मूलाधार चक्र की जानकारी (श्री माताजी द्वारा)-
...... सबसे पहले कार्बन का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भाव हुआ, वह है पहला चक्र जिसे कि मूलाधार चक्र कहते हैं।
प.पू.श्री माताजी, १५.३.१९८४
..... मूलाधार चक्र कार्बन के अणुओं से बना है। कार्बन के अणुओं को जब आप देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे कि बाईं ओर से देखने पर ॐ सम दिखायी देते हैं, दाई ओर से स्वस्तिक सम पर इसी को जब आप नीचे से ऊपर की ओर देखते हैं तो ये अल्फा तथा ओमेगा (a-a)(आदि-अंत) सम प्रतीत होते हैं।
प.पू.श्री माताजी, दिल्ली, ६.४.१९९७
...... हमारा पहला चक्र लाल रंग का है, यह हमारी अबोधिता का चक्र है।
प.पू.श्री माताजी, पीटर्सबर्ग, १.८.१९९३
...... इसकी चार पंखुरियाँ हैं (उपचक्र)। त्रिकोणाकार अस्थि के नीचे स्थित यह चक्र शारीरिक स्तर पर श्रोत्रि चक्र (पैल्विक प्लेक्सस) जो कि हमारी यौन गतिविधि सहित मलोत्सर्जन की देखभाल करता है, कि अभिव्यक्ति के लिये
उत्तरदायी है।
कुण्डलिनी जब उत्थित है तो यह चक्र उत्सर्जन के कार्यों में तो निष्क्रिय हो जाता है परन्तु कुण्डलिनी के उत्थान में सहायता के लिये क्रियाशील रहता है।
सहजयोग पुस्तक से
इस चक्र में श्री गणेश बसते हैं। श्री गणेश चक्र (मूलाधार चक्र) जो है गौरी कुण्डलिनी को, उसके पावित्र्य को, सँभालते हैं। ......ये हमारे अन्दर सुजनता जिसे विज्डम कहते हैं वो देते हैं .....हमारी अबोधिता और पवित्रता हमें प्रदान करते हैं। विवेक बुद्धि भी श्री गणेश हमें हमारे अन्दर देते हैं।
प.पू.श्री माताजी, १५.१.१९८४
....... श्री गणेश शक्ति पृथ्वी के अन्दर गुरुत्वाकर्षण शक्ति है जिसे कि आप कहते हैं Gravity, यही शक्ति इन्सान में मूलाधार चक्र में है और जो इन्सान के अन्दर ग्रैविटी है, जब वह खराब हो जाती है, उसका वज़न खराब हो जाता है, तब उसका
(आत्मसम्मान) Self Esteem कम हो जाता है, वो कमजोर, हीन हो जाता है। उसकी आँखें इधर-उधर दौड़ने लग जाती हैं, उसका मन खराब हो जाता है और उसका चित्त बिखर जाता है, तब उसकी Gravity खत्म हो जाती है।.. आपका गणेश चक्र पकड़ा जाता है तो आपका Innocence जो है वो खत्म
हो जाता है। आप चालाक हो जाते हैं। जो महाबेवकूफ होता है वहीं चालाकी करता है।
प.पू.श्री माताजी
....... आँख का सम्बन्ध हमारे मूलाधार चक्र से बहुत नज़दीक का है। (सहस्रारमें) पीछे की तरफ भी हमारा मूलाधार चक्र है। ....... जो लोग अपनी आँखे बहुत इधर-उधर चलाते हैं, उनको मैं आगाह कर देना चाहती हूँ कि उनका मूलाधार चक्र बहुत
खराब हो जाता है और अजीब-अजीब तरह की परेशानियाँ उनको उठानी पड़ती है।
प.पू.श्री माताजी, दिल्ली, १५.२.१९८१
चक्र के अंतर्जात गुण
१. अबोधिता - श्री गणेश हमारे अन्दर अबोधिता के स्रोत हैं।....अबोधिता ऐसी शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है। ......यही
अबोधिता आपको अन्य लोगों से प्रेम करना, उनकी देखभाल करना, उनके प्रति भद्र होना सिखाती है। अबोधिता में भय बिल्कुल भी नहीं होता। जैसे बच्चा अपनी अबोधिता में जानता है कि उसकी देखभाल हो रही है और वह सुरक्षित है, वह जानता है कि कोई शक्ति है जो बहुत ऊँची है, उसे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प.पू.श्री माताजी, कोमो, २५.१०.१९८७
...... अबोधिता की यह पहचान है कि मनुष्य को सभी में पवित्रता दिखायी देती है, क्योंकि अपने आप पवित्र होने के कारण वह अपवित्र नज़रों से किसी को नहीं देखता है।
प.पू.श्री माताजी, बम्बई, २२.९.१९७९
२. पवित्रता - पवित्रता आनन्दमयी है, केवल आनन्दमयी ही नहीं, यह पूरेे व्यक्तित्व को सुगंधमय कर देती है।
प.पू.श्री माताजी, २९.११.१९८४
...... दृष्टि की पवित्रता और विचारों की पवित्रता .. आपकी दृष्टि यदि पवित्र है तभी आप परमात्मा के प्रेम का आनन्द उठा सकते हैं अन्यथा नहीं।......पावन प्रेम में वासना और लोभ का कोई स्थान नहीं होता। आप मेरे बच्चे हैं, आप निर्मल के बच्चे हैं, अर्थात् पावनता के, पावनता ही आपके जीवन का आधार है।
प.पू.श्री माताजी, टर्की, २३.४.२०००
३. बुद्धि (विवेक) - बुद्धि, विवेक श्री गणेश जी का प्रथम तथा सर्वोच्च वरदान है। हम सीखते हैं कि हमारे लिये क्या सही है और क्या गलत है, रचनात्मक क्या है और विध्वंसात्मक क्या है। विवेक शील व्यक्ति वह है जिसे यह ज्ञान है कि उसकी अपनी शक्तियाँ कोई गलत कार्य करने के लिये नहीं है, वह बुराई करता ही नहीं। विवेक हमारे अन्दर पूर्ण शक्ति है, जिसके द्वारा हम कोई प्रयास नहीं करते, यह हमारे माध्यम से स्वत: ही
कार्य करता है और तब हम केवल उचित कार्य ही करते हैं।
प.पू.श्री माताजी, बर्लिन, जर्मनी, २७.७.१९९३
४. चुम्बकीय शक्ति- ......चुम्बकीय शक्ति एक चमत्कार है ........ये चमत्कार आपके अपने व्यक्तित्व से आता है, आपके व्यक्तित्व से। इस चुम्बकीयपन का आधार बाईं ओर से शुरू होता है, श्री गणेश ये आधार हैं।
यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आपमें कितनी चुम्बकीय अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो अन्य लोगों को अपने वज़न ( गरिमा)
अपने गुणों से आकर्षित करता है। व्यक्ति को चाहिये कि इसे अत्यन्त सूक्ष्म तरीके से समझे कि चुम्बकीय शक्ति क्या है? कुछ लोग अन्य लोगों को आकर्षित करने के लिए बनावटी संकेतों का उपयोग करते हैं, जिस प्रकार वे वस्त्र धारण करते हैं, वे चलते हैं और रहते हैं, इन सारी चीजों का कोई उपयोग नहीं है। ये शक्ति तो आंतरिक है, ये सुगंध अत्यन्त आंतरिक है। इसे विकसित किया जाना चाहिये।
प.पू.श्री माताजी, कोल्हापुर, १.१.१९८३
५. संतुलन - हर समय आपको संतुलन बनाये रखना है, इसके लिये यह समझ लेना आवश्यक है कि आप चीज़ों के अति में न जाये।..आप यदि अति में जाते हैं तो कुछ भी कार्यान्वित न होगा।
प.पू.श्री माताजी, कबैला, १.८.१९९९
प्रकृति की सारी चीजें संतुलित हैं। संतुलन बनाये रखने का कार्य श्री गणेश ही करते हैं, वे ही आपको संतुलन प्रदान करते हैं। स्थिर होने पर श्री गणेश संतुलन लाते हैं, जब ये दायें की ओर जाने लगते हैं तो कोई निर्माणकारी कार्य शुरू
होता है, तब जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ ये करते हैं, परन्तु विपरीत दिशा में चल पड़े तो विध्वंसक हो उठते हैं। इनके संतुलन के बिना मानव जीवन नहीं चल सकता। इनके दोनों गुणों रचनात्मक तथा विध्वंसक का संतुलित होना आवश्यक है।
प.पू.श्री माताजी, आस्ट्रेलिया, फरवरी १९९२
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