Tuesday, June 23, 2020

Sahaja Yoga Beginings - Hindi Article

सहजयोग ध्यान पद्धति


विश्व भर में अनेकों प्रकार की ध्यान की पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक है सहजयोग ध्यान पद्धति। जैसा कि इसके नाम .... सहजयोग से ही ज्ञात होता है कि ये एक अत्यंत सरल ध्यान धारणा की विधि है। 

इस ध्यान की विधि की खोज श्रीमाताजी निर्मला देवी ने गुजरात राज्य के नारगोल नामक स्थान पर समुद्र तट पर 5 मई 1970 को विश्व का सहस्त्रार खोल कर की थी।



इस अद्भुत और अलौकिक घटना के बाद ही सामूहिक रूप से जन-जन की कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाने लगा।

 इससे पूर्व प्राचीन काल में लोग भले ही कुंडलिनी जागरण के बारे में जानते थे परंतु उन दिनों में एक गुरू केवल एक ही शिष्य की कुंडलिनी को जागृत करता था। 

इसके अतिरिक्त साधक जंगलों में जाकर वर्षों तक तपस्या करके अपने चक्रों का शुद्धीकरण करके भी अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया करते थे। 

गीता के छठे अध्याय में श्रीकृष्ण ने भी कुंडलिनी शक्ति का विवरण दिया है, परंतु उस समय कुंडलिनी को जागृत करने की विधा किसी को भी ज्ञात न थी, अतः समाज के धर्म मार्तंडों ने गीता के छठे अध्याय को पढ़ना ही वर्जित कर दिया। 

संत ज्ञानेश्वर जी


इसके बाद संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने गुरू और बड़े भाई संत श्री नेमिनाथ जी से कुंडलनी के ज्ञान को सार्वजनिक रूप से बताने की आज्ञा मांगी और ज्ञानेश्वरी नाम के ग्रंथ की रचना की। 

ज्ञानेश्वरी वास्तव में संत ज्ञानेश्वर द्वारा गीता पर लिखा गया भाष्य या विश्लेषण है, जिसमें उन्होंने योग और कुंडलिनी पर विस्तार से लिखा है। 

इसके विपरीत सहजयोग में परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी की असीम कृपा से श्रीमाताजी के चित्र को सामने रख कर प्रार्थना करने मात्र से ही तत्क्षण कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। 

एक बार जब हमारी कुंडलिनी जागृत हो जाती है तो ध्यान धारणा के माध्यम से शनैः शनैः साधक अपने चक्रों का शुद्धीकरण कर सकता है। 

इसका अर्थ है कि पहले कुंडलिनी को जागृत कर बाद में शुद्धीकरण की क्रियायें की जाती हैं, जबकि पूर्व में चक्रों का शुद्धीकरण पहले और तत्पश्चात कुंडलिनी का जागरण किया जाता था जो एक लंबी प्रक्रिया थी। 

छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू संत श्री रामदास स्वामी ने भी कहा था कि कुंडलिनी का जागरण तत्क्षण किया जा सकता है, बस देने वाला योग्य गुरू और एक सत्य का साधक अर्थात लेने वाला होना चाहिये। 

सहजयोग शब्द की उत्पति 

सहज शब्द संस्कृत के दो शब्दों को जोड़ कर बना है, ‘सह’ और 'ज'। सह का अर्थ है ‘साथ’ और ‘ज’ का अर्थ है ‘जन्मा हुआ’ अर्थात आपके साथ जन्मा हुआ तंत्र । 

योग से तात्पर्य आत्मा का परमात्मा से मिलन या जुड़ना है। 

अत: सहजयोग वह तरीका है जिसमें मनुष्य की आत्मा का परमात्मा से योग होता है।  मानव शरीर में जन्म से ही कम्प्यूटर के समान एक सूक्ष्म प्रणाली अदृश्य रूप में हमारे अन्दर स्थित होती है, जिससे हम अपने योग घटित होने तक अनजान ही होते हैं।

 इस सूक्ष्म तन्त्र के अंतर्गत आध्यात्मिक भाषा में मुख्य रूप से सात चक्र, तीन नाड़ियाँ एवं एक अत्यंत शक्तिशाली ऊर्जा होती है। 

इन तीन नाड़ियों को इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के नाम से जाना जाता है। 

इसके अतिरिक्त परमात्मा के प्रतिबिंब के रूप में कुण्डलिनी नाम की शक्ति मानव शरीर की रीढ़ की हड्डी की अंतिम अस्थि (सैक्रम बोन) में स्थित होती है, जिसको कोई भी योग्य गुरू सरलता से जागृत कर सकता है। 

श्री आदिशंकराचार्य जी

श्री आदिशंकराचार्य जी ने तो अपने सुंदर काव्य सौंदर्य लहरी में यहाँ तक कहा कि कुंडलिनी को भगवती आध्याशक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भी जागृत नहीं कर सकता है।

 यही कारण है कि विश्व भर के सहजयोगी श्रीमाताजी निर्मला देवी को भगवती आदिशक्ति के अवतरण के रूप में पूजते हैं।

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