Friday, October 23, 2020

Sahaja Treatments for various diseases - Hindi Article

 रोग एवं उनके सहज उपचार(पहला भाग)

एलर्जी

 बांयी नाड़ी प्रधान लोगों के शिथिल या लिथार्जिक लिवर के कारण उन्हें एलर्जी हो सकती हैं। इन लोगों को लिथार्जिक लिवर के कारण कई प्रकार की एलर्जी हो सकती हैं।(9.2.1983 नई दिल्ली, निर्मला योग सं0 25)

बच्चों को एलर्जी क्यों होती हैं. उनकी बांयी नाभि में पकड़ के कारण ऐसा होता है। इसका कारण मां है, क्योंकि बच्चा अभी अविवाहित है। मां की बांयी नाभि के कारण बच्चे को भी बायीं नाड़ी की समस्या हो जाती है। अच्छा है कि पहले मां की और बाद में बच्चे की बांयी नाड़ी को ठीक किया जाय। इसके लिये बांयी ओर की समस्या को मोमबत्ती की लौ द्वारा ठीक किया जा सकता है। अपने दांये हाथ को बच्चे की बांयी नाभि पर रखकर अपने बांये हाथ को मोमबत्ती की लौ पर रखें। समस्या खत्म हो जायेगी।(राहुरी 13.4.1986)

प्रश्नः गाय के दूध से एलर्जी और एक्जिमा के बिगड़ने के क्या कारण हैं।

 उत्तरः गाय का दूध बांयी नाड़ी की समस्याओं को जन्म देता है क्योंकि वह मां है। वैसे दूध चाहे गाय का हो या भैंस का, इनसे एलर्जी होती ही हैं। परंतु यदि अपने से छोटे जानवरों का दूध पियें जैसै महात्मा गांधी बकरी का दूध पिया करते थे तो आपको ऐसी समस्यायें नहीं हो सकतीं।(Rahuri Q&A 13/4/1986)


अधिकांश एलर्जी ठंडे गर्म से होती हैं अर्थात् पहले ठंडे पानी में और बाद में गरम पानी से नहाने से, पहले कौफी और बाद में तुरंत ठंडा पानी पीने से। इस प्रकार का तीव्र बदलाव शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाता। बांयी नाभि क्षेत्र में स्प्लीन होती है जो हमारे शरीर का स्पीडोमीटर और एडजस्टर होता है। यह तीव्र बदलाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता और समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं। अतः इसे अचानक अपनी ऊर्जा को लाल रक्त कणिकाओं के प्रवाह को कम या ज्यादा करने के लिये देना पड़ता है। यही कारण है कि स्प्लीन अपना नियंत्रण खो देती है। (Shivaratri 1987)


एल्ज़ाइमर रोग

 आजकल एल्ज़ाइमर एक नये प्रकार का रोग आ गया है। यह कैसे होता है। यदि कोई व्यक्ति अत्यंत गुस्सैल प्रवृत्ति का है और लोगों को परेशान करता है, तब बुढ़ापे में उसका मस्तिष्क कमजोर हो जाता है परंतु उसकी बुरी प्रवृत्ति (गुस्सा) कार्यरत् रहती है, लेकिन इस रोग से प्रभावित व्यक्ति को इसका पता ही नहीं चल पाता। इसका इलाज संभव है, यदि आप अपने आत्म सात्क्षात्कार को प्राप्त कर लें और पूर्णतः एक शांत व्यक्ति बन जांय तो यह रोग आपको छू भी नहीं सकता और नहीं आपको परेशान कर सकता है। आप एक शांत, सुंदर और प्रेममय व्यक्ति बन जाते हैं।(Talk at Royal Albert Hall, London, 5/7/98)


आर्टीकेरियाः

 आर्टीकेरिया मनोदैहिक रोग है। जब आपका लिवर शिथिल या लिथार्जिक हो जाता है तो यह अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। इसके इलाज के लिये गेरू का प्रयोग करें, इसे पत्थर पर रगड़ें और बच्चे को इसकी काफी कम मात्रा शहद के साथ मिलाकर दें। बड़ों को भी गेरू दिया जा सकता है। वृद्धों के लिये भी यह अच्छा है क्योंकि इसमें घुलनशील कैल्शियम होता है जो अत्यंत लाभकारी है। इसे रोग से प्रभावित स्थान पर लगाकर काले कपड़े से ढक दें। इस समस्या का स्त्रोत बांयी नाभि होता है। लिवर के शिथिल हो जाने से बांयी नाभि भी शिथिल हो जाती है। वह व्यक्ति अपनी ऊर्जा का ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाता। इसके लिये भी बांयी नाड़ी का उपचार करें। पूरे शरीर को काले कपड़े से ढकना सबसे ज्यादा लाभकारी है ताकि शरीर को गर्मी मिल सके। (Shivaratri 1987)


अस्थमा या दमाः

 ब्रोंकियल अस्थमा दांये और बांये दोनों प्रकार के ह्रदय की समस्याओं के कारण होता है। यदि माता पिता दोनों काफी झगड़ालू प्रवृत्ति के हों या उनका तलाक है चुका हो या फिर आपको माता पिता के प्रेम की सुरक्षा न मिली हो तो आपको ब्रोंकियल अस्थमा होने की संभावना होती है। (Rahuri Q&A 13/4/86)


अस्थमा अधिकांशतः बांयी ओर का मनोदैहिक रोग होता है। यह कभी कभी दांयी नाड़ी प्रधान लोगों को होता है जो स्वभाव से अत्यंत शुष्क होते हैं और लोगों पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास करते हैं। उनकी पेरीटोनियम झिल्ली अत्यंत शुष्क हो जाती है। कई बार यह उन लोगों को भी हो जाता है जिनके पिता या तो नहीं होते या वे स्वयं अच्छे पिता नहीं होते, या वे अपने बच्चों को परेशान करते हैं और वे स्वयं से परेशान रहते हैं। इनमें से किसी भी कारण ये रोग हो सकता है। (Shivaratri 1987)


 AlsoSee

 Chug, D.K., et al. (1989) ‘Role of Sahaja Yoga in the management of Bronchial Asthma and a new hypothesis to explain its pathogenesis.’ Proceedings of the XVI World Congress on Diseases of the Chest, Boston, USA

 Chug, D.K. (1997) ‘The effects of Sahaja Yoga in Bronchial Asthma and essential

 Hypertension.’ New Delhi Medicos 13(4-5):46-47; also in Sahaja Scholastica no.59

 Manocha, R., et al. (2002) ‘Sahaja Yoga in the management of moderate to severe asthma: a randomised controlled trial.’ Thorax v57:110-115

 Rai, U.C. (1993) ‘Role of Sahaja Yoga in the treatment of Bronchial Asthma.’ In his: Medical science enlightened, pp98-109


गंजापन


 गंजापन सिर में तेल न डालने के कारण या ठीक प्रकार का तेल न डालने के कारण होता है। तेल को सिर में भली प्रकार से लगाकर खोपड़ी की मालिश करें, सिर की त्वचा की नहीं। मालिश करते समय सिर की त्वचा को खोपड़ी पर घूमना चाहिये। ऐसा करने से आपको गंजेपन की समस्या नहीं होगी। सिर पर खुशबूदार तेल लगाने से भी गंजापन होता है। घी को सिर पर मालिश के लिये प्रयोग नहीं करना चाहिये।

 जैसा मैने आपको बताया कि गंजापन दो प्रकार का होता है। कुछ लोग सामने से या माथे से गंजे होते हैं और कुछ पीछे से गंजे होते हैं या कुछ लोग दोनों ही प्रकार से गंजे होते हैं। जो लोग सामने से या माथे से गंजे होते हैं, उनमें एकादश रूद्र की समस्या होती है या फिर वे सामूहिक नहीं होते तो उनके बाल सामने से गंजे होने लगते हैं। पीछे की ओर से गंजे होने वाले लोग अच्छे पति नहीं होते या उनकी पत्नियां अच्छी नहीं होती। यदि पति पत्नी के रिश्ते में दरार रहती है तब भी ये समस्या आ जाती है। यदि दोनों के बीच सामंजस्य नहीं रहता या एक दूसरे के प्रति अत्यंत प्रेम की भावना रहती है तब ये सभी कारण बांयी नाभि को दर्शाते हैं। बांयी नाभि गृहलक्ष्मी तत्व होता है जिसमें आप अपने पति या पत्नी के प्रति अत्यंत प्रेम रखते हैं कि वह गृहलक्ष्मी नहीं रह पाती। इसके अलावा भाग दौड़ वाला जीवन भी इसका कारण बन जाता है। आप जैसे यूरोपियन योगियों के मामले में मैं कहूंगी कि अपनी घोर उपेक्षा के कारण ऐसा होता है। क्योंकि आप लोग सिर में बिल्कुल भी तेल नहीं डालते। यदि आप किसी पौधे को पानी न दें तो वह पौधा मर जाता है अतः तेल से ही बालों की सुरक्षा होती है।. (Rahuri Q&A 13/4/86)


ब्लड प्रेशर

 ब्लड प्रेशर कम करने के लिये मां ने शांत रहना सबसे अच्छा बताया।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


कैंसर

 कैंसर के लिये सबसे अच्छा उपचार जल क्रिया है जैसै कि नदी, समुद्र या घर पर या मां के चित्र के सामने बैठकर जल में पैर डालकर बैठना । पानी का धर्म स्वच्छ करना है अतः जल क्रिया से श्री विष्णु और दत्तात्रेय जो मानव के धर्म के लिये उत्तरदायी हैं, की भी पूजा करनी चाहिये। ये आपके बाधित चक्र के देवता को भी प्रसन्न करके उस चक्र का उपचार भी करते हैं। रोगी को मां के चित्र के सामने बैठायें और रोगी के सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम से हाथों को क्रौस करते हुये पानी में डालें। धीरे धीरे रोगी को ठंडक का अनुभव होगा। यदि रोगी को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया हो तो वह ठीक हो सकता है।

(undated letter [1970s?] to Dr.Raul in Nirmala Yoga no.8)


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भयानक रोग जैसै कैंसर आदि के रोगी जिन्हें मैने ठीक किया है वे सबके सब झूठे गुरूओं और तांत्रिकों के शिष्य थे। अभी तक मुझे ऐसा कोई कैंसर का रोगी नहीं मिला जो झूठे गुरूओं और तांत्रिकों से संबंधित न हो। इसीलिये कहा जाता है कि डौक्टरों के पास कैंसर का उपचार नहीं है।

(lecture in Hindi, Delhi, 18/8/79, English translation in Nirmala Yoga no.17)


किसी भी व्यक्ति के कल्कि चक्र में पकड़ आने का अर्थ है कि वह कैंसर या कोढ़ जैसी भयावह बीमारी से ग्रसित है और उसे किसी भी समय भयानक आपदा का सामना करना पड़ सकता है। .

 (undated Talk on Shri Kalki, Nirmala Yoga no.12, 1982)


जब किसी व्यक्ति का विनाश प्रारंभ हो चुका हो उदा0 के लिये वह कैंसर रोग से ग्रसित हो गया हो तब अपने भवसागर के ऊपरी भाग में उसको स्पंदन महसूस होगा। इसका तार्किक अर्थ यह नहीं है कि यदि भवसागर में स्पंदन हो तो वहां कैंसर होगा ही। लेकिन यदि भवसागर में कैंसर है तो वहों पर धड़कन होती रहेगी। इसका अर्थ है कि जीवन बल इसको धकेलने का प्रयास कर रहा है।

(Ekadesha Ruda Puja, 17/9/83, Nirmala Yoga no.21)


एकादश रूद्र आपके मस्तक पर दिखायी देता है तो आपको उस स्थान पर सूजन जैसी दिखाई देती है। अधिकतर कैंसर के रोगियों में, यदि आप उन्हें ध्यान से देखें कि बांयी से दांयी ओर यह सूजन होती है, या दांयी ओर एक गूमड़ जैसा दिखाई देता है।

(Ekadesha Rudra Puja, Austria, 8/6/88)


आपको अपने पेट में वाणी सुनाई नहीं देती लेकिन आपको समस्यायें होने लगती हैं। खासकर कैंसर या अन्य किसी रोग में आपको समस्यायें होने लगती हैं और ये दिखाई भी देने लगती हैं। यदि समस्या है तो वहां पर स्पंदन होने लगता है। ये वाइब्रेशन परावाणी के कारण होते हैं जो बताते हैं कि वहां पर कुछ परेशानी है। इस परेशानी को आप देख भी सकते हैं कि वहां पर स्पंदन होने लगते हैं।.

 (Talk on 8th Day (Ashtmi) of Navaratri 1988; transcript in Talks during Navaratri, Pune 1988)


जीवन के दो चक्र होते हैं, बांया और दांया, जब ये मिलते हैं (जब एक पहलू दूसरे से अधिक सक्रिय हो जाता है) तब आपको मनोदैहिक रोग होने लगते हैं। यदि कुंडलिनी उठती है तब यह उन चक्रों को पोषित करती है। लेकिन यदि आप अपनी दांयी नाड़ी को अधिक प्रयोग करते हैं तो बांया भाग कमजोर हो जाता है और मेन से आपका कनेक्शन कट जाता है और कैंसर प्रारंभ हो जाता है। प्रारंभिक अवस्था में इसका इलाज संभव है न कि बाद की अवस्थाओं में। वैसे हमने कई बाद की अवस्था वाले रोगियों का इलाज भी किया है।

(New Delhi talk to doctors 6/4/97. Transcript in New Delhi Medicos

 13(4-5):32-34)


ब्लड कैंसर

 ब्लड कैंसर अत्यधिक गतिशीलता के कारण होता है। अतः हमें सावधान रहना होगा कि हमारी स्प्लीन ठीक रहे।

(2nd Sydney Talk, 27/3/81)


बांयी नाड़ी के क्षेत्र में स्प्लीन होती है। स्प्लीन स्पीडोमीटर और एडजस्टर है। जब यह एडजस्ट करती है और यदि यह एडजस्टमैंट ठीक से न हो तो आकस्मिक बदलाव के कारण समस्यायें होने लगती हैं। स्प्लीन को अपनी ऊर्जा अचानक लाल रक्त कोशिकाओं के प्रवाह को बढ़ाने या घटाने के लिये देनी पड़ती है। और इस प्रकार स्प्लीन अपना नियंत्रण खो बैठती है। जिन लोगों की दिनचर्या अत्यंत भागदौड़ भरी होती है, यह ब्लड कैंसर का मूल कारण होती है।

(Shivaratri 1987)


स्प्लीन आकस्मिकताओं के लिये लाल रक्त कणिकायें बनाती है। आधुनिक जीवन में हमेशा आकस्मिकतायें बनी रहती हैं। निरंतर मिलने वाले झटकों से स्प्लीन अपना नियंत्रण खो बैठती है और कैंसर के लिये संवेदनशील हो जाती है। ऐसे क्षण में जब बांयी ओर की बाधा आ जाती है तब ब्लड कैंसर हो जाता है।.

 (Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


ब्रेस्ट कैंसर

 भारतीय महिलाओं में पावित्र्य की भावना अत्यंत प्रबल होती है। उनको उनके पावित्र्य से कोई भी डिगा नहीं सकता। यदि उनकी पवित्रता खो जाती है तो तुरंत उनमें एक प्रकार का भय व्याप्त हो जाता है। पवित्रता ही उनकी ताकत है अतः जिन महिलाओं में उनके पावित्र्य को लेकर भय होता है उनका ह्रदय चक्र खराब हो जाता है, ऐसी महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर हो जाता है, सांस की बीमारी और भावनात्मक स्तर पर भी उन्हें अनेकों भयानक रोग हो जाते हैं।.

 (Talk on the Heart Chakra, Delhi, 1/2/83)


गले का कैंसर

 यदि आप अत्यंत अधिक धूम्रपान करते हैं तो विष्णुमाया क्रोधित हो जाती हैं और उनके क्रोध के कारण गले का कैंसर हो जाता है। वह आपका गला खराब कर देती हैं। धूम्रपान से कई प्रकार की नाक, गले व कान की समस्यायें हो जाती हैं क्योंकि उन्हें धूम्रपान पसंद नहीं है। आप गले के कैंसर के लिये काफी संवेदनशील हो जाते हैं।

(Shri Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


दूसरी बात जो लोगों को मालूम नहीं है वह है मंत्र......श्री विष्णुमाया मंत्रिका हैं, वह मंत्रों को शक्ति देती हैं। यदि आप इस दैवीय शक्ति से जुड़े नहीं हैं तो शौर्ट सर्किट हो जाता है। यदि फिर भी आप इन मंत्रों को जपते चले जाते हैं तब आपको गले से संबंधित कई परेशानियां हो जाती हैं जैसै गले का कैंसर। आपको पेट की भी कई परेशानियां हो जाती हैं क्योंकि विष्णु और कृष्ण एक ही हैं, आपको विराट से संबंधित समस्यायें भी हो सकती हैं।.

 (Shri Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


 See also comments under epilepsy: “This treatment is also the same for cancer and other psychosomatic diseases” (Shivaratri 1987)


 [See also: Rai, U.C. (1993) ‘Sahaja Yoga for the treatment and prevention of

 Cancer.’ In his: Medical science enlightened (New Delhi: Life Eternal Trust):166-

174]


सिरोसिस (लिवर भी देखें)

सिरोसिस बांयी ओर की बाधा है जो शिथिल लिवर के कारण होती है और आपको एलर्जी भी होने लगती हैं। सिरोसिस के लिये बांया हाथ मां के चित्र की ओर रखें और दांया हाथ धरती मां पर रखें। पेट पर गरम पानी की बोतल रखें(सिंकाई वाली)। अपने लिवर को प्रकाश या मोमबत्ती से बंधन भी दे सकते हैं।

(Rahuri Q&A 13/4/86)


कब्ज़

 ऐसे सभी लोगों (दांयी नाड़ी प्रधान) के अंग अत्यंत सक्रिय होते हैं। अत्यंत सक्रिय अंगों के कारण उनका ह्रदय काफी खराब हो जाता है और सक्रिय भी। ऐसे ह्रदय में खून का संचार भी तेज होता है और धड़कन भी बढ़ जाती हैं। उनके फेफड़ों में अस्थमा हो जाता है और आंतों में कब्ज़ की शिकायत हो जाती है। उनका लिवर खराब हो जाता है और उनकी त्वचा भी काफी खराब व रूखी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति झगड़ालू और उग्र हो जाते हैं।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


लिवर की गर्मी से कई बार फेफड़े खराब (पिचक) हो जाते हैं जिससे अस्थमा हो जाता है। जब लिवर को अच्छा पोषण नहीं मिलता तो वह अत्यंत सक्रिय हो जाता है। आंतों के सूखने के कारण कब्ज़ हो जाता है। (Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


यदि आपको कब्ज़ की शिकायत है तो अखबार पढ़ें (जिसमें भयावह खबरें होती हैं।) यह बड़ा ही आसान काम है। मैंने कई लोगों को ठीक किया है, वे कहते हैं कि हमें कब्ज़ है, मैं उनको कहती हूं कि सुबह सवेरे अखबार पढ़ो।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


कब्ज़ दूर करने के लिये भारत में कई तरीके हैं जैसै हम अज़वाइन का चूर्ण काले द्राक्ष या अंगूर (मुनक्का) के साथ, खुबानी के साथ संतरे का रस या रात को गर्म दूध लेते हैं।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


रोग एवं उनके सहज उपचार (भाग 2)

डायबिटीज

 डायबिटीज दांयी नाड़ी की क्रिया है जो बांयी नाड़ी के कारण होती है। दांयी नाड़ी संवेदनशील हो जाती है। पहले तो जब हम अत्यंत अधिक सोचने लगते हैं, स्वयं पर ध्यान नहीं देते और अपनी आदतों को नहीं बदलते, तब एक प्रकार की भय की भावना आपकी संवेदनशीलता को और बढ़ा देती है। जैसे कोई परिश्रमी व्यक्ति जब बहुत अधिक सोचता है तो उसकी फैट या वसा कोशिकाएं, उसके मस्तिष्क के लिये प्रयोग होने लगती हैं। उसकी बांयी नाड़ी कमजोर हो जाती है। यदि इसके साथ साथ आपके अंदर किसी प्रकार का भय भी आ जाता है और उसमें दोष भावना भी आने लगती है, तो उस व्यक्ति को डायबिटीज रोग हो जाता है। इस रोग को ठीक करने के लिये हजरत अली का मंत्र पढें। इसका स्त्रोत बांया स्वाधिष्ठान व बांयी नाभि है। पहले बांयी नाभि, पति या पत्नी के भय के कारण या उनके या अन्य किसी परिवार के सदस्य के प्रति चिंता के कारण प्रभावित होती है और आपकी संवेदनशीलता के कारण आप डायबिटीज से ग्रसित हो जाते हैं। इसको अपने आज्ञा को साफ करके स्वच्छ करें। ज्यादा न सोचें, निर्विचार समाधि में जांये, बांये को दांये पर गिरायें। नमक की मात्रा खाना में बढ़ा दें ताकि यह उत्सर्जन में चीनी के प्रभाव को कम कर दे। नमक में वौटर औफ क्रिस्टिलाइजेशन होता है। दांये स्वाधिष्ठान व दांयी नाभि पर बर्फ का पैक रखें। यदि आवश्यक हो तो उचित परीक्षणों के बाद भोजन में चीनी का मात्रा कम कर दें।

(Shivaratri 1987)


देखिये मैने आपको बताया था कि खून में चीनी का स्तर डायबिटीज के कारण बढ़ जाता है न कि चीनी के कारण। ऐसा डायबिटीज के कारण होता है और डायबिटीज अधिक सोचने के कारण होती है।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


अत्यधिक सोचने के कारण हमारी आंखों में स्वाधिष्ठान चक्र के अनियंत्रित होने के कारण समस्या हो जाती है। स्वाधिष्ठान चक्र हमारे सिर के पीछे की ओर स्थित है जो बैक आज्ञा के चारों ओर होता है। अतः जब आपको डायबिटीज हो जाती है तो आपने देखा होगा कि कई डायबिटिक लोग अंधे हो जाते हैं। अतः सबसे पहले अपनी डायबिटीज को स्वाधिष्ठान के माध्यम से ठीक करें, आप अपने सिर के पिछले भाग में बर्फ रख सकते हैं, यदि यह स्वाधिष्ठान के कारण प्रभावित है तो आपको पानी (बर्फ) का प्रयोग करना पड़ेगा। परंतु यदि यह बाधा के कारण है तो आपको प्रकाश का प्रयोग करना पड़ेगा। हम आज्ञा चक्र को इसी प्रकार से ठीक करते हैं।(Talk on the Agnya Chakra, Delhi 3/2/83, Nirmala Yoga no.18)


यदि कोई गर्भवती स्त्री बहुत ज्यादा सोचती है तो उसके बच्चे को भी डायबिटीज हो सकती है।

(Address to Medical Conference, Moscow, June 1990)


डायरिया

 बांयी नाड़ी प्रधान लोग प्रोटीन की दृष्टि से अत्यंत असंतुलित भोजन खाते हैं। प्रोटीन की कमी के कारण वे इतने कमजोर हो जाते हैं कि उनकी मांसपेशियां भी कमजोर व शिथिल पड़ जाती हैं। आप देखेंगे कि ऐसे लोगों को कमजोर मांसपेशियों के कारण जुकाम व डायरिया हो जाता है। जो भी खाना वे खाते हैं वह डायरिया के रूप में बाहर निकल जाता है।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


जो लोग सुषुम्ना नाड़ी या मध्य नाड़ी पर होते हैं वे प्रारंभ में यदि वे किसी के धर पर भोजन करते हैं तो वे उस भोजन को पचा नहीं पाते, या तो वे उल्टी कर देते हैं या फिर उन्हें डायरिया हो जाता है। यदि वे किसी ऐसे घर पर भोजन करते हैं जहां पर उन्हें नहीं खाना चाहिये या उनका भोजन ठीक प्रकार से वाइब्रेट न किया गया हो, वे उस भोजन को खा नहीं सकते। यदि खा भी लिया तो तुरंत उन्हें उल्टी हो जायेगी।

(Sickness and its cure, New Delhi, 9/2/83, Nirmala Yoga no.25)


यदि किसी बच्चे को डायरिया हो गया हो तो सौंफ और पुदीने को उबालकर रख लें और इसमें थोड़ी चीनी या गुड़ मिला लें। बच्चे को दिन में दो तीन बार दें, बच्चा ठीक हो जायेगा।

(Talk to Mothers and Babies, 1983)


ड्रग्स

 यदि आप भांग या किसी मादक पदार्थ का सेवन करते हैं तब आप इड़ा नाड़ी पर खींच लिये जाते हैं और कुछ समय के लिये आपका अहंकार पीछे की ओर धकेल दिया जाता है। सभी प्रकार की ड्रग्स आपको आपकी चेतना से दूर ले जाती हैं। मादक पदार्थ लेने वालों के साथ मेरा अनुभव काफी दुखद है। जो इसमें आये उन्होंने काफी धीमी गति से प्रगति की। वे बांयी ओर के आक्रमणों के लिये काफी कमजोर और संवेदनशील थे। ड्रग्स लेने वालों के लिये मैं काफी दुखी हूं, उन्हें चुनौती स्वीकार करने के लिये अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग करना पड़ेगा और मादक पदार्थों के लिये अपनी दासता या गुलामी को त्यागना पड़ेगा।

(Letter to Jeremy, 1982, printed in Nirmala Yoga no.12)


ड्रग्स आपकी बांयी नाभि को प्रभावित करती हैं या दांयी नाड़ी को भी। जो आपकी बांयी नाड़ी को प्रभावित करती हैं वे आपको काफी दूर अंधकार में ले जाती हैं। कई बार आप काफी उग्र हो जाते हैं, जब कि आपने बांयी नाड़ी प्रधान ड्रग ली होती है। यह काफी आश्चर्यजनक है, ड्रग लेने वाले व्यक्ति को कुछ भी हो सकता है, आपको आश्चर्य होगा कि वह पागल भी हो सकता है।

(Advice on the treatment of virus infections, Pune, 1/12/87)


तंबाकू

 हमारी उत्क्रांति के समय कई पौधे व जानवर नष्ट हो गये क्योंकि वे मध्य में नहीं थे..... अतः वे सामूहिक अवचेतन में चले गये और उत्थान करने वाले लोगों को हानि पंहुचाने के लिये सूक्ष्म जीवों के रूप में वापस आ गये। जैसे आजकल वाइरस के आक्रमण काफी होते हैं। ये वे पौधे हैं जो सर्कुलेशन से बाहर चले गये थे। कुछ समय बाद आप देखेंगे कि तंबाकू और कई अन्य ड्रग्स सर्कुलेशन से बाहर चले गये हैं।

(Ekadesha Rudra Puja, Austria, 8/6/88)


यदि आप सिगरेट पीते हैं तो विष्णुमाया क्रोघित हो जाती हैं। वही कैंसर का कारण बनती हैं। वह आपका गला खराब कर देती हैं। सिगरेट पीने से गले, नाक व कान की कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं क्योंकि उन्हें सिगरेट पीना अच्छा नहीं लगता। सिगरेट से गले के कैंसर के प्रति आप काफी संवेदनशील हो जाते हैं।

Vishnumaya Puja, New York, 19/7/92)


एल्कोहल या शराब

 विश्व के सभी संतों ने शराब को स्वास्थ्य के लिये हानिकारक बताया है क्योंकि यह आपकी चेतना के विरोध में जाती है। यह सत्य है कि शराब पीने के बाद हमारी चेतना धुंधली और उत्तेजित हो जाती है। यह सामान्य नहीं रह पाती। यही कारण है कि संतों ने इसका सेवन करने से मना किया था।

(2nd Sydney Talk 27/3/81)


आपके ऊपर आपकी मां का अनिवार्य बंधन कार्य करता है। यदि आप शराब पीते हैं तो आप उल्टी कर देंगे।

(Nirmala Yoga no.12, p25)

जैसा आप सभी जानते हैं कि एल्कोहल कई प्रकार का होता है। यह इसलिये खराब है कि यह आपके लिवर को और आपकी चेतना को चौपट या नष्ट कर देता है। यह आपको फूहड़ भी बना देता है, आपका चित्त धुंधला हो जाता है। शराब आपको धर्म से भी दूर ले जाती है।

(Advice on the treatment of virus infections, Pune, 1/12/87)


शराब हमारे आत्मसाक्षात्कार की सबसे बड़ी दुश्मन है। जो लोग शराब पीते हैं वे उसके गुलाम बन जाते हैं, उनका मस्तिष्क खराब हो जाता है। मैं समझती हूं उनका सहस्त्रार भी शराब के कारण खराब हो जाता है। शराब उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है।

(Sahasrara Puja 2001)


एक्ज़िमा

 एक्ज़िमा भी एलर्जी की ही तरह है। चूंकि यह बाह्य रोग है अतः आप इस पर नीम का पत्ता लगा सकते हैं।

(Rahuri Q&A 13/4/86)


 EGO see Paralysis


चक्र, एंडोक्राइन ग्लैंड या अंतःस्त्रावी ग्रंथियों को भी नियंत्रित करते हैं। उदा0 के लिये मूलाधार चक्र प्रोस्ट्रेट ग्लैंड को नियंत्रित करता है। आज्ञा चक्र भी पीनियल और पिट्यूटरी दोनों ग्लैंड्स को नियंत्रित करता है। यह ईगो और सुपरईगो को भी नियंत्रित करता है।

[Delhi?], 22/3/77. Printed in The Life Eternal 1980)


मिरगी

 मिरगी का कारण चित्त का अत्यंत बांयी ओर सामूहिक अवचेतन में चले जाना है। अपने बांयी ओर के कमजोर व्यक्तित्व के कारण जब आप भयभीत हो जाते हैं या किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं तो अचानक लगे इस धक्के के कारण भी आपको यह रोग हो सकता है। इसको ठीक करने के लिये चित्त को एकदम बांयी ओर ले जांय, इसके लिये गायत्री मंत्र पढ़ते हुये चित्त को पहले दांयी ओर लायें, फिर ब्रह्मदेव सरस्वती का मंत्र पढ़ते हुये चित्त को मध्य में लायें। दांयी ओर को जाते हुये आपको वाइब्रेशन्स का अनुभव होगा। इस बिंदु पर रूक जांय और गायत्री मंत्र पढ़ना बंद कर दें, अन्यथा आप काफी दांयी ओर चले जायेंगे। अधिक दांयी ओर जाने का अर्थ है वाइब्रेशन का कम हो जाना। एक ओर से दूसरी ओर जाने के लिये एक प्रकार का सामंजस्य चाहिये। यह महत्वपूर्ण है कि आप वाइब्रेशन्स का अनुभव करें। यदि ऐसा नहीं है तो कुंडलिनी को लगातार तब तक उठाते रहें जब तक आपको वाइब्रेशन का अनुभव नहीं होता। दूसरा अच्छा तरीका है कि आप अपने बांये हाथ को मां के चित्र की ओर रखें और दांये हाथ को धरती पर रखें। महाकाली का मंत्र पढ़ें ताकि वाइब्रेशन का प्रवाह होने लगे। मोमबत्ती को सिर के पिछले भाग में घुमांयें, इससे भी फायदा होगा।

(Shivaratri 1987)

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