Wednesday, September 30, 2020

Importance of early morning daily meditation - Hindi Article

 ब्रम्ह मूहूर्त मे ध्यान करने का महत्व. 

Importance of daily meditation...


ब्रह्म मुहूर्त में निर्विचरिता बनाये रखने के लिए श्री माँ ने बताया है कि जैसे हो वैसे ही बैठे, बंधन तक लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि कहीं हमारी ब्रम्हमुहूर्त की निर्विचरिता खत्म ना हो जाए और निर्विकप्ल समाधि में कोई खलल ना हो। समाधि लगाने का सही समय यहीं होता है।

श्री माताजी के सामने दीया जलाए, ध्यान कि स्थिति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपना राईट हेंड लेफ्ट साइड के हृदय पर रखिये श्री माँ को हृदय में देखिये दो मिनट तीन मिनट के लिए हृदय पर हाथ रख कर श्री माँ को हृदय में बुलाये फिर वहीं हाथ अपने सामने की आज्ञा चक्र पर रखे और श्री निर्विचरिता साक्षात का मंत्र लिजिए।

अब वहीं राइट हेंड हमें सहस्त्रार पर रखकर धीरे धीरे घुमाना है, हाथ का सहस्त्रार तालु के सहस्त्रार चक्र पर रखे, अब अपना हाथ धीरे से श्री माँ की ओर करें और ध्यान लगाएं मन में कोई विचार ना आने दें, अगर कोई विचार आता है, विचार थम नहीं रहे है तो पांच मिनिट तक श्री माँ की प्रतीमा की ओर देखीये फिर ध्यान कीजिए .


 ध्यान (Meditation)


अपनी ऑंखें बंद करो। अपने दोनों हाथ मेरे पास रख दो। सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं। बस आपका ध्यान सहस्त्रार पर है। आप अभी-अभी मेरे सहस्त्रार में हैं। अपना ध्यान अपने सहस्त्रार पर लगाएं। कोई विचार नहीं है। कुछ भी तो नहीं। बस अपने सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं और बस उस बिंदु तक उठें। इसके बारे में कोई नाटक नहीं है। कुछ भी कृत्रिम नहीं है। यह बोध है।

सभी कमजोरियों को पीछे छोड़ दिया जाना है। आइए हम गरिमा और शांति के साथ मजबूत मूल्यों के मजबूत लोग बनें। मौन परम आंतरिक मौन। कोई भी विचार आने वाला कहता है, "यह नहीं, यह नहीं।"


परमपुज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी

बोर्डी

6 फरवरी 1985


यह ध्यान समुद्र के किनारे पर स्वयं श्री माताजी ने कराया है ।श्री माताजी ध्यान मुद्रा मे बैठी है और ध्यान करा रही है .....।

Thursday, September 17, 2020

Take Sahaja Yoga Seriously - Hindi Article

 आप सब परमात्मा के साम्राज्य के अधिकारी हैं तो फिर आप क्यों परेशान हैं, आप रो क्यों रहे हैं ? इस साम्राज्य के सारे देवी-देवता आपके बड़े भाई और बहन हैं। उन सभी को कुंडलिनी के मार्ग पर कई रूपों में बिठा दिया गया है। आपको उन्हें पहचानना है और उनको प्राप्त करना है।


 कुंडलिनी आपकी माँ है। सदैव उनकी छत्रछाया में रहें, उनके प्रेम की छाँव तले रहें, उनके बच्चे बनें और वही आपको उस सर्वोच्च परमपिता परमात्मा तक ले जायेंगी। एक बार जब आप ये प्राप्त कर लेंगे, जहाँ से सारी चीजें उत्पन्न हुई हैं तो बाकी सारी चीजें स्वयं ही आसान हो जायेंगी*।


*लेकिन आप लगातार ध्यान नहीं करते हैं, प्रेम और शांतिपूर्वक नहीं रह पाते हैं, आपकी बातचीत में गंभीरता नहीं है, यहाँ तक कि मुझसे बात करते समय भी आप गंभीर नहीं हैं। लेकिन सांसारिक वस्तुओं के लिये आप कितने लालायित हैं। 


जब आपको किसी चीज की इच्छा होती है तो आप उसको प्राप्त करने के लिये कितनी जिद्दी हो उठते हैं। क्यों नहीं इन चीजों को भी आप हल्के में लेते हैं। वास्तविकता से दूर न भागें, क्योंकि मैं महामाया हूँ। 


मुझको प्राप्त करने का प्रयास करें। मैं आपकी माँ हूँ, मैं आपके लिये ही हूँ। मैंने आप लोगों को वह दिया है जो महान से महान साधु और संतों को भी प्राप्त नहीं था। आपको एक महान संपत्ति दे दी गई है। आप इसका उपयोग किस प्रकार से करेंगे? इस संपत्ति की मात्र एक लहर से हजारों और करोड़ों सितारों और ग्रहों को सृजन किया गया है। आपके पुनर्जन्म का महत्व बहुत अधिक है*।


(परम् पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी)

(निर्मला योग, 15-1, मई-जून 1983)

Saturday, September 12, 2020

The Power of Women - Hindi Article

 महिलाओं की शक्ति का उपयोग 

           "आपको समझना चाहिए कि महिलाएँ अपने अंदर अपनी सारी शक्ति को बनाकर रख सकती हैं। लेकिन अगर वह अपनी शक्तियों को लड़ने, बहस करने, शिकायत करने या तुच्छ चीजों में बर्बाद करती है तो उसकी शक्ति चली जाएगी। महिलाएं इतनी शक्तिशाली हैं कि वह चाहे तो पुरुषों के लिए अधिक काम कर सकती हैं, लेकिन सबसे पहले उसे अपनी शक्तियों का सम्मान करना चाहिए। शक्ति को बिखरने और बर्बाद करने से वह शक्तिहीन हो जाती है।

 इस तरह की महिलाएं अच्छी नहीं होती है। महिलाओं का काम बहुत महत्वपूर्ण और गरिमा से भरा है। महिलाओं को बहुत विनम्र और बहुत बुद्धिमान होना चाहिए।*   पुरुषों को बुरे शब्दों का उपयोग करने दें, लेकिन महिलाएं नहीं कर सकती हैं। पुरुष बहस कर सकते हैं और लड़ सकते है, लेकिन महिलाऐं नहीं। उनका काम शांति, सुरक्षा और लोगों की मदद करना है। वह ढाल  होती है तलवार की तरह नहीं। और तलवार ढाल नहीं हो सकती। 

ढाल तलवार से बड़ी होती है, क्योंकि ढाल तलवार को सहन कर सकती है। तलवार को तोड़ा जा सकता है लेकिन ढाल को नहीं। तो महिलाओं की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति विनम्रता है। विनम्रता के साथ सभी शक्तियां आती हैं। ” 



 परमपूज्य श्री माताजी,    

कलकत्ता, 25/03/1991 

Tuesday, September 8, 2020

Be humble in order to reach spiritual heights - Hindi Article

 अगर आप सभी साथ रहकर विनम्र होकर एकाग्रचित्त से सहजयोग किया तो दैवीय कार्य होंगे


         " चित्त एकाग्र होगा केवल आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति से, परन्तु जन्म से आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति को भी इसके लिए पुरुषार्थ करना होगा। आपका चित्त इतना चंचल है कि वह कुछ भी एकाग्र होकर नहीं करता। मुझे लगता है यह सबसे बड़ी समस्या है। यही कारण है कि गुरू की भी खरीददारी हो रही है। हम भी केन्द्रीत तरीके से सहजयोग नहीं कर पा रहे हैं। चित्त अस्थायी हो रहा है और सभी में फैल जाता है जो किसी भी गहराई या ऊंचाई तक नहीं पहुँच पा रहा है। अगर आप सभी साथ रहे तो कार्य होगा। तो चित्त एकाग्र करने के लिए कचरा खाली करें आपके अन्दर बहुत सुन्दरता है उसे स्थिर होने दें•••• आपको गर्व करना चाहिए उक्त स्वभाव से यह सौन्दर्य आ जायेगा। और आपके अन्दर एक झील की लहर सी महसूस होगी, भगवान का आनन्द आप अपने में महसूस कर सकेंगे••• कोई भी मानसिक गतिविधि ऐसा महसूस नहीं करा सकती, बुद्धि के माध्यम से आप भगवान तक नहीं पहुँच सकते।

जो लोग धन्य हुए हैं उनको दिलों से विनम्र होना होगा, यह बिलकुल सत्य है कि हमारे दिलों में विनम्रता हो ताकि यह कार्य कर सके••••• और हमारा ध्यान स्थिर कर सके••••


क्या मैं बहुत अपेक्षा कर रही हूँ? आप एक बच्चे के रूप में बहुत विनम्र दिल के साथ पैदा हुए, केवल इस जन्म में ही यह सब थोड़ा सा कचरा जमा कर लिया है। पिछले जन्म में आप इससे परे थे। केवल इसी जन्म में आपने थोड़ी सी सीमा पार कर दी है। इसे दूर करना मुश्किल नहीं है।


तो केवल अपने दिलों में विनम्रता रखें और यह कार्य करेगा। हर बार जब आपकी कुण्डलिनी उठे, हर बार जब आपको अनुभव प्राप्त हो, इसे आप अपनी स्मृति और चित्त में रखें और इसे बाहर काम करने दें••• अपने दोषों पर चित्त बिलकुल नहीं रखें••••


जब आप पहाड़ या पहाड़ी की चोटी पर चढ़ाई करते हैं तो आप कितनी बार गड्डे में गिरे हैं याद नहीं रखते और पहाड़ की चोटी पर पहुंचने पर वातावरण का आनन्द लेते हैं। तुम्हारे भीतर इसे एक मजबूत स्मृति बनाओ और इसे याद रखने का प्रयास करो, कुछ लोगों के लिए यह मुश्किल है। अपनी पुरानी समस्याओं के कारण वह बार-बार नीचे आते हैं फिर ऊपर आते हैं। क्योंकि उनकी कुण्डलिनी नीचे आती है। लेकिन सहजयोग में सभी व्यवस्था है। यह मानसिक गतिविधि से नहीं परन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति से कार्य करेगी, और इसलिए मैं यह कह रही हूँ कि (दाय विल बी डन) आपकी इच्छा पूर्ण होगी इसे शुरू से स्वीकार करें यह आपकी उन्नति के लिए कठोर आधार है।"

* प0पू0श्री माताजी, 26.6.1978, कैक्सटन हाॅल *

Monday, September 7, 2020

Do not be shy of spreading Sahaja Yoga

 इस जीवन में आपने सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया है और इसी जीवन में आपने उन्नत होकर उच्चतम अवस्था प्राप्त करनी है।अतः समय बहुत कम है और पृष्ठभूमि अन्धकारमय।

आप ऐसे लोगों से घिरे हुए है जो सुबह और शाम तक विनाशकारी धारणाएं (विचार) प्रवाहित करते रहते है।अब आप लोगों को उन सब की अपेक्षा तेजी से आगे बढ़ना है।यद्यपि आप जानते है कि आपकी चेतना उनसे भिन्न है फिर भी एक प्रकार का आलस्य है जो सहजयोग को वैसे स्वीकार नही करने देता जैसे किया जाना चाहिए।आप सब लोग प्रतिदिन  अवश्य सोचें कि मैंने सहजयोग के  लिए क्या किया।परन्तु आप तो अब भी अपनी नौकरियां,धनार्जन,लोगोंसे सम्बन्धों आदि उन कार्यों  में व्यस्त है जिसका सहजयोग में कोई महत्व नही है।

पूरी शक्ति से प्रयास करके हमें उस अवस्था तक उठना होगा की जो कुछ हम जानते है,जिसे हमे पूरा विश्वास है,उसी के अनुरूप कार्य करके उससे एकरूप होना है।..........सूक्ष्म स्वतन्त्रता के लिए सहजयोगियों को हर सम्भव प्रयास करना होगा।

  पहली चीज है महसूस करना,चेतन होना,हर समय जागरूक होना कि आप योगी है।आप लोग बाकी लोगों से बहुत ऊँचे है।मानव मात्र का उद्धार आप पर निर्भर है।सृजन का उद्देश आप ही पूरा करेंगे।

   "आपको कार्य करना होगा,हर अंगुली को कार्य करना होगा।मै यही बता रही हूँ कि अब ये देखना हमारी जिम्मेदारी है की स्वयं सहजयोगी बनने के साथ साथ और भी बड़ी संख्या में सहजयोगी बनाएं।ये बसंत का समय है।"

   ये आदिशक्ति का कार्य है।ये बात समझने का प्रयास करे।किसी अवतरण का कार्य नही है।किसी  संत का कार्य नही है। ये आदिशक्ति का कार्य है जो आप में स्पष्ठ परिणाम (प्रभाव) दिखा रहा है।

   "मेरे लिए सबसे महान कार्य जो आप कर सकते है,वो है सहजयोग को फैलाना"ये अति विशिष्ट,बहुत ही कठिनाई से प्राप्त  होने वाला  आशीर्वाद आपको प्राप्त हुवा है।

      ........आज विश्व की सबसे बड़ी आवश्यकता है की हम आधिक से आधिक सहजयोगी बनाये।परन्तु यह कार्य करने में लोगोंको शर्म आती है।अत्यंत हैरानी की बात है।अत्यंत हैरानी की बात है।परन्तु अगुरुओं के शिष्य अपने असत्य विचारों का प्रसार करने में संकोच नही करते।तो सहजयोगियों को क्यों संकोच करना चाहिए?उन्हें क्यों शर्म आनी चाहिए? ये बात मेरी समझ में नही आती।इसके विषय में सब को बताएं और उन्हें सहजयोगी बनाये।

   (परमपूज्य श्री माताजी,कबेला-21.07.2002)

Use natural things as much as possible

 प्राकृतिक वस्तुएँ परेशानी को सोख लेती है


     ...... प्लास्टिक पर बैठकर ध्यान करेगें तो इससे नकारात्मकता दूर नही होगी। ध्यान जमीन पर (पृथ्वी तत्व) पर बैठकर करे तो अधिक लाभ मिलता है क्योंकि जिस तरह मैं आपकी नकारात्मकताओं को सोख (खिंच) लेती हूँ उसी तरह धरती माँ भी आपकी नकारात्मकताओं को अपने में खींच लेती है जिससे बिना किसी परेशानी के आप आसानी से समस्याओं से छुटकारा पा लेते हो। तो अगर आप जमीन पर नही बैठ सकते, तब आप या तो पत्थर ले सकते है जिस पर आप बैठ सके या मार्बल और कुछ भी जो प्राकृतिक हो, जिस पर आप बैठ सकते हो ।

परन्तु आप यदि प्लास्टिक पर बैठते है और ध्यान करते है, तो मुझे पता नही कि वह कैसे आपकी मदद  करेगा ?इसलिए मैं आपसे  निवेदन करती हूं कि हमेशा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करे, क्योंकि प्राकृतिक वस्तुएँ आपकी परेशानी को अच्छे से सोख सकती है ।


परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी, 

श्रीआदिशक्ति पूजा, मई 1997

Worship of Shri Ganesh Keeps you centered and balanced

 आपको सहजयोग में केवल एक ही चीज मध्य में रखती है और वह है श्रीगणेश जी की पूजा


यदि हम श्रीगणेश की पूजा करना चाहते हैं तो हमें सोचना चाहिये कि क्या हम सचमुच ही अबोध और निष्कलंक हैं। आजकल लोग अत्यंत चालाक और मक्कार हो गये हैं और मक्कारी के मामले में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे सरल और मासूम लोगों के साथ अनेकों मक्कारी भरे खेल खेलते हैं। वे सोचते हैं कि इस आधुनिक समय में हमेशा वे ही सही हैं और बाकी लोग अत्यंत शातिर और धूर्त हैं।

 उदाहरण के लिये आजकल आप सभी का जीवन काफी व्यस्त हो गया है। आप सभी अपने कार्यों में अत्यंत व्यस्त हैं और मैं कहूंगी कि आप सभी सामान्य से अधिक कार्य करते हैं। लेकिन ये कार्य करते हुये आपको लगता है जैसे कि आप परमात्मा का ही कार्य कर रहे हैं।

 इसके परिणामस्वरूप श्रीगणेश जी की अनदेखी होने लगती हैं और ऐसा व्यक्ति अत्यंत रूखे स्वभाव वाला और स्वयं मे लिप्त या इनमें से एक गुण वाला व्यक्ति बन जाता है। उसे पता ही नहीं चल पाता कि वह जा कहाँ रहा है। आपको सहजयोग में केवल एक ही चीज मध्य में रखती है और वह है श्रीगणेश जी की पूजा जिससे आप सदैव मध्य में बने रहते हैं।



परमपुज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी

कबेला, इटली 1999

Brahma Muhurt Dhyan - Early Morning Meditation

 

 ब्रम्ह मूहूर्तब्रम्ह मूहूर्त मे ध्यान करने का महत्व. 

Importance of daily meditation...


ब्रह्म मुहूर्त में निर्विचरिता बनाये रखने के लिए श्री माँ ने बताया है कि जैसे हो वैसे ही बैठे, बंधन तक लेना जरूरी नहीं है, क्योंकि कहीं हमारी ब्रम्हमुहूर्त की निर्विचरिता खत्म ना हो जाए और निर्विकप्ल समाधि में कोई खलल ना हो। समाधि लगाने का सही समय यहीं होता है।


श्री माताजी के सामने दीया जलाए, ध्यान कि स्थिति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपना राईट हेंड लेफ्ट साइड के हृदय पर रखिये श्री माँ को हृदय में देखिये दो मिनट तीन मिनट के लिए हृदय पर हाथ रख कर श्री माँ को हृदय में बुलाये फिर वहीं हाथ अपने सामने की आज्ञा चक्र पर रखे और श्री निर्विचरिता साक्षात का मंत्र लिजिए।


अब वहीं राइट हेंड हमें सहस्त्रार पर रखकर धीरे धीरे घुमाना है, हाथ का सहस्त्रार तालु के सहस्त्रार चक्र पर रखे, अब अपना हाथ धीरे से श्री माँ की ओर करें और ध्यान लगाएं मन में कोई विचार ना आने दें, अगर कोई विचार आता है, विचार थम नहीं रहे है तो पांच मिनिट तक श्री माँ की प्रतीमा की ओर देखीये फिर ध्यान कीजिए .


 ध्यान (Meditation)


अपनी ऑंखें बंद करो। अपने दोनों हाथ मेरे पास रख दो। सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं। बस आपका ध्यान सहस्त्रार पर है। आप अभी-अभी मेरे सहस्त्रार में हैं। अपना ध्यान अपने सहस्त्रार पर लगाएं। कोई विचार नहीं है। कुछ भी तो नहीं। बस अपने सहस्त्रार पर अपना ध्यान लगाएं और बस उस बिंदु तक उठें। इसके बारे में कोई नाटक नहीं है। कुछ भी कृत्रिम नहीं है। यह बोध है।


सभी कमजोरियों को पीछे छोड़ दिया जाना है। आइए हम गरिमा और शांति के साथ मजबूत मूल्यों के मजबूत लोग बनें। मौन परम आंतरिक मौन। कोई भी विचार आने वाला कहता है, "यह नहीं, यह नहीं।"


परमपुज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी

बोर्डी
6 फरवरी 1985


यह ध्यान समुद्र के किनारे पर स्वयं श्री माताजी ने कराया है ।श्री माताजी ध्यान मुद्रा मे बैठी है और ध्यान करा रही है .....।