Friday, November 27, 2020

How can one be both thoughtless and aware at the same time?

 How can one be both thoughtless and aware at the same time?


The term ‘Nirvichaarita’ in Hindi is better understood than its English version we use often – ‘thoughtless awareness’ – sounds like an oxymoron combination.


The meaning is simple – empty you cup so that it can be filled with divine wisdom.

Our minds are restless – we have incessant thought pouring in from everywhere – from the past, present, future and even non-existent corners of the universe – a space created by our own minds! 


Once we are able to stop these frivolous thoughts based on our miniscule understanding of this world, our habits, experiences and conditionings…we can delve deeper into the bliss of divine nectar. For that we need to practice ‘nirvicharita’ or ‘thoughtless awareness’ which is brought about through authentic meditation with the grace of a true spiritual master or SadhGuru. For us Sahaja yogis, Shri Mataji Nirmala Devi is the guru who blessed us with the divine wisdom in the form of Sahaja Yoga.





Friday, November 20, 2020

Get rid of dualism - That is your goal - Sahaja Yoga Hindi Article

 द्वैतवाद से मुक्ति आपकी मंजिल है।


"लोग पूछेंगे,"सत्य क्या है?" 

प्रकाश के बिना, हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं ? मान लो कि आपको सड़क पर या अन्य किसी जगह पर एक रस्सी पड़ी हुई मिलती है, और आप डर जाते हैं। 

जब तक आप उस पर रोशनी डाल कर यह सुनिश्चित नहीं करते कि यह तो केवल एक रस्सी है, और वह (साँप) एक भ्रम था, तब तक आप अपने आप को कैसे समझांएगे कि यह साँप नहीं है, बल्कि यह मात्र एक रस्सी पड़ी हुई है। अतः पहली चीज़ है कि आपका चित्त आलोकित होना चाहिए । और आपको अपनी अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए, सत्य को खोजना होगा।

 और तब आप जान पाते हैं कि यह स्व, यह आत्मा, आनंद बिखेरती है - ऐसा आनंद जो सुख और दुख की द्वैतवाद से परे है। वैसा बनने के लिए आपको उससे परे जाना होगा, द्वैतवाद से परे। वही आपकी मंजिल है।"


प.पू माता जी श्री निर्मला देवी ।

21 नवंबर 1979.



Thursday, November 19, 2020

Shri Ganesh helps Mother Kundalini Shakti to rise

 श्री गणेश के बगैर कुण्डलिनी चढ़ नहीं सकती


“...यह समझ लिजिए कि परम-चैतन्य चारों ओर फैला हुआ है। लेकिन उसका असर तभी आता है जब आपके अन्दर पवित्रता होगी। अगर आप पवित्र नहीं है, आपके विचार शुद्ध नहीं हैं, या आप किसी और ही सतह पर रह रहे हैं, तो आप सहज की गहराई में नहीं उतर सकते। यह सूक्ष्मता जो आपने सहज में प्राप्त की है, इसमें सबसे बड़ा काम श्री गणेश ने किया है। तो श्री गणेश परम चैतन्य के चेतक हैं। ऐसा कहना चाहिए कि श्री गणेश से ही यह परमचैतन्य आलोकित हुआ है। और हर एक चक्र पर यह कार्य करते हैं। हर चक्र में जब तक निर्मलता, पवित्रता न आ जाए तब तक कुण्डलिनी का चढ़ना असम्भव है। और चढ़ती भी है तो वो बार-बार गिर जाती है। कुण्डलिनी और गणेश जी का सम्बन्ध माँ और बेटे का है...


श्री गणेश के बगैर तो कुंडलिनी चढ़ नहीं सकती क्योंकि कुंडलिनी गौरी हैं और उस गौरी को उत्थान करने में श्री गणेश उसके साथ हर समय उसे संरक्षित करते हैं। इतना ही नहीं हर चक्र पर जब कुंडलिनी चढ़ जाती है तो उसके मुँह को बंद करके कुंडलिनी को गिरने से रोकते हैं।”  


-श्री गणेश पूजा

5 दिसंबर 1993

दिल्ली, भारत