स्वाधिष्ठान चक्र के लिये एक्सरसाइजेज .....
(लुइस गैरिडो)
वर्ष 1983 की गर्मियों में ब्राइटन आश्रम में श्रीमाताजी के बुद्ध स्वरूप की पूजा की गई। पूजा से एक दिन पहले श्रीमाताजी वहाँ आईं तो उन्होंने नोटिस किया कि हम सब लोग आलस्य के कारण बैठे हुये हैं।
उन्होंने हमें कुछ समय तक बार-बार खड़े होने और बैठने के लिये कहा। जब हम खड़े थे तो उसी समय श्रीमाताजी आगे की ओर झुकने लगीं और फिर पीछे की ओर झुकीं।
इसके बाद वे बाँई ओर और फिर दाँई ओर को झुकीं मानो हम किसी जिमनास्टिक्स की क्लास में खड़े हों लेकिन हमारे मूवमैंट्स थोड़े हल्के थे।
हमारा प्रत्येक स्ट्रेच लगभग 1 मिनट का था। कुछ देर तक रूकने के पश्चात फिर से हमने चार बार वैसा ही किया जैसा माँ ने हमें बताया।
श्रीमाताजी ने हमें बताया कि ये सारी एक्सरसाइजेज स्वाधिष्ठान चक्र के लिये अच्छी थीं। हमें माँ के साथ एक्सरसाइज करना बड़ा मजेदार लगा।
एक बार हम सब बैठे हुये थे। माँ ने फिर से हमें अपने हाथों के अंगूठों को रगड़ने के लिये कहा। उन्होंने स्वयं अपने अंगूठों को 5 मिनट तक जोर से रगड़ा औऱ हम सबने भी ऐसा ही किया। काफी देर बाद हममें से कई लोगों ने ऐसा करना बंद कर दिया तो माँ ने कहा कि तब तक अपने अंगूठों को रगड़ते रहिये जब तक कि आपके अंगूठों से कैच चला न जाय।
उन्होंने हमें खास तौर से बताया कि हमें किसी कैच को अपने अंगूठे पर नहीं रहने देना चाहिये और अपने अंगूठों को तब तक रगड़ते रहना चाहिये जब तक कैच चला न जाय।
माँ ने बताया कि यदि हम चाहें तो अपने अंगूठों पर तेल भी लगा सकते हैं। इस घटना के एक साल बाद हमारे बीच श्रीमाताजी का एक मैसेज सर्कुलेट किया गया कि वाइब्रेटेड नमक को हथेलियों और अंगूठों पर रगड़ने से भी हमारे चक्र स्वच्छ होते हैं।
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