क्या आप माँ आदिशक्ति के शरीर का हिस्सा हैं ?
"औरंगाबाद में एक नवयुवक ने मुझ से सवाल पूछा,"माँ, यह ब्रम्हचैतन्य की सर्वव्यापी शक्ति इंद्रियों से परे है। आप इसे इंद्रियों के द्वारा महसूस नहीं कर सकते। यह कैसे संभव है कि अब हम इसे अपनी इंद्रियों से महसूस कर रहे हैं?"
यह प्रश्न उसने मुझसे पूछा और यही सवाल मैं आपसे पूछती हूँ...... इसका उत्तर सरल है, लेकिन इसे पचाना मुश्किल है।
इसका उत्तर यह है कि ये सारे अवतरण जो इस धरती पर अवतरित हुए, वे सहस्रार का हिस्सा थे, ब्रम्हचैतन्य का अंग थे, आदिशक्ति के अंश थे।
वे इस धरती पर आए, उन्होंने कुछ ऐसे लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, जो अति उत्तम लोग थे, ऐसे लोग जिन्हें कोई समस्याएं नहीं थी।
ऐसा लगता है कि वे प्रेम के सागर से बाहर आए, और उन सबको प्रेम के सागर में, उस सागर का आनंद लेने के लिए ले गए....... लेकिन आप उस सागर में विलीन नहीं हुए थे।
आपके साथ कुछ विशेष घटित हुआ है। पूरे ब्रम्हचैतन्य ने, पूरे सागर ने, एक बादल का रुप ले लिया है। यह आदिशक्ति हैं, जो इस पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं, आप लोगों पर चैतन्य की वर्षा करने के लिए, आपको प्लावित करने के लिए, आपका पालन-पोषण करने के लिए, प्रेम के प्रगटीकरण के माध्यम से आपका इस तरह से विकास करने के लिए, जिससे आप आदिशक्ति के शरीर में प्रवेश कर गए हैं।
अतः एक घड़े की तरह जो कि गंगा में है, उसी तरह आप भी आदिशक्ति के शरीर की एक कोशिका जैसे बन गए हैं।
आपकी पहचान, आपका व्यक्तित्व परिरक्षित है। इसके बावजूद भी, आप ब्रम्हचैतन्य को अपनी इंद्रियों द्वारा अनुभव करते हैं, और आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं, लेकिन आप आदिशक्ति के शरीर में हैं। जब तक आप आदिशक्ति के शरीर में हैं, तब तक आप यह सब कुछ कर सकते हैं।"
परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ।
3 मई 1987
No comments:
Post a Comment