Friday, October 23, 2020

Lethargic vs. overactive - the Sahaja cure - Hindi Article

 अतिकर्मी और आलसी प्रवृत्ति, इनके दोष व उपचार .....


         मैं एक ऐसे बहुत अच्छे साधक को जानती हूँ, जो मेरे पास आया और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया परंतु उसे इसका आभास हाथों पर नहीं हुआ, क्योंकि उसका विशुद्धि चक्र बहुत खराब था। और खराब विशुद्धि के कारण आप इसे हाथों पर महसूस नहीं कर पाते, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप शांति का अनुभव करते हैं, आप आनंद का अनुभव करते हैं और आप इसे सिर के तालू भाग पर भी महसूस कर सकते हैं या दूसरे लोग इसे पूरी तरह से महसूस कर सकते हैं। धीरे धीरे आपकी उंगलियों में सुधार होगा और वो आपको अच्छे परिणाम देंगी। सहजयोग में हम प्रत्येक अंग में दो तरह की प्रकृति देखते हैं। एक आलसी प्रकृति (कोई काम न करना) है, और दूसरी है अतिकर्मी प्रकृति (जरूरत से ज्यादा काम करना/सोचना) । मान लें आप एक अतिकर्मी व्यक्ति हैं और आप अगर अतिकर्मी व्यक्ति हैं, आप बहुत मेहनत से पढ़ाई कर रहे हैं, भविष्य के बारे सोच रहे हैं या कोई योजना बना रहे हैं तो आपके पास अतिकर्मी हृदय होगा या आपका पाचन तंत्र अतिकर्मी होगा, आपका लीवर अतिकर्मी होगा और आपका पूरा तंत्र अतिकर्मी होगा, जिसके कारण आपको उच्च रक्तचाप होगा, उच्च रक्तचाप से संबंधित सारी समस्याएं होंगी, कब्ज होगी और ऐसी सभी समस्याएं एक अतिकर्मी व्यक्तित्व में पाई जाती हैं ।

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         अब दूसरी तरह का व्यक्ति आलसी प्रकृति का होता है। अगर आप आलसी व्यक्ति हैं तो आपका हृदय भी आलसी होगा और ऐसे व्यक्ति को या तो बाई पास सर्जरी करवानी पड़ेगी या ऐसा ही कुछ करवाना पड़ेगा, क्योंकि हृदय आलसी होने के कारण उचित रूप से रक्तसंचार नहीं करता। जब आपका लीवर आलसी हो जाता है तो आपको तरह तरह की एलर्जी हो जाती है। इसके विपरीत अगर आप अतिकर्मी लीवर वाले व्यक्ति हैं तो वही लीवर जो आपको अनेक तरह की एलर्जी दे रहा था, वही लीवर आपको जी मचलाना, बीमार महसूस करना, एक तरफ का सिरदर्द होना, उल्टी आना और घबराहट जैसी समस्याएं देगा। अतः अगर आप आलसी व्यक्ति हैं, आप आलस्य की समस्या से पीड़ित हैं तो आप को प्रकाश का प्रयोग करना चाहिए। आलस या सुस्ती संबंधित सभी समस्याओं के लिए प्रकाश सर्वोत्तम है, बांए भाग और आलस्य संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रकाश (मोमबत्ती इत्यादि) का प्रयोग करें। और दांई ओर की समस्याओं के लिए आप धरती मां का सहारा ले सकते हैं। धरती मां सर्वोत्तम है या फिर पानी और नमक। अतः उन लोगों के लिए जो अतिकर्मी की समस्या से पीड़ित हैं उनके लिए पानी और नमक बहुत अच्छा है। अब आप इसे कैसे करते हैं? यह (जल क्रिया) दोनों समस्याओ के लिए ठीक है। विशेषकर दांए भाग की समस्याओं के लिए। पहले आपको दोनों हाथ मेरे फोटोग्राफ के आगे फैला कर बैठना है, अपने दोनों पैर थोड़े नमक वाले पानी में डालकर। अब अगर आप दोनों हाथों में बराबर चैतन्य महसूस कर रहे हैं तो यह ठीक है और आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है। अब मान लें कि एक हाथ में चैतन्य ज्यादा है और एक हाथ में कम है तो जिस हाथ में चैतन्य कम है वह हाथ हमेशा मेरे फोटोग्राफ की तरफ़ रहेगा। जिस हाथ में चैतन्य कम हो वह मेरी तरफ़ और दूसरा हाथ बाहर रहेगा और आप इसे महसूस कर सकते हैं कि आपके सिर में कुछ चल रहा है और आप शांत अनुभव करते हैं। धीरे धीरे आप स्वयं के गुरू बन जाएंगे और आपको पता चल जाएगा कि इस शरीर को किस प्रकार से व्यवस्थित करना है। आप पूर्णतः अपने गुरु बन जांएगे। सबसे पहले आपको संवेदनशील बनना पड़ेगा। इसके लिए मैं आपको सुझाव देती हूँ कि आप अपने हाथों और पैरों की उंगलियों पर जैतून के तेल का प्रयोग करें, अपनी उंगलियों को संवेदनशील बनाने के लिए अच्छे तरीके से मालिश करें। क्योंकि विभिन्न कारणों से हमारे हाथ संवेदनहीन बन चुके हैं। इसे अच्छी तरह से महसूस करने के लिए किसी बढ़िया जैतून के तेल की अच्छी तरह से मालिश करें।


 🌹🌹*परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी, 🌺🌺

           सिडनी कार्यशाला 1983*

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