निर्विचारिता में रहिये
......आपका जो किला है,आपका जो Fortress है वो निर्विचारिता।
निर्विचारिता में जानो, वहीं जान जाओगे सबकुछ, कोई भी कार्य करना हो निर्विचारिता में जाओ। सारा सांसारिक कार्य निर्विचारिता में करते ही साथ में आप जानियेगा कि कहाँ से कहाँ डायनमिक हो गया मामला।
फूलों को खिलते हुए किसने देखा है, फलों को लगते हुए किसने देखा है? संसार का सारा जीवंत कार्य होते हुए किसने देखा है? हो रहा है उसी डायनामिज्म में, उसी लिविंग चीज़ में आपको उतरना है। वो निर्विचारिता से आ रहा है ना।
उस स्थान पर आप बैठे हैं, जहाँ ये सारा संसार फीका है, निर्विचारिता में ही उसकी आदत लगायें, हर समय निर्विचार रहने का ही प्रयत्न करें।
.......निर्विचारिता में रहना चाहिए। यही आपका स्थान है, यही आपका धन है, यही आपका बल है, शक्ति है, यही आपका स्वरूप है, यही आपका सौंदर्य है और यही आपका जीवन है। निर्विचार होते ही बाकी का जो, बाहर का यंत्र है वह पूरा का पूरा आपके हाथ में घूमने लग जाता है। निर्विचारिता में रहिये, वहाँ पर न समय है, न दिशा है, न कोई छू सकता है, सिर्फ जीवंतता का दर्शन होता है। उस जगह से देखिये जहाँ से जीवन की धारा बहती है।
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