क्रोध के रूप में बनती है । विशेष रूप से, आत्मसाक्षात्कार के बाद, क्योंकि आपको इस तरह का एक बड़ा आशीर्वाद प्राप्त हुआ हैं – आपको प्रकाश मिला हैं, और इस प्रकाश में भी , यदि आप हाथ में सांप ले रखे हैं, तो उनका क्रोध बढ़ जाता हैं क्योंकि वह देखते है कि आप कितने बेवकूफ हैं।


मैं ये कहना चाहती हूँ कि, विशेष रूप से आत्मसाक्षात्कार के बाद, वह अधिक संवेदनशील होते हैं कि, जिन्हें क्षमा किया जाता हैं और आत्मसाक्षात्कार जैसी बड़ी चीज दी गई हैं, फिर भी वह गलत चीजें करते हैं, तो वह (परमात्मा) अधिक क्रोधित हो जाते हैं।


तो, संतुलन में, क्षमा कम हो जाती है और क्रोध बढ़ने लगता हैं।


लेकिन जब वह क्षमा करते हैं और, क्षमा के परिणामस्वरूप आप कृतज्ञता महसूस करते हैं, तो उनके आशीर्वाद आपके प्रति बहने लगते हैं। वह आपको दूसरों को क्षमा करने के लिए जबरदस्त क्षमता देते हैं । वह आपके क्रोध को शांत करते हैं, वह आपकी वासना को शांत करते हैं, वह आपके लालच को शांत करते हैं। खूबसूरत ओस की बूँद (ड्यू ड्रॉप) जैसे उनके आशीर्वाद हमारे ऊपर बरसते हैं और हम वास्तव में सुंदर फूल बन जाते हैं, और उनके आशीर्वाद से प्रकाशमान होते हैं।


अब वह उन सभी को नष्ट करने के लिए अपने क्रोध – अपनी विनाशकारी शक्ति का उपयोग करते हैं जो हमें परेशान करने की कोशिश करता है। वह हर पल, हर प्रकार से, आत्माक्षात्करिओं की रक्षा करते हैं । नकारात्मकता एक सहजयोगी पर हमला करने की कोशिश करती हैं लेकिन सारी शक्ति से वे इन नकारात्मकता को नष्ट करते हैं ।


उनके चैतन्य के माध्यम से वे हमें सही रास्ता दिखाते हैं ।


उनके सुंदर आशीर्वाद का वर्णन साम-२३ में किया है , यह २३ भजन है …… द लॉर्ड इज माय शेपर्ड परमात्मा एक चरवाहे के रूप में आपकी देखभाल कैसे करता हैं ।


लेकिन वह दुष्ट लोगों की देखभाल नहीं करते, उन्हें नष्ट किया जाता हैं। जो लोग सहजयोग में आने के बाद भी अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ते, एकादश रुद्र उन्हें नष्ट कर देते हैं।


जो लोग सहजयोग में आते हैं और ध्यान नहीं करते, तरक्की नहीं करते, उन्हें नष्ट कर देते हैं, या उन्हें सहजयोग से बाहर फेंक दिया जाता हैं। जो लोग ईश्वर के खिलाफ बड़बड़ाते है और ऐसे तरीके से जीवन बिताते हैं जो एक सहजयोगी के लिए सही नहीं हैं , वे उन्हें हटा देते हैं। तो एक तरफ से वह रक्षा करते हैं, और दूसरी तरफ से वह दूर फेंकते हैं। लेकिन उनकी विनाशकारी ताकत जब बहुत बढ़ जाती हैं, तो हम इसे कहते हैं की – अब एकादश रुद्र सक्रिय हैं ।


अब, यह एकादश रुद्र तब कार्यान्वित होते हैं , जब कल्कि स्वयं क्रियाशील होते हैं , इसका अर्थ यह है की यह विनाशकारी शक्ति , इस धरती पर जो नकारात्मक (निगेटिव) हैं, उसका संहार करेगी और जो सकारात्मक हैं उसे बचाएगी। इसलिए सहजयोगियों के लिए अपने उत्थान को कायम रखना बहुत जरुरी हैं , अपने सामाजिक जीवन या वैवाहिक जीवन से या परमात्मा द्वारा दिए गए सभी आशीर्वादों से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए । हम हमेशा यही देखते हैं, भगवान ने हमारे लिए क्या किया हैं, वह हमारे लिए कैसे चमत्कार करते हैं, लेकिन हमें देखना हैं कि हमने अपने साथ क्या किया हैं, हम अपने स्वयं की उन्नति और विकास के बारे में क्या कर रहे हैं।


अब … एकादश का मतलब है – ग्यारह । ग्यारह केंद्रों में से … , पांच आपके भवसागर के दाहिने तरफ से आते हैं, और पांच आपके भवसागर के बाईं तरफ से आते हैं।


बाईं तरफ से पहले पांच आते हैं, अगर आप गलत गुरुओं के सामने झुकते हैं, या अगर आप गलत किताबें पढते हैं, या अगर आप गलत लोगों के साथ सम्बद्ध रखते हैं, या अगर आप ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं जो गलत रास्ते पर हैं, या आप स्वयं इन गलत लोगों के प्रतिनिधि या गलत लोगों के गुरु में से एक हैं।


अब इन पांच समस्याओं को हल किया जा सकता हैं, अगर हम पूरी तरह से, जो भी गलत कर रहे हैं उसे छोड़ देते हैं।


जैसा कि मोहम्मद साहिब ने कहा हैं कि आपको शैतान को पीटना है, जूते से ; लेकिन यह यांत्रिक रूप से नहीं बल्कि दिल से किया जाना चाहिए । कई लोग जो सहजयोग में आते हैं, मुझे बताते हैं की , “मेरे पिता इस गुरु का अनुसरण कर रहे हैं-उस गुरु का अनुसरण कर रहे हैं, ” और अपने पिता, मां, बहन में लिप्त हो जाते हैं और उनको उन गुरुओं से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, खुद भी फस जाते हैं। या उनमें से कुछ दूसरी चीज़ों में फस जाते हैं। जैसा कि मुझे मॉरीन के बारे में पता हैं, जो मेरे साथ थी, और उसके माता-पिता और सांस-ससुर ने कहा कि बच्चे को बाप्तिस्मा देना चाहिए, और मैंने उससे कहा, तुम इस बच्चे को बपतिस्मा नहीं कर सकती क्योंकि यह एक साक्षात्कारी आत्मा हैं । लेकिन वह मेरी बात सुन न सकी, और उसने बच्चे को बाप्तिस्मा दे दिया और बच्चा बहुत विचित्रसा हो गया – यह वास्तव में एक पागल बच्चे की तरह था। बाद में उसने वह सब छोड़ दिया और वह बच गयी । लेकिन मान लीजिए कि अगर उसे और एक बच्चा होता और वह अपने दूसरे बच्चे के साथ भी यही करती तो, दूसरे बच्चे के साथ बहुत बुरा होता।


अब, सहजयोगियों के साथ परेशानी यह है कि जो कोई सहजयोग कार्यक्रम में आता हैं, सोचते हैं कि वह एक सहजयोगी है – ऐसा नहीं है।


या तो आपको चैतन्य की अच्छी संवेदनशीलता होनी चाहिए, या आपको इसे अपने शरीर में महसूस करना चाहिए, या अपनी बुद्धि से आपको समझना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं । एक व्यक्ति जो अभी भी नकारात्मक है वह हमेशा दूसरे ज्यादा नकारात्मक व्यक्ति के प्रति आकर्षित होता और उसे यह समझ में नहीं आता कि दूसरा व्यक्ति कितना ज्यादा नकारात्मक है, लेकिन प्रभावित हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में, ज्यादा नकारात्मक व्यक्ति इस नकारात्मक व्यक्ति को मार देता है और शिवजी उसकी रक्षा नहीं कर सकतें ।


किसी को भी नकारात्मक व्यक्ति के साथ सहानुभूति नहीं होनी चाहिए, चाहे वह पागल हो, चाहे उसके साथ कुछ गड़बड़ हो, चाहे वह आपका रिश्तेदार हो या कुछ भी हो। किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के लिए एक प्रकार का क्रोध होना चाहिए, एक प्रकार का अलगाव-अनासक्ति क्रोधित अलगाव । और यह क्रोधित अलगाव (गुस्सा) एकमात्र समय है जब आपको गुस्सा होना पड़ता है। लेकिन मैंने उन लोगों को देखा है जो बहुत अच्छे सहजयोगियों के लिए क्रोधित हैं, लेकिन अपने पति या पत्नि के लिए नहीं, जो बेहद नकारात्मक हैं।


तो जब एकादश रुद्र इन पांच जगह पर कार्यान्वित होना शुरू कर देते हैं, हमें कहना चाहिए कि, दाएं तरफ जाते हैं ,क्योँकि वे बायी ओर से आते हैं और दाएं तरफ जाते हैं, फिर व्यक्ति नकारात्मक बनाने लगता है लेकिन उसके अहंकार से वह काम करता है ।


ऐसा व्यक्ति परिस्थिति अपने हाथ में लेता है और कहता है कि “मैं ऐसा और इस तरह का सहजयोगी हूँ और मैं ऐसा हूँ, हमें ऐसा करना चाहिए और हमें इस तरह व्यवहार करना चाहिए”, और लोगों को निर्देश देना शुरू करता है । वह कुछ भी कर सकता हैं। और कुछ साधारण, आधे- अधूरे सहजयोगी उसे समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर जानते हैं कि, “यह आदमी बाहर जा रहा है, अब वह अपने रास्ते पर हैं !”


इसलिए, ये सभी चीजें इस बायी तरफ की वजह से आती हैं, या हम इसे सिर पे, ‘मेधा’ के दाईं ओर कह सकते हैं , इस प्लेट, मस्तिष्क-प्लेट को संस्कृत भाषा में ‘मेधा’ कहा जाता हैं ।


अब, दाये तरफ के एकादश, लोगों के विचार से आते हैं, “मैं खुद एक बड़ा गुरु हूँ ।” वे सहज योग के बारे में भी उपदेश करना शुरू करते हैं, जैसे कि वे महान गुरु बन गए हैं। हम कुछ लोगों को जानते हैं जो किसी भी कार्यक्रम में बड़े व्याख्यान देते हैं और कभी भी मेरे टेप चलाने की अनुमति नहीं देते हैं। उन्हें लगता है कि वे अब विशेतज्ञ बन गए हैं।


फिर, उनमें से कुछ कहते हैं कि अब हम इतने महान हो गए हैं कि हमें किसी भी नमक-पानी या कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, ध्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं है – ऐसे कुछ भी हैं। और फिर कुछ ऐसे हैं जो कहते हैं कि पाप हमें कभी नहीं छू सकता है, अब हम सहजयोगी हैं, हम बहुत महान आत्मा हैं।


लेकिन सबसे बुरे वो हैं जो मेरा नाम लेते हैं और कहते है कि “माँ ने ऐसा कहा हैं और मैं आपको बता रहा हूँ क्योंकि माँ ने कहा हैं” – जब ऐसी बात मैंने कभी की ही नहीं, तो सब झूठ हैं।


अब कुछ लोग हैं जो सहजयोग के पैसे का उपयोग करते हैं और सहजयोग का इतना फायदा उठाते हैं, कभी-कभी सहजयोगी भी ऐसा करते हैं । और ऐसे लोग बहुत अपवित्र हो जाते हैं। कोई भी जो इस तरह की चीजे करता है, वह सहजयोग से अपमान के साथ बाहर जाता है । लेकिन कोई ऐसे व्यक्ति के पास कभी नहीं जाना चाहिए, ऐसे व्यक्ति के साथ कोई लेन-देन नहीं रखना चाहिए, कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए । क्योंकि यह अपवित्रता किसी को भी किसी भी हद तक चोट पहुँचाएगी, इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहना बेहतर है ।


जब ये दस एकादश व्यक्ति के अंदर विकसित हो जाते हैं, तो निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति को कैंसर या कोई असाध्य भयंकर बीमारिया आती हैं। विशेषतः जब ग्यारहवें जो वास्तव में यहां हैं, जो विराट चक्र हैं, जो सामूहिकता हैं – जब यह भी प्रभावित होता हैं, तो ऐसा व्यक्ति ऐसी बीमारी से बाहर निकल नहीं सकता।


लेकिन इन … इनमें से पांच ,मान लो, मूलाधार या आज्ञा के साथ मिलते हैं, फिर उन्हें बहुत गंभीर प्रकार की गंदी बीमारिया में आती हैं। यही कारण है कि, मैं हमेशा कहती हूं कि अपने आज्ञा चक्र के बारे में सावधान रहें, क्योंकि यह सबसे बुरी चीजों में से एक है, कि, एक बार यह एकादश के साथ मिलकर शुरू हो जाता है, एकादश के हिस्से के साथ, तो एक व्यक्ति के साथ कुछ भी हो सकता है, उसके साथ कोई भयानक दुर्घटना हो सकती है, वह अचानक किसी के द्वारा मारा जा सकता है, किसी के द्वारा उसकी हत्या की जाती है, ऐसे व्यक्ति के साथ कुछ भी हो सकता है, दायी आज्ञा, और कोई भी एक एकादश, दाया या बाया ।


इसका मतलब है, इनमें से पांच, या यदि पांच में से किसी एक , यदि आज्ञा चक्र के साथ मिलते हैं, तो परमात्मा की सुरक्षा शक्तियां कम से कम होती हैं।


तो, अपने आज्ञा चक्र को ठीक रखने के लिए, अब मैं बात कर रही हूं, आप लगातार मुझे देखना चाहिए, ताकि निर्विचारिता प्राप्त हो और आज्ञा चक्र ठीक हो जाए।


लेकिन हर समय यहां-वहां ध्यान नहीं देना चाहिए । फिर धीरे-धीरे, आपका चित्त निर्विचारिता में स्थिर हो जायेगा और आपका चित्त ऐसे स्थिर हो जायेगा की आपको किसी चीज़ के बारे में चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं ।


निर्विचारिता में कोई आपको छू भी नहीं सकता, वह आपका किला है। ध्यान से, निर्विचारिता आनी चाहिए, यही संकेत है कि आप उन्नति कर रहे हैं। बहुत से लोग ध्यान करते हैं और कहते हैं, “ठीक है, माँ हम कर रहे हैं।” यांत्रिक रूप से वे करते हैं और कहते हैं, “मैंने ऐसा किया, मैंने यह किया, और मैंने वह किया!” लेकिन क्या आपने कम से कम निर्विचारिता हासिल की हैं ? क्या आपने सिर से ठंडी हवा निकलने का अनुभव किया हैं? अन्यथा, यदि आप यांत्रिक रूप से कुछ कर रहे हैं, तो यह मदद नहीं करेगा; आपको नहीं या किसी को मदद नहीं करेगा।


तो, जागृती के बाद, जैसा कि आप बहुत अच्छी तरह से सुरक्षित हैं, आपके पास सभी आशीर्वाद हैं और एक महान भविष्य हैं, आपके पास पूर्ण विनाश की भी एक बड़ी संभावना हैं। उदहारण के तौर पे मैं कहूँगी – आप चढ़ रहे हैं, और हर कोई आपको चढ़ने के लिए सहायता कर रहा है, आपका हाथ पकड़ रहा है, और ऐसी कई चीजें हैं जिनके द्वारा आप सुरक्षित हैं, ऊपर की ओर ले जाने के लिए, गलती से भी गिरने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन यदि आप सत्य और प्रेम के बंधन को हटाने की कोशिश करते हैं और हर समय जो आपको सहारा देते हैं, उन लोगों को मारने का प्रयास करते हैं, तो आप एक बड़ी ऊँचाई, बहुत बड़ी ऊँचाई से गिरते हैं। मेरा मतलब है, आप जितनी अधिक ऊँचाई बढ़ाते हैं, उतना अधिक आप गिरते हैं, अधिक ताकत के साथ, और गहरे ।


लेकिन परमात्मा के द्वारा हर प्रयास किया जाता हैं, आपको आधार दिया जाता हैं, देखभाल की जाती हैं । इसके बावजूद, यदि आप गिरना चाहते हैं – उस ऊँचाई से, तो यह बहुत खतरनाक हैं ।


सहजयोग में होने के बावजूद, जब आप सहजयोग को नुकसान पहुंचाते है, तब एकादश रुद्र, आपको इतनी बुरी तरह चोट पहुँचाते है कि पूरा हमला चारों ओर फैलता हैं । लेकिन पूरे परिवार को संरक्षित किया जा सकता हैं अगर उस परिवार के कुछ लोग सहजयोग का कार्य कर रहे हैं । लेकिन अगर परिवार हमेशा सहजयोगियों के खिलाफ है और उन्हें परेशान करने का प्रयास करता है, तो पूरा परिवार बहुत ही बुरे तरीके से पूरी तरह नष्ट हो जाता है।


अब जैसा कि मैंने आपको बताया, ये एकादश रुद्र, भवसागर से आते हैं । तो, हम कह सकते हैं कि इसका विनाशकारी हिस्सा मुख्य रूप से भवसागर से आता हैं। लेकिन ये शक्तियाँ हैं, जो सभी एक ही में दी जाती हैं और वह हैं -महाविष्णु, जो कि ईसा मसीह हैं । क्योंकि वह पूरे ब्रह्मांड का आधार हैं , वह ओंकार का प्रकटीकरण हैं , वह चैतन्य का प्रकटीकरण हैं । तो जब वे क्रोधित हो जाते हैं, तो पूरा ब्रह्मांड टूटने लगता हैं । जैसे ही वह माँ की शक्ति को व्यक्त करते हैं जो प्रत्येक परमाणु में, हर अणु में, और हर इंसान में, हर चीज़ में, जीवित या निर्जीव, हर चीज में प्रवेश करती है, जब वह परेशान हो जाती है तो पूरी चीज खतरे में पड़ जाती है। तो ईसा मसीह की प्रसन्नता बहुत महत्वपूर्ण हैं ।


अब ईसा मसीह ने कहा हैं, “आपको छोटे बच्चों की तरह होना है” यही है, अबोधिता, हृदय की शुद्धता – यही सबसे अच्छा तरीका है जिससे आप उन्हें खुश कर सकते हैं।


विशेष रूप से, पश्चिम में, लोगों ने अपने दिमाग को ज्यादा ही विकसित किया है, वे शब्दों के साथ खेलने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि कोई भी नहीं जानता कि वे क्या कर रहे हैं। ऐसे सभी लोगों को पता होना चाहिए कि जो कुछ भी आप करते हैं वह ईश्वर को पता है।


यदि आपका दिल साफ नहीं हैं, तो एक बहुत अच्छा सहजयोगी होने का नाटक करना आप के लिए बहुत खतरनाक है । ऐसे लोग बाधाग्रस्त नहीं हैं, न ही वो कंडिशन्ड हैं, न ही वो अहंकारी हैं बल्कि वो बहुत चालाक धूर्त लोग हैं और वो काफी जानते हैं कि वो क्या कर रहे हैं। लेकिन, ऐसे भी लोग हैं जो बाधाग्रस्त हो जाते हैं और फिर वो, खुद को नष्ट करना, रोना-धोना या और सभी प्रकार की चीजों को करने की कोशिश करते हैं।


कुछ ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि अगर वो खुद को चोट पहुँचाते हैं या किसी तरह की चरम चीज करते हैं, तो भगवान खुश होंगे, लेकिन ये उनकी गलतफहमी हैं ।


यदि आप सहजयोग में आनंद नहीं ले सकते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर आप सहजयोग में खुश नहीं हो सकते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आपके साथ कुछ निश्चित रूप से गलत हैं।


यदि आप सहजयोगियों के सहवास में आनंदित नहीं हैं, तो निश्चित ही आप में कुछ प्रॉब्लम हैं।


यदि आप हस नहीं सकते और परमात्मा के महानता की सराहना नहीं कर सकते हैं, तो आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर आप अभी भी नकारात्मक लोग और उनकी समस्याओं के बारे में चिंतित हैं, तो आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


अगर अभी भी आपको नकारात्मक लोगों के प्रति सहानुभूति हैं, तो भी आपके साथ कुछ गड़बड़ हैं।


लेकिन अगर आपको नकारात्मक लोगों के प्रति गुस्सा हैं, सभी नकारात्मक – जो सहजयोग के खिलाफ हैं, तो आप सही हैं।


जब यह परिपक्वता आप में आ जाती है, तो आप स्वयं एकादश रुद्र की शक्ति बन जाते हैं। कोई भी जो आपको अपमान करने या किसी भी प्रकार की चोट पहुँचाने की कोशिश करता है, वह टूट जाता है । यह कई लोगों के साथ हुआ है, जिन्होंने मेरा अपमान करने की कोशिश की या मुझे किसी भी तरह से हानि पहुंचाने की कोशिश की …। कभी-कभी मुझे उनके बारे में काफी चिंता होती हैं ।


इसलिए किसी को इस तरह से होना चाहिए कि वे एकादश बन जाएं। कोई भी ऐसे लोगों को छू नहीं सकता । ऐसा व्यक्ति करुणा और क्षमा से भरा रहता हैं। परिणामस्वरूप, एकादश बहुत तेजी से कार्य करते हैं । जितने आप करुणामयी है, उतने आप अधिक शक्तिशाली एकदश बन जाते हैं। आप जितने अधिक सामूहिक हो जाते हैं, उतना एकादश अधिक कार्य करता हैं ।


बहुत से लोगों को अपने आप को दूर करने की आदत हैं और कहते हैं, “हाँ, हम घर पर बेहतर हैं और यह ठीक हैं,” लेकिन वे नहीं जानते कि वे क्या खो रहे हैं।


एक दुसरे के साथ आपका अनुभव कुछ भी हो सकता है, मगर आपको एक साथ रहना चाहिए, हमेशा कार्यक्रमों में भाग लेना, नेतृत्व करना, इसके साथ आगे बढ़ना, काम करना चाहिए तो आपको अनगिनत आशीर्वाद मिलेंगे ।


मैं कहूँगी की एकादश रुद्र सारी विनाश की शक्तियाँ हैं । यह श्री गणेश की विनाशकारी शक्ति हैं। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश की विनाशकारी शक्ति हैं। यह माँ की विनाशकारी शक्ति हैं। यह गणेश की विनाशकारी शक्ति हैं …… और भैरव,हनुमान,कार्तिकेय और गणेश ये चार हैं। सदाशिव और आदिशक्ति की शक्तियाँ भी हैं । सभी अवतारों की सभी की विनाशकारी शक्तियाँ एकादश हैं।


अब आखिरी, ये हिरण्यगर्भ की विनाशकारी शक्ति हैं, हिरण्यगर्भ जो की सामूहिक ब्रह्मदेव हैं। यह शक्ति कार्य करती हैं, तब प्रत्येक परमाणु का विस्फोट होता हैं, पूरी परमाणु ऊर्जा विनाश के तरफ चली जाती हैं।


इसलिए, इस प्रकार, पूर्ण विनाशकारी शक्ति एकादश रुद्र हैं। यह बेहद शक्तिशाली, विस्फोटक हैं, लेकिन यह अंधी नहीं हैं। यह बहुत विवेकी और बेहद नाजुकता से बुनि हुई हैं। यह सभी अच्छे चीज़ों को बचाती हैं और गलत चीजों पर हमला करती हैं और वो भी सही समय पर, सही बिंदु पर, सीधे, किसी भी सही चीज को आघात किये बिना ।


अब एकादश रुद्र की नज़र किसी पर पड़ती हैं, उदाहरण के लिए, जो ईश्वरीय हैं या जो एक सकारात्मक चीज हैं, तब यह सकारात्मक को बिना नुकसान किये सकारात्मक से आर-पार जाती हैं, और नकारात्मक पर प्रहार करती हैं। यह किसी को ठंडा करती हैं और किसीको को जलाती हैं। ठंडा यानि बर्फ जैसा जमा हुआ नहीं, शीतल !


तो यह इतना खयाल रखती हैं और इतनी नजाकत से काम करती हैं। यह बहुत तेज़ भी हैं और बहुत दर्दनाक भी। यह एक प्रहार में गर्दन काटने जैसा नहीं हैं, धीरे-धीरे धीरे-धीरे काटती हैं।


आपने सुनी हुई सभी भयानक यातनाए केवल एकादश की अभिव्यक्ति हैं। उदाहरण के लिए, कैंसर का मामला लो । कैंसर में, नाक हटा दिया जाता है, जीभ हटा दी जाती है, फिर गला हटा दिया जाता है, फिर सब कुछ, एक के बाद एक निकाला जाता है- भयानक दर्द !


कुष्ठरोग ( लेप्रॅसी ) का उदाहरण लीजिये, कुष्ठरोगी अपनी उंगलियों को महसूस नहीं कर सकते, महसूस नहीं कर सकते, इसलिए … कोई भी चूहा या कुछ भी उंगलियों को खाता है, वे इसे महसूस नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे अपनी उंगलियों को खोना शुरू करते हैं, इसी प्रकार एकदश लोगों को खाता हैं, नष्ट करता हैं।


लेकिन जब अपने बच्चों की बात आती हैं, तब पिता का यह क्रोध बहुत ही सौम्य हो सकता हैं, बहुत प्यारा हो सकता हैं। कहानी माँ के बारे में हैं – एक बार वह (आदिशक्ति माँ ) बहुत नाराज हो गई, और वह इतनी गुस्से में थी, वह पूरी दुनिया को अपनी एकादश शक्ति से नष्ट करना चाहती थी और उसने पूरी दुनिया को नष्ट करने की कोशिश की। जब वह उस दशा में गई, तो पिता ने खुद महसूस किया कि वह बहुत ज्यादा ही गुस्से में हैं। तो जब उसने नष्ट करना शुरू कर दिया, और वह दाई और बाई की ओर जा रही थी, तब पिता को पता नहीं चल रहा था कि क्या करना चाहिए , इसलिए उसने अपने बच्चे को यानि सहजयोगी को, जो ईसा मसीह का प्रतिनिधित्व करते हैं या उसके महान बच्चों में से किसी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे माँ के पैरों के नीचे रखा। तो, जब वह विनाश कर रही थी, अचानक उसने अपने बच्चे को उसके पैरों के नीचे देखा और उसकी इतनी बड़ी जीभ बाहर निकली। उसने संतुलन तुरन्त रोक दिया । लेकिन यह केवल एक बार हुआ।


तो, एकादश रुद्र के बाद, आखिर में पूरा विनाश सदाशिव के क्रोध के माध्यम से आता हैं। तब अंतिम कुल विनाश होता हैं।


तो हमने देखा कि एकादश रुद्र कैसे कार्य करते हैं और कैसे सहजयोगियों को स्वयं एकादश रुद्र बनना पड़ता हैं।


अब इस शक्ति को विकसित करने के लिए, अनासक्ति (डिटैचमेंट) की जबरदस्त शक्ति- याने की नकारात्मकता से अनासक्ति की शक्ति होनी चाहिए । उदाहरण के लिए, बहुत निकटतम लोगों से नकारात्मकता आ सकती है, जैसे भाई, माँ, बहन, दोस्तों से आ सकती हैं , रिश्तेदारों से आ सकती हैं। यह एक देश से आ सकती हैं, यह आपके राजनीतिक विचारों, आर्थिक विचारों से आ सकती हैं । कोई भी गलत पहचान, एकदश रुद्र की शक्ति को नष्ट कर सकती हैं।


तो इतना केवल कहना पर्याप्त नहीं है कि “मैं सहजयोग को समर्पित (सरेंडर) हूँ और मैं एक सहजयोगी हूँ “, लेकिन आपको मानसिक रूप से भी जानना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं। तो फिर बुद्धि से, आप समझते हैं कि सहजयोग क्या हैं। हालाकि पश्चिम में विशेष रूप से लोग कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान होते हैं और यदि सहजयोग की रोशनी उनकी बुद्धि में प्रवेश नहीं करती हैं तो आप कभी भी अपनी आसक्ति (अटैचमेंट ) पर काबू नहीं पाएंगे।


इसका मतलब यह नहीं है कि आप सहज योग के बारे में बहुत ज्यादा बात करें या आप उस पर व्याख्यान देने लगे, लेकिन दिमाग से भी आपको यह समझना चाहिए कि सहजयोग क्या हैं ।


आज एक विशेष दिन है जब हमें एकादश रुद्र पूजा करने को कहा हैं और यह सभी प्रकार के झूठे धार्मिक संप्रदायों और झूठे गुरु और झूठे धर्मों के लिए हैं, जो परमात्मा के नाम पर किया जाता हैं, या उस धर्म के लिए हैं, जो आत्मसाक्षात्कार के बारे में नहीं कहता और आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति नहीं कराता और परमात्मा जो से जुड़ा नहीं है, वह झूठा है।


तो ऐसी कोई चीज जो सिर्फ ईश्वर पर विश्वास और ईश्वर के बारे में बात करता है, लेकिन परमात्मा के साथ कोई संबंध नहीं है, वह सच्चा धर्म नहीं हो सकता है। बेशक, यह लोगों को संतुलन देता है, लेकिन संतुलन देने के चक्कर में, यदि लोग उस पैसे पर रहते हैं और उस धन से आनंद लेने का प्रयास करते हैं, तो ऐसा धर्म तो बहुत न्यूनतम स्तर पर भी नहीं है।


संतुलन – सबसे पहले धर्म आपको संतुलन देना चाहिए, लेकिन उस संतुलन में जब वे कहते हैं, “आपको संतुलित होना है, लेकिन मुझे इसके लिए पैसे दो, आपको मुझे पैसा देना होगा, मुझे सब कुछ -आपका पर्स, मुझे सबकुछ दो,” तब संतुलन नहीं किया जा सकता, इसमें परमात्मा के आशीर्वाद की थोड़ी सी भी चीज नहीं है। या कोई धर्म जो आपको किसी अवतरण के सामने झुकाता है, यह कोई धर्म नहीं है। यह बिल्कुल झूठ है।


असली धर्म आपको संतुलन देगा और हमेशा उत्थान के बारे में बात करेगा। लेकिन वे पैसे नहीं मांगेंगा या पूजा के रूप में एक आदमी को कुछ महान नहीं करेंगा। इस प्रकार, सही गलत चीज़े, नकारात्मक चीज़े, असलियत में फरक समझना जरुरी हैं।


एक बार जब आप चैतन्य से, या अपनी बुद्धि के माध्यम से उसे समझना सीख लेते हैं, तो आप अपने नियंत्रण में हैं। और फिर जब आप अपनी परिपक्वता/ प्रगल्भता स्थापित करते हैं, तो आप एकादश की शक्ति बन जाते हैं।


आज, मैं आप सभी को आशीर्वाद देती हूँ , कि आप सभी एकादश रुद्र की शक्ति बन जाये और यह स्थिति आप के अंदर आने के लिए आप में ईमानदारी विकसित हो जाये ।


परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।

Friday, June 17, 2022

How To Meditate in Sahaja Yoga - Hindi Article

 सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करे

भारतीय विद्या भवन,बम्बई 29.05.1976

लेक्चर बहुत बड़ा है कुछ महत्वपूर्ण information)

एक पाँच मिनिट पानी में सब सहजयोगी को बैठना चाहिए। फोटो के सामने दीप जलाकर,कुमकुम वैगरे लगाकर अपने दोनों हात रखकर,दोनों पैर पानी में रखकर सब सहजयोगी को बैठना चाहिए। आपके आधे से जादा प्रॉब्लम दूर हो जायेंगे अगर आप यह करेंगे तो। चाहे कुछ हो आपके लिए पाँच मिनिट कुछ मुश्किल नही है सोने से पहले। आप लोगोंको यह आदत लगे इसलिए में जबरदस्ती बैठती हूँ तो मेरे सहजयोगी बैठेंगे।

सवेरे के time जल्दी उठकर नहा धोकर ध्यान करना चाहिए। हम लोगोंका सहजयोग दिन का काम है रात का नही,इसलिए रात को जल्दी सोना चाहिए।6 बजे सोने की बात नही कह रही मै,लेकिन करीबन 10 बजे तक सबको सो जाना चाहिए।10 बजे के बात सोने की कोई बात नही। सवेरे जल्दी उठाना चाहिए।

सवेरे जल्दी उठने से, सवेरे के Time मे Receptivity (ग्रहन-शक्ती) जादा होती हे मनुष्य की।और इतना ही नही उस वक्त संसार मे बहुत अत्यंत सुन्दर प्रकार का चैतन्य भरा होता सै।बडे ही नत-मस्तक होकर के,अपने तो हदय मे नत करना।स्वयं को नम्र करे।

सबको क्षमा करे जिससे भी हमने बैर किया है।परमात्मा को कहिए उसके लिए तुम हमे माफ कर दो।अत्यंत पविञ भावना मन मे लाकर आप ध्यान मे जाए।

आँखे बन्द करके आत्मा की ओर ध्यान करे। अब कितने मिनिट करे यह सवाल पूछना बहुत गलत बात है।आप चाहे पाच मिनिट करिये चाहे दस मिनिट करे।विचारपूर्वक अत्यंत श्रध्दा से जिस तरह पूजा मे बैठे हे मौन रहकर बन्धन दे।उस वक्त चित्त इधर उधर न जाने दे बातचीत न करे।

और यह विचार करे प्रभु!हम तुम्हारे बन्धन मे रहै,हम पर कोइ बुरा असर न आए।

ध्यान करते हुए आँखे बन्द कर ले कोई हाथ इधर उधर न घुमाने की जरुरत नही।उस वक्त कोई-सा भी चक्र खराब हो,उस चक्र की ओर दृष्टी करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा क्योकी उस वक्त मैने कहा है,ग्रहन शक्ती ज्यादा रहती है।

पहले तो अपने चक्र वैगरह शुध्द हो गये।इसके बाद आत्मा की ओर चित्त ले जाये।और यह आत्मत्व प्रेम है।अनेक बार इसका विचार करे।

अब रोजमर्रा के जीवन में क्या करना चाहिए?

रोजमर्रा के जीवन में आपको पता होना चाहिए की आपके अन्दर प्रेम की शक्ति बह रही है। आप जो भी कार्य कर रहे है क्या प्रेम से कर रहे है? या दिखाने के लिए कर रहे है की आप बड़े सहजयोगी है? हम भी किसीको कोई बात कहते है तो दुसरे दिन वो आकर हमे गालिया देते है और उसके बाद हमसे कहते है हमारे vibration क्यों चले गए।तो इस तरह आप मुर्खता करते है तो बेहतर होगा आप सहजयोग में ना आये।

हमारें अन्दर क्या दोष है? 

रोज के जीवन में देखते चले हम क्या चीज दे रहे है?

 हम प्रेम दे रहे है? 

क्या हम स्वयं साक्षात प्रेम में खड़े है? 

हम सबसे लड़ते है सबसे झगड़ा करते है। सबको परेशान करते है और सोचते है की हम सहजयोगी है। इस तरह की गलत फहमी में  ना रहना।अपने साथ पूर्णत: दर्पण के रूप में रहना चाहिए। समझ लीजिये आपके साथ कुछ चीज लगी तो माताजी उसे पोंछ दीजिये। इसी प्रकार अपने को देखते रहिये की 'देखिये अपने साथ कोनसी चीज लगी है इसको हम पोंछ लेते है।

जबरदस्ती से आप सहजयोग में आये है तो हमे आप माफ कीजिये आप सहजयोग से निकल जाये। एक दिन खुद ही आप निकल जायेंगे।

यहाँ पर आप परमात्मा के instrument(यंत्र) बनने जा रहे है।अत्यंत नम्रता आपके अन्दर आनी चाहिए। घमंड छोड़ दीजिये। लोग कहते है सन्यास लेना चाहिए मै कहती हूँ घमंड से आप सन्यास लीजिये।कपड़ो से नही लीजिये। कपड़े उतार देने से संन्यास नही होता। संन्यास का अर्थ होता है आपके अन्दर के षडरिपु से सन्यास ले(काम,क्रोध,लोभ,मोह,मत्सर,मद).

किसी ऐसे आदमी के साथ हमे कभी नही बैठना चाहिए जो सहजयोग की बुराई करता है। सहस्त्रार फौरन पकड़ेगा। एसा आदमी अगर बोले कान बंद कर लीजिये। cancer की बिमारी है वो बिल्कुल सहस्त्रार की बिमारी है।सहस्त्रार एकदम साफ रखे। आज नही तो कल एक साल के बाद आपको पता होगा की साहब हमको cancer हो गया।

क्यों न एसा करे जिससे यह हम व्यर्थ का समय बर्बाद कर रहे है-इसके घर जाये,रिश्तेदार के घर खाना खाये,फला के घर घुसो उसकी बुराई करो-छोड़ छाड़ के अपने मार्ग को ठीक बनाये और येसा जीवन बनाये संसार में उन लोगोंको नाम हो। 

अपने जीवन में एक बार निश्चय कर ले। तब सहजयोग का लाभ हो सकता है आप जानते है।

शरणागति होनी चाहिए। जरुरी नही की मेरे पैर पर आकर।शरणागति मन से होनी चाहिए। बहुत से लोग पैर लर आते है शरणागति बिल्कुल नही होती। शरणागत होना चाहिए। अगर आप शरणागत रहे अन्दर से तो आपकी कुंडलिनी जो है सीधी आत्मतत्व पर टिकी रहेगी। लेकिन शरणागत रहे।

कोई भी चीज महत्वपूर्ण नही है सिवाय आप प्रकाश बने। जिनको बेकार की चीज सूझती है उनके लिए बेहतर होगा आप उस चीज को छोड़ दे।

अब आखरी बात बताऊँगी। उसको आप बहुत समझकर और विचारपूर्वक करे।

अपने अन्दर स्वयं ही दृष्ट प्रवृत्तिया है।हमारे अन्दर बहुत सी काली प्रवृत्तिया जिसे हम नकारत्मकता कहते है उससे हमे बचना चाहिए। अगर आप शैतान बनाना चाहते है तो बात दूसरी है उसके लिए मै आपकी गुरु नही हूँ। लेकिन अगर आप भगवान बनाना चाहते है तो उसके लिए मै गुरु हूँ। लेकिन शैतान से बचना चाहिए।

पहली चीज है कि अमावस्या कि रात या पूर्णिमा कि रात दायें और बायें पक्ष को प्रभावित होने का भय होता है। दो दिन विशेष कर अमावस्या कि रात्रि को और पूर्णिमा कि रात्रि को बहुत जल्दी सो जाना चाहिए। भोजन करके , फोटो के सामने नतमस्तक होकर , ध्यान करके , चित्त को सहस्त्रार पर रखे तथा बंधन लेकर सो जाएं। इसका अर्थ यह है कि जिस क्षण आप अपने चित्त को सहस्त्रार पर ले जाते है उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते है। उस स्थिति में स्वयं को बंधन दे तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। विशेष रूप से इन दो रातों को। और जिस दिन अमावस्या कि रात्रि हो उस दिन , विशेष कर अमावस्या के दिन , आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिए। शिवजी का ध्यान करके , स्वयं को उनके प्रति समर्पित करके सोना चाहिए , और पूर्णिमा के दिन आपको श्री रामचंद्र जी का ध्यान करना चाहिए। उनके ऊपर अपनी नैय्या छोड़कर। रामचन्द्रजी का मतलब है सृजनात्मकता। सारी सृजनात्मक शक्तियां पूरी तरह से उनको समर्पित कर दें। इस तरह से इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिए। 

हालांकि , शुक्ल पक्ष सप्तमी और नवमी को विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है। सप्तमी और नवमी के दिन इस बात का ध्यान रखना कि इन दो दिनों में आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। सप्तमी और नवमी के दिन जरुर कोई ऐसा आयोजन करना जिसमे आप ध्यान अच्छी तरह से करे। 

किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे आज्ञा कि पकड़ हो तो तुरंत बंधन ले ले चाहे ये बंधन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा कि पकड़ वाले व्यक्ति से वाद - विवाद न करे। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भुत से क्या आप वाद -विवाद कर सकते है ?

जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है , उससे भी वाद - विवाद नहीं करना चाहिए। सहस्त्रार से पकडे व्यक्ति के पास कभी न जाएं , उससे कोई संभंध न रखे। उसे बताये कि पहले अपने सहस्त्रार को ठीक करो। उसे ये बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका सहस्त्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक कर दें। ' सहस्त्रार कि पकड़ वाला व्यक्ति यदि आपसे बात करता है , तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन है , शत्रु है। उस आदमी से बिलकुल उस वक्त तक बात नहीं कि जानी चाहिए जब तक उसका सहस्त्रार पकड़ा है। 

अब रही ह्रदय चक्र कि बात। जिस मनुष्य का ह्रदय चक्र पकड़ा है उसकी सहायता करे। जहाँ तक सम्भव हो उसके ह्रदय को बंधन दें। श्री माताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर उसका एक हाथ ह्रदय पर रखवाएं। ह्रदय चक्र के विषय में आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को ह्रदय चक्र कि समस्या हो सकती है। अपने ह्रदय चक्र को अवश्य शुद्ध रखें। 

परन्तु बहुत से लोगों में ह्रदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते है।

इस तरह रक्षा करने की बात है और जब भी आप बाहर जाए,कभीभी घर से बाहर जाए खुद खुद को पूर्णतया बंधन दे।बंधन में रखे।

जिस व्यक्ति का आज्ञा पकड़ा है उससे विवाद(argument) ना करे। तो क्यों आप भूत से argument कर सकते है। उससे argument नही करना चाहिए जिसका आज्ञा पकड़ा है-पहली चीज।

जिसका विशुध्दी पकड़ा है उससे भी argument नही करना चाहिए।

जिसका सहस्त्रार पकड़ा है उसके तो दरवाजे पर भी खड़ा नही होना चाहिए। जिसका सहस्त्रार पकड़ा है वो आपका दुश्मन है।उसे कहना चाहिए तुम अपना सहस्त्रार ठीक करो।

अब हृदय की बात है जिस मनुष्य का ह्रदय पकड़ा है उसकी मदद करे। जहा तक हो सके उसके हृदय को बंधन डाल दे।

हृदय की समस्या दूसरोंके परेशानी से हो सकती है येसे व्यक्ति को माँ के फोटो के सामने ले आकर ठीक करे।

जिन लोगोंके हृदय शुष्क है उनका आप कुछ नी कर सकते।वो आपके पास आये तो उन्हें कहना चाहिए हठयोग छोडिये सबसे प्यार करे।

किसी भी सहजयोगी को ओने बच्चों को मारना नहीं चाहिए। हाथ नही उठाना चाहिए। किसी से क्रोध नही करना चाहिए। सहजयोगी को क्रोध नही करना चाहिए।

आपको बता होना चाहिए आपकी माँ सबसे प्यार करती है।


अगर आपको नर्क मे जाना है,तो भी व्यवस्था हो सकती है,और अगर आपको परमात्मा के चरण कमलो मे उतरना है,तो भी व्यवस्था हो सकती है।इसलिए जो लोग मुझे परेशान करते है और तंग करते है,मुझे जिन्होने सताया है,ऐसे सब लोगो से मेरा कहना है कि मैने बहुत धैर्य से सबसे व्यवहार किया है,और अब अगर किसी ने मुझे तकलीफ दी तो मै उसे कह दुन्गी तुम्हारा हमारा कोई सम्बध नही,आप यहा से चले जाइये।फिर वो दो चार लात मारते है,इधर-उधर निकलते वक्त अपना गुण दिखाते है।उनके सब गुण दिखते है,लेकिन जो भी है,आपको यह चाहिये आप अपना भला सोचे।अगर वो नर्क की ओर जा रहे है तो आपको उनके गाडी मे बैठने कि जरुरत नही।होन्गे अपना भला करेन्गे।किसी से वादविवाद करने कि जरुरत नही।जो जैसा है वैसा ही रहेगा बहुत मुश्किल से बदलते हे लोग क्योकि वो दृष्ट है।जो अच्छे आदमी होते है वो गलती करते है जल्दी समझ जाते है।जो बुरे आदमी होते है उनका बदलना असंभव-सी बात है।मैने बहुत कोशिश कि है।लेकिन जो जैसा है वो वैसा हि है उसे आप बदल नही सकते।आप किसी भी प्रकार से ऐसे लोगो से सबंध न रखे।क्योकि वो यहॉ पर इसलिए है कि आपकी साधना को नष्ट करे।आप अपनी रक्षा उनसे करे।सहजयोग मे वाईब्रेशन पाये।

हर समय हम आपके साथ है।

जब भी आप अपनी आँखे बंद कर ले उसी वक्त पूर्णशक्ति लेकर "शंख,चक्र,गदा,पदम्,गरुड़ लई धाये" एक क्षण भी विलम्ब नही लगेगा। लेकिन आपको मेरा होना पड़ेगा। ये जरुरी है।

आप मेरे है तो एक क्षण भी मुझे नही लगेगा,मै आपके पास आ जाऊँगी।

सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबुध्दी दे। सम्मति से रहो। सम्मति से रहो।।।

जय श्री माताजी