ब्रह्माण्ड के सहस्त्रार खोलने का "श्रीमाताजी" का अद्भुत अनुभव!!
सहस्त्रार को खोलने का अपना अनुभव मै आपको बताना चाहती हूँ। ज्यों ही सहस्त्रार खुला, पूरा वातावरण अदभुत चैतन्य से भर गया और आकाश में तेज रोशनी हुई तथा सभी कुछ...मुसलाधार वर्षा सा झरने की तरह पूरी शक्ति से पृथ्वी की और आया, मानो मै इनके प्रति चेतन ही नही थी, संवेदन शून्य हो गयी।
ये घटना इतनी अद्भुत थी और इतनी अनपेक्षित थी कि मै स्तब्ध रह गयी और इसकी भव्यता ने मुझे एकदम से मौन कर दिया।
आदि कुण्डलिनी को मैंने एक बहुत बड़ी भट्टी की तरह से ऊपर उठते देखा। ये भट्टी एकदम शांत थी परन्तु ये अग्नि की तरह से लाल थी मानो किसी धातु को तपाकर लाल कर लिया हो और उसमें से नाना प्रकार के रंग विकीर्णित हो रहे हो। इसी प्रकार से कुण्डलिनी भी सुरंग के आकार की भट्टी सम दिखाई दी, जैसे आप कोयला जलाकर बिजली बनाने वाले सयंत्रो में देखते है और...यह दूरबीन से दिखाई देने वाले दृश्य की तरह से फैलती चली गयी। एक के बाद एक विकिर्णन होता चला गया Shoot-Shoot-Shoot इस प्रकार से।
देवी-देवता आये और अपने सिंघासनो पर बैठते चले गए, स्वर्णिम सिंघासनो पर और फिर उन्होंने पूरे सिर को इस तरह उठाया मानो गुम्बद हो और इसे खोल दिया।
तत्पश्चात चैतन्य की इस मुसलाधार वर्षा ने मुझे पूरी तरह से सराबोर कर दिया। मै यह सब देखने लगी और आनंदमग्न हो गयी। यह सब ऐसा था मानो कोई, कलाकार अपनी ही कृति को निहार रहा हो और मैंने महान संतुष्टि के आनंद का एहसास किया।
इस सुन्दर अनुभव के आनंद को प्राप्त करने के बाद मैंने अपने चहुँ और देखा और पाया कि मानव कितने अन्धकार में है, और में एकदम मौन हो गयी। मैरे मन में इच्छा हुई कि मुझे कुछ ऐसे प्याले (पात्र) चाहिये,...जिनमें में यह अमृत भर सकूं, केवल पत्थरो पर इसे न डालूँ।
परमपूज्य माताजी श्रीनिर्मलादेवी सहस्त्रार पूजा, फ्रांस, 5.5.1982
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