Saturday, May 29, 2021

इत्र महिमा - महिला बचत गढ़, ब्रह्मपुरी, महाराष्ट्र

 महिला बचत गढ़, ब्रह्मपुरी, महाराष्ट्र 

 इत्र महिमा 


1. लेवेंडर - नाभि चक्र : लैवेंडर घी कैंफोर और लाल मिट्टी या खाने का गेरू, इन तीनों को घोटकर, पाउडर बनाकर एक डिब्बी में भर दे। उसके ऊपर कपास का टुकड़ा रख दें। कपास से पाउडर लेकर उसको अपने बाएं हाथ के पंजे के ऊपर की नस पर लगाएं। फिर लगाए हुए पाउडर को अपने दाएं हाथ के अंतिम तीन उंगलियों से स्पर्श कर कपाल पर भस्म की तरह लेपन करें। ऐसा करने से किसी भी कार्य में सफलता मिलेगी। बचपन में जीजस क्राइस्ट के कपड़े धोने के बाद लैवेंडर के ऊपर सुखाने के लिए डाले जाते थे। 




2. जैस्मिन - विशुद्धि चक्र : अपने किसी भी हाथ के तलवे पर इसको लगाकर अपने दूसरे हाथ की अनामिका और मध्यमा से उसे स्पर्श करें फिर कपाल पर उंगलियों से भस्म की तरह लेपन करें तो सिर दर्द तुरंत समाप्त होगा। जिनके हाथ नहीं है वे इस इत्र को प्लेट में डाल दें और उस पर अपना मस्तक रख दे


3. दवणा - अनाहत चक्र: अपने किसी भी पैर के अंगूठे के नीचे इस इत्र को एक बूंद लगाएं। इससे तुरंत आपके सहस्त्रार में अनुभूति आएगी। यदि मस्तिष्क में नस ब्लॉकेज हो या और कोई मस्तिष्क की बीमारी हो तो, इस प्रयोग को अवश्य आजमाएं।


4. चाफा - मूलाधार चक्र : हाथ, रुमाल के बीचों बीच इस इत्र की एक बूंद डाल कर, रुमाल को चारों ओर से इकट्ठा कर के एक गोला बनाएं। उस को अपने मुंह के सामने पकड़ कर चबाने जैसा एक्शन कई बार करें। इस से यदि आप कि तबीयत ठीक नहीं हो ठीक होगी। कैंसर के मरीज़ पर यह प्रयोग लाभकारी होगा।


5. मजमुआ  - अनाहत चक्र : यदि इस इत्र को हम शरीर पर लगाते हैं तो नेगेटिविटी शरीर में प्रवेश नहीं करती। फिर भी उसने प्रवेश किया तो, जब भी इस इत्र की हम सुगंध लेते हैं, तो वो नेगेटिविटी परेशान हो कर भाग जाती है। किसी भी बीमारी में इस इत्र को अपने पैर के दाएं घुटने पर लगा कर उस को मोड़ कर आकाश की तरफ झाड़ दें।


6. खस - विशुद्दी चक्र :  जो लोग युद्ध भूमि में जाते हैं, उनके लिए ये इत्र अच्छा है। यदि आज्ञा चक्र के ऊपर इसको लगाएं तो नेगेटिव फोर्स का शरीर में प्रवेश नहीं होता। शरीर को सिक्योरिटी मिलती है। इस इत्र को अपने दोनो हाथों के तलवों पर लगा कर उस पर फेस पाउडर लगाएं। फिर उस को चेहरे पर लगा कर ड्राइविंग करें तो गाड़ी स्लिप नहीं होगी और ऐक्सिडेंट का खतरा नहीं होगा।


7. हिना - मूलाधार चक्र : यदि किसी ने बुरा होने की वजह से अपने को कोई तांत्रिक प्रयोग किया हो, कोई बंदिश मार दी हो, मंत्र मार दिए हों, नेगेटिव फोर्स का अटैक करवाया हो तो भी उसका प्रभाव शरीर पर पड़ेगा नहीं, यदि हम ने इस इत्र को शरीर पर लगाया हो। हिना इत्र को अपने दोनो घुटनों पर लगाएं और पेट का एरिया छोड़ कर कमर के चारों तरफ लगाएं। इससे नेगेटिविटी शरीर में प्रवेश नहीं करती। यदि वो प्रवेश कर भी देती है, तो वो समाप्त हो जाती है।


8. चंदन - सहस्त्रार चक्र : बीमारी में इस इत्र को अपनी दोनो भोंह के ऊपर कपाल पर लगा लें। इससे बीमारी में राहत मिलेगी और इस इत्र में नेगेटिविटी दूर भगाने कि क्षमता है।


9. मोगरा - अनाहत चक्र : जो लोग फौजी है इनके लिए यह इत्र अच्छा है। अपने हाथ के बाएं तलवे को इस इत्र को लगाएं और उसी तलवे को अपने आज्ञा चक्र के ऊपर रख दें, तो सिरदर्द तुरंत समाप्त होगा।


10. गुलाब - अनाहत चक्र : इस इत्र को अपने अनाहत चक्र के ऊपर लगाएं तो किसी भी बीमारी में राहत मिलेगी। सदा ध्यान रहे कि कोई भी प्रयोग करते समय, पूरी श्रद्धा के साथ करें तो ही सफलता मिलेगी, वरना ना करें तो अच्छा है। यह प्रयोग चौथे आयाम से प्राप्त है l चौथा आयाम श्रद्धा और अबोधिता के ऊपर निर्भर है इस लिए तीसरे आयाम के रूल्स रेगुलेशन, प्रोटोकॉल आदि इसको ना लगाएं। हर मिती के अपने प्रोटोकॉल्स अलग होते हैं। एक जैसे नहीं होते।

Lord Krishna & Lord Jesus - Similar Miracles

 Krishna’s story of one grain of rice

Rishi Durvasa and his followers arrive in the forest to visit the Pandavas. He requests food for himself and his followers and Draupadi is worried for her cooking vessel is empty. Draupadi prays to Lord Krishna and he asks her for something to eat. Draupadi shows him her empty vessel but Krishna, the Soul of the Universe, sees one grain of rice in the vessel, and eats it with pleasure. Durvasa and his followers immediately feel that their hunger has been satisfied.
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The feeding of the 5,000
The landscape of the Christian story is full of hills and mountains: Mount Tabor is where Jesus is said to have been transfigured - lit up with heavenly radiance - in front of his disciples; the Mount of Olives was the setting for Jesus' entry into Jerusalem, and the reported site of his ascension; and Gethsemane was the place of his betrayal, which set the course for his dramatic final days on earth. Add to this list the location for the Sermon on the Mount, and the high mountain on which we are told Jesus endured one of his temptations by Satan, and a clear pattern can be seen.

But there is another significant hill in the gospel narratives, a lesser-known hill that provided the setting for a remarkable event. The hill has been located on the north-east shore of the Sea of Galilee, and in ancient times it was known as 'the desert'. Today, it is not hard to see how it came by its name. It is a bleak, uninhabited part of the landscape. But the Bible recounts that two thousand years ago, on these dramatic slopes, Jesus fed a hungry crowd.


The feeding of the five thousand has always been one of the most memorable biblical miracles. Although perhaps not as world-changing as the raising of the dead, this apparently practical response to the physical needs of a crowd and the description of how it was done make it a wonderful story. Jesus does not stand over the meagre loaves and fishes, then magically transform them into a banquet for thousands. Instead, he starts to break the bread and divide the fish and hand them to the crowd. But as he prays, the bread keeps breaking and the fish keeps dividing until everyone is fed.

Source: https://www.bbc.co.uk/religion/religions/christianity/history/miraclesofjesus_1.shtml

Splitting of the moon & Parting of the Red Sea

The planet of Sahasrara is Moon (Monday), which is Shiva’s or Devi’s,  Adishakti’s abode.  Like this, our nine planets also reside in these chakras.  It means whatever OMKAR is manifested from Shri Ganesh, all these  integrate completely in one Sound and one rhythm for music which God has created inside us.  To penetrate this only Kundalini starts working.  When Kundalini starts rising and penetrates all these chakras and reaches the Fontanelle bone area,  from its ascent, lot of work is done on each chakra.

Public Program Day 5, Sahastrar, Atma

New Delhi (India), Saturday, February 16th, 1985


Surah-Al-Qamar-55, The Verse of the Moon...

The Hour has come near, and the moon has split [in two].

And if they see a sign [i.e., miracle], they turn away and say, "Passing magic."


Moses split the Sea... symbolic of bridging the Ocean of illusion (Bhavsagara) for the passage of Gauri Kundalini.

Mohammad Split the Moon... symbolic of breaking the Sahastrara to create passage for Mahamaya..

Friday, May 7, 2021

Exercises for Swadhithan Chakra - Hindi Article Sahaja Yoga

 स्वाधिष्ठान चक्र के लिये एक्सरसाइजेज .....

(लुइस गैरिडो)


वर्ष 1983 की गर्मियों में ब्राइटन आश्रम में श्रीमाताजी के बुद्ध स्वरूप की पूजा की गई। पूजा से एक दिन पहले श्रीमाताजी वहाँ आईं तो उन्होंने नोटिस किया कि हम सब लोग आलस्य के कारण बैठे हुये हैं। 

उन्होंने हमें कुछ समय तक बार-बार खड़े होने और बैठने के लिये कहा। जब हम खड़े थे तो उसी समय श्रीमाताजी आगे की ओर झुकने लगीं और फिर पीछे की ओर झुकीं। 

इसके बाद वे बाँई ओर और फिर दाँई ओर को झुकीं मानो हम किसी जिमनास्टिक्स की क्लास में खड़े हों लेकिन हमारे मूवमैंट्स थोड़े हल्के थे।

 हमारा प्रत्येक स्ट्रेच लगभग 1 मिनट का था। कुछ देर तक रूकने के पश्चात फिर से हमने चार बार वैसा ही किया जैसा माँ ने हमें बताया।

 श्रीमाताजी ने हमें बताया कि ये सारी एक्सरसाइजेज स्वाधिष्ठान चक्र के लिये अच्छी थीं। हमें माँ के साथ एक्सरसाइज करना बड़ा मजेदार लगा।


एक बार हम सब बैठे हुये थे। माँ ने फिर से हमें अपने हाथों के अंगूठों को रगड़ने के लिये कहा। उन्होंने स्वयं अपने अंगूठों को 5 मिनट तक जोर से रगड़ा औऱ हम सबने भी ऐसा ही किया। काफी देर बाद हममें से कई लोगों ने ऐसा करना बंद कर दिया तो माँ ने कहा कि तब तक अपने अंगूठों को रगड़ते रहिये जब तक कि आपके अंगूठों से कैच चला न जाय। 

उन्होंने हमें खास तौर से बताया कि हमें किसी कैच को अपने अंगूठे पर नहीं रहने देना चाहिये और अपने अंगूठों को तब तक रगड़ते रहना चाहिये जब तक कैच चला न जाय। 

माँ ने बताया कि यदि हम चाहें तो अपने अंगूठों पर तेल भी लगा सकते हैं। इस घटना के एक साल बाद हमारे बीच श्रीमाताजी का एक मैसेज सर्कुलेट किया गया कि वाइब्रेटेड नमक को हथेलियों और अंगूठों पर रगड़ने से भी हमारे चक्र स्वच्छ होते हैं।

Where is your attention?

You have to be aware.

 Where is your attention? 

What are we worried about? 

Where are we spending our time? 

Leave your children to Me. 

Leave your families to Me. 

You can only keep your purse, but the rest of it, you can leave all your headaches to Me.... Our ascent is the only concern.

 It is the only ideal — nothing else. And it will work out. 

All the rest will be taken care of. 

We have all the mechanics to do that.

 But first give it to the mechanics to work out. 

All will work in a reflex action.

Shri Mataji Nirmala Devi

8 MAY 1988

Part and parcel of GOD - Hindi Article Sahaja Yoga

 क्या आप माँ आदिशक्ति के शरीर का हिस्सा हैं ?


"औरंगाबाद में एक नवयुवक ने मुझ से सवाल पूछा,"माँ, यह ब्रम्हचैतन्य की सर्वव्यापी शक्ति इंद्रियों से परे है। आप इसे इंद्रियों के द्वारा महसूस नहीं कर सकते। यह कैसे संभव है कि अब हम इसे अपनी इंद्रियों से महसूस कर रहे हैं?" 

यह प्रश्न उसने मुझसे पूछा और यही सवाल मैं आपसे पूछती हूँ...... इसका उत्तर सरल है, लेकिन इसे पचाना मुश्किल है।

 इसका उत्तर यह है कि ये सारे अवतरण जो इस धरती पर अवतरित हुए, वे सहस्रार का हिस्सा थे, ब्रम्हचैतन्य का अंग थे, आदिशक्ति के अंश थे।

 वे इस धरती पर आए, उन्होंने कुछ ऐसे लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, जो अति उत्तम लोग थे, ऐसे लोग जिन्हें कोई समस्याएं नहीं थी।

 ऐसा लगता है कि वे प्रेम के सागर से बाहर आए, और उन सबको प्रेम के सागर में, उस सागर का आनंद लेने के लिए ले गए....... लेकिन आप उस सागर में विलीन नहीं हुए थे। 

आपके साथ कुछ विशेष घटित हुआ है। पूरे ब्रम्हचैतन्य ने, पूरे सागर ने, एक बादल का रुप ले लिया है। यह आदिशक्ति हैं, जो इस पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं, आप लोगों पर चैतन्य की वर्षा करने के लिए, आपको प्लावित करने के लिए, आपका पालन-पोषण करने के लिए, प्रेम के प्रगटीकरण के माध्यम से आपका इस तरह से विकास करने के लिए, जिससे आप आदिशक्ति के शरीर में प्रवेश कर गए हैं। 

अतः एक घड़े की तरह जो कि गंगा में है, उसी तरह आप भी आदिशक्ति के शरीर की एक कोशिका जैसे बन गए हैं। 

आपकी पहचान, आपका व्यक्तित्व परिरक्षित है। इसके बावजूद भी, आप ब्रम्हचैतन्य को अपनी इंद्रियों द्वारा अनुभव करते हैं, और आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं, लेकिन आप आदिशक्ति के शरीर में हैं। जब तक आप आदिशक्ति के शरीर में हैं, तब तक आप यह सब कुछ कर सकते हैं।"


परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ।

3 मई 1987

The Opening of Sahasrara Chakra -Hindi Article- Sahaja Yoga

ब्रह्माण्ड के सहस्त्रार खोलने का "श्रीमाताजी" का अद्भुत अनुभव!!


          सहस्त्रार को खोलने का अपना अनुभव मै आपको बताना चाहती हूँ। ज्यों ही सहस्त्रार खुला, पूरा वातावरण अदभुत चैतन्य से भर गया और आकाश में तेज रोशनी हुई तथा सभी कुछ...मुसलाधार वर्षा सा झरने की तरह पूरी शक्ति से पृथ्वी की और आया, मानो मै इनके प्रति चेतन ही नही थी, संवेदन शून्य हो गयी।

       ये घटना इतनी अद्भुत थी और इतनी अनपेक्षित थी कि मै स्तब्ध रह गयी और इसकी भव्यता ने मुझे एकदम से मौन कर दिया।

       आदि कुण्डलिनी को मैंने एक बहुत बड़ी भट्टी की तरह से ऊपर उठते देखा। ये भट्टी एकदम शांत थी परन्तु ये अग्नि की तरह से लाल थी मानो किसी धातु को तपाकर लाल कर लिया हो और उसमें से नाना प्रकार के रंग विकीर्णित हो रहे हो। इसी प्रकार से कुण्डलिनी भी सुरंग के आकार की भट्टी सम दिखाई दी, जैसे आप कोयला जलाकर बिजली बनाने वाले सयंत्रो में देखते है और...यह दूरबीन से दिखाई देने वाले दृश्य की तरह से फैलती चली गयी। एक के बाद एक विकिर्णन होता चला गया Shoot-Shoot-Shoot इस प्रकार से।   

               देवी-देवता आये और अपने सिंघासनो पर बैठते चले गए, स्वर्णिम सिंघासनो पर और फिर उन्होंने पूरे सिर को इस तरह उठाया मानो गुम्बद हो और इसे खोल दिया।

         तत्पश्चात चैतन्य की इस मुसलाधार वर्षा ने मुझे पूरी तरह से सराबोर कर दिया। मै यह सब देखने लगी और आनंदमग्न हो गयी। यह सब ऐसा था मानो कोई, कलाकार अपनी ही कृति को निहार रहा हो और मैंने महान संतुष्टि के आनंद का एहसास किया।

        इस सुन्दर अनुभव के आनंद को प्राप्त करने के बाद मैंने अपने चहुँ और देखा और पाया कि मानव कितने अन्धकार में है, और में एकदम मौन हो गयी। मैरे मन में इच्छा हुई कि मुझे कुछ ऐसे प्याले (पात्र) चाहिये,...जिनमें में यह अमृत भर सकूं, केवल पत्थरो पर इसे न डालूँ।


 परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी सहस्त्रार पूजा, फ्रांस, 5.5.1982

Sahasrara Mantras

 परम पूज्य श्री माताजी के द्वारा बतलाये गये सहस्रार के १९ दिव्य मंत्र


"आज मैं आपको बताने जा रही हूँ कि सहस्त्रार के मन्त्र क्या हैं , जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। आप पीछे से शुरू करें, अपना दायां हाथ मेरी तरफ करें, बायां हाथ पीछे। मध्य में या आप कह सकते हैं, जहाँ पर little getting point है, वह महागणेशा हैं ।" (बैक आज्ञा)

  मन्त्र सहस्त्रार

१.श्री महागनेशा

२.श्री महाभैरव

३.श्री महत मनस (manasa)

४.श्री महत अहंकार

५.श्री हिरण्यगर्भा   (महाब्रह्मदेव)

६.श्री सत्या

७.श्री महत चित्ता

८.श्री आदिशक्ति

९.श्री विराटा

१०.श्री कलकी

११.श्री सदाशिवा

१२.श्री अर्धमात्रा (अर्धबिन्दु )

१३.श्री बिन्दु

१४.श्री वलय

१५.श्री आदि ब्रह्म तत्व

१६.श्री सर्वस्व

१७.श्री सहस्त्रार स्वामिनी

१८.श्री मोक्षदायिनी

१९.श्री महायोगदायिनी


🕉️ प पू श्रीमाता जी निर्मला देवी