Tuesday, September 8, 2020

Be humble in order to reach spiritual heights - Hindi Article

 अगर आप सभी साथ रहकर विनम्र होकर एकाग्रचित्त से सहजयोग किया तो दैवीय कार्य होंगे


         " चित्त एकाग्र होगा केवल आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति से, परन्तु जन्म से आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति को भी इसके लिए पुरुषार्थ करना होगा। आपका चित्त इतना चंचल है कि वह कुछ भी एकाग्र होकर नहीं करता। मुझे लगता है यह सबसे बड़ी समस्या है। यही कारण है कि गुरू की भी खरीददारी हो रही है। हम भी केन्द्रीत तरीके से सहजयोग नहीं कर पा रहे हैं। चित्त अस्थायी हो रहा है और सभी में फैल जाता है जो किसी भी गहराई या ऊंचाई तक नहीं पहुँच पा रहा है। अगर आप सभी साथ रहे तो कार्य होगा। तो चित्त एकाग्र करने के लिए कचरा खाली करें आपके अन्दर बहुत सुन्दरता है उसे स्थिर होने दें•••• आपको गर्व करना चाहिए उक्त स्वभाव से यह सौन्दर्य आ जायेगा। और आपके अन्दर एक झील की लहर सी महसूस होगी, भगवान का आनन्द आप अपने में महसूस कर सकेंगे••• कोई भी मानसिक गतिविधि ऐसा महसूस नहीं करा सकती, बुद्धि के माध्यम से आप भगवान तक नहीं पहुँच सकते।

जो लोग धन्य हुए हैं उनको दिलों से विनम्र होना होगा, यह बिलकुल सत्य है कि हमारे दिलों में विनम्रता हो ताकि यह कार्य कर सके••••• और हमारा ध्यान स्थिर कर सके••••


क्या मैं बहुत अपेक्षा कर रही हूँ? आप एक बच्चे के रूप में बहुत विनम्र दिल के साथ पैदा हुए, केवल इस जन्म में ही यह सब थोड़ा सा कचरा जमा कर लिया है। पिछले जन्म में आप इससे परे थे। केवल इसी जन्म में आपने थोड़ी सी सीमा पार कर दी है। इसे दूर करना मुश्किल नहीं है।


तो केवल अपने दिलों में विनम्रता रखें और यह कार्य करेगा। हर बार जब आपकी कुण्डलिनी उठे, हर बार जब आपको अनुभव प्राप्त हो, इसे आप अपनी स्मृति और चित्त में रखें और इसे बाहर काम करने दें••• अपने दोषों पर चित्त बिलकुल नहीं रखें••••


जब आप पहाड़ या पहाड़ी की चोटी पर चढ़ाई करते हैं तो आप कितनी बार गड्डे में गिरे हैं याद नहीं रखते और पहाड़ की चोटी पर पहुंचने पर वातावरण का आनन्द लेते हैं। तुम्हारे भीतर इसे एक मजबूत स्मृति बनाओ और इसे याद रखने का प्रयास करो, कुछ लोगों के लिए यह मुश्किल है। अपनी पुरानी समस्याओं के कारण वह बार-बार नीचे आते हैं फिर ऊपर आते हैं। क्योंकि उनकी कुण्डलिनी नीचे आती है। लेकिन सहजयोग में सभी व्यवस्था है। यह मानसिक गतिविधि से नहीं परन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति से कार्य करेगी, और इसलिए मैं यह कह रही हूँ कि (दाय विल बी डन) आपकी इच्छा पूर्ण होगी इसे शुरू से स्वीकार करें यह आपकी उन्नति के लिए कठोर आधार है।"

* प0पू0श्री माताजी, 26.6.1978, कैक्सटन हाॅल *

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