Wednesday, January 20, 2021

Shri Lakshmi Tatwa, Lecture of Shri Mataji, 09.03.1979, Delhi, Hindi

 



कृष्ण ने अपने गीता में कहा है कि "योगक्षेमं वहाम्यहम्" इसका मतलब है पहले योग।पहले वो क्षेम कहते। पहले उन्होंने योग कहा।उसके बाद क्षेम कहा है। क्षेम का मतलब होता है आपका well being आपका लक्ष्मी तत्व। 

पर पहले योग होना चाहिए।जब तक योग नहीं होता,तब तक परमात्मा से आपसे कोई मतलब नहीं।

आपका पहले योग मतलब परमात्मा से पहले मिलन होना चाहिए।आपके अंदर आत्मा जागृत होनी चाहिए।जब आपके अंदर आत्मा जागृत हो जाती है,तब आप परमात्मा के दरबार में असल में जाते हैं।नहीं तो आप रट्टू तोते के जैसे कहा करते हैं।

जो कुछ भी बात है,बाहर ही रह जाती है।अंदर का आपा जब तक आप जानते नहीं,जब तक आप अपने को पहचानते नहीं,तब तक आप परमात्मा के राज्य में आते नहीं,और इसीलिए आप उसके अधिकारी नहीं हैं,जो परमात्मा ने कहा हुआ है।

बहुत से लोग परमात्मा को इसका दोष देते हैं।जब देखो परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं।इतनी हम पूजा कर रहे हैं।इतने सर के बल खड़े होते हैं।ये करते हैं,वो करते हैं।भोग चढ़ाते हैं,सुबह से शाम तक रटते बैठते हैं।तो भी हमें परमात्मा क्यों नहीं मिलता।

वास्तविकता परमात्मा से बात करने के लिए तक आपका उनसे संबंध होना चाहिए, connection होना चाहिए।

जब तक आपका योग घटित नहीं होता,तब तक क्षेम नहीं हो सकता।क्षेम का मतलब है आपकी चारों तरफ से रक्षा।

ये लक्ष्मी तत्व हमारे अंदर है,वो जागृत हो जाता है।कृष्ण ने सिर्फ ये कहा है कि "वहाम्यहम्" मैं करूँगा,पर कैसे करूँगा,सो नहीं कहा।

सो मैं आपको बताती हूँ कि वो किस तरह से होता है।

जिस वक्त योग घटित होता है,तब कुंडलिनी त्रिकोणाकार अस्थि से उठ करके ब्रह्मरंध्र को छेद देती है।जब कुंडलिनी की शक्ति ब्रह्मरंध्र को छेदती है,तब उसमें ज्योत आ जाती है।क्योंकि आत्मा की ज्योत वो पा लेती है।और उस जोत के कारण नाभि चक्र में जो लक्ष्मी तत्व है,वो जागृत हो जाता है।

जैसे ही लक्ष्मी तत्व आप में जागृत हो जाएगा,चारों तरफ से आप देखिएगा,आपके खुशहाली रहेगी।

कोई आदमी रईस हो जाए,जिसको हम पैसेवाला कहते हैं,वो ज़रूरी नहीं;कि खुशहाल है।अधिकतर पैसे वाले लोग महादुखी होते हैं।जितना पैसा होगा,उतने ही वो गधे होते हैं।

उससे उनके घर के अंदर गंदगी आती है..शराब,दुनिया भर की चीज, मक्कारीपन,झूठापन हर तरह की चीज उनके अंदर रहती है।हर समय डर,भय कि अभी गवर्मेंट आके पकड़ती है कि खाती है कि हमारा पैसा जाता है कि ये होता है,वो होता है।

तो जो बहुत रईस लोग हैं,वो भी कोई लक्ष्मीपति नहीं,क्योंकि उनके अंदर लक्ष्मी का तत्व नहीं जागृत हुआ है।सिर्फ पैसा कमा लिया।पैसा उनके लिए मिट्टी जैसा है।कोई उससे उनको सुख नहीं है।

लक्ष्मी का तत्व समझना चाहिए।

मैंने पिछली मर्तबा बताया था कि लक्ष्मी कैसी बनाई हुई हैं।

उसके हाथ में दो कमल हैं,जो गुलाबी रंग के हैं।

और एक हाथ से वो दान करती है,और एक हाथ से आश्रय देती है।

गुलाबी रंग का द्योतक होता है प्रेम।जिस मनुष्य के हृदय में प्रेम नहीं है,वो लक्ष्मीपति नहीं होता।

उसका घर ऐसा होना चाहिए,जैसे कमल का फूल होता है।

कमल के फूल के अंदर भंवरे जैसा जानवर वो तो बिलकुल शुष्क होता है।उसके काँटे चुभते हैं,अगर आप हाथ में लीजिए तो।उसको तक वो स्थान देता है।

अपनी गाभा पर उसको सुलाता है,उसको शांति देता है।

लक्ष्मीपति का मतलब ये है,कि जिसका दिल बहुत बड़ा हो।जो अपने घर आए अतिथियों को किसी को भी अत्यंत आनंददायी होता है।वो लक्ष्मीपति होता है।

लेकिन अधिकतर आप रईस लोग देखते हैं कि महाभिखारी होते हैं।उनके घर आप जाइए,तो उनके एकदम जान निकल जाती है कि मेरे दो पैसे खर्च होयेंगे।जिस आदमी को हर समय ये फिकर लगी रहती है कि मेरे यहाँ चार पैसे खर्च हो रहे हैं,दो पैसे वहाँ खर्च हो रहे हैं।इसको जोड़ के रखो,उसको कहाँ बचाऊँ,इसको कहाँ काटूँ,वो आदमी लक्ष्मीपति नहीं है।

कंजूस आदमी लक्ष्मीपति नहीं हो सकता।

जो कंजूस है,वो कंजूस है।वो लक्ष्मीपति नहीं है।कंजूस आदमी दरिद्री होता है,महादरिद्री होता है।

उसमें कोई बादशाहत नहीं होती।

जिस आदमी की तबियत में बादशाहत नहीं होती ,उसको लक्ष्मीपति नहीं कहना चाहिए।जो आदमी बादशाही होता है,वो चाहे दरिद्री में रहे,चाहे अमीरी में रहे,वो बादशाह होता है।

वो बादशाह के जैसे रहता है।छोटी-छोटी चीज के पीछे में,दो-दो पैसे के पीछे में,दो-दो कौड़ी के पीछे में,इसके पीछे में,उसके पीछे में परेशान होने वाला लक्ष्मीपति नहीं हो सकता।इसीलिए लक्ष्मी तत्व फिर जागृत नहीं होता, इसलिए नाभि चक्र की बड़ी जोर की पकड़ हो जाती है। 

Materialism आ जाता है उस आदमी के अंदर।जड़वादी हो जाता है।छोटी छोटी चीज का उसको बड़ा ख्याल..ये मेरा,ये मेरा,ये मेरा बेटा ये मेरा फलाना ये ठिगाना..ये सारी चीज जिस आदमी में आ गयी,वो लक्ष्मीपति नहीं।

इसकी चीज मारूँ कि उसकी चीज मारूँ कि ये लूँ कि वो लूँ कि ये सब मेरे लिए होना चाहिए।इस तरह से जो आदमी सोचता है,वो भी लक्ष्मीपति नहीं।

जो दूसरों के लिए सोचता है।गर मेरा आलीशान मकान है,तो उसमें कितने लोग आके बैठेंगे।गर मेरे पास आलीशान चीज है,तो कितने लोगों को आराम होएगा।कैसे मैं दूसरे लोगों का स्वागत कर पाऊँगा,कैसे मैं दूसरों की मदद कर पाऊँगा।किस तरह से मैं उनको अपने हृदय में स्थान दूँगा।मदद का भी सवाल नहीं उठता।आदमी यही सोचता है कि ये मेरे हक में है।उनके साथ जो भी मैं कर रहा हूँ,वो अपने ही साथ कर रहा हूँ।तब असली लक्ष्मी तत्व जागृत हो जाता है।

कमल के जैसा उसका रहन-सहन और उसकी शकल होनी चाहिए।सुरभित होना चाहिए ऐसा आदमी।

ना कि उससे हर समय घमंड की बदबू आए।

अत्यंत नम्र होना चाहिए।कमल का फूल हमेशा आपने देखा है एक ऐसी हमेशा थोड़ी सी झुकान रहती है।कमल कभी भी ऐसा खड़ा नहीं होता है।थोड़ी सी झुकान ज़रूर डंठल में आ जाती है।

उसी प्रकार जो कम से कम जो लक्ष्मी जी के हाथ में कमल है दोनों में इसी तरह की सुकुमारता है।दूसरों से बात करते वक्त में बहुत ठंडी तबियत से,आनंद से, प्रेम भरा इस तरह से बात करता है।झूठा नहीं होता।कोई प्लास्टिक के नहीं होते हैं वो कमल,असली कमल होते हैं।ऐसा मनुष्य असल में कमल के जैसा होना चाहिए।

एक हाथ से वो दानी होना चाहिए।उसके हाथ से दान बहते ही रहना चाहिए,बहते ही रहना चाहिए।

हमने अपने पिता को ऐसे देखा है।पिता की बात हम देखते हैं बहुत बार कि बहुत दानी आदमी थे।देते ही रहते थे।उनके पास कुछ ज्यादा हो जाए,तो बाँटते ही रहते थे। मज़ा ही नहीं आता था,जब तक वो बाँटें नहीं।अगर उनसे कोई कहे,आप आँख उठाकर नहीं देखते,जो आया वही उठाकर ले जा रहा है।आप आँख उठाकर नहीं देखते।तो कहने लगे,मैं क्या देखूँ,जो देने वाला वो दे रहा है।मैं तो सिर्फ बीच में खड़ा हूँ,दे रहा हूँ।मुझे क्या देखने का,मुझे तो शर्म लगती है कि कोई कहे कि तुम दे रहे हो।इस तरह का दानत्व वाला आदमी जो होता है,वो अपने लिए कुछ भी संग्रह नहीं करता।वो दूसरों को बाँटते रहता है,दूसरों को देते रहता है।देने में ही उसको आनंद आता है,लेने में नहीं।ये आदमी लक्ष्मीपति होता है।

ऐसे को ही मिलते रहता है हजार बार।जो अपने बारे में ही सोचता रहे,मेरा कैसे भला होगा,मेरे बच्चों का कैसे भला होगा,मैं कैसे अच्छा होऊँगा।ऐसे आदमी को लक्ष्मीपति नहीं कहते,कोई शोभा नहीं,भिखारी होता है हर समय।

और एक हाथ से वो आश्रय देता है।हर एक को अपने घर में जो भी आए,उसे अत्यंत प्रेम से रहना,उसके अपने बेटे जैसे उसकी सेवा करना आश्रय उसके यहाँ नौकर-चाकर,घर में जानवर,अनेक लोग उसके आश्रय में होते हैं।पर वो हमेशा ये जानते हैं कि हमारा ये आश्रयदाता है।कोई हमें तकलीफ होएगी,वो हमें देगा।रात में उठकर भी देगा,और चुपके से करता है।किसी से बताता नहीं,जताता नहीं,दुनिया को दिखाता नहीं कि मैंने किसी के लिए इतना कर दिया।एकदम चुपके से कर देता है।परमात्मा भी हूबहू ऐसा है।

वो स्त्री स्वरूप,माँ स्वरूप बनाया हुआ एक स्त्री का स्वरूप है।एक कमल पे लक्ष्मीजी खड़ी हो जाती हैं।आप सोचिए,कमल पे खड़ा होना,मतलब आदमी में कितनी सादगी होनी चाहिए।बिल्कुल हल्का,उसमें कोई बोझा नहीं।कमल पर भी वो खड़े हो सके,ऐसा आदमी उसे होना चाहिए।

जो किसी को अपने बोझे से ना दबाए।जो बहुत ही नम्र होना चाहिए।

जो दिखाते फिरते हैं,हमारे पास ये चीज है,वो चीज है,फलाना है,ठेगाना है,वो लक्ष्मीपति नहीं हो सकता।

मातृत्व उनमें होना चाहिए।माँ का हृदय होना चाहिए,तब उसे लक्ष्मीपति कहना चाहिए।

ये सब लक्ष्मी पति के लक्षण हैं,और जब आपके अंदर ये तत्व जागृत हो जाता है,तो पहली चीज आप में आती है संतोष।

ऐसे तो किसी चीज का अंत ही नही है,आप जानते हैं।इकोनामिक्स में कहते हैं कि कोई सी wants (अस्पष्ट)होती नहीं है जनरल।आज आपके पास ये है,तो कल वो चाहिए..वो है तो वो चाहिए,वो है तो वो चाहिए।आदमी पागल जैसे दौड़ते रहता है।उसके कोई हद ही नहीं है।आज ये मिला,तो वो चाहिए,वो मिला,तो वो चाहिए।

लेकिन आदमी में संतोष आ जाता है।उसे संतोष आ जाता है।जब तक आदमी में संतोष नहीं आएगा,वो किसी भी चीज का मजा नहीं ले सकता।क्योंकि संतोष जो है,वो वर्तमान की चीज है present की चीज है।

और आशा जो है,वो future की चीज है।निराशा जो है,वो past की चीज है।

आप जब संतोष में खड़े रहते हैं fully satisfied जिसे कहते हैं,तब आप पूरा उसका आनंद उठा रहे हैं,जो आपको मिला हुआ है।नहीं तो उनके पास कितना भी रहता है,तो भी कहते हैं - अरे!उसके पास इतना है,मुझे वो चाहिए।तो ये काहे को मिला आपको?तो उसको वो मिला,तो उसको वो चाहिए।कभी भी ऐसा आदमी अपने जीवन का आनंद नहीं उठा सकता,कभी भी वो ऊँचा नहीं उठ सकता।रात-दिन उसकी नज़र जो है,ऐसी पड़ती रहेगी,जो चीजें बिल्कुल व्यर्थ है।जिनका कोई भी महत्व नहीं।जिनका जीवन में कोई भी महत्व नहीं।जिसका अपने जीवन के आनंद से कोई संबंध नहीं,ऐसी चीजों के पीछे में भागते रहता है।

पर पहले योग घटित होना चाहिए,फिर क्षेम होता है।

हमारे सहजयोग में यहाँ पर भी अनेक लोग आए हुए हैं।जोकि हमारे साथ सहजयोग में रहे,और जिन्होंने पाया,और इसमें प्रगति की है।उनकी सबकी financial प्रगति हो गयी सबकी A-Z.कोई-कोई लोगों के तो पास तो लाखों रूपया आ गया।जिनके पास एक रूपया नहीं था,उनको लाखों रूपया मिला।ऐसे भी लोग हमारे यहाँ हैं,जिन्होंने अब जैसे मियाँ-बीबी यहाँ आए हुए हैं अंग्रेज लोग..पहले इंडिया आना चाहते थे।तो इन्होंने कहा कि कैसे जायें?पैसा तो है उनके पास।उनकी भी बड़ी प्रगति हो गयी।ऐसे भी इनको बहुत पैसा-वैसा मिल गया,और काफी आराम से रहने लगे।लेकिन जब आने लगे,तो इनको एक फर्म ने कह दिया कि अच्छा तुम मुफत में जाओ।हम तुम्हारा पैसा देंगे,क्योंकि हम तुम्हारा ये काम कर देंगे।छोटी-छोटी चीज में परमात्मा मदद करता है।और आपके इतना रूपया आपके पास बच जाता है कि आपके समझ नहीं आता कि आप क्या करें।

वो लोग पहले ड्रग्स लेते थे,शराब लेते थे,और दुनिया भर की चीजें करते थे।उसमें बहुत रूपया निकल जाता था।अब मैंने देखा कि उनके घर अच्छे हो गये।घरों में सब चीजें आ गयीं।अच्छे से म्यूजिक सुनते हैं।सब अच्छे शौक उनके अंदर आ गये।सब बढ़िया तरीके से रहने लग गये।इनके बाल-बच्चे अच्छे हो गये।मैंने पूछा कि ये कैसे हुआ?

कहने लगे,हम तो सारा पैसा ऐसे बर्बाद करते थे,और होश ही नहीं था कि हम कहाँ रहते थे।हम तो बेहोश ही रहते थे,हमको पता ही नहीं था कि हम कैसे रहते थे,हम क्या करते थे।इसीलिए जो गुरूजन हो गये उन्होंने शराब और ऐसी चीजों को एकदम मना किया हुआ है।

अब शराब इतनी हानिकर चीज है कि इस तरफ से बोतल आई शराब की और उस तरफ से लक्ष्मीजी चली गयीं सीधा ही।उन्होंने देखा कि शराब की बोतल अंदर आई उधर से वो चली गयीं।

ऐसे आदमी को कभी भी लक्ष्मी का सुख नहीं मिलता।जिनके घर में शराब चलती है,उनके घर में लक्ष्मीजी का सुख नहीं हो सकता है।हाँ,उनके यहाँ पैसा होएगा।लड़के रूपया उड़ायेंगे,बीवी भाग जाएगी।कुछ ना कुछ गड़बड़ हो जाएगा।बच्चे भाग जायेंगे,कुछ ना कुछ तमाशे हो जायेंगे।आज तक एक भी घर आप बतायें जहाँ शराब चलती हो,और लोग खुशहाल हों।खुशहाल हो ही नहीं सकते।

खुशहाली शराब के बिल्कुल विरोध में बैठती है।

इसलिए गुरूजनों ने जो मना किया है..खासकर हर एक ने आखिर वो कोई पागल नहीं थे।उन्होंने हजार बार इस चीज को मना किया है कि शराब पीना बुरी बात है।शराब मत पियो,शराब मत पियो।शराब तो एक ऐसी चीज है कि ये भगवान ने पीने के लिए कभी नहीं बनाई थी,पालिश करने के लिए बनाई थी।कल लोग फिनाइल पीने लगेंगे क्या कहें आदमी के दिमाग का।कुछ भी पीने लग जायें,उसमें कौन क्या कर सकता है।आदमी का दिमाग इतना चौपट है,कि कोई भी चीज उसकी समझ में आ जाए,तो पीने लग जाता है।

उससे किसने कहा था शराब पीने के लिए?अब ये पालिश की चीज आप शराब के नाम पर जब पीते हैं,तो अपने भी जैसे लीवर है,intestine है,सब पालिश होते जाता है।यहाँ तक की arteries आपकी पालिश होके stiff हो जाती है।Arteries इतनी stiff हो जाती है कि उसकी जो स्नायु हैं,वो अपने(अस्पष्ट)ना तो वो बढ़ सकते हैं,ना घट सकते हैं,बस जम से जाते हैं।

Arteries एकदम एक साइज की हो जाती हैं,तो खून भी नहीं चल पाता।खून भी अटक जाता है।जबकि वो उसकी जब कोई भी दबाव ना हो,उसके कोई खुलाव ना हो।एकदम जैसे नली जैसे बन जाए arteries तो उसमें क्या होगा?ऐसा पालिश जब चलता जाता है,उसकी कोई हद नहीं,और मनुष्य भी पालिश बन जाता है।ऐसा आदमी बड़ा कृत्रिम होता है,ऊपर से बड़ा अच्छाई दिखाएगा।शराबी आदमी है,ऊपर से बड़ा शरीफ है,वो बड़ा दानी है,ऐसा है,वैसा है।सब ऊपरी चीज है।जो अपने बीवी-बच्चों को भूखा मार सकता है,जो अपने बीवी-बच्चों से ज्यादती कर सकता है,वो आदमी कितना भी भला बाहर बन के घूमे,उसका क्या अर्थ निकलता है,बताइए।

शराब की इतनी मनाही कर गये,इतनी मनाही कर गये,क्यों कर गये।

मुसलमानों को इतनी मनाही है शराब की,लेकिन मुसलमानों से ज्यादा कोई पीता ही नहीं।क्यों मनाही कर गये?सोचना चाहिए।मोहम्मद साहब जैसे आदमी क्यों मनाही कर गये।नानक साहब इतना मनाही कर गये।सिखों से ज्यादा तो लंडन में कोई पीता ही नहीं।उनके आगे तो अंग्रेज हार गये,है सही बात की नहीं?

कौन से धर्म में शराब को अच्छा कहा है?कोई भी धर्म में नहीं कहा होगा।

लेकिन सब धर्म में लोग इतना ज्यादा पीते हैं,और अपने गुरूओं का अपमान हुआ है।हमारी सारी नाभि चक्र और उसके चारों तरफ 10 हमारे जो धर्म हैं,जो कि गुरूओं ने बनाए हैं।ये 10 धर्म हमारे नाभि में होते हैं।इसीलिए इन गुरूओं ने हमें मना किया हुआ है कि आप अपने धर्मों को बनाने के लिए पहली चीज है शराब या कोई सी भी ऐसी आदत ना लगायें जिससे आप उसके गुलाम हो जायें।

गर आपको ये गुलामी करनी है,तो आप स्वतंत्रता की बात क्यों करते हैं?लोग तो सोचते हैं कि गुलामी करना ही स्वतंत्रता है।आपको गर कोई मना करे कि बेटे!शराब नहीं पियो,तो लोग सोचते हैं कि देखो ये मुझे रोकते हैं,टोकते हैं।

मेरी स्वतंत्रता छीनते हैं।मनुष्य इतना पागल है,उसको मना इसलिए किया जाता है कि बेटे तू दूसरी गुलामी मत कर।जब कभी कोई बात बड़े लोग बताते हैं,तो उसको विचारना चाहिए,ना कि उसको रटते बैठना चाहिए सुबह से शाम तक।उसको विचारना चाहिए,उसको सोचना चाहिए इन्होंने ऐसी बात क्यों कही।कोई ना कोई इसकी वजह हो सकती है।

ऐसे इतने बड़े इतने ऊँचे लोगों को ऐसी बात कहने की क्या जरूरत पड़ गयी?क्यों इस चीज को बार-बार उन्होंने मना किया?ये सोचना चाहिए,और विचारना चाहिए।और कोई भी मनुष्य-2 जरा सा भी बैठकर सोचे तो वो समझ सकता है कि इस कदर इतनी गंदी चीजें हमने अपना ली हैं,जिसके कारण हमारे यहाँ से लक्ष्मी तत्व चला गया है।इंडिया से लक्ष्मी तत्व बिल्कुल पूरी तरह से चला गया है।यहाँ पर लक्ष्मी तत्व है ही नहीं।और जागृत करना भी बहुत कठिन है,क्योंकि लक्ष्मी तत्व जो है,वही परमात्मा के खोज का पाया है।नाभि में ही विष्णुजी का स्थान है।और विष्णुजी का जो स्थान है विष्णु...लक्ष्मी जिन्हें हम उनकी शक्ति मानते हैं।

इसी में हमारी खोज शुरू होती है।जब हम अमीबा रहते,तो हम खाना खोजते हैं।जरा उससे बड़े जानवर हो गये,तो और कुछ खाना-पीना और संग-साथी ढूँढते रहते हैं।उसके बाद हम इंसान बन गये,तो हम सत्ता खोजते हैं।हम इसमें पैसा खोजते हैं।बहुत से लोग तो खाने-पीने में ही मरे जाते हैं।बहुत से लोग तो सुबह से शाम तक क्या खाना है,क्या नहीं खाना है।ये करना है,वो करना है,इसी में सारे बर्बाद रहते हैं।जिन लोगों को अति खाने की बीमारी होती है,वो भी लक्ष्मीपति कैसे,वो तो भिखारी होते हैं(अस्पष्ट)जिनका तो दिल ही नहीं भरता।

एक मुझे कहने लगीं,एक हमारे यहाँ बहू आयीं थीं रिश्ते में।कहने लगीं मेरे बाप के यहाँ ये था,वो था।अरे!मैंने कहा तुममें तो दिखाई देना चाहिए।तुम्हारे अंदर तो जरा भी संतोष नहीं है।ये खाने को चाहिए तुमको वो खाने को चाहिए,घूमने को चाहिए,फिरने को चाहिए।कोई संतोष तुम्हारे बाप ने दिया कि नहीं दिया तुमको?गर वाकई तुम्हारे बाप ऐसे लक्ष्मीपति थे,तो कुछ तो तुम्हारे अंदर संतोष होता।

मिला तो मिला..नहीं तो नहीं मिला।जब ये स्थिति मनुष्य की आ जाती है।जब उसकी सत्ता खतम हो गयी,जब उसको समझ में आया कि सत्ता में नहीं रहा,पैसे में नहीं रहा।किसी चीज में वो आनंद नहीं मिला,जिसे खोज रहा था।

तब आनंद की खोज शुरू हो जाती है।

वो भी नाभि चक्र की ही होती है।इसी खोज के कारण आज हम अमीबा से इंसान बने हैं,और इसी खोज के कारण जिससे हम परमात्मा को खोजते हैं,हम इंसान से अतिमानव होते हैं।आपा को पहचानते हैं।आत्मा को पहचानते हैं।इसी खोज से..इसलिए लक्ष्मी तत्व बहुत जरूरी है।और लक्ष्मी तत्व जो बैठा हुआ है,उसके चारों तरफ धर्म है।

मनुष्य के 10 धर्म बने हुए हैं।अब आप माडर्न हो गये,तो आप सब धर्म उठाकर चूल्हे में डाल दीजिए।भाई!आप माडर्न हो गये,क्या कहने आपके।लेकिन ये तो आपके अंदर दसों धर्म हैं ही।ये स्थित हैं।ये वहाँ हैं।

अगर मनुष्य के दस धर्म नहीं रहे,तो राक्षस हो जाएगा।

जैसे ये सोने का धर्म होता है,ये खराब नहीं होता।इसी तरह से आपके अंदर जो 10 धर्म हैं,वो आपको बनाए रखने हैं,जो मानव धर्म हैं।गर इन धर्मों की आप अवहेलना कर लें।और उसके उपधर्म भी हैं।लेकिन बेसिकली ये 10 धर्म आपको संभालने हैं।गर वो आप 10 धर्म ना संभालें,तो आपका कभी भी उद्धार नहीं हो सकता।कभी भी आप पार नहीं हो सकते।पहले जब तक आप धर्म को नहीं मनाते हैं,तब तक आप धर्मातीत नहीं हो सकते।धर्म से ऊपर नहीं उठ सकते।पहले इन धर्मों को बनाना पड़ता है,और इसीलिए इन गुरूओं ने बहुत मेहनत की है,बहुत मेहनत करी है।इनकी मेहनत को हम बिल्कुल मटियामेट कर रहे हैं अपनी अकल से।सब इसको खतम किए दे रहे हैं।

इन 10 धर्मों को बनाना हमारा पहला परम कर्तव्य है।

लेकिन आजकल के जो गुरू निकले हुए हैं,उनको आपसे,धर्म से कोई मतलब नहीं।आप शराब पीते हैं..हमको भी एक बोतल लाओ,और आपको कोई हरजा नहीं।अच्छा अगर आप औरतें रख रहे हैं,तो रखिए..10 औरतें रखिए,और एक हमारे पास भी भिजवा दीजिए या अपने बीवी-बच्चे हमारे पास भेज दीजिए।आपकी जेब में जितना रूपया है,हमारे पास दे दीजिए,हमें आपसे कोई मतलब नहीं।आपको जो भी धंधा करना है,करिए।आपके बस पर्स में जितना पैसा है,वो इधर जमा कर दीजिए,और आप चाहे जैसा करिए।

आज ही एक किस्सा बता रही थीं।ये हमारे आई हुईं हैं साथ में।इनकी कजिन थीं वो ..राजकन्या हैं वो भी।और उनके पति बहुत शराबी-कबाबी..बहुत बुरे आदमी थे।और वो एक गुरू के शिष्य थे।उन्होंने जाके बताया कि आदमी मारता है,पीटता है,सताता है,औरत रख ली है,उनको कुछ कहो।वो औरतें रखता है,राजकुमार है,लेकिन क्या करें उसका इतना खराब हो रहा है।तो कहने लगे,रहने दो तुमको क्या करना।उनसे रूपया ऐंठते गये,रूपया ऐंठते गये।गुरूजी को मतलब उनके रूपये से।ये कोई गुरू हुए।

जो आपसे रूपया ऐंठते हैं।आपके गुरू हो ही कैसे सकते हैं,जो आपके पैसे के बूते पर रहते हैं।ये पैरासाइट्स हैं।आपके नौकरों से भी गये-गुजरे।कम से कम आपके नौकर आपका कुछ काम करते हैं।जो लोग आपसे रूपया लेकर जीते हैं,ऐसे दुष्टों को बिल्कुल राक्षसों की योनि में डालना चाहिए।

और ऐसे दुष्टों के पास जाने वाले लोग भी महामूर्ख हैं मैं कहती हूँ।वो देखते क्यों नही।क्या आप परमात्मा को खरीद सकते हैं?आप किसी गुरू को खरीद सकते हैं?अगर कोई गुरू हो,तो अपने को बेचेगा?उसकी अपनी एक शान होती है।उसको आप खरीद नहीं सकते।कोई भी चाहे,एक भी चीज से आप उसको मात कर सकते हैं आपके प्यार से,आपकी श्रद्धा से,आपके प्रेम से,भक्ति से।और किसी भी चीज से वश में आने वाली चीज नहीं है।उसकी अपनी एक शान होती है।वो अपनी एक प्रतिष्ठा में रहता है।उसकी एक बादशाहत होती है।उसको क्या परवाह होगी।आप हैं रईस तो बैठिए अपने घर में।उसको क्या,वो पत्तल में भी खा सकता है।वो क्या जमीन पर भी सो सकता है।वो चाहे राजमहल में रह सकता है।वो जैसा रहना चाहे रहेगा,उसे आपसे कोई मतलब नहीं।

उसको तो सिर्फ आपके प्यार से,आपकी श्रद्धा से,और आपकी खोज से।अगर आपको खोज है,तो सर आँखों पर वो आपको उठा लेगा।ऐसे गुरू को खोजना चाहिए।जो आपको परमात्मा की बात बताए।जो आपसे आत्मा की पहचान कराए।जो मालिक से मिलाए,वही गुरू माना हुआ है।

जिसे देखो..वही गुरू..ये तो अगुरू भी नहीं हैं राक्षस हैं राक्षस।अँगूठियाँ निकाल के आपको देते हैं।जो आदमी आपको अँगूठी निकाल के देता है,वो क्या आपसे परमात्मा की बात करता होगा।आपका चित्त अँगूठी में डालता है।आपको दिखाई नहीं देता।वो..एक हैं वो नंगा नाचना सिखा रहे हैं।अधर्म सिखा रहे हैं।कौन से धर्म में लिखा है इस तरह की चीज?दूसरे,आजकल के गुरूओं के बारे में ये ये भी जानना चाहिए कि अपने ही मन से कोई चीज निकाल लिया।इनका पहले के गुरूओं के साथ कोई नहीं मेल बैठता।वो जैसे रहते थे,जैसी उनकी सिखावन थी।जिस तरह से उनका बर्ताव था,जो उनकी बातें थीं,उससे इनका कोई मेल नहीं बैठता।अपने धर्म के जो अनेक इतिहास चले आ रहे हैं,जिसको कि आप कह सकते हैं कि किसी भी धर्म में देखिए तो वही चीज,वही चीज कही जाती है।

आप अपने शंकराचार्य को पढ़ें,आप सहजयोग समझ लेंगे।आप कबीर को पढ़ें,आप सहजयोग समझ लेंगे,आप नानक को पढ़ें,आप समझ लेंगे।आप मोहम्मद साहब को पढ़ें,आप समझ लेंगे,क्राइस्ट को पढ़ें,आप समझ लेंगे।कन्फ्यूशियस और सोक्रेटिझ से लेकर सबको आप देखें,तो सहजयोग ही सिखाते रहे।और ये जो सब आपको सर के बल उठना और फलाना,ढिकाना और दुनिया भर की चीज आपको नचा नचा करके मारते हैं,उनको कैसे आप गुरू मान लेते हैं?

एक ही गुरू की पहचान है।जो मालिक से मिलाए,वही गुरू है,और बाकी गुरू नहीं।

सत्य पे आप अगर खड़े हुए हैं,तो आपको इसी चीज को देखना है,लेकिन इंसान इतना सुपरफिशियल हो गया है,कि वो उसको सर्कस को देखता है।

कितने तामझाम लेकर के आदमी घूम रहा है।कितनी हँडिया सर पे रखके चल रहा है।बाल कैसे बनाके चल रहा है।क्या सींग लगाके चल रहा है।गुरू की सिर्फ एक ही पहचान है कि वो सिवाए मालिक के और कोई बात नहीं जानता।उसी में रमा रहता है।वही गुरू,माने आपसे ऊँचा इंसान है।

लेकिन जिनको आप खरीदते हैं बाजार में,जिनको आप पैसा देते हैं,जो आपको बेवकूफ बनाते हैं।जो आपको हिप्नोटाइज करते हैं,उनके साथ आप बंधे हुए हैं।उनके साथ आप लगे हुए हैं,तो इस तरह के लोगों को क्या कहा जाए?और कलजुग में इस घोर कलजुग में तो ऐसे अनेक हैं।अजीब-अजीब तरीके के 1-1नमूने हैं,मैं आपसे बताती हूँ।किसका वर्णन करूँ,किसका ना करूँ।ऐसे ना कभी गुरू हुए,ना होंगे मेरे ख्याल से।जिस तरह आजकल हो रहे हैं नमूने एक से एक।पर वो ऐसी चिपकन होती है उस चीज की..कि अभी एक..वहाँ पर..देहरादून में एक देवीजी आईं..उनकी कुंडलिनी ऐसी जमी हुई..ऐसी।मैंने कहा भई!तुम कौन गुरू के पास गयी?तो उन्होंने बताया कि उनके पास गयी।तो मैंने कहा कि आपने उनके बारे में पेपर में पढ़ा कि नहीं पढ़ा?एक 18 साल की लड़की के साथ उन्होंने जो भी गड़बड़ किया था,उस लड़की ने और 25 और लड़कियों ने इसने-उसने सब कुछ छापा था।10 साल पहले छापा था।कहने लगीं हमने पढ़ा,लेकिन वो सब झूठ है।हमने कहा झूठ है,तो आपको क्या मिला उनसे?तो उनको बड़ा बुरा लग गया।कहने लगीं मैं तो माताजी शादीशुदा औरत हूँ।मैं ऐसी हूँ।तो मैंनै कहा कि ऐसे आदमी के दरवाजे जाना ही क्यों?लेकिन उसमें ये नहीं कि वो औरत बदमाश है।ये नहीं,कि वो खराब औरत है।पर उसपे hypnosis है।Hypnotized है।कोई उनको फ्रीडम नहीं गुरू बैठेंगे सात मंजिल पे जाके।आप जाइए वहाँ सेवा करिए।इतनी बड़ी बड़ी पेटियाँ रखी रहेंगी।उसमें आप पैसा डालिए।सेवा का मतलब है पैसा डालिए।

और लोग घर से पैसे भर भर के ले जाते हैं वहां डालने के लिए। ये आप देख लीजिए कहीं भी जाकर। इतनी बड़ी बड़ी ट्रंके रखी रहेंगी। अरे, हमारे भी पैर छूते हैं तो कोई एक रुपया रख जाता है कभी पांच रुपया रख जाता है। मुझे आती है हंसी। यह--मतलब आदत पड़ गई ना। हनुमान जी के मंदिर जाओ वहां भी सवा रुपया चढ़ाओ। और इसी चक्कर की वजह से हर जगह मस्जिद मंदिर हर जगह गड़बड़ करके रख दिया है। ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जो पवित्र जगह रह गई है। और इसी चक्कर की वजह से हमारे जो जवान बेटे हैं, जो जवान लोग हैं ये सोचते हैं की परमात्मा है या तमाशा है सब। (तुमको?) तो अपनी बुद्धि रखते हैं ना। वोह अभी साहब अच्छे हैं दिमाग उनके। उनको अविश्वास हो रहा है। सारे धर्मों में यह हो गया है आपको आश्चर्य होगा।

 अल्जीरिया से हमारे पास आए थे एक साहब। जवान है बहुत होशियार और इंजीनियर थे। वो भी इसी आंदोलन में। की ये इस कदर ये लोग मुसलमान और ये ‍फेनेटीसीज़म इनमें है। और इस तरह से यह लोग दुष्टता करते हैं। और यह मुल्ला लोग ऐसा पैसा खाते हैं और सब पब्लिक के पैसे पे जीते हैं। और अपने को बहुत बड़े महान समझते हैं और सब लोग उनके सामने झुकते हैं। फिर उन्होंने पोप को भी देखा वो भी एक नमूना है। तो बिल्कुल अविश्वास से भर के आए। उन्होंने कहा ये सब (?) है बिल्कुल, इसमें कोई अर्थ नहीं सब झूठ। 

जब वो हमारे पास आए तो हमने कहा ये बात नहीं है। जब सत्य है तभी उसका झूठ निकलता है। जब सत्य होता है तो उसी के आधार पे लोग झूठ बनाते हैं ना। तो सत्य भी कोई चीज है एब्सोल्यूट भी कोई चीज है। अच्छा हमने कहा तुम देखना सहज योग। सहज योग जो है ये धर्मांधता और अविश्वास के बीचों बीच है जहां परमात्मा साक्षात आपसे करा ते हैं। आप स्वयं इसका साक्षात करें, इसका अनुभव करें, उसमें जमें।

जब तक आप सहज योग में जमते नहीं तब तक आप इसका पूरा अनुभव नहीं कर सकते। जो जम गए उन्हें पूरा मिल जाता है।

 "जिन खोजा तिन पाया"। 

अगर खोजा ही नहीं तो कोई आपके पैर पे तो सत्य नहीं बैठने वाला आके की भईया मुझे खोज। उसकी अपनी प्रतिष्ठा है। उसको खोजना चाहिए लेकिन उसको खोजने से सत्य से आनंद उपलब्ध होता है।

 सत्य और आनंद दोनों ही एक ही चीज़ हैं। दोनों जैसे चंद्र की चंद्रिका होती है या जिस तरह से सुर्य का उसका अपना प्रकाश होता है। उस ही प्रकार सत्य और आनंद दोनो चीज़ें एक साथ हैं। 

जब आप सत्य को पा लेते हैं आनंद विभोर हो जाते हैं आनंद मैं रमावाण हो जाते हैं। लेकिन ये सिर्फ लेक्चर बाज़ी नहीं है की मैं आपको लेक्चर देती रहूं सुबह से शाम तक। लेक्चर से तो मेरा गला थक जाता है। अब पाने की बात है की कुछ पाओ आत्मा को पाओ।

बहुत से लोग ऐसे भी मैंने बहादुर देखें। हमें तो कुछ हुआ नहीं माताजी। माने बड़े अच्छे हो गए। होना चाहिए नहीं हुआ माने कुछ तो गड़बड़ है आपके अंदर। कोई ना कोई तकलीफ है। आप बीमार है आपका मेंटली कुछ ठीक नहीं हैं। आपने कोई गलत गुरु के सामने अपना मत्था टेका है। गर आपने अपना मत्था ही जो की परमात्मा ने इतनी शान से बनाया है इसको गलत आदमी के सामने टेक दिया है तो खत्म हो गया मामला। 

आपको हमें भी अंधता से नहीं विश्वास करना चाहिए गलत बात है। हम चाहते हैं की आप पाऔ और उसके बाद अगर आपने अविश्वास किया तो आपसे बडा मूर्ख कोई नहीं। और उसके बाद भी अगर आप जमे नहीं तो आपके लिए क्या कहा जाए। जब आप पा लेते हैं तब इसमें जमीये और जमने के बाद आप देखीये की आपकी पूर्ण शक्तियां जो भी हैं इस तरह से हाथ से बहती है और आप फिर दूसरों को भी इस आनंद को दे सकते हैं। दूसरों को भी यह सुख दे सकते हैं। और यह किस तरह से घटित होता हैं। कैसे बन पड़ता है यह आप धीरे-धीरे जैसे जैसे इसमें गुज़रते जाते हैं आप खुद इसको समझते हैं। अब इनमें से बहुत से लोग हैं 6 महीने पहले हमारे पास में आए। सिर्फ 6 महीने पहले हमारे पास में आए।

 

अभी डॉक्टर बड्ज्योत जी साहब हैं ये हमारे पास 6 महीने पहले आये और ये बहुत बड़े डॉक्टर है लंदन के इसके अलावा जर्मनी में भी प्रक्टीस हैं। जब से इन्होने पाया है इसके पीछे पड़ गए। तब से इन्होने कैंसर ठीक किये हैं दुनिया भर की बीमारियां ठीक की है। और अब कहते हैं की माँ इसको पाने के बाद बाकी सब कुछ इररेलेवेंट लगता है। क्योंकि जब आप बिल्कुल सूत्र पे ही काम करने लग गए जब सूत्र को आपने पकड़ लिया तो फिर बाकी चीजें (हिलाना?) कोई मुश्किल नहीं।

इसी प्रकार आप सब भी इसके अधिकारी हैं इसलिए इसे सहज कहते हैंँ। 

'सह' माने आपके साथ 'ज' माने पैदा हुआ। 

यह आप भी इसके अधिकारी हर एक आदमी इसका अधिकारी है और इसको पा लेना चाहिए। जैसे एक दीप दूसरे को जला सकता है उस ही प्रकार एक रीयलाज़ढ सोल (realized soul) दूसरे को रियालाइजेशन (realization)  दे सकता है पर रीयलाज़ढ (realized) होना चाहिए। गर एक दीप जला ही नहीं माने तो दूसरे का क्या करेगा। जब दूसरा दीप जल जाता है तब वो तीसरे को जलाता है। इसी प्रकार यह घटना घटित होती है और आदमी के अंदर में लाइट आ जाती है।

अब लाइट आने का मतलब ये नहीं की आप लाइट दिखते हैं। अब यह भी एक दूसरी अजीब सी चीज है की लोग लाइट देखना चाहते हैं। देखना जो होता है तब वहां आप नहीं होते। जैसे की समझ लीजिए आप जब बाहर है तो आप इस बिल्डिंग को देख सकते हैं लेकिन जब आप अंदर आ गए तो क्या देखिएगा? कुछ भी नहीं। तब तो आप सिर्फ होते मात्र हैं आप देखते नहीं है कुछ। जहां-जहां देखना होता है तो सोचना है की आप बाहर हैं। 

लाइट जो लोगों को दिखाई देती है यह शॉर्ट सर्किट हो जाता है ना वैसी लाइट है स्पार्क उठता है। इसीलिए जिस जिस को लाइट दिख रही हो वो मुझे बताएं आज्ञा चक्र टूटा है उस आदमी का। उसको ठीक करना पड़ेगा। 

यह सारे चक्र भी कुंडलिनी अपने आप ही ठीक करती चलती है। वो आपकी मां है आप हर एक की अलग-अलग मांँ है। वह आपकी जिसको सुरती कहते हैं वही यह सुरती है और यह अपने आप से चढ़ती है और अपने आप आपको ठीक कर के वहां पहुंचा देती है। आप में अगर कोई दोष भी है वो भी हम समझ सकते हैं। वह भी वो बता देती है। कोई ग़लती हो गई वो भी ठीक हो सकता है। लेकिन अपने को रिसेप्टिव मोड में रखना है कि हम इसे ले रहे हैं। प्राप्त कर लें और हो जाए।

 

अब कल भी एक बात जो उठी थी, वो आज भी दिमाग में किसी के उठ रही है की कुंडलिनी अवेकनिंग तो लोग कहते हैं बड़ी मुश्किल चीज है, बड़ी कठिन चीज है। ये कैसे होती है? कोई नाचते हैं, कोई बंदर जैसे नाचते हैं, कोई कुछ करते हैं। कुछ भी नहीं होता। 

हम ने हजारों की कुंडलिनी जागृत की है, पार किया हुआ है। ऐसा कभी भी नहीं होता है। जो परमात्मा ने आप के उद्धार के लिए चीज रखी हुई है, आप के पुनर्जन्म के लिए आप की मां है। वो आप को कोई भी दुख नहीं देती, उल्टे वो आप को अत्यंत सुखदाई है।

 

कैंसर जैसी बीमारी कुंडलिनी की अवेकनिंग से ठीक होती है। सारी बीमारी आप की ठीक होती है। इस तरह की बड़ी भारी प्रेम दायिनी, आशीर्वाद दायिनी, इस तरह की बड़ी भारी शक्ति आप के अंदर में है। इस तरह की गलत धारणाएं कर लेना की हम बंदर हो जाएंगे, मेंडक हो जाएंगे, आप को अति मानव जो बना ने वाली चीज़ है, वो आप को क्या मेंडक बनाएगी? इस चीज को आप समझ लें। अब ये कठिन होता है। उस के लिए कठिन होता है को बेवकूफ है, जिस को मालूम नहीं। जो इस का अधिकारी नहीं। उस के लिए कठिन है। जो इस का अधिकारी है और इस के सारे ही काम काज जानता है, उस के लिए बाएं हाथ का खेल है।

 

हो सकता है की हम इस के अधिकारी हैं और हम इस के सारे ही काम जानते हैं। इसलिए ये आसानी से उठती है।

 ...बहरहाल आप अपनी आँख से देख सकते हैं इसका उठना।इसकी जागृति देख सकते हैं।इसका चढ़ना भी देख सकते हैं।और उसकी हम लोगों ने फिल्म-विल्म भी बनाई है।लेकिन जो लोग बहुत  शंकाखोर होते हैं,उनके लिए सहजयोग बहुत मुश्किल से पनपता है।इस चीज को पाना चाहिए,और इसको लेना चाहिए।

आजकल जो जमाना आ गया है।जिस जमाने मे हम रह रहे हैं कलजुग में...असल में हम ये कहेंगे आध्यात्मिक दृष्टि से हम लोग बहुत ज्यादा बहुत ही ज्यादा कमजोर हैं।Insensitivity...संवेदना हमारे अंदर नहीं है।हम अध्यात्म की चीज को अगर समझते होते,और अगर समझते कि आत्मा की पहचान क्या है,तो हम कभी भी गलत गुरूओं के पीछे नहीं भागते।

लेकिन हमारे अंदर सच को पहचानने की शक्ति बहुत कम हो गयी है।क्षीण हो गयी है।हम नहीं पहचान सकते कि सच्चाई कहाँ है।उसकी वजह ये है कि हम इतने कृत्रिम हो गये हैं,इतने आर्टीफिशियल हो गये हैं।आप आर्टीफिशियल हो जाइएगा,तो आपकी सत्य को पहचानने की शक्ति कम हो जाएगी।

लेकिन जैसे गाँव में अब भी मैं देखती हूँ कि गाँव में लोग एकदम पहचान लेते हैं।वो पहले से पहचान लेते हैं कि कौन असल है,और कौन नकल है।गाँव के लोगों में नब्ज होती है इस चीज को पहचानने की।वो समझते हैं कि ये आदमी नकली है और ये आदमी असली है।पर शहर के लोग तो आप जानते हैं,कत्रिम हो जाते हैं आर्टीफिशियली रहते हैं,इसलिए शहर के लोगों को पहचान नहीं होती।

और इसीलिए जितने चोर लोग हैं,ये सब आपके शहर के पीछे लगे रहते हैं।ये सारे शहरों में आते हैं,गाँवों मे कोई नहीं काम करता।क्योंकि आपकी जेब में पैसा होतें हैं।आपकी जेब से इनको मतलब होता है।वो काहे को गाँव में चलने चले।सहजयोग हमारा गाँव में चलता है।असल में शहर में तो हम यूँ ही आते हैं।लेकिन असल में हमारा काम जो है,गाँव में होता है।गाँव के जो सीधे-सादे,सरल परमात्मा से संबंधित लोग होते हैं,वो उसको बहुत आसानी से पा लेते हैं।

उनको एक क्षण भी नहीं लगता।उनको एक क्षण भी नहीं लगता।लेकिन शहर के लोगों में एक तो शहर की आबोहवा की वजह से,और यहाँ के तौर-तरीके की वजह से आदमी इतना अपने को बदल देता है।इस कदर अपने को धर्म से गिरा लेता है।

अब ये..उसमें क्या हुआ साहब सब लोग पीते हैं बिजनेस के लिए पीना चलता है।मानो,जैसे बिजनेस ही भगवान है।उसको तो पीना ही चाहिए..उसके बिना बिजनेस कैसे चलेगा।तो या तो फिर  ये कहो कि तुम परमात्मा में या धर्म में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते।और अगर जरा भी विश्वास करते हो,तो जो अधर्म है,उसको नहीं करना है।कोई जरूरत नहीं है किसी को पीने की;यह भी एक गलतफहमी है कि;बिजनेस के लिए करना पड़ता है इसके लिए।जो आदमी अपने आप को धोखा देना चाहता है,उसको कोई नहीं बचा सकता।

.......हमारे पति भी आप जानते हैं, सरकारी नौकरी में रहे;उन्होंने बहुत बड़ी शिपिंग कंपनी चलाई,उसके बाद आज भी बहुत बड़ी जगह पर पहुंचे हुए है हमेशा उनका..मैंने उनसे एक ही बात कही थी कि;शराब मेरे बस की नहीं;और जिंदगी भर उन्होंने छुई नहीं बूँद भी।और भगवान की कृपा से बहुत सक्सेसफुल रहे;सब उनको  मानते हैं;सब उनकी इज्जत करते हैं।

आज तक किसी शराबी आदमी का कहीं पुतला बनाया कि महाशराबी थे।

मुझे एक भी बताइए..एक भी देश..इंग्लैंड में लोग इतनी शराब पीते हैं।मैंने किसी को देखा नहीं कि ये बड़ा शराबी खड़ा हुआ है,और इसकी पूजा हो रही है कि ये शराब पीता था।किसी शराबी की आज तक संसार में कहीं भी मान्यता हुई है?फिर आपका बिजनेस इससे कैसे बढ़ सकता है?अगर आपकी इज्जत ही नहीं रहेगी,तो आपका बिजनेस कैसे(अस्पष्ट)इज्जत से बिजनेस होता है,धोखाधड़ी से बिजनेस नहीं होता।जो आदमी खड़ा हो जाए,तो कहें कि एक आदमी खड़ा हुआ है ये।इस तरह से आप अपने को इन चक्करों में,इन सोसाइटीज में,इसमें-उसमें क्यों मिलाते जा रहे हैं?

आप अपने व्यक्तित्व को संभालें।इसी के अंदर परमात्मा का वास है।आजकल के जमाने में ये बातें करना ही बेवकूफी है।और कहना ही बेवकूफी है।लेकिन आप नहीं जानते कि आपने अपने को कितना तोड़ डाला है।अपने को कितना गुलाम कर लिया है।इन सब चीजों में अपने को बहा देने के बाद आपको मैं क्या दे सकती हूँ?आप ही बताइए।

अब कम से कम सबको ये व्रत लेना चाहिए कि हम खुद जो हैं,हमारी इज्जत है।परमात्मा ने हमको एक अमीबा से इंसान बनाया है।एक अमीबा छोटा सा,उससे इंसान बनाना कितनी कठिन चीज है।हजारों चीजों में से गुजार करके,इतनी योनियों में से गुजार करके आज आपके जैसे एक सुंदर सी चीज परमात्मा ने बनाके रखी।फिर आपको उसने फ्रीडम दे दी,स्वतंत्रता दे दी कि तुम चाहो तो अच्छाई को वरण करो,और चाहो तो बुराई को।

जिस चीज को चाहे तुम अपना सकते हो।तुमको बुराई को अपनाना है,चलो बुराई को अपना लो..अच्छाई को अपनाना है,अच्छाई को अपनाओ।

अब आपको भी सोचना चाहिए,कि जिस परमात्मा ने हमें बनाया हुआ है।इतनी मेहनत से बनाया है,उसने वो भी इंतजाम हमारे अंदर जरूर कर दिए होंगे,जिससे हम उसको जाने,उसको समझें..और अपने को जानें और हमारा मतलब क्या है?हम क्यों संसार में आए हैं? हमारा क्या fulfillment है?

मनुष्य ने ये कभी जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर हम इस संसार में क्यों आए?सांइटिस्ट ये क्यों नहीं सोचते कि हम अमीबा से इंसान क्यों बनाए गये?हमारी कौन सी ऐसी बात है कि जिसके लिए परमात्मा ने इतनी मेहनत की,और उसके बाद हमें स्वतंत्रता दे दी।बस इसी जगह परमात्मा भी आपके आगे झुक जाते हैं,क्योंकि आप स्वतंत्र हैं।आपकी स्वतंत्रता परमात्मा नहीं छीन सकते।गर आपको परमात्मा के साम्राज्य में बिठाना है।आपको अगर राजा बनाना है,तो आपको परतंत्र करके कैसे बनायेंगे?आपको क्या हिप्नोसिस करके बनाया जाएगा?

आप पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।आप चाहें,तो परमात्मा को स्वीकार करें अपने जीवन में,और चाहें तो शैतान को करें।दो रास्ते आपके लिए पूरी तरह परमात्मा ने खोल के रख दिए।और सबने बड़ी मेहनत करी है।

मैं आपको बताती हूँ कि गुरूओं ने कितनी आफतें उठायी हैं।इतनी मेहनत आपके पीछे सारे जितने भी अवतार हो गये,गुरूओं ने कितनी मेहनत करी है।उनको कितना सताया हमने।उनको कितना छला,उनकी कितनी तकलीफ..वो सारी बरदाश्त करके उन्होंने आपको बिठाने की कोशिश की।लेकिन कलजुग कुछ ऐसा आया बवंडर जैसे कि हम सब कुछ भूल गये,और हमारी जो भी (अस्पष्ट)उसको भूल गये।

हम पहचान ही नहीं पाते किसी इंसान की शकल देखकर कि ये असली है कि नकली..आश्चर्य है।शकल से जाहिर हो जाता है अगर कोई आदमी वाकई में परमात्मा का आदमी है।उसकी शकल से जाहिर होता है।हम ये पहचानना ही भूल गये। ये हमारे अंदर की जो सेंसिटिविटी है।जो हमारे अंदर की संवेदनशीलता है,वो पूरी तरह से खत्म हो गयी है।जब रामचंद्रजी संसार में आए थे,सब लोग जानते थे,कि ये एक अवतार हैं,कृष्ण जब आए थे सब लोग जानते थे कि ये अवतार हैं,लेकिन आज ये ज़माना आ गया कि कोई किसी को पहचानता नहीं। 

ईसा मसीह के समय भी ऐसे ही हुआ,लेकिन उस समय कुछ लोगों ने तो उन्हें पहचाना,पर आज तो ये समय आ गया है कि सब भूतों को और राक्षसों को लोग अवतार मानते हैं।इस चक्कर से अपने को हटा लेना चाहिए,और एक ही चीज माँगना चाहिए कि प्रभु!तुम हमारे अंदर जागोजिससे हम अपने को पहचान लें।आत्मा को पहचाने बगैर हम परमात्मा को नहीं जान सकते,नहीं जान सकते,नहीं जान सकते।

बाकी सब बेकार है।ये सब सर्कस है।ये सब जिसको कहते हैं,बाहरी तमाशे हैं।इस बाहरी तमाशे से अपने को संतुष्ट रखने से कोई फायदा नहीं है।आप अपने को ही धोखा दे रहे हैं।परमात्मा को कौन धोखा देगा?वो तो आपको खूब अच्छे से जानता है।

आप अपना ही नुकसान कर रहे हैं।आपको पाना चाहिए,क्योंकि आपकी अपनी शक्ति है।आपकी अपनी संपदा है।आपके अंदर सारा स्रोत है।आपके अंदर भरा हुआ सब कुछ है।जिसे आपको लेना चाहिए।और फिर इसमें जमना चाहिए।सहजयोग में जब मैं आती हूँ, लोग बहुत आते हैं,मैं जानती हूँ।लेकिन यहाँ सबका ये कहना है कि माँ!यहाँ आगे लोग नहीं जाते।अब यहाँ ऐसे लोग हमने देखे कि जिनको उम्मीद नहीं थी,वो कहाँ से कहाँ पहुँच गये।और जो कि बहुत हम सोचते थे,वो वहीं के वहीं जमे बैठे हैं।फिर लेके आ गये..वही सरदर्द वही आदतें,वही परेशानियाँ।

वही ये हो रहा है।वही वो हो रहा है।अभी भी उनका लेवल उतना ही ऊँचा उठा है।सहजयोग में जब तक आप लोगों को देंगे नहीं,तब तक आपकी प्रगति नहीं होगी,देना पड़ेगा।जैसे-जैसे आप देते रहेंगे,वैसे वैसे आप आगे बढ़ेंगे।कोई जब हम कोई बड़ी बोट तैयार करते हैं,शिप तैयार करते हैं,अगर उसको हम पानी में नहीं छोड़ें,तो उसका क्या अर्थ निकलता है?उसी प्रकार है,अगर मनुष्य परमात्मा को पा करके भी घर में बैठ जाए,तो ऐसे दीप से फायदा क्या?जो जला करके आप टेबल के नीचे रख दीजिए।दीप इसलिए जलाया जाता है,कि दूसरों को प्रकाश हो जाए।उससे आप अपने अंदर अपने को भी देख सकते हैं,और दूसरों को भी देख सकते हैं।

आप अपने भी चक्र देख सकते हैं,और दूसरों के भी देख सकते हैं।आप अपनी (अस्पष्ट)और दूसरों की व्यथा को भी देख सकते हैं।और आप ये समझ सकते हैं कि दूसरों को किस तरह से देना चाहिए।किस जगह ये चीज रूक रही है।किस तरह से इसको हमें बनाना चाहिए।आज के लिए इतना काफी है।हम लोग अब जरा ध्यान करें।देखें कि कितने लोग पार होते हैं।


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