Thursday, February 25, 2021

Nirananda - The Bliss of Sahasrara - Hindi Article

 सहस्रार पर निरा का आनंद।


"हम इसके साथ दिल बहलाने वाली बात नहीं कर सकते। यह बहुत भयंकर आपातकाल का समय है। मैं वातावरण में स्थिति को भांप सकती हूँ, इस आपात स्थिति को। 

सभी देवी-देवता इस कार्य को सुलझाने के लिए यहाँ आपके साथ हैं।

 आप स्टेज (रंगमंच) पर हैं, और आपको क्रांति लाने का वैसा महान नाटक करना होगा। 

हमें इस संसार को दिखाना होगा कि यह केवल आत्मा ही है, जो इस संसार को बचा सकती है, और कोई नहीं बचा सकता। 

और इसीलिए आज से, हम अपनी यात्रा उस सूक्ष्मता और उस संवेदनशीलता की ओर शुरू करते हैं, जो आप अनुभव कर सकते हैं। 

निरानंद - आपकी माँ का नाम निरा है, और सहस्रार पर आप आनंद को अनुभव कर सकते हैं, निरा का आनंद।"


प.पू माता जी श्री निर्मला देवी ।

१४ जनवरी १९८४




Mooladhara Chakra - Sahaja Yoga Wisdom

 मूलाधार चक्र की जानकारी (श्री माताजी द्वारा)-


...... सबसे पहले कार्बन का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भाव हुआ, वह है पहला चक्र जिसे कि मूलाधार चक्र कहते हैं।

           प.पू.श्री माताजी, १५.३.१९८४



..... मूलाधार चक्र कार्बन के अणुओं से बना है। कार्बन के अणुओं को जब आप देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे कि बाईं ओर से देखने पर ॐ सम दिखायी देते हैं, दाई ओर से स्वस्तिक सम पर इसी को जब आप नीचे से ऊपर की ओर देखते हैं तो ये अल्फा तथा ओमेगा (a-a)(आदि-अंत) सम प्रतीत होते हैं।

            प.पू.श्री माताजी, दिल्ली, ६.४.१९९७


...... हमारा पहला चक्र लाल रंग का है, यह हमारी अबोधिता का चक्र है।

          प.पू.श्री माताजी, पीटर्सबर्ग, १.८.१९९३


...... इसकी चार पंखुरियाँ हैं (उपचक्र)। त्रिकोणाकार अस्थि के नीचे स्थित यह चक्र शारीरिक स्तर पर श्रोत्रि चक्र (पैल्विक प्लेक्सस) जो कि हमारी यौन गतिविधि सहित मलोत्सर्जन की देखभाल करता है, कि अभिव्यक्ति के लिये

उत्तरदायी है।

       कुण्डलिनी जब उत्थित है तो यह चक्र उत्सर्जन के कार्यों में तो निष्क्रिय हो जाता है परन्तु कुण्डलिनी के उत्थान में सहायता के लिये क्रियाशील रहता है।

               सहजयोग पुस्तक से


      इस चक्र में श्री गणेश बसते हैं। श्री गणेश चक्र (मूलाधार चक्र) जो है गौरी कुण्डलिनी को, उसके पावित्र्य को, सँभालते हैं। ......ये हमारे अन्दर सुजनता जिसे विज्डम कहते हैं वो देते हैं .....हमारी अबोधिता और पवित्रता हमें प्रदान करते हैं। विवेक बुद्धि भी श्री गणेश हमें हमारे अन्दर देते हैं।

                प.पू.श्री माताजी, १५.१.१९८४



....... श्री गणेश शक्ति पृथ्वी के अन्दर गुरुत्वाकर्षण शक्ति है जिसे कि आप कहते हैं Gravity, यही शक्ति इन्सान में मूलाधार चक्र में है और जो इन्सान के अन्दर ग्रैविटी है, जब वह खराब हो जाती है, उसका वज़न खराब हो जाता है, तब उसका

(आत्मसम्मान) Self Esteem कम हो जाता है, वो कमजोर, हीन हो जाता है। उसकी आँखें इधर-उधर दौड़ने लग जाती हैं, उसका मन खराब हो जाता है और उसका चित्त बिखर जाता है, तब उसकी Gravity खत्म हो जाती है।.. आपका गणेश चक्र पकड़ा जाता है तो आपका Innocence जो है वो खत्म

हो जाता है। आप चालाक हो जाते हैं। जो महाबेवकूफ होता है वहीं चालाकी करता है।

              प.पू.श्री माताजी


....... आँख का सम्बन्ध हमारे मूलाधार चक्र से बहुत नज़दीक का है। (सहस्रारमें) पीछे की तरफ भी हमारा मूलाधार चक्र है। ....... जो लोग अपनी आँखे बहुत इधर-उधर चलाते हैं, उनको मैं आगाह कर देना चाहती हूँ कि उनका मूलाधार चक्र बहुत

खराब हो जाता है और अजीब-अजीब तरह की परेशानियाँ उनको उठानी पड़ती है।

           प.पू.श्री माताजी, दिल्ली, १५.२.१९८१


चक्र के अंतर्जात गुण


१. अबोधिता - श्री गणेश हमारे अन्दर अबोधिता के स्रोत हैं।....अबोधिता ऐसी शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है। ......यही


अबोधिता आपको अन्य लोगों से प्रेम करना, उनकी देखभाल करना, उनके प्रति भद्र होना सिखाती है। अबोधिता में भय बिल्कुल भी नहीं होता। जैसे बच्चा अपनी अबोधिता में जानता है कि उसकी देखभाल हो रही है और वह सुरक्षित है, वह जानता है कि कोई शक्ति है जो बहुत ऊँची है, उसे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।


         प.पू.श्री माताजी, कोमो, २५.१०.१९८७

...... अबोधिता की यह पहचान है कि मनुष्य को सभी में पवित्रता दिखायी देती है, क्योंकि अपने आप पवित्र होने के कारण वह अपवित्र नज़रों से किसी को नहीं देखता है।

          प.पू.श्री माताजी, बम्बई, २२.९.१९७९


२. पवित्रता - पवित्रता आनन्दमयी है, केवल आनन्दमयी ही नहीं, यह पूरेे व्यक्तित्व को सुगंधमय कर देती है।

         प.पू.श्री माताजी, २९.११.१९८४

...... दृष्टि की पवित्रता और विचारों की पवित्रता .. आपकी दृष्टि यदि पवित्र है तभी आप परमात्मा के प्रेम का आनन्द उठा सकते हैं अन्यथा नहीं।......पावन प्रेम में वासना और लोभ का कोई स्थान नहीं होता। आप मेरे बच्चे हैं, आप निर्मल के बच्चे हैं, अर्थात् पावनता के, पावनता ही आपके जीवन का आधार है।

          प.पू.श्री माताजी, टर्की, २३.४.२०००


३. बुद्धि (विवेक) - बुद्धि, विवेक श्री गणेश जी का प्रथम तथा सर्वोच्च वरदान है। हम सीखते हैं कि हमारे लिये क्या सही है और क्या गलत है, रचनात्मक क्या है और विध्वंसात्मक क्या है। विवेक शील व्यक्ति वह है जिसे यह ज्ञान है कि उसकी  अपनी शक्तियाँ कोई गलत कार्य करने के लिये नहीं है, वह बुराई करता ही नहीं। विवेक हमारे अन्दर पूर्ण शक्ति है, जिसके द्वारा हम कोई प्रयास नहीं करते, यह हमारे माध्यम से स्वत: ही

कार्य करता है और तब हम केवल उचित कार्य ही करते हैं।

          प.पू.श्री माताजी, बर्लिन, जर्मनी, २७.७.१९९३


४. चुम्बकीय शक्ति- ......चुम्बकीय शक्ति एक चमत्कार है ........ये चमत्कार आपके अपने व्यक्तित्व से आता है, आपके व्यक्तित्व से। इस चुम्बकीयपन का आधार बाईं ओर से शुरू होता है, श्री गणेश ये आधार हैं।

        यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आपमें कितनी चुम्बकीय अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो अन्य लोगों को अपने वज़न ( गरिमा)

अपने गुणों से आकर्षित करता है। व्यक्ति को चाहिये कि इसे अत्यन्त सूक्ष्म तरीके से समझे कि चुम्बकीय शक्ति क्या है? कुछ लोग अन्य लोगों को आकर्षित करने के लिए बनावटी संकेतों का उपयोग करते हैं, जिस प्रकार वे वस्त्र धारण करते हैं, वे चलते हैं और रहते हैं, इन सारी चीजों का कोई उपयोग नहीं है। ये शक्ति तो आंतरिक है, ये सुगंध अत्यन्त आंतरिक है। इसे विकसित किया जाना चाहिये।

      प.पू.श्री माताजी, कोल्हापुर, १.१.१९८३


५. संतुलन - हर समय आपको संतुलन बनाये रखना है, इसके लिये यह समझ लेना आवश्यक है कि आप चीज़ों के अति में न जाये।..आप यदि अति में जाते हैं तो कुछ भी कार्यान्वित न होगा।

          प.पू.श्री माताजी, कबैला, १.८.१९९९

प्रकृति की सारी चीजें संतुलित हैं। संतुलन बनाये रखने का कार्य श्री गणेश ही करते हैं, वे ही आपको संतुलन प्रदान करते हैं। स्थिर होने पर श्री गणेश संतुलन लाते हैं, जब ये दायें की ओर जाने लगते हैं तो कोई निर्माणकारी कार्य शुरू

होता है, तब जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ ये करते हैं, परन्तु विपरीत दिशा में चल पड़े तो विध्वंसक हो उठते हैं। इनके संतुलन के बिना मानव जीवन नहीं चल सकता। इनके दोनों गुणों रचनात्मक तथा विध्वंसक का संतुलित होना आवश्यक है।

             प.पू.श्री माताजी, आस्ट्रेलिया, फरवरी १९९२

Friday, February 19, 2021

Divine Vibrations - Ordinary seed and extraordinary results!

 In Sahaja Yoga, you take the ordinary seeds and you vibrate them. If you vibrate them, then what happens that you start getting seeds which are even better than hybrid. I tried an experiment with a sunflower; so I developed a sunflower about 2 kilo weight, about one foot diameter and such big, big seeds, that you can’t make them out to be sunflower seeds, so the collective was so amazed at it and they felt that this kind of seed will solve all of our oil problem.

(Shri Ganesha Puja, Madrid, Spain, 6/11/87)


सहज योग में, आप साधारण बीज लेते हैं और आप उन्हें चैतन्यित (वाइब्रेट) करते हैं। जब आप उन्हें चैतन्यित (वाइब्रेट) करते हैं, तो आपको ऐसे बीज मिलने लगते हैं जो संकर (हाइब्रिड) से भी बेहतर हैं। मैंने सूरजमुखी के साथ एक प्रयोग (एक्सपेरिमेंट) करने की कोशिश की; जिसके ज़रिये मैंने 2 किलो वजन और लगभग एक फुट व्यास (diameter) और इतने बड़े, बड़े बीजों वाला एक सूरजमुखी विकसित किया - कि आप उन्हें सूरजमुखी के बीज नहीं बता सकते - जिस कारण सामूहिक (collectivity ) इस पर बहुत आश्चर्यचकित थे - और उन्होंने महसूस किया कि इस तरह के बीज हमारे तेल की सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं ।
(श्री गणेश पूजा, मैड्रिड, स्पेन, 6/11/87)





Thursday, February 18, 2021

Shri Mataji On Basant Panchami

 बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

प्रेम से ही सभी प्रकार के रचनात्मक घटनाये घटित होतीं है।
और जैसे-जैसे प्रेम बढ़ता , आपकी रचनात्मकता विकसित होती है ।
माता सरस्वती की रचनात्मकता का आधार प्रेम ही है।
अगर प्रेम नहीं है तो रचनात्मकता नहीं है।
यदि गहरे अर्थों में भी तुम देखो - सभी वैज्ञानिक चीजों का निर्माण जनता के प्रति प्रेम भाव और उनके हित के लिए ही हुआ है - अपने लिए नहीं।
केवल खुद के लिए ही उत्पादन नहीं किया गया।
यदि वे अपने लिए कुछ बनाते हैं तो इसे सार्वभौमिक उपयोग के लिए बनना होगा, अन्यथा इसका कोई अर्थ नहीं है।

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
श्री सरस्वती पूजा, धूलिया (भारत), संक्रांति दिवस, 14 जनवरी 1983


With love all kinds of creative action takes place.
And as love will increase, your creativity will develop.
So the basis of all creativity of Saraswati is love.
If there is no love there is no creativity.
It is even in the deeper sense, if you see; people who have created all the scientific things are also out of love to the masses, not for themselves.
Nobody has produced anything for themselves.
If they make something for themselves it has to become for universal use, otherwise it has no meaning.

Her Holiness Shri Mataji Nirmala Devi
Shri Saraswati Puja, Dhulia (India), Sankranti day, 14 January 1983.




5 Divine Elements - Panch Mahabhoot

जब हम ध्यान करते हैं, तो हमारे चक्र साफ हो जाते हैं, शुद्ध, संतुलित और बेहतर संरेखित होते हैं - जिसके परिणामस्वरूप हमारे शरीर की विभिन्न बीमारियां (शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक) भी ठीक हो जाती हैं। इसलिए शुद्ध, प्रामाणिक ध्यान के उपोत्पाद के रूप में, हमारी अन्य सभी समस्याएं भी हल हो जाती हैं।

While we meditate, our chakras get cleansed, purified, balanced and better aligned - as a result of which the various ailments of our body (physical, mental & emotional) also get healed. Therefore as a by-product of pure, authentic meditation, all our other problems also get solved. 



Sahaja Krishi - Posters in Hindi

These posters are especially made for my Sahaja Yogi Brothers and Sisters who are into farming and animal husbandry.

We all know that various chakras are governed by different deities , syllables (beej mantra), elements, planets etc. How to harness their powers in real life is what we need to learn.

Already our Sahaji brothers and sisters are using the power of Sahaja Yoga Meditation - the divine vibrations - to produce much better results in both land farming and animal husbandry!

Hope we are able to spread the message worldwide so that more and more people (not just in India but worldwide) can benefit from divine vibrations!







 

Foot Soak - Paani Paire Kriya - Hindi Article

 पानी पैर क्रिया



ध्यान धारणा के समय हल्कापन : जैसा उपरोक्त तालिका दर्शाती है, मूलाधार चक्र से ज्यॉ-ज्यों व्यक्ति सहस्रार की ओर बढ़ता है, तत्वों का वजन घटने लगता है। उदाहरण के रूप में कुण्डलिनी मूलाधार चक्र से सीधे नाभि चक्र पर पहुँचती है और जल (नाभि का तत्व) पृथ्वी तत्व से हल्का है। तत्पश्चात्‌ कुण्डलिनी स्वाधिष्ठान पर आती है (ध्यान रखें कि स्वाधिष्ठान चक्र की उत्पति नाभि चक्र से हुई है और यह नाभि चक्र के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है) और वहाँ अग्नि तत्व जल तत्व से हल्का है | इसके बाद कुण्डलिनी नाभि मार्ग से हृदय चक्र पर आती है | यहाँ वायु तत्व जो जल तत्व से भी हल्का है | जैसे-जैसे व्यक्ति ऊपर उठता है तत्वों का भार कम होता चला जाता है और सहसार पर चैतन्य-लहरियाँ तो बिल्कुल भारहीन होती हैं । यही कारण है कि नीचे के चक्र से ज्यों -ज्यों हम ऊपर को उठते हैं हमें हल्केपन का एहसास होने लगता है और सहस्रार पर तो हम पूरी तरह से हल्के और शान्त हो जाते है।


ये कहना अनावश्यक होगा कि सहजयोगियों को प्रतिदिन पानी पैर क्रिया अवश्य करनी चाहिए क्योंकि हम सब गृहस्थ हैं और सामाजिक प्राणी हैं । हर समय जाने-अनजाने हम अपने कानों, आँखो, नाक आदि विज्ञापनों तथा बात-चीत के माध्यम से बाधाओं को अपने अन्दर खींचते रहते हैं | इस प्रकार हम निरन्तर बहुत सी नकारात्मकता अपने चक्रों तथा नाड़ियों में भर लेते हैं जिसे बाहर से नहीं देखा जा सकता । अपने सूक्ष्म तंत्र और नस-नाड़ियों को यदि हम प्रतिदिन साफ नहीं करते तो हमारा बाधित नाड़ी-तंत्र  कुण्डलिनी एवं चैतन्य -लहरियों को ठीक से प्रवाहित न कर पाएगा ।


अपने एक प्रवचन में श्रीमाताजी ने बताया था कि हमारे जीवन की 80 प्रतिशत समस्याएं पानी पैर उपचार से ही ठीक हो जाती हैं | हम भी जानते हैं कि यदि हम किसी एक दिन के पूरे विचारों को अन्य दिनों के विचारों से अलग करके देखें तो पाएंगे कि उस दिन के अधिकतर विचार नाभि चक्र से जुड़े होते हैं अर्थात ये विचार पति/पत्नि या बच्चों या व्यापार के बारे में होते हैं | पानी पैर क्रिया किस प्रकार चक्रों को शुद्ध करती है।


पानी में पैर डालकर जब हम बैठते हैं तो पानी पड़ा हुआ नमक हमारे मूलाधार चक्र को शुद्ध करता है । वैज्ञानिक रूप से भी, हम जानते है ; नमक में पृथ्वी तत्व का बाहुल्य है । जब बिजली की तारों का पृथ्वीकरण करना होता है तो तार डालने के लिए खोदे गए गड्ढे में नमक भी डाला जाता हैं । जल तत्व नाभि को शुद्ध करता है, दीपक की लौ ( अग्नि तत्व) स्वाधिष्ठान चक्र को बाधा मुक्त करती है, वायु हृदय को, आकाश विशुद्धि को, दीपक का प्रकाश आज्ञा चक्र को तथा श्रीमाताजी की फोटो से प्रवाहित होने वाली चैतन्य लहरियाँ सहस्त्रार चक्र को बाधा -मुक्त करती हैं | इस प्रकार से हम अपने सूक्ष्म तंत्र  को स्वच्छ कर सकते हैं | 

पानी पैर क्रिया करते हुए अपनी आँखे खुली रखें।