पानी पैर क्रिया
ध्यान धारणा के समय हल्कापन : जैसा उपरोक्त तालिका दर्शाती है, मूलाधार चक्र से ज्यॉ-ज्यों व्यक्ति सहस्रार की ओर बढ़ता है, तत्वों का वजन घटने लगता है। उदाहरण के रूप में कुण्डलिनी मूलाधार चक्र से सीधे नाभि चक्र पर पहुँचती है और जल (नाभि का तत्व) पृथ्वी तत्व से हल्का है। तत्पश्चात् कुण्डलिनी स्वाधिष्ठान पर आती है (ध्यान रखें कि स्वाधिष्ठान चक्र की उत्पति नाभि चक्र से हुई है और यह नाभि चक्र के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है) और वहाँ अग्नि तत्व जल तत्व से हल्का है | इसके बाद कुण्डलिनी नाभि मार्ग से हृदय चक्र पर आती है | यहाँ वायु तत्व जो जल तत्व से भी हल्का है | जैसे-जैसे व्यक्ति ऊपर उठता है तत्वों का भार कम होता चला जाता है और सहसार पर चैतन्य-लहरियाँ तो बिल्कुल भारहीन होती हैं । यही कारण है कि नीचे के चक्र से ज्यों -ज्यों हम ऊपर को उठते हैं हमें हल्केपन का एहसास होने लगता है और सहस्रार पर तो हम पूरी तरह से हल्के और शान्त हो जाते है।
ये कहना अनावश्यक होगा कि सहजयोगियों को प्रतिदिन पानी पैर क्रिया अवश्य करनी चाहिए क्योंकि हम सब गृहस्थ हैं और सामाजिक प्राणी हैं । हर समय जाने-अनजाने हम अपने कानों, आँखो, नाक आदि विज्ञापनों तथा बात-चीत के माध्यम से बाधाओं को अपने अन्दर खींचते रहते हैं | इस प्रकार हम निरन्तर बहुत सी नकारात्मकता अपने चक्रों तथा नाड़ियों में भर लेते हैं जिसे बाहर से नहीं देखा जा सकता । अपने सूक्ष्म तंत्र और नस-नाड़ियों को यदि हम प्रतिदिन साफ नहीं करते तो हमारा बाधित नाड़ी-तंत्र कुण्डलिनी एवं चैतन्य -लहरियों को ठीक से प्रवाहित न कर पाएगा ।
अपने एक प्रवचन में श्रीमाताजी ने बताया था कि हमारे जीवन की 80 प्रतिशत समस्याएं पानी पैर उपचार से ही ठीक हो जाती हैं | हम भी जानते हैं कि यदि हम किसी एक दिन के पूरे विचारों को अन्य दिनों के विचारों से अलग करके देखें तो पाएंगे कि उस दिन के अधिकतर विचार नाभि चक्र से जुड़े होते हैं अर्थात ये विचार पति/पत्नि या बच्चों या व्यापार के बारे में होते हैं | पानी पैर क्रिया किस प्रकार चक्रों को शुद्ध करती है।
पानी में पैर डालकर जब हम बैठते हैं तो पानी पड़ा हुआ नमक हमारे मूलाधार चक्र को शुद्ध करता है । वैज्ञानिक रूप से भी, हम जानते है ; नमक में पृथ्वी तत्व का बाहुल्य है । जब बिजली की तारों का पृथ्वीकरण करना होता है तो तार डालने के लिए खोदे गए गड्ढे में नमक भी डाला जाता हैं । जल तत्व नाभि को शुद्ध करता है, दीपक की लौ ( अग्नि तत्व) स्वाधिष्ठान चक्र को बाधा मुक्त करती है, वायु हृदय को, आकाश विशुद्धि को, दीपक का प्रकाश आज्ञा चक्र को तथा श्रीमाताजी की फोटो से प्रवाहित होने वाली चैतन्य लहरियाँ सहस्त्रार चक्र को बाधा -मुक्त करती हैं | इस प्रकार से हम अपने सूक्ष्म तंत्र को स्वच्छ कर सकते हैं |
पानी पैर क्रिया करते हुए अपनी आँखे खुली रखें।
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