Monday, August 31, 2020

Chakra clearing mantras and Affirmations - Hindi Sahaja Yoga

 अष्टविनायक मंत्र

मूलाधार चक्र में पावनता स्थापित करने के लिये श्रीगणेश की शक्तियां।

1. मूलाधारः

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश 

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री विकट कामासुर मर्दिनी साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री निष्कामा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

2. स्वाधिष्ठान

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री लंबोदर क्रोधासुर मर्दिनी साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री निष्क्रोधा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

3. नाभिः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश

गजानन लोभासुर मर्दिनी साक्षात् 

श्री निर्लोभा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

4. भवसागरः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

महोदर मोहासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मोहा साक्षात् 

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

5. अनाहतः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

एकदंत मदासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मदा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

6. विशुद्धिः

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

वक्रतुंड मत्सरासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्मत्सरा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

7. प्रतिअहं (+ बैक आज्ञा)

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

विघ्ननाशा ममतासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री निर्ममा साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

8. अहं(+आज्ञा)

ऊँ त्वमेव साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्

श्री गणेश साक्षात्

श्री धूम्रवर्ण अभिमानासुर मर्दिनी साक्षात्

श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)

इसके पश्चात श्रीमाताजी के प्रवचन या श्रीमाताजी के 108 नाम सुनते हुये या फिर निर्विचारिता की गहन शांति में ध्यान करें।

मूलाधार चक्र कैसे शुद्ध करें ------------------

* माँ के प्रति पूर्ण समर्पण रखें। 

* किसी भी प्रकार की चालाकी , प्रलोभन से बचे बहुत बड़ी - बड़ी बाते करना , दिखावा करना , स्वयं को धोखा देना। पुरे समय बाहरी दुनिया में ही चित्त होना , अपनी आँखों को हर वास्तु या व्यक्ति को टिकाना - यदि आपमें ये है तो तुरंत छोड़ दें। 

* नियमित जल क्रिया ( दिन में कम से कम २ बार )

श्री गणेश अथर्व शीर्ष पढ़ें। 

ओम गम गणपतये नमः का उच्चारण ४ बार करें। 

श्री गणेश मन्त्र / श्री कार्तिकेय मन्त्र लें। 

* धरती पर बैठकर ध्यान करें। 

* हरी घास पर नंगे पैर चले - गणेश जी का ध्यान करे बहते पानी में नदी / समुद्र में पैर डालकर श्री गणेश अथर्वशीर्ष करें। 

* गीली रेट पर चलें। 

* पृथ्वी माँ की ओर नजर रखें। 

* फूलों तथा प्रकृति की सुन्दर रचनाओं को देखे। 

* छोटे बच्चों को देखें , उनके बीच रहें। 

* अपने चित्त को मूलाधार चक्र पर ( बैठने के स्थान पर जो हिस्सा जमीं को छूता है ) रखकर ध्यान में विनती करें :---

( अ ) श्री माताजी मुझे अबोधिता तथा शुद्ध विवेक दीजिये। 

श्री माताजी मेरे अंदर निर्मल गणेशतत्व जागृत कर दीजिये। 

श्री माताजी मेरी बुद्धि को सुबुद्धि में परिवर्तित कर दीजिये। 

( ब ) श्री माताजी मुझे आपकी प्रशंसा के योग्य बना दीजिये। 

श्री माताजी मुझे विनम्र बना दीजियें। 

श्री माताजी मेरी शुद्ध और केवल यही इच्छा है की मैं आपको खुश कर सकूँ।

अब श्री माताजी की फोटो की ओर देखकर कहे 

श्री माताजी आप ही श्री गणेश है 

श्री माताजी आप ही मुझे बुद्धि और विवेक प्रदान करती है।

( स ) अपना चित्त दायें मूलाधार पर रखें। दायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा बायां हाथ पृथ्वी माँ पर रखें। विनती करें श्री माताजी कृपा कर के समस्त नकारात्मक शक्तियों से हमारी रक्षा करियें। मन्त्र ले :- 

श्री कार्तिकेय मंत्र

श्री राक्षस हंत्री मंत्र 

श्री राक्षसघ्नि मंत्र लें।

स्वाधिष्ठान चक्र का शुद्धिकरण -----------

बायां स्वाधिष्ठान :-

* जिन कारणों से इड़ा नाड़ी ( बायीं नाड़ी ) प्रभावित होती है वे सभी कारण छोड़े और इस नाड़ी को शुद्ध करने के तरीके अपनायें। 

* यदि इन पकड़ के कारणों को हम नहीं छोड़ते है तो बायेँ स्वाधिष्ठान से बाधाएँ हमारे शरीर में प्रवेश करने लग जाती है और सीधे बैक आज्ञा को प्रभावित करती है। 

* हर चीज को पाने की अशुद्ध ईच्छाओं को त्यागे।

तांत्रिक क्रिया , कुगुरु को पूर्णरूप से छोड़ दें। 

* खुला दिमाग रखे। पुरानी बातों को जड़ व् त पकड़ नहीं बैठे। नयी बातों को स्वीकार करने को तैयार रहें। 

श्री ब्रम्हदेव सरस्वती 

१. श्री निर्मल विद्या 

२. श्री शुद्ध इच्छा 

३. श्री महिषासुर मर्दिनी का मंत्र लें। 

* दायां मूलाधार को सुधारने पर भी बायां स्वाधिष्ठान सुधरता है।

दांया स्वाधिष्ठान :----------

* जिन कारणों से दायीं नाड़ी ( पिंगला नाड़ी ) प्रभावित होती है , वे सभी कारण छोड़े और इस नाड़ी को शुद्ध करने के तरीके अपनायें। 

* यदि हम लगातार दिमागी सोच जारी रखे हुए है तो हमारे मस्तिष्क को लगातार ऊर्जा भेजने के कारण दायां स्वाधिष्ठान गर्म हो जाता है। अतः

----- भविष्य के बारे में दिमागी सोच विचार बंद करे 

----- सब कुछ परम चैतन्य पर छोड़ दे 

------ लिवर पर बर्फ की थैली रखें ( ध्यान में )

------ अपने दाए स्वाधिष्ठान पर चित्त रखकर ठंडे करने वाले मंत्र ले सकते है ---

श्री हिमालय 

श्री कैलास स्वामिनी 

श्री निर्मल चित्त 

श्री चित्त निरोध 

श्री चित्तेश्वरी 

श्री चित्तशक्ति 

श्री हजरत अली फातिमा बी 

सर्व ताप हरिणी 

श्री संजीवनी स्वामिनी 

* दायें स्वाधिष्ठान पर ---

हजरत अली फातिमा बी - ६ बार लें। 

श्री गायत्री माता साक्षात मंत्र लें।

**** जय श्री माताजी *****

नाभि चक्र का शुद्धिकरण ------

* घर की स्री का अनादर ना करे। 

* इस तरह के व्यक्ति पुरे समय घर की चिंता करने में , शिकायत करते रहने में , कुछ भी बोलकर माहौल ख़राब करते है। समय गंवाते है। अधीर रह कर घटना , व्यक्ति के बारे में जानकारी चाहना , सहनशक्ति की कमी होना , घर तथा वस्तुएं , अव्यवस्थित रखना , अपने किये का दोष दूसरे पर मढ़ना इनके दुर्गुण होते है। यदि आपमें बायीं नाभि की पकड़ आ रही है और आप में इस तरह के दुर्गुण है। तो उन्हें तुरंत छोड़े। 

> भगवान के नाम पर उपास न करें। 

> लम्बे समय तक भूखे न रहे। 

> खाद्य पदार्थ को चैतन्यित करे। 

> चैतन्यित पानी पिये। 

कच्चा , अधपका बासी खाना न खायें। 

( १ चम्मच गेरू ( चैतन्यित ) + १ चम्मच शहद दिन में ३ बार लें 

> बायीं नाभि का मोमबत्ती द्वारा उपचार करे। 

> क्षमा करे। धैर्य रखे। क्रोध न करें। शांत रहे। 

> हमेशा दर्द की शिकायते न करे। पूर्ण आत्मसंतुष्टि में रहे।

मंत्र :- श्री गृहलक्ष्मी साक्षात

* दायीं नाभि चक्र *

> दायें स्वाधिष्ठान में यदि पकड़ है तो उसकी गर्मी ऊपर चढ़ती हुई नाभि को प्रभावित करती है अतः भविष्य का सोच विचार/ चिंताएँ छोड़े। 

> रूपया पैसा , भौतिकवाद , वैभव विलासिता में ही हमेशा न उलझे रहे। 

> अधार्मिक आचरण तत्काल छोड़े - जैसे अपने अधिनसें गलत व्यवहार , दहेज़ लेना - देना। 

> कंजूसी बंद करे। दयालु , मददगार बनें। अन्य सहजी भाई - बहनों को सुंदर उपहार दें। सहज / कार्यों में खुले दिल से रूचि लें। 

> बिना कृत्रिमता , बिना दिखाने के दान करें। 

> शराब सेवन बिलकुल न करें। 

> बिना चिकितसकिय परमार्श के दवाईयों का सेवन अंधाधुंद न करें। 

> पुरे समय भोज्य पदार्थों में ही चित्त न रखें। 

> लिवर डाईट ( जो श्री माताजी ने बतायी है ) अपनायें।

मंत्र -- श्री राजलक्ष्मी साक्षात

मध्य नाभि का मंत्र :- श्री लक्ष्मी नारायण साक्षात।

((((( जय श्री माताजी )))))

भवसागर का शुद्धिकरण -------------

* कुगुरु /अगुरु /तांत्रिक /मांत्रिक सबसे नाता तोड़ें। 

* इनके द्वारा दिए गए प्रसाद , लॉकेट , किताबें , फोटो , भस्म / कपडे / गंडे - ताबीज को तुरंत त्याग दें। 

* इनके द्वारा दिए गये मंत्र , उपास , ध्यान बंद करे , कर्मकांड बंद करें। 

 * दो नावों पर सवार होने की स्थिति से बचे। 

* सदगुरु वही है जो परमात्मा से मिलाता है , जिनके सामने कुण्डलिनी जागरण होता है और आत्म साक्षात्कार प्राप्त होता है। याद रखे सहजयोग को आपकी जरुरत नहीं है आपको सहजयोग की जरुरत है। 

* अपने आप को दूसरों का गुरु न समझें। 

* भवसागर को आगे से ( घडी के कांटे के सदृश ) सीधे हाथ से शुद्ध करें। 

------- आदि गुरु दत्तात्रय का मंत्र लें 

------ दसो गुरुओं के नाम लें 

------ आदि गुरु दत्तात्रय के १०८ नाम ले सकते है। 

------ असत्य गुरु मर्दिनी / कुगुरु मर्दिनी का मंत्र ले।

* भवसागर पर ध्यान करें - - श्री माताजी से प्रार्थना करें श्री माताजी मुझे स्वयं का गुरु बना दीजिये। 

श्री आदिगुरु दत्तात्रेय एवं उनके दस अवतरण 

१ श्री राजा जनक 

२ श्री एब्राहम

३ श्री मोजेस 

४ श्री जोराष्ट्र 

५ श्री लाओत्से 

६ श्री कन्फूशियस 

७ सुकरात 

८ श्री मोहम्मद साहब 

९ श्री गुरु नानक 

१० श्री शिर्डी के साईनाथ

[ जय श्री माताजी ]

ह्रदय चक्र का शुद्धिकरण -----------

बायां ह्रदय :---

* अपनी आत्मा पर चित्त रखें। पुरे समय बाहरी दुनिया के सोच से आत्मा से चित्त हट जाता है। 

* ध्यान व अंतर्दर्शन आवश्यक है जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है। 

* आत्मा के विरोध में कार्य न करें 

बायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा दायां हाथ ह्रदय पर रखकर मंत्र लें :- 

> श्री आत्मा परमात्मा मंत्र 

> श्री शिव पार्वती मंत्र / श्री शिव शक्ति मंत्र 

> श्री शिवजी के १०८ नाम ले सकते है। 

> बायें ह्रदय का मोमबत्ती द्वारा उपचार 

> बायें ह्रदय को दायें हाथ से चैतन्य देना। 

> माँ से विनती करें - श्री माताजी मैं शुद्ध आत्मा हूँ , कृपा करके मेरा परमात्मा से योग घटित करवा दीजिये। मुझे प्रेम तत्व एवं आत्म तत्व प्रदान कीजिये।

मध्य ह्रदय :--- 

* श्री जगदम्बा साक्षात मंत्र 

* श्री दुर्गा माता साक्षात मंत्र 

* लंबी सांस अंदर खींचे - १२ बार जगदंब कहें , सांस छोड़े ऐसा ३ बार करें

 * पुरे विश्वास से कहे - श्री माताजी आप ही आदिशक्ति है 

* आप ने मुझे चुना है , इसलिए मेरा कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता 

--- मुझे कोई डरा नहीं सकता 

--- मुझे कोई मार नहीं सकता 

--- मुझ पर कोई अपना प्रभुत्व नहीं जमा सकता। 

* दूसरों को आत्म-साक्षात्कार दें। इससे आप में आत्म विश्वास बढ़ता है। 

* आत्माष्टकम् ( निर्मलांजलि पुस्तक ) गायें। 

* श्री दुर्गा माता के नाम लें। 

* देवी सूक्तम पढ़े। 

* अजीब आकार - प्रकार के लॉकेट आदि न पहने जिनसे नकारात्मकता सीधे ह्रदय या विशुद्धि चक्र में प्रवेश कर सकती है। 

* अपने अंदर दबा गुस्सा , चिंता न रखें। सब कुछ परमचैतन्य पर छोड़ दें।

दायां ह्रदय :-- 

* अपने पिता से संबंध अच्छे रखे। क्षमा का भाव रखे। 

* पितास्वरूप अपने बच्चों की बहुत चिंता न करें। श्री माताजी पर विश्वास रखें। 

* अपने घर परिवार की जिम्मेदारी समझें। पुरे समय काम धंधे , रुपये पैसे , सत्ता ईर्ष्या , जलन का ही सोच विचार बंद करें। 

* अति मानसिक - अति शारीरिक श्रम न करें। बीच बीच में शरीर व दिमाग को आराम देते रहें। 

* परिवार समाज व स्वयं से मर्यादा में रहें। 

* आत्मा पर चित्त रखें। 

* पूर्वजों / पितरों का आहवान न करें। श्री माताजी से कहें श्री माताजी आप ही हमारी माँ है , पिता है। कृपया हमारे पितरों को स्वर्ग में उचित स्थान दें। 

* श्री सीता राम साक्षात मंत्र लें। 

((((( जय श्री माताजी )))))

विशुद्धि चक्र का शुद्धिकरण -----------

* स्थित प्रज्ञ की स्थिति के लिए श्री माताजी से प्रार्थना करें। इसके लिए साक्षी भाव रखें। अपने अहंकार अथवा जड़ता से लगाव न रखे। तुरंत प्रतिक्रिया करने से बचे। बाद में स्थिति सामान्य होने पर अपनी बात रखने की कोशिश करें। 

* मंत्रों का सही उच्चारण करें। 

* सामूहिकता में रहें। अधिक से अधिक सार्वजानिक सहज कार्यक्रमों में जायें।

* सहजयोग का कार्य करें। 

* सामूहिकता में सहज भजन गायें। 

* जिन कारणों से पकड़ आ रही है , वे बंद करें। 

* श्री राधा कृष्ण मंत्र लें - विशुद्धि चक्र पर चित्त रखकर। 

* श्री कृष्ण के १०८ नाम ले सकते है। 

* खुले आसमान की तरफ देखकर दोनों कानों में पहलगी ( विशुद्धि की ) ऊँगली डालकर , हथेलियां खुली रखकर , अल्लाह - ओ - अकबर का १६ बार उच्चारण करें। 

* ठंड में गलें को ढंककर रखे। 

* आपका पहनावा इस तरह का हो जिसमें कंधे बाँहें खुली न हो ( स्लीवलेस न पहने )

* ताबीज आदि न पहने , वहाँ से नकारात्मकता सीधे अंदर प्रवेश कर सकती है। 

* नाक में ( घी + कर्पूर ) प्रतिदिन डाले। 

* बालों में तेल डालें। बाल व्यवस्थित रखे। बिखरे बाल भूतों को बुलावा देते है। 

* अपने दांत में नियमित ब्रश करे। 

* गर्म दूध या गर्म पानी में मक्खन और शहद डालकर पीये। 

* मक्खन और मिश्री खायें। 

* अजवायन की धूनी / भाप लें। 

* धूम्रपान / तंबाकू सेवन तुरंत बंद करे। नहीं कर पा रहे है तो उपरोक्त उपायों के साथ - साथ माँ से लगातार विनती करे। 

** बाँया विशुद्धि चक्र **

* यदि आपने गलत कार्य या अधार्मिक कार्य या आत्मा के विरुद्ध कोई कार्य किया है तो श्री माताजी के सामने अपनी गलती स्वीकार करें। गलती का सामना करे। सफाई देने की जरुरत नहीं। कहे श्री माताजी अगली बार मै ऐसा नहीं करूँगा। 

* माँ से विनती करें श्री माताजी मैं शुद्ध आत्मा हूँ कृपया करके मुझे दोष भाव से मुक्त करें। 

* पर श्री के प्रति आदर व पवित्र भाव रखे। 

* गलत कार्यों को / अपवित्र आचरण को तुरंत छोड़े। 

* दूसरों की आलोचना / बुराई करना तुरंत छोड़े। 

* श्री विष्णुमाया का मंत्र लें। 

* चक्र को आगे से घड़ी के काँटे के सदृश शुद्ध करें। 

* चक्र को चैतन्य दें। 

* चक्र की मोमबत्ती क्रिया करें। 

* झूठ न बोलें।

** दायां विशुद्धि चक्र ** 

* तुरंत प्रतिक्रिया कर गलत / अपशब्द न कहें / चीख चिल्ला कर बाते न करें , गाली - गलौच / बहस न करे। इससे आप दूसरों के भूत अवशोषित कर लेते है। 

* अहंकार -रहित मधुर वाणी कहे। इसके लिये भी श्री माताजी से लगातार विनती करे। 

* लगातार भाषण देना। लगातार गाना गाना इनसे विशुद्धि चक्र पर दबाव पड़ता है अतः अपने गले को कुछ अंतराल के बाद आराम दें। 

* श्री विट्ठल - रुख्मिणि का मंत्र लें।

((((( जय श्री माताजी )))))

आज्ञा चक्र का शुद्धिकरण -----------

* जिन कारणों से पकड़ है -- वे बंद करें।

* अहंकार / प्रति अहंकार या जड़ता को तुरंत छोड़े। इनके लिये माँ से लगातार विनती करे।

* अपनी नजरे हर वस्तु , हर व्यक्ति पर न टिकाये

* आँखों के अत्याधिक उपयोग से बचे जैसे लगातार टी वी देखना / कंप्यूटर पर कार्य / मोबाइल पर कार्य / लगातार पढ़ना / सिलाई / कढाई आदि करना।

* बीच -बीच में अपनी आँखों को आराम देना आवश्यक है , आँखें बंद कर शांत चित्त बैठे।

* अपवित्र साहित्य पढ़ने से , अपवित्र , गंदे मनुष्यों को देखने से , गन्दे टी.वी सीरियल , गन्दी फिल्मे देखने से आज्ञा चक्र प्रभावित होता है। आँखों के अनेक रोग इन्ही कारणों से होते है। ऐसी आदते तुरंत छोड़े।

* वे सारी विधियाँ जो आँखों पर ध्यान केंद्रित करने को प्रेरित करती है जैसे सम्मोहन , तांत्रिक क्रिया आदि बिलकुल न करें।

* अनधिकृत गुरु के सामने - गर्दन झुकाने से , चरणों में माथा टेकने से बचे।

* असहजी द्वारा माथे पर कुमकुम लगवाने से बचे।

* गलत स्थान पर माथे टेकने से बचे।

* अपने आज्ञा चक्र पर श्रीमाताजी के सामने रखा हुआ चैतन्यित कुमकुम लगाये।

* बायीं नाड़ी की पकड़ से अथवा बायें तरफ के चक्रों की पकड़ से बैक आज्ञा पकड़ जाती है अतः पीछे से घडी के काटे के विपरीत हाथ घुमाकर बैक आज्ञा शुद्ध करें।

--- श्री महागणेश , श्री महा भैरवनाथ , श्री महा हिरण्यगर्भाय का मंत्र लें।

---- मोमबत्ती - क्रिया , द्वारा शुद्ध करें / अजवायन कर्पूर द्वारा शुद्ध करें।

--- चक्र को चैतन्य दें

फ्रंट आज्ञा को शुद्ध करने के लिए -----------

* क्षमा करे। प्रतिदिन सीधे हाथ को आज्ञा चक्र पर रखकर प्रार्थना करे। श्री माताजी मैंने ह्रदय से सबको क्षमा किया , मैंने अपने आपको भी क्षमा किया। ये शब्द ही मंत्र है। धीरे - धीरे आपमें अंदर से परिवर्तन होगा।

* तुरंत प्रतिक्रिया से बचे। साक्षी भाव रखे।

* लगातार सोच विचार / चिंताएं / दबा गुस्सा / तनाव तुरंत बंद करें। सब कुछ श्री माताजी पर विश्वास कर परम चैतन्य पर छोड़ दें।

* श्री जीसस मेरी , श्री महावीर , श्री बुद्धदेव साक्षात का मंत्र लें।

* महत अहंकार साक्षात का मंत्र लें।

* हं क्षं मंत्र लें ( दो बार उच्चारण करें )

* निर्विचार साक्षात का मंत्र लें / महत अहंकार साक्षात मंत्र लें।

* गणेश अथर्वशीर्ष पढ़ सकते है।

* लॉर्ड्स प्रेयर पढ़े।

* चक्र को चैतन्य दें।

* श्री माताजी के आज्ञा चक्र को मोमबत्ती की लौ के अंदर देखे ( मुख्यतः आँखों के लिये है। )

** एकादश रूद्र को जागृत करने के उपाय **

* अपने माथे पर जहाँ से बाल शुरू होते है - पर ध्यान करें। चित्त को बायें से दायें तथा दायें से बाएं घुमाये।

प्रार्थना करे ---

---- श्री माताजी कृपा करके मेरे अंदर एकादश रूद्र की शक्तियों को जागृत कर दीजिये।

---- मेरे समर्पण में आने वाली समस्त नकारात्मकता को नष्ट कीजिये।

---- श्री एकदाश रूद्र साक्षात का मंत्र ३ बार लें।

** जय श्री माताजी **

Wednesday, August 26, 2020

The Turya State - Hindi Article

 तुर्या अवस्था - यानि आप मोह से मुक्त  है।


      ........हम लोग तीन अवस्थाओं में रहते हैं। जागृत अवस्था में हमारा ध्यान यहाँ वहाँ भटकता है, और हम हमारे चित्त को खराब करते हैं।  दूसरा वह होता है, जिसमें हम सोते हैं, जब हम सोते हैं तब भी हमारे अतीत की और इधर उधर की बातें हमारे पास आती हैं। फिर हम और गहरी नींद में चले जाते हैं - जिसे कहते हैं सुषुप्ति। इस स्थिति में आप गहरी नींद में होते हैं और सपने देखते हैं जो कि सच भी हो सकते हैं। आप मेरा सपना भी देख सकते हैं। यह अचेतन का ईश्वरीय भाग है,  जहाँ सुन्दर जानकारियां प्रदान की जाती हैं। जैसे कि मान लीजिये मैं इटली में आने वाली हूँ, और वहाँ के लोगों को सुषुप्ति में इस बात का पता लग जाये।

     ........किन्तु चौथी अवस्था को तुर्या अवस्था कहते हैं।  दो अवस्थाएं और होती हैं। आप लोग तुर्या स्थिति में हैं जिसमें आप निर्विचार जागरूक अवस्था में होते हैं। जब कोई विचार नहीं है - जरा सोचिये जब कोई विचार नहीं होता - आपको अबोध बनना पड़ता है, आपको चेतना को जानना पड़ता है, आप किसी से मोह में नहीं रह सकते।  तो यही निर्विचार की स्थिति जिसमें आप लोग हैं, यही तुर्या स्थिति है और इस स्थिति में यह चार पंखुड़ियां जो आपके अन्दर हैं, इन्हें आपके सहस्रार में खुलना होगा।

ये आपके हृदय से मस्तिष्क तक जाती हैं और तब आप असल में यह समझ पायेंगे कि भगवान क्या हैं ? यह वह समय है जब आपको असली ज्ञान प्राप्त होता है।


- परमपूज्य श्रीमाताजी, महाशिवरात्रि पूजा, चिआंसीआनो टर्म, 

इटली : 16.2.1991।

Tuesday, August 25, 2020

Bliss - Joy - Ananda

 प्रसन्नता क्या है

"किसी व्यक्ति का खुशी या गमी के हिसाब से आकलन करना सही नहीं है। गम या दुख हमें प्रति अहंकार से मिलते हैं और खुशी या प्रसन्नता हमें हमारे अहंकार के तृप्त होने पर मिलती है। लेकिन आनंद का दोहरा चरित्र नहीं है, आनंद केवल आनंद (सुख और दुख से परे की स्थिति) है । आनंद में आप देखते मात्र हैं, आप स्थिति या वस्तु को संपूर्णता में देखते हैं।

और जब आप आनंदमय होते हैं, तो आप वस्तु या स्थिति को पूर्ण रूप से महसूस करते हैं, आनंद स्वंय आपके पास इस तरह से आता है, जैसे आशीर्वाद आपके ऊपर बरस रहा हो। यह (आनंद) इतना सुंदर है कि आप बस इसमें खो जाते हैं।"


परम पूज्य श्री माता जी निर्मला देवी ।

१४.०८.१९८०, प्रेस्टन, इंग्लैंड।

Surrender - Samarpan

Surrender - Samarpan 

"आप सभी आध्यात्मिकता के इस महान भवन की नींव हैं। आप अपनी सीमाओं का विस्तार करें, अपनी समझ को बढ़ाएं, अपने विवेक का विस्तार करें - पर कैसे? समर्पण से। लेकिन जब आप के पास संकीर्ण व छोटा सा हृदय है, तो आप समर्पण कैसे करेंगे? अपने हृदय को खोलिए। अपने हृदय को खोलें और भूल जाएं कि आप पश्चिमी देशों से हैं, आप भारतीय हैं, आप इस जाति से हैं, आप उस धर्म से हैं। ये सब पागलपन है, इंसान द्वारा रचित पागलपन, निराशाजनक। वास्तविकता क्या है? सच्चाई यह है कि हम सब एक माँ के द्वारा बनाए गए हैं। सभी को एक माँ के द्वारा जन्मा गया है, जिसका हृदय अति, अति विशाल है। और यही सत्य है।"


प.पू माता जी श्री निर्मला देवी।

 24.02.1998.


"You are all in the foundation of this great building of spirituality. Increase your dimensions, increase your understanding, increase your wisdom – but how? By surrendering. How do you surrender when you have such a small, little heart? Open your heart. Open it and forget that you are westerners, you are Indians, you are this caste, that religion. All this is nonsense, man-made, hopeless. What is reality? We are all made by one Mother. All have been given birth by one Mother, who has a very, very large heart. That is how."


HH Mataji Shree Nirmala Devi

24.02.1998.


Every Day with Shree Mataji - 24/02


http://shrimataji.net/index.php?day=23&month=02

🌹आपका दिन आनंदमय हो l 🌹

Primary Responsibility of a Sahaja Yogi

 आपकी प्राथमिक जिम्मेदारी।

आपकी पहली और सबसे ज़रूरी जिम्मेदारी है सहजयोग, क्योंकि आपको जानना चाहिए कि यह कार्य क्या है। यह पूरे विश्व को परिवर्तित करने का बहुत ही महान कार्य है। यह मेरा सपना है। इस बुढ़ापे में भी, मैं ऐसा ही सोचती हूँ। अब अगर यही मेरा सपना है, तो आपका रुझान कैसा होना चाहिए? यही कि हमें पूरी शक्ति के साथ सहजयोग को फ़ैलाना चाहिए । यही मुख्य कार्य है।

मैं आपको इन पूजाओं में बुलाती हूँ, मात्र आपको नवीनता प्रदान करने के लिए, या मुझे कहना चाहिए, आपको और अधिक शक्ति इत्यादि देने के लिए। लेकिन अगर आप इसे केवल बड़े आशीर्वाद के रूप में ले रहे हैं और घरों में बैठे हैं, तो यह आशीर्वाद किसी काम का नहीं है। आपको सहजयोग फैलाना ही होगा।


प.पू माता जी श्री निर्मला देवी।

१७.०३.२००२.


Your Primary Responsibility

Your first and foremost responsibility is Sahaja Yoga because you should know what a work it is. It is such a great work to transform the whole world. That is My vision. At this old age, also I think the same way. Now if that is My vision, what should be your attitude? That we should go all out to spread Sahaja Yoga. That is the main thing.

I call you for these pujas just to renovate, I should say, or to give you more energy and all that. But if you are just taking it as a great blessing and sitting at home, it is of no use. You must spread Sahaja Yoga.


Shri Mataji Nirmala Devi

17 MAR 2002, 

Monday, August 24, 2020

FAQSIDEOS - FAQs + Videos on Sahaja Yoga- Episode 1, What is the correct age to start meditation?

 FAQSIDEOS - FAQs + Videos on Sahaja Yoga

We are starting a new Web Series that will cover the Frequently Asked Questions (FAQs) on Sahaja Yoga

In this episode the question is: What is the correct age to start meditation?

Many parents show their concern when Sahaja Yoga Meditation is introduced in schools including primary section - i.e. between the age group of 6 to 10 years old students as well.

The answer is very simple folks -
What if I ask you:
What is the correct age to start breathing?
What is the correct age to start eating?
What is the correct age to start digesting?
What is the correct age to start excreting?
Surprised?

Well, Sahaja Yoga just teaches us about the Subtle System present within us since our birth. With Sahaja Yoga Meditation, we are able to harness our own 'Inner Energy' - harness the subtle divine energies we are born with! SO there is no age/caste/creed/ religion/ethnicity /color/financial status/country bar to practice Sahaja Yoga!

Listen to explaining us about the Bhramarandra (limbic or fontanelle bone area) on top of the head of an infant when he is just born - it is very soft and in connection with the divine already...which later gets calcified with age and conditionings.....and we lose touch with divinity...it is a journey back to our roots!

In fact, the sooner we start activating our 'Spiritual' selves, the better it is for us - there have been several instances among Sahaja Yogies where their 'very average academic performer child' suddenly started to pass exams with flying colors, showed greater focus and attention in both studies and sports and extra curricular activities!
Dear Ones.....you are tapping the divine energy - only positive, dynamic, good and progressive things can happen to you - Don't worry!!

Sunday, August 23, 2020

Nirvikalp Avastha - The Doubtless State

 " निर्विकल्प अवस्था " 

सहस्त्रार का क्षेत्र परमात्मा का क्षेत्र है। जब ब्रह्मरंध्र पूर्ण रूप से खुल जाता है तो स्वयं आपके अंदर ही स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। कुंडलिनी जो जागृत हो चुकी है और जिसने आपको आत्मसाक्षात्कार दिया है … वह आपके सिर के तालू भाग में एक सूक्ष्म छिद्र बनाती है, जिसके माध्यम से परमात्मा अपनी पूरी सूक्ष्मता को आपके मस्तिष्क से बरसाने लगते हैं। लेकिन यदि आप सहस्त्रार के दोनों ओर के गुब्बारों को दोनों ओर से दबाना प्रारंभ कर दें, तो ये कभी खुल जायेंगे और कभी बंद हो जायेंगे और फिर कभी खुल जायेंगे और परमात्मा का चित्त आपसे हट जायेगा। आपको ये मालूम होना चाहिये कि यदि ऐसा कई बार होता है तो परमात्मा इसकी परवाह नहीं करते हैं। 

अतः आपको ही ये अवस्था प्राप्त करनी है और हम सभी को उस अवस्था (निर्विकल्प अवस्था) को प्राप्त करना है। इसके बाद आप आगे बढ़ते ही जायेंगे। निर्विकल्प के बाद आप नीचे नहीं आ सकते हैं। यदि फिर भी कोई ऊपर नीचे होता रहता है तो उसको मालूम होना चाहिये कि वह अभी तक उस अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है और उसको दृढ़ता से स्वयं से पूछना होगा कि- ‘नहीं मुझे निर्विकल्प को प्राप्त करना है जहां से मुझे नीचे नहीं आना है।’ जो लोग निर्विकल्प में नहीं हैं उनको बचाया नहीं जा सकता है। मुझे यह कहते हुये दु:ख हो रहा है, पर उनको बचाया नहीं जा सकता है। उनको सजा दी जायेगी … हो सकता है,  

 अनआत्म साक्षात्कारियों जैसी सजा न मिले, परंतु उनको परमात्मा के साम्राज्य में स्थान नहीं मिल सकेगा......................

 …अतः आपको निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त करना होगा। इसके लिये किसी भी परिस्थिति को दोष देने का प्रयास न करें। अपने माता-पिता, भाई, वातावरण या ये या वो किसी को भी दोष न दें। किसी को भी दोष देने का प्रयास न करें, कि कोई आया और हम उनसे प्रभावित हो गये। आपको हो क्या गया है ? यहां मैं आपके सामने साक्षात हूं और आप मुझसे तो प्रभावित नहीं हैं, पर आप कैसे उन लोगों से प्रभावित हैं जो अत्यंत मूर्ख हैं ….और अत्यंत प्रभुत्ववादी हैं ? इसका अर्थ है कि आपका स्तर क्या है ? तो कल की पूजा का मुख्य बिंदु है कि आपको निर्विकल्प अवस्था में रहना होगा। आप कह सकते हैं कि यह ‘सहस्त्रार दिवस’ बहुत बड़ा दिन है, क्योंकि मैंने पहले कभी भी ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी, क्योंकि हम सार्वभौमिक धर्म ‘विश्व निर्मल धर्म’ में स्थापित हो चुके  हैं।”_____   –

परमपूज्य परमेश्वरी माताजी श्री निर्मलादेवी की  (सहस्त्रार पूजा के पहले दिन की) देववाणी . 

4-5-1985, लक्समबर्ग, ऑस्ट्रिया

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1.जो लोग निर्विकल्प अवस्था में नहीं हैं , उनका उद्धार होने वाला नहीं है । मुझे यह कहते हुए बहुत खेद है । वे बचाए नहीं जा सकेंगे । उन्हें दंडित किया जाएगा । हो सकता है उन्हें उस तरह से दंडित न किया जाए जिस प्रकार ] आत्म साक्षात्कार प्राप्त न करने वालों को किया जाए । लेकिन वे सर्वशक्तिमान ईश्वर के दरबार में नहीं बैठ पाएंगे । कम से कम आपको निर्विकल्प अवस्था में पहुँचना चाहिए । किसी भी परिस्थिति को दोष न दें । अपने पिता , माता , भाई , माहौल को दोष मत

2.मुझे खेद है कि मुझे यहां ऑस्ट्रिया में यह सब कहना पड़ रहा है । यह वह स्थान है जहां हमारी यात्रा बाईं और दाईं की सीमा पर समाप्त हो जानी चाहिए क्योंकि " मेरा पति वैसा है , " | " मेरी पत्नी वैसी है , " " क्योंकि मेरा बच्चा ऐसा है , " | आपको माफी नहीं मिलेगी।आप यह किससे कह रहे हो ? आपकी अपनी आत्मा से ? अपनी आत्मा को बताओ ! क्या यह इस बात को समझेगी ? इससे आपका चैतन्य आपसे दूर चला जाता है , आपका आनंद नष्ट होता है और आप की स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती ।

3.निर्विचारिता स्थापित करना बहुत आसान है । लेकिन वह भी कुछ लोगों ने प्राप्त नहीं की है । फिर निर्विकल्प का क्या ? आपको इसे बहुत गंभीरता से लेना होगा । यह अंतिम सहस्त्रार दिवस हो सकता है जिसे हम यूरोप में मना रहे हैं , हो सकता है , मुझे पता नहीं । ऐसा नहीं है कि मां केवल तभी खुश होगी जब उच्च योग्यता या उच्च क्षमता वाले लोग हों - ऐसा नहीं है । मुझे उन लोगों के लिए बहुत चिंता है जो खो गए हैं , जो बाहर हैं । लेकिन कभी - कभी अपने अनुभव से मुझे लगता है कि ऐसे लोग खराब हो जाते हैं । मेरा प्यार आपको बिगाड़ने के लिए नहीं है , आपको बर्बाद करने के लिए नहीं है

4. यह स्पष्ट है । मेरे पास समय कम है क्योंकि आपका कुंडलिनी यंत्र ठीक होना चाहिए । यदि आपको अपने कुण्डलिनी यंत्र का उचित तरीके से तेजी से विकास करना करना है ताकि उसमें ईश्वर का प्रेम प्रवाहित हो और उस ईश्वर का प्रेम उस पर प्रसन्न हो तब ] हमें ऐसे सुंदर फूल बनाने पड़ेंगे जिनकी वह सराहना करे ताकि वह नष्ट न हो । इस नाटक के दर्शक को संतुष्ट होना होगा ताकि वह अपने विनाश को स्थगित कर दे । इसलिए मैंने कहा कि समय कम है । समय बहुत कम है । 

5.यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे ईश्वर के दरबार में विकसित हों - वे महान संत हैं जो पैदा हुए हैं - अगर हम उन्हें आनंद का पूरा मौका देना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले आदर्श माता - पिता बनना होगा न कि केवल भ्रम के साथ जीने वाले लोग

Thursday, August 20, 2020

Mooladhara Chakra - Hinda Article Sahaja Yoga

मूलाधार चक्र 

तत्व : भूमि (पृथ्वी)

ग्रह : मंगल

चिन्ह :स्वस्तिक

रत्न : मूँगा

वर्ण: लाल

स्थान: त्रिकोणाकार अस्थिके नीचे, हाथ में कलाई के पास, पैर में एड़ी

बीजमंत्र: लं

अभिव्यक्ति: पेल्विक प्लेक्सस-चारपंखुड़ियाँ

शासक देव: श्री गणेश

गुण : अबोधिता, पवित्रता, संतुलन, बुद्धि, चुम्बकीय शक्ति

नियंत्रित अंग-कार्य : गर्भाशय, प्रोस्टेट, यौन गतिविधि, उत्सर्जन

दोष पैदा होने के कारण : व्याभिचार, समलैंगिक कामुकता, तंत्र विद्या, माता-पिता द्वारा बच्चों का दुरुपयोग

दृषित चक्र के कारण उत्पन्न रोग: एड्स, सेक्ससंबंधी रोग, यूट्रस और प्रोस्टेट का कैन्सर

शुद्धीकरण :

* परम पूज्य श्री माताजी के चरणों की पूजा - श्री गणेश रुप मे

* श्रीगणेश के १०८ नामों का जाप प्रार्थना

* पृथ्वी पर बैठ कर अथर्वशीर्ष का श्रद्धापूर्वक नियम से पाठ

* अनैसर्गिक यौन संबंधो से दूर रहना।

* अश्लील साहित्य न पढ़ना एवं तांत्रिक प्रयोगों से दूर रहना।

+ धरा माँ पर बैठकर श्री गणेश अथर्वशीर्ष पढ़ो तथा श्री गणेश का ध्यान करो।

आपकी सभी समस्याओं का अंत हो जायेगा। -

परम पूज्य श्री माताजी, आस्ट्रेलिया, २६.८.१९९०