Sunday, August 23, 2020

Nirvikalp Avastha - The Doubtless State

 " निर्विकल्प अवस्था " 

सहस्त्रार का क्षेत्र परमात्मा का क्षेत्र है। जब ब्रह्मरंध्र पूर्ण रूप से खुल जाता है तो स्वयं आपके अंदर ही स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। कुंडलिनी जो जागृत हो चुकी है और जिसने आपको आत्मसाक्षात्कार दिया है … वह आपके सिर के तालू भाग में एक सूक्ष्म छिद्र बनाती है, जिसके माध्यम से परमात्मा अपनी पूरी सूक्ष्मता को आपके मस्तिष्क से बरसाने लगते हैं। लेकिन यदि आप सहस्त्रार के दोनों ओर के गुब्बारों को दोनों ओर से दबाना प्रारंभ कर दें, तो ये कभी खुल जायेंगे और कभी बंद हो जायेंगे और फिर कभी खुल जायेंगे और परमात्मा का चित्त आपसे हट जायेगा। आपको ये मालूम होना चाहिये कि यदि ऐसा कई बार होता है तो परमात्मा इसकी परवाह नहीं करते हैं। 

अतः आपको ही ये अवस्था प्राप्त करनी है और हम सभी को उस अवस्था (निर्विकल्प अवस्था) को प्राप्त करना है। इसके बाद आप आगे बढ़ते ही जायेंगे। निर्विकल्प के बाद आप नीचे नहीं आ सकते हैं। यदि फिर भी कोई ऊपर नीचे होता रहता है तो उसको मालूम होना चाहिये कि वह अभी तक उस अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है और उसको दृढ़ता से स्वयं से पूछना होगा कि- ‘नहीं मुझे निर्विकल्प को प्राप्त करना है जहां से मुझे नीचे नहीं आना है।’ जो लोग निर्विकल्प में नहीं हैं उनको बचाया नहीं जा सकता है। मुझे यह कहते हुये दु:ख हो रहा है, पर उनको बचाया नहीं जा सकता है। उनको सजा दी जायेगी … हो सकता है,  

 अनआत्म साक्षात्कारियों जैसी सजा न मिले, परंतु उनको परमात्मा के साम्राज्य में स्थान नहीं मिल सकेगा......................

 …अतः आपको निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त करना होगा। इसके लिये किसी भी परिस्थिति को दोष देने का प्रयास न करें। अपने माता-पिता, भाई, वातावरण या ये या वो किसी को भी दोष न दें। किसी को भी दोष देने का प्रयास न करें, कि कोई आया और हम उनसे प्रभावित हो गये। आपको हो क्या गया है ? यहां मैं आपके सामने साक्षात हूं और आप मुझसे तो प्रभावित नहीं हैं, पर आप कैसे उन लोगों से प्रभावित हैं जो अत्यंत मूर्ख हैं ….और अत्यंत प्रभुत्ववादी हैं ? इसका अर्थ है कि आपका स्तर क्या है ? तो कल की पूजा का मुख्य बिंदु है कि आपको निर्विकल्प अवस्था में रहना होगा। आप कह सकते हैं कि यह ‘सहस्त्रार दिवस’ बहुत बड़ा दिन है, क्योंकि मैंने पहले कभी भी ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी, क्योंकि हम सार्वभौमिक धर्म ‘विश्व निर्मल धर्म’ में स्थापित हो चुके  हैं।”_____   –

परमपूज्य परमेश्वरी माताजी श्री निर्मलादेवी की  (सहस्त्रार पूजा के पहले दिन की) देववाणी . 

4-5-1985, लक्समबर्ग, ऑस्ट्रिया

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1.जो लोग निर्विकल्प अवस्था में नहीं हैं , उनका उद्धार होने वाला नहीं है । मुझे यह कहते हुए बहुत खेद है । वे बचाए नहीं जा सकेंगे । उन्हें दंडित किया जाएगा । हो सकता है उन्हें उस तरह से दंडित न किया जाए जिस प्रकार ] आत्म साक्षात्कार प्राप्त न करने वालों को किया जाए । लेकिन वे सर्वशक्तिमान ईश्वर के दरबार में नहीं बैठ पाएंगे । कम से कम आपको निर्विकल्प अवस्था में पहुँचना चाहिए । किसी भी परिस्थिति को दोष न दें । अपने पिता , माता , भाई , माहौल को दोष मत

2.मुझे खेद है कि मुझे यहां ऑस्ट्रिया में यह सब कहना पड़ रहा है । यह वह स्थान है जहां हमारी यात्रा बाईं और दाईं की सीमा पर समाप्त हो जानी चाहिए क्योंकि " मेरा पति वैसा है , " | " मेरी पत्नी वैसी है , " " क्योंकि मेरा बच्चा ऐसा है , " | आपको माफी नहीं मिलेगी।आप यह किससे कह रहे हो ? आपकी अपनी आत्मा से ? अपनी आत्मा को बताओ ! क्या यह इस बात को समझेगी ? इससे आपका चैतन्य आपसे दूर चला जाता है , आपका आनंद नष्ट होता है और आप की स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती ।

3.निर्विचारिता स्थापित करना बहुत आसान है । लेकिन वह भी कुछ लोगों ने प्राप्त नहीं की है । फिर निर्विकल्प का क्या ? आपको इसे बहुत गंभीरता से लेना होगा । यह अंतिम सहस्त्रार दिवस हो सकता है जिसे हम यूरोप में मना रहे हैं , हो सकता है , मुझे पता नहीं । ऐसा नहीं है कि मां केवल तभी खुश होगी जब उच्च योग्यता या उच्च क्षमता वाले लोग हों - ऐसा नहीं है । मुझे उन लोगों के लिए बहुत चिंता है जो खो गए हैं , जो बाहर हैं । लेकिन कभी - कभी अपने अनुभव से मुझे लगता है कि ऐसे लोग खराब हो जाते हैं । मेरा प्यार आपको बिगाड़ने के लिए नहीं है , आपको बर्बाद करने के लिए नहीं है

4. यह स्पष्ट है । मेरे पास समय कम है क्योंकि आपका कुंडलिनी यंत्र ठीक होना चाहिए । यदि आपको अपने कुण्डलिनी यंत्र का उचित तरीके से तेजी से विकास करना करना है ताकि उसमें ईश्वर का प्रेम प्रवाहित हो और उस ईश्वर का प्रेम उस पर प्रसन्न हो तब ] हमें ऐसे सुंदर फूल बनाने पड़ेंगे जिनकी वह सराहना करे ताकि वह नष्ट न हो । इस नाटक के दर्शक को संतुष्ट होना होगा ताकि वह अपने विनाश को स्थगित कर दे । इसलिए मैंने कहा कि समय कम है । समय बहुत कम है । 

5.यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे ईश्वर के दरबार में विकसित हों - वे महान संत हैं जो पैदा हुए हैं - अगर हम उन्हें आनंद का पूरा मौका देना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले आदर्श माता - पिता बनना होगा न कि केवल भ्रम के साथ जीने वाले लोग

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