Monday, August 31, 2020

Chakra clearing mantras and Affirmations - Hindi Sahaja Yoga

 अष्टविनायक मंत्र

मूलाधार चक्र में पावनता स्थापित करने के लिये श्रीगणेश की शक्तियां।

1. मूलाधारः

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश 

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री विकट कामासुर मर्दिनी साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री निष्कामा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

2. स्वाधिष्ठान

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री लंबोदर क्रोधासुर मर्दिनी साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री निष्क्रोधा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

3. नाभिः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश

गजानन लोभासुर मर्दिनी साक्षात् 

श्री निर्लोभा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

4. भवसागरः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

महोदर मोहासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मोहा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

5. अनाहतः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

एकदंत मदासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मदा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

6. विशुद्धिः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

वक्रतुंड मत्सरासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मत्सरा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

7. प्रतिअहं (+ बैक आज्ञा)

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

विघ्ननाशा ममतासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्ममा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

8. अहं(+आज्ञा)

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

श्री धूम्रवर्ण अभिमानासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

इसके पश्चात श्रीमाताजी के प्रवचन या श्रीमाताजी के 108 नाम सुनते हुये या फिर निर्विचारिता की गहन शांति में ध्यान करें।

मूलाधार चक्र कैसे शुद्ध करें ------------------

* माँ के प्रति पूर्ण समर्पण रखें। 

* किसी भी प्रकार की चालाकी , प्रलोभन से बचे बहुत बड़ी - बड़ी बाते करना , दिखावा करना , स्वयं को धोखा देना। पुरे समय बाहरी दुनिया में ही चित्त होना , अपनी आँखों को हर वास्तु या व्यक्ति को टिकाना - यदि आपमें ये है तो तुरंत छोड़ दें। 

* नियमित जल क्रिया ( दिन में कम से कम २ बार )

श्री गणेश अथर्व शीर्ष पढ़ें। 

ओम गम गणपतये नमः का उच्चारण ४ बार करें। 

श्री गणेश मन्त्र / श्री कार्तिकेय मन्त्र लें। 

* धरती पर बैठकर ध्यान करें। 

* हरी घास पर नंगे पैर चले - गणेश जी का ध्यान करे बहते पानी में नदी / समुद्र में पैर डालकर श्री गणेश अथर्वशीर्ष करें। 

* गीली रेट पर चलें। 

* पृथ्वी माँ की ओर नजर रखें। 

* फूलों तथा प्रकृति की सुन्दर रचनाओं को देखे। 

* छोटे बच्चों को देखें , उनके बीच रहें। 

* अपने चित्त को मूलाधार चक्र पर ( बैठने के स्थान पर जो हिस्सा जमीं को छूता है ) रखकर ध्यान में विनती करें :---

( अ ) श्री माताजी मुझे अबोधिता तथा शुद्ध विवेक दीजिये। 

श्री माताजी मेरे अंदर निर्मल गणेशतत्व जागृत कर दीजिये। 

श्री माताजी मेरी बुद्धि को सुबुद्धि में परिवर्तित कर दीजिये। 

( ब ) श्री माताजी मुझे आपकी प्रशंसा के योग्य बना दीजिये। 

श्री माताजी मुझे विनम्र बना दीजियें। 

श्री माताजी मेरी शुद्ध और केवल यही इच्छा है की मैं आपको खुश कर सकूँ।

अब श्री माताजी की फोटो की ओर देखकर कहे 

श्री माताजी आप ही श्री गणेश है 

श्री माताजी आप ही मुझे बुद्धि और विवेक प्रदान करती है।

( स ) अपना चित्त दायें मूलाधार पर रखें। दायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा बायां हाथ पृथ्वी माँ पर रखें। विनती करें श्री माताजी कृपा कर के समस्त नकारात्मक शक्तियों से हमारी रक्षा करियें। मन्त्र ले :- 

श्री कार्तिकेय मंत्र

श्री राक्षस हंत्री मंत्र 

श्री राक्षसघ्नि मंत्र लें।

स्वाधिष्ठान चक्र का शुद्धिकरण -----------

बायां स्वाधिष्ठान :-

* जिन कारणों से इड़ा नाड़ी ( बायीं नाड़ी ) प्रभावित होती है वे सभी कारण छोड़े और इस नाड़ी को शुद्ध करने के तरीके अपनायें। 

* यदि इन पकड़ के कारणों को हम नहीं छोड़ते है तो बायेँ स्वाधिष्ठान से बाधाएँ हमारे शरीर में प्रवेश करने लग जाती है और सीधे बैक आज्ञा को प्रभावित करती है। 

* हर चीज को पाने की अशुद्ध ईच्छाओं को त्यागे।

तांत्रिक क्रिया , कुगुरु को पूर्णरूप से छोड़ दें। 

* खुला दिमाग रखे। पुरानी बातों को जड़ व् त पकड़ नहीं बैठे। नयी बातों को स्वीकार करने को तैयार रहें। 

श्री ब्रम्हदेव सरस्वती 

१. श्री निर्मल विद्या 

२. श्री शुद्ध इच्छा 

३. श्री महिषासुर मर्दिनी का मंत्र लें। 

* दायां मूलाधार को सुधारने पर भी बायां स्वाधिष्ठान सुधरता है।

दांया स्वाधिष्ठान :----------

* जिन कारणों से दायीं नाड़ी ( पिंगला नाड़ी ) प्रभावित होती है , वे सभी कारण छोड़े और इस नाड़ी को शुद्ध करने के तरीके अपनायें। 

* यदि हम लगातार दिमागी सोच जारी रखे हुए है तो हमारे मस्तिष्क को लगातार ऊर्जा भेजने के कारण दायां स्वाधिष्ठान गर्म हो जाता है। अतः

----- भविष्य के बारे में दिमागी सोच विचार बंद करे 

----- सब कुछ परम चैतन्य पर छोड़ दे 

------ लिवर पर बर्फ की थैली रखें ( ध्यान में )

------ अपने दाए स्वाधिष्ठान पर चित्त रखकर ठंडे करने वाले मंत्र ले सकते है ---

श्री हिमालय 

श्री कैलास स्वामिनी 

श्री निर्मल चित्त 

श्री चित्त निरोध 

श्री चित्तेश्वरी 

श्री चित्तशक्ति 

श्री हजरत अली फातिमा बी 

सर्व ताप हरिणी 

श्री संजीवनी स्वामिनी 

* दायें स्वाधिष्ठान पर ---

हजरत अली फातिमा बी - ६ बार लें। 

श्री गायत्री माता साक्षात मंत्र लें।

**** जय श्री माताजी *****

नाभि चक्र का शुद्धिकरण ------

* घर की स्री का अनादर ना करे। 

* इस तरह के व्यक्ति पुरे समय घर की चिंता करने में , शिकायत करते रहने में , कुछ भी बोलकर माहौल ख़राब करते है। समय गंवाते है। अधीर रह कर घटना , व्यक्ति के बारे में जानकारी चाहना , सहनशक्ति की कमी होना , घर तथा वस्तुएं , अव्यवस्थित रखना , अपने किये का दोष दूसरे पर मढ़ना इनके दुर्गुण होते है। यदि आपमें बायीं नाभि की पकड़ आ रही है और आप में इस तरह के दुर्गुण है। तो उन्हें तुरंत छोड़े। 

> भगवान के नाम पर उपास न करें। 

> लम्बे समय तक भूखे न रहे। 

> खाद्य पदार्थ को चैतन्यित करे। 

> चैतन्यित पानी पिये। 

कच्चा , अधपका बासी खाना न खायें। 

( १ चम्मच गेरू ( चैतन्यित ) + १ चम्मच शहद दिन में ३ बार लें 

> बायीं नाभि का मोमबत्ती द्वारा उपचार करे। 

> क्षमा करे। धैर्य रखे। क्रोध न करें। शांत रहे। 

> हमेशा दर्द की शिकायते न करे। पूर्ण आत्मसंतुष्टि में रहे।

मंत्र :- श्री गृहलक्ष्मी साक्षात

* दायीं नाभि चक्र *

> दायें स्वाधिष्ठान में यदि पकड़ है तो उसकी गर्मी ऊपर चढ़ती हुई नाभि को प्रभावित करती है अतः भविष्य का सोच विचार/ चिंताएँ छोड़े। 

> रूपया पैसा , भौतिकवाद , वैभव विलासिता में ही हमेशा न उलझे रहे। 

> अधार्मिक आचरण तत्काल छोड़े - जैसे अपने अधिनसें गलत व्यवहार , दहेज़ लेना - देना। 

> कंजूसी बंद करे। दयालु , मददगार बनें। अन्य सहजी भाई - बहनों को सुंदर उपहार दें। सहज / कार्यों में खुले दिल से रूचि लें। 

> बिना कृत्रिमता , बिना दिखाने के दान करें। 

> शराब सेवन बिलकुल न करें। 

> बिना चिकितसकिय परमार्श के दवाईयों का सेवन अंधाधुंद न करें। 

> पुरे समय भोज्य पदार्थों में ही चित्त न रखें। 

> लिवर डाईट ( जो श्री माताजी ने बतायी है ) अपनायें।

मंत्र -- श्री राजलक्ष्मी साक्षात

मध्य नाभि का मंत्र :- श्री लक्ष्मी नारायण साक्षात।

((((( जय श्री माताजी )))))

भवसागर का शुद्धिकरण -------------

* कुगुरु /अगुरु /तांत्रिक /मांत्रिक सबसे नाता तोड़ें। 

* इनके द्वारा दिए गए प्रसाद , लॉकेट , किताबें , फोटो , भस्म / कपडे / गंडे - ताबीज को तुरंत त्याग दें। 

* इनके द्वारा दिए गये मंत्र , उपास , ध्यान बंद करे , कर्मकांड बंद करें। 

 * दो नावों पर सवार होने की स्थिति से बचे। 

* सदगुरु वही है जो परमात्मा से मिलाता है , जिनके सामने कुण्डलिनी जागरण होता है और आत्म साक्षात्कार प्राप्त होता है। याद रखे सहजयोग को आपकी जरुरत नहीं है आपको सहजयोग की जरुरत है। 

* अपने आप को दूसरों का गुरु न समझें। 

* भवसागर को आगे से ( घडी के कांटे के सदृश ) सीधे हाथ से शुद्ध करें। 

------- आदि गुरु दत्तात्रय का मंत्र लें 

------ दसो गुरुओं के नाम लें 

------ आदि गुरु दत्तात्रय के १०८ नाम ले सकते है। 

------ असत्य गुरु मर्दिनी / कुगुरु मर्दिनी का मंत्र ले।

* भवसागर पर ध्यान करें - - श्री माताजी से प्रार्थना करें श्री माताजी मुझे स्वयं का गुरु बना दीजिये। 

श्री आदिगुरु दत्तात्रेय एवं उनके दस अवतरण 

१ श्री राजा जनक 

२ श्री एब्राहम

३ श्री मोजेस 

४ श्री जोराष्ट्र 

५ श्री लाओत्से 

६ श्री कन्फूशियस 

७ सुकरात 

८ श्री मोहम्मद साहब 

९ श्री गुरु नानक 

१० श्री शिर्डी के साईनाथ

[ जय श्री माताजी ]

ह्रदय चक्र का शुद्धिकरण -----------

बायां ह्रदय :---

* अपनी आत्मा पर चित्त रखें। पुरे समय बाहरी दुनिया के सोच से आत्मा से चित्त हट जाता है। 

* ध्यान व अंतर्दर्शन आवश्यक है जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है। 

* आत्मा के विरोध में कार्य न करें 

बायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा दायां हाथ ह्रदय पर रखकर मंत्र लें :- 

> श्री आत्मा परमात्मा मंत्र 

> श्री शिव पार्वती मंत्र / श्री शिव शक्ति मंत्र 

> श्री शिवजी के १०८ नाम ले सकते है। 

> बायें ह्रदय का मोमबत्ती द्वारा उपचार 

> बायें ह्रदय को दायें हाथ से चैतन्य देना। 

> माँ से विनती करें - श्री माताजी मैं शुद्ध आत्मा हूँ , कृपा करके मेरा परमात्मा से योग घटित करवा दीजिये। मुझे प्रेम तत्व एवं आत्म तत्व प्रदान कीजिये।

मध्य ह्रदय :--- 

* श्री जगदम्बा साक्षात मंत्र 

* श्री दुर्गा माता साक्षात मंत्र 

* लंबी सांस अंदर खींचे - १२ बार जगदंब कहें , सांस छोड़े ऐसा ३ बार करें

 * पुरे विश्वास से कहे - श्री माताजी आप ही आदिशक्ति है 

* आप ने मुझे चुना है , इसलिए मेरा कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता 

--- मुझे कोई डरा नहीं सकता 

--- मुझे कोई मार नहीं सकता 

--- मुझ पर कोई अपना प्रभुत्व नहीं जमा सकता। 

* दूसरों को आत्म-साक्षात्कार दें। इससे आप में आत्म विश्वास बढ़ता है। 

* आत्माष्टकम् ( निर्मलांजलि पुस्तक ) गायें। 

* श्री दुर्गा माता के नाम लें। 

* देवी सूक्तम पढ़े। 

* अजीब आकार - प्रकार के लॉकेट आदि न पहने जिनसे नकारात्मकता सीधे ह्रदय या विशुद्धि चक्र में प्रवेश कर सकती है। 

* अपने अंदर दबा गुस्सा , चिंता न रखें। सब कुछ परमचैतन्य पर छोड़ दें।

दायां ह्रदय :-- 

* अपने पिता से संबंध अच्छे रखे। क्षमा का भाव रखे। 

* पितास्वरूप अपने बच्चों की बहुत चिंता न करें। श्री माताजी पर विश्वास रखें। 

* अपने घर परिवार की जिम्मेदारी समझें। पुरे समय काम धंधे , रुपये पैसे , सत्ता ईर्ष्या , जलन का ही सोच विचार बंद करें। 

* अति मानसिक - अति शारीरिक श्रम न करें। बीच बीच में शरीर व दिमाग को आराम देते रहें। 

* परिवार समाज व स्वयं से मर्यादा में रहें। 

* आत्मा पर चित्त रखें। 

* पूर्वजों / पितरों का आहवान न करें। श्री माताजी से कहें श्री माताजी आप ही हमारी माँ है , पिता है। कृपया हमारे पितरों को स्वर्ग में उचित स्थान दें। 

* श्री सीता राम साक्षात मंत्र लें। 

((((( जय श्री माताजी )))))

विशुद्धि चक्र का शुद्धिकरण -----------

* स्थित प्रज्ञ की स्थिति के लिए श्री माताजी से प्रार्थना करें। इसके लिए साक्षी भाव रखें। अपने अहंकार अथवा जड़ता से लगाव न रखे। तुरंत प्रतिक्रिया करने से बचे। बाद में स्थिति सामान्य होने पर अपनी बात रखने की कोशिश करें। 

* मंत्रों का सही उच्चारण करें। 

* सामूहिकता में रहें। अधिक से अधिक सार्वजानिक सहज कार्यक्रमों में जायें।

* सहजयोग का कार्य करें। 

* सामूहिकता में सहज भजन गायें। 

* जिन कारणों से पकड़ आ रही है , वे बंद करें। 

* श्री राधा कृष्ण मंत्र लें - विशुद्धि चक्र पर चित्त रखकर। 

* श्री कृष्ण के १०८ नाम ले सकते है। 

* खुले आसमान की तरफ देखकर दोनों कानों में पहलगी ( विशुद्धि की ) ऊँगली डालकर , हथेलियां खुली रखकर , अल्लाह - ओ - अकबर का १६ बार उच्चारण करें। 

* ठंड में गलें को ढंककर रखे। 

* आपका पहनावा इस तरह का हो जिसमें कंधे बाँहें खुली न हो ( स्लीवलेस न पहने )

* ताबीज आदि न पहने , वहाँ से नकारात्मकता सीधे अंदर प्रवेश कर सकती है। 

* नाक में ( घी + कर्पूर ) प्रतिदिन डाले। 

* बालों में तेल डालें। बाल व्यवस्थित रखे। बिखरे बाल भूतों को बुलावा देते है। 

* अपने दांत में नियमित ब्रश करे। 

* गर्म दूध या गर्म पानी में मक्खन और शहद डालकर पीये। 

* मक्खन और मिश्री खायें। 

* अजवायन की धूनी / भाप लें। 

* धूम्रपान / तंबाकू सेवन तुरंत बंद करे। नहीं कर पा रहे है तो उपरोक्त उपायों के साथ - साथ माँ से लगातार विनती करे। 

** बाँया विशुद्धि चक्र **

* यदि आपने गलत कार्य या अधार्मिक कार्य या आत्मा के विरुद्ध कोई कार्य किया है तो श्री माताजी के सामने अपनी गलती स्वीकार करें। गलती का सामना करे। सफाई देने की जरुरत नहीं। कहे श्री माताजी अगली बार मै ऐसा नहीं करूँगा। 

* माँ से विनती करें श्री माताजी मैं शुद्ध आत्मा हूँ कृपया करके मुझे दोष भाव से मुक्त करें। 

* पर श्री के प्रति आदर व पवित्र भाव रखे। 

* गलत कार्यों को / अपवित्र आचरण को तुरंत छोड़े। 

* दूसरों की आलोचना / बुराई करना तुरंत छोड़े। 

* श्री विष्णुमाया का मंत्र लें। 

* चक्र को आगे से घड़ी के काँटे के सदृश शुद्ध करें। 

* चक्र को चैतन्य दें। 

* चक्र की मोमबत्ती क्रिया करें। 

* झूठ न बोलें।

** दायां विशुद्धि चक्र ** 

* तुरंत प्रतिक्रिया कर गलत / अपशब्द न कहें / चीख चिल्ला कर बाते न करें , गाली - गलौच / बहस न करे। इससे आप दूसरों के भूत अवशोषित कर लेते है। 

* अहंकार -रहित मधुर वाणी कहे। इसके लिये भी श्री माताजी से लगातार विनती करे। 

* लगातार भाषण देना। लगातार गाना गाना इनसे विशुद्धि चक्र पर दबाव पड़ता है अतः अपने गले को कुछ अंतराल के बाद आराम दें। 

* श्री विट्ठल - रुख्मिणि का मंत्र लें।

((((( जय श्री माताजी )))))

आज्ञा चक्र का शुद्धिकरण -----------

* जिन कारणों से पकड़ है -- वे बंद करें।

* अहंकार / प्रति अहंकार या जड़ता को तुरंत छोड़े। इनके लिये माँ से लगातार विनती करे।

* अपनी नजरे हर वस्तु , हर व्यक्ति पर न टिकाये

* आँखों के अत्याधिक उपयोग से बचे जैसे लगातार टी वी देखना / कंप्यूटर पर कार्य / मोबाइल पर कार्य / लगातार पढ़ना / सिलाई / कढाई आदि करना।

* बीच -बीच में अपनी आँखों को आराम देना आवश्यक है , आँखें बंद कर शांत चित्त बैठे।

* अपवित्र साहित्य पढ़ने से , अपवित्र , गंदे मनुष्यों को देखने से , गन्दे टी.वी सीरियल , गन्दी फिल्मे देखने से आज्ञा चक्र प्रभावित होता है। आँखों के अनेक रोग इन्ही कारणों से होते है। ऐसी आदते तुरंत छोड़े।

* वे सारी विधियाँ जो आँखों पर ध्यान केंद्रित करने को प्रेरित करती है जैसे सम्मोहन , तांत्रिक क्रिया आदि बिलकुल न करें।

* अनधिकृत गुरु के सामने - गर्दन झुकाने से , चरणों में माथा टेकने से बचे।

* असहजी द्वारा माथे पर कुमकुम लगवाने से बचे।

* गलत स्थान पर माथे टेकने से बचे।

* अपने आज्ञा चक्र पर श्रीमाताजी के सामने रखा हुआ चैतन्यित कुमकुम लगाये।

* बायीं नाड़ी की पकड़ से अथवा बायें तरफ के चक्रों की पकड़ से बैक आज्ञा पकड़ जाती है अतः पीछे से घडी के काटे के विपरीत हाथ घुमाकर बैक आज्ञा शुद्ध करें।

--- श्री महागणेश , श्री महा भैरवनाथ , श्री महा हिरण्यगर्भाय का मंत्र लें।

---- मोमबत्ती - क्रिया , द्वारा शुद्ध करें / अजवायन कर्पूर द्वारा शुद्ध करें।

--- चक्र को चैतन्य दें

फ्रंट आज्ञा को शुद्ध करने के लिए -----------

* क्षमा करे। प्रतिदिन सीधे हाथ को आज्ञा चक्र पर रखकर प्रार्थना करे। श्री माताजी मैंने ह्रदय से सबको क्षमा किया , मैंने अपने आपको भी क्षमा किया। ये शब्द ही मंत्र है। धीरे - धीरे आपमें अंदर से परिवर्तन होगा।

* तुरंत प्रतिक्रिया से बचे। साक्षी भाव रखे।

* लगातार सोच विचार / चिंताएं / दबा गुस्सा / तनाव तुरंत बंद करें। सब कुछ श्री माताजी पर विश्वास कर परम चैतन्य पर छोड़ दें।

* श्री जीसस मेरी , श्री महावीर , श्री बुद्धदेव साक्षात का मंत्र लें।

* महत अहंकार साक्षात का मंत्र लें।

* हं क्षं मंत्र लें ( दो बार उच्चारण करें )

* निर्विचार साक्षात का मंत्र लें / महत अहंकार साक्षात मंत्र लें।

* गणेश अथर्वशीर्ष पढ़ सकते है।

* लॉर्ड्स प्रेयर पढ़े।

* चक्र को चैतन्य दें।

* श्री माताजी के आज्ञा चक्र को मोमबत्ती की लौ के अंदर देखे ( मुख्यतः आँखों के लिये है। )

** एकादश रूद्र को जागृत करने के उपाय **

* अपने माथे पर जहाँ से बाल शुरू होते है - पर ध्यान करें। चित्त को बायें से दायें तथा दायें से बाएं घुमाये।

प्रार्थना करे ---

---- श्री माताजी कृपा करके मेरे अंदर एकादश रूद्र की शक्तियों को जागृत कर दीजिये।

---- मेरे समर्पण में आने वाली समस्त नकारात्मकता को नष्ट कीजिये।

---- श्री एकदाश रूद्र साक्षात का मंत्र ३ बार लें।

** जय श्री माताजी **

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